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डॉ० श्रीनिवास

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डॉक्टर श्रीनिवास(30दिसंबर 1919-02 नवंबर 2010) प्रख्यात हृदय रोग चिकित्सक,अविष्कारक,आध्यात्मिक चिंतक और साहित्यकार थे। उनका जन्म तत्कालीन दरभंगा जिला के गढ़सिसई गांव (वर्तमान समस्तीपुर जिला) में हुआ था। पिता रामप्यारे सिंह देशी चिकित्सा के ज्ञाता थे और माँ कमला देवी धर्मनिष्ठ महिला थीं। उन्हें भारत का पहला हृदयरोग विशेषज्ञ (कार्डियोलॉजिस्ट) माना जाता है। भारत सरकार के डाक तार विभाग ने उनपर एक विशेष आवरण डाक टिकट जारी कर उन्हें सम्मानित भी किया।

शिक्षा[सम्पादन]

डॉ० श्रीनिवास की प्रारंभिक शिक्षा घर पर और गांव के पाठशाला में हुई। 1932 में उनका दाखिला समस्तीपुर के किंग एडवर्ड इंगलिश हाई स्कूल की आठवीं कक्षा में हुआ। डॉ० श्रीनिवास मेधावी थे। आठवें क्लास से ही उन्हें मेरिट स्कालरशिप मिलने लगा था। 1936 में डॉ० श्रीनिवास ने स्कूली शिक्षा पूरी हुई। पटना के साइंस कॉलेज से आई.एस.सी और प्रिंस ऑफ़ वेल्स मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (अब पटना मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल) से 1944 में एम.बी.बी.एस किया। एम.बी.बी.एस की परीक्षा में सर्वाधिक अंक लाकर स्वर्ण पदक प्राप्त किया।[१]

डॉ० श्रीनिवास को 1948 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में उच्च शिक्षा के लिए एला लैमन काबेट फ़ेलोशिप मिला। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से उन्होंने डॉक्टर ऑफ़ मेडिसिन (एम.डी), डॉक्टर ऑफ़ साइंस (डी.एससी) की डिग्री ली। उन्हें यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैनसस से हस्केल फैलोशिप भी मिला। हार्वर्ड, अमेरिका में 'आधुनिक ह्रदय रोग चिकित्सा विज्ञान के जनक' विश्वविख्यात डॉ पॉल डुडले व्हाइट से प्रशिक्षित डॉ श्रीनिवास अकेले ऐसे भारतीय थे जिन्हें उनसे प्रशिक्षण पाने का दुर्लभ अवसर प्राप्त हुआ था। वे लंदन, स्पेन, फ्रांस, जर्मनी इत्यादि जगहों पर भी ज्ञानार्जन के लिए गए।[२]

भारत में कार्डियोलॉजी[सम्पादन]

डॉ० श्रीनिवास का कार्डियोलॉजी में प्रशिक्षण डॉ पॉल डडले व्हाइट की देख रेख में हुआ। डॉ व्हाइट से प्रशिक्षण पाने वाले डॉ० श्रीनिवास पहले और आखिरी भारतीय थे। यहां यह बताना उपयुक्त होगा कि डॉक्टर व्हाइट को आधुनिक ह्रदय रोग विज्ञान का पितामह माना जाता है। 1940-1950 की अवधि में विभिन्न देशों के बहुत सारे डॉक्टर प्रशिक्षण पाने डॉ० व्हाइट के पास आये। डॉ० व्हाइट से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद इन डॉक्टरों ने अपने-अपने देशों में कार्डियोलॉजी विभाग की नींव डाली। (मालूम हो कि उस वक्त अमेरिका के बाहर बहुत से देशों में अलग से कार्डियोलॉजी का कोई विभाग नहीं था।)

उसी प्रकार डॉ० व्हाइट से प्रशिक्षण पाने के बाद जब डॉ० श्रीनिवास अपने देश भारत लौटे तब भारत में कार्डियोलॉजी स्पेशिलिटी की स्थापना हुई। इस नाते डॉ० श्रीनिवास को भारत के कार्डियोलॉजी का पितामह कहा जाता है। उस वक्त तक भारत में सामान्य चिकित्सक ही ह्रदय रोग के मरीजों का इलाज करते थे।[३]

