तिरोहे
मैं सत्येंद्र गुप्ता नज़ीबाबाद उत्तर पर्देश का रहने वाला हूँ मैंने काव्य में नई विधा का जन्म दाता हूँ . मैंने छ्न्द रुबाई मुक्तक आदि को चार लाइनो में न कह्कर तीन लाइनो में कहा है. और इस तीन मिसरी शायरी को मैंने नाम दिया है - तिरोहे - . तिरोहे में पहला मिसरा सव्तन्त्र है दूसरा और तीसरा मिसरा रदीफ और क़ाफिये में है उदाहरण
उसकी शान में कुछ तो अता कर
हर चीज़ मिल जाती है दुआ से
मांग कर तो देख ले खुदा से
तेरे मुक़ाबिल कोई दूसरा भी तो नहीं
ए चांद तूने भी तहलक़ा मचा रखा है
सबकी खुबसुरती का ज़िम्मा उठा रखा है
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