दगदुशेठ मंदिर, पुणे
इतिहास[सम्पादन]
दगडूशेठ दम्पत्ती पुणे में एक मिठाई की दुकान चलाते थे। आगे चलके वे एक सफल व्यापारी बने और आज भी उनकी मूल दुकान अभी भी पुणे के दत्ता मंदिर के पास "दगडूशेठ हलवाई स्वीट्स" के नाम से मौजूद है । फिर एक समय आते आते वे एक एक सफल व्यापारी और अमीर इंसान बन गए । अठारासौ के अंतिम दशक में प्लेग, हैजा महामारियां फैल रही थी जिसमे उनके इकलौते पुत्र की मृत्यु हो गई । इस त्रासदी के बाद उनसे एक एक गुरु ने भेंट की, जिन्होंने उनसे उनके पुत्र की याद में भगवान श्री गणेश को समर्पित एक मंदिर बनाने के आग्रह किया। अब जैसे उनका कोई उत्तराधिकारी नहीं था तोह उन्होंने अपने भतीजे गोविंदशेठ को गोद लिया जो उनकी मृत्यु के समय 9 वर्ष का था। गोविंदशेठ का जन्म 1891 में हुआ था। अभी जो मूर्ति आप मंदिर में दर्शन करते है वह मूल मूर्ति नहीं है, मूल मूर्ति अब अकरा मूर्ति चौक पर मौजूद है ।
दगडूशेठ पहले पहलवानी भी कर चुके थे और इसके प्रशिक्षक भी थे तोह उन्होंने पहलवानों के प्रशिक्षक केंद्र में भी एक मूर्ति की स्थापना की । इसे जगोबा दद तालीम के नाम से जाना जाता है । पुणे में एक चौक उनके नाम पर भी रखा गया है । इन्होंने बहुत सारे हिन्दू पर्वों को अपनी माता के साथ मिलकर संभाला । पुणे में लक्ष्मी रॉड का नाम लक्ष्मीबाई दगडूशेठ हलवाई के नाम पर रखा गया था । गोविंदशेठ की मृत्यु 1943 में हो गयी । उनके पुत्र दत्तात्रेय गोविंदशेठ का जन्म 1926 में हुआ । इन्होंने आगे चलकर एक नई गणेश मूर्ति की स्थापना की । इस मूर्ति को नवसाचा गणपति के नाम से जाना जाता है ।
मंदिर ट्रस्ट[सम्पादन]
श्रीमंत दगडूशेठ हलवाई गणपति ट्रस्ट प्राप्त दान से परोपकारी कार्य करता है, और महाराष्ट्र में सबसे अमीर लोगों में से एक है। ट्रस्ट पुणे में कोंढवा में पिताश्री नामक एक वृद्धाश्रम का संचालन करता है। यह घर ₹15 मिलियन (US$190,000) की लागत से बनाया गया था और मई 2003 में खोला गया था। उसी इमारत में ट्रस्ट 400 निराश्रित बच्चों के लिए आवास और शिक्षा प्रदान करता है। ट्रस्ट द्वारा प्रदान की जाने वाली अन्य सेवाओं में गरीबों के लिए एम्बुलेंस सेवा और स्वास्थ्य क्लीनिक शामिल हैं। पुणे जिले के आदिवासी इलाकों में।
बाहरी कड़ी[सम्पादन]
https://vedictempleshrines.blogspot.com/2023/04/dagdusheth-ganesh-temple-of-pune.html?m=1