डॉ० श्रीनिवास वापस हिंदुस्तान, अपने गृह प्रदेश बिहार लौट आये। उन दिनों पटना मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल में ह्रदयरोग के इलाज के लिए अलग से कोई विभाग नहीं था न ही कोई वार्ड। उनका ईलाज जेनरल वार्ड में ही किया जाता था। उन्होंने ह्रदय रोग की चिकित्सा के लिए अलग विभाग बनाया। 1950 के आखिरी दिनों में पीएमसीएच के एक कमरे में इस विभाग की शुरुआत हुई। यह विभाग पूरे पूर्वोत्तर भारत में पहला था। यहां आने वाले मरीजों में सिर्फ बिहार के ही नहीं वरन पूर्वोत्तर राज्यों के अतिरिक्त सिक्किम, भूटान, और नेपाल के भी मरीज थे।

उन दिनों ह्रदय रोग की जांच करने वाला ई.सी जी मशीन भारत में नहीं था। डॉ० श्रीनिवास इसे अपने साथ अमेरिका से लेकर आये थे। इसी मशीन से उन्होंने मरीजों का इलाज शुरू किया। इसी मशीन से उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद, प्रधानमंत्री पंडित नेहरू और नेपाल नरेश किंग महेंद्र का भी इलाज किया।

डॉ० श्रीनिवास के लंबे संघर्ष के बाद यह विभाग एक कोठरी से निकलकर इंदिरा गांधी ह्रदय रोग संस्थान के रूप में विकसित हुआ। वे इसके संस्थापक निदेशक बने। इस संस्थान के स्थापना की कहानी बहुत ही रोचक है। डॉ० श्रीनिवास ने अपनी नौकरी को खतरे में डालते हुए इसकी स्थापना की थी।[४]

इंदिरा गांधी हृदय रोग संस्थान की स्थापना[सम्पादन]

यह उन दिनों की कहानी है जब डॉ. श्रीनिवास कार्डियोलॉजी में विशेषज्ञता हासिल कर सात वर्षों के बाद पटना लौटे थे। पटना मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल में उनकी नियुक्ति मेडिसिन विभाग में प्रमुख के तौर पर हुई थी। उन दिनों ह्रदय रोग के मरीजों के लिए अलग से कोई व्यवस्था नही थी। डॉक्टरों से उन्हें जो ईलाज मिलना चाहिए था, वह नहीं मिल पा रहा था। ऐसे में डॉ. श्रीनिवास को लगा कि सात वर्षों तक उन्होंने जो पढाई की, उसका कोई सार्थक उपयोग नहीं हो पा रहा है।

जिस भवन में अभी इंदिरा गांधी ह्रदय रोग संस्थान है, उन दिनों वह खाली पड़ा हुआ था। उसमें इन्फेक्शस डिजीज के अस्पताल खोलने की बात चल रही थी। डॉ. श्रीनिवास ने सोचा  कि इन्फेक्शस डिजीज का अस्पताल भी जरूरी है। लेकिन उससे भी ज्यादा जरूरी था ह्रदय रोग का अस्पताल। ऐसे में एक दिन रात में जोखिम लेते हुए उन्होंने ह्रदय रोग के सात- आठ रोगियों को उस वीरान पड़े भवन में शिफ्ट कर दिया।

अगले दिन सुबह आठ बजते-बजते चारों तरफ हंगामा हो गया। अरे! डॉक्टर साहब ने तो सरकार का अस्पताल ही हड़प लिया है। ऐसा कभी हुआ क्या? वे तो मरीज भी चुरा कर ले गए। जबर्दस्ती किया। जितनी भी शिकायत हो सकती थी, की जाने लगी।

9 बजे हॉस्पिटल सुपरिन्टेन्डेन्ट आये। उन्होंने डॉ. श्रीनिवास को बुला भेजा। उन्हें देखते ही कहा- 'आपने तो गजब कर दिया। आपने तो मकान ही कब्जे में कर लिया। डिसिप्लिन ही तोड़ दिया। जाइये डायरेक्टर हेल्थ सर्विसेस ने आपको बुलाया है।'[५]

डरते-डरते डॉ. श्रीनिवास सचिवालय में डायरेक्टर हेल्थ सर्विसेस के कार्यालय में गए। उन दिनों डॉक्टर कर्नल बी. सी. नाथ डायरेक्टर हुआ करते थे। एकदम कड़क। उन्होंने डॉ. श्रीनिवास देखते ही कहा- 'क्यों डॉक्टर श्रीनिवास! आपको सरकार की नौकरी करनी है या नहीं?' डॉ. श्रीनिवास ने कहा - 'ऐसा तो मैंने कभी नहीं कहा है कि मुझे नौकरी नहीं करनी है।' तब उन्होंने कहा, 'आपने जो हरकत की है उससे मैं हैरान हूँ। आपने तो मकान ही हड़प लिया। उस हॉस्पिटल में तो न कोई नर्स है, न कोई वार्ड अटेंडेंट ही। कोई सुविधा भी नहीं है। ऐसे में आपने हृदय रोग के मरीजों को वहां ले जा कर रख दिया। क्या यह उचित है?' उन्होंने डॉ. श्रीनिवास से पूछा।

