दुधालेश्वर महादेव मंदिर
आस्था का प्रमुख केन्द्र दुधालेश्वर धाम राजस्थान के अजमेर जिले की तहसील ब्यावर के ग्राम बरसावाडा (टॉडगढ़) से पश्चिम की ओर अरावली पर्वत श्रेणियों में स्थित है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि[सम्पादन]
मगरांचल के राजपूत समाज के पूर्वज कोठाजी चौहान की नवीं पीढ़ी में कोलाजी के पौत्र, मालाजी के ज्येष्ठ पुत्र खंगारजी चौहान का जन्म १५२३ ई. को ग्राम बरसावाडा़ में हुआ। खंगारजी चौहान धार्मिक वृत्ति के व्यक्ति थे तथा सारण गुरुद्वारे के आयसजी निर्मलावन जी के शिष्य थे। अजमेर जिले के कश्मीर के नाम से प्रसिद्ध धाम पर १५७८ ई. में साधुवेश में भगवान महादेव ने एक शिवभक्त ग्वाले खंगार जी चौहान को दर्शन दिये थे। जनश्रुति व वंशपरम्परा की बातों के अनुसार एक दिन दोहपर बाद में जंगल में गायें चरा रहे खंगारजी की भक्ति और श्रद्धा से प्रसन्न होकर भगवान महादेव साधुवेश में पधारे। उन्होनें खंगारजी से जल, दूध और भोजन मांगा, लेकिन खंगारजी व अन्य ग्वालों ने दोहपर में ही अपना भोजन-पानी खत्म कर लिया था। रही बात दूध की तो बिना बछड़ों के गायें भी दूध नहीं निकलावती। ऐसे में निराश खंगारजी ने पानी, दूध व भोजन में असमर्थता जताई। खंगार जी ने एक किलोमीटर दूर जल स्त्रोत निलवाखोला जाकर जल, दूध व भोजन लाने की आज्ञा मांगी। इस पर महात्माजी ने चमत्कार दिखाया। महात्माजी ने खंगारजी को ग्रास का गुच्छा उखाड़ने को कहा। जैसे ही ग्रास का गुच्छा उखाड़ा तो जमीन से जलधारा फूट पड़ी। खंगारजी को यह देखकर आश्चर्य हुआ और सोचने लगे कि यह साधु कोई साधारण संन्यासी नहीं बल्कि बहुत ही चमत्कारिक महात्मा देवाधिदेव महादेव ही हो सकते है। महात्मा ने पानी पीकर कहा कि इस पानी को इकट्ठा करने के लिए गढ्ढा खोदकर कुई बना दो। वर्तमान में वहां छोटी पवित्र बावड़ी है जिसे गंगा मैया नाम दिया गया है। बावड़ी में जलधारा निरन्तर एक ही प्रवाह में बह रही है। इस पर अतिवृष्टि और अनावृष्टि की कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, यहां श्रद्धालु