तब डॉ. श्रीनिवास ने विनम्रता के साथ उनसे कहा, 'अगर आप की अनुमति हो तो मैं आप से कुछ कहूं।' उन्होंने अनुमति दी। ' तो डॉ. श्रीनिवास ने कहा, 'मुझे सात वर्षों तक दुनिया के बड़े -बड़े डॉक्टरों के साथ काम करने का अवसर मिला। हृदय रोग में मैंने विशेषज्ञता हासिल की। अब यहाँ आकर अस्पताल में देखता हूं कि हृदय रोग के मरीजों का ठीक से ईलाज नहीं हो पा रहा है। उन्हें जेनरल वार्ड में रखा जा रहा है। तो मुझे लगता है कि मैंने जो ट्रेनिंग पाई है, वह व्यर्थ जा रहा है।' सुनकर कर्नल नाथ ने कहा, ठीक है -'आप जाइये।' डॉ. श्रीनिवास ने राहत की सांस ली।

अगले दिन जब डॉ. श्रीनिवास उस भवन में गए तो देख कर आश्चर्यचकित रह गए कि वहां नर्स भी थीं, वार्ड अटेंडेंट भी थे और सफाई करने वाले भी। पता चला कि डॉक्टर कर्नल नाथ ने फोन कर इस नए अस्पताल में जो भी जरूरी हो सकता था, करने के लिए कहा।[६]

डॉ. श्रीनिवास का प्रयास सार्थक रहा। अब हॉस्पिटल तो बन गया था। लेकिन ईलाज के लिए जितने संसाधन चाहिए थे, उसका घोर आभाव था।  फण्ड की कमी थी। तब डॉ. श्रीनिवास दिल्ली गए। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिलने की अनुमति ली। उस वक्त तक देश में कार्डियोलॉजी का अलग से कोई अस्पताल नहीं था। उन्होंने प्रधानमंत्री से कहा कि मैं चाहता हूं कि देश के पहले हार्ट हॉस्पिटल का नाम आपके नाम पर हो। इंदिरा गांधी ने सहमति दे दी। तब डॉ. श्रीनिवास ने कहा कि जिस हॉस्पिटल का नाम आप के नाम पर हो तो क्या आप नहीं चाहेंगी कि वह उन्नति करे ? तब उन्होंने मुस्कुराते हुए डॉ. श्रीनिवास को देखा और पूछा - 'कितना पैसे चाहिए? डॉ. श्रीनिवास ने कहा - दस करोड़!' वे पैसे उन्हें दिए गए।

इस तरह से डॉक्टर श्रीनिवास ने एक छोटी सी शुरुआत की थी। आज यह संस्थान देश के सर्वोत्तम संस्थानों में से एक है।[७]


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  1. 2019 में आंनद कुमार....1947 के डा श्रीनिवास । सुपर 30 देख लिए.. सुपर 1 सुन लिजिए !, अभिगमन तिथि 2021-10-06
  2. Kumar, Dr Manish (2010-11-13). "Neurosurgeon: Father of Polypathy and great cardiologist Dr Shreenivas dies at 91". http://indianneurosurgeon.blogspot.com/2010/11/father-of-polypathy-and-cardiac-wizard.html. 
  3. "डॉक्टर्स डे: डॉ. श्रीनिवास को इसलिए आज भी किया जाता है याद, चिकित्सा क्षेत्र में किए थे ये बड़े काम" (hindi में). https://www.patrika.com/science-tech-news/dr-srinivasan-is-remembered-for-these-works-today-4778525/. 
  4. बिहार का वो शख्स जिसकी वजह से आज आपकी दिल की धड़कनें गीत गाती है। THV, अभिगमन तिथि 2021-10-07
  5. भारत के पहले हार्ट सर्जन पटना के डॉ. श्रीनिवास की कमाल कहानी | Qitabwala | The Lallantop, अभिगमन तिथि 2021-10-10
  6. "श्रीनिवास आप कहानी बन कर मुझ तक आए, आपकी कहानी लोगों तक पहुंचा रहा हूं". https://ndtv.in/blogs/ravish-kumars-blog-on-story-of-srinivas-2058098. 
  7. सिंह, अरुण (2016). सहज योगी: डॉ. श्रीनिवास. शाहदरा, दिल्ली: डायमंड बुक्स. पृ॰ 9, 10. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-93-5261-059-4. 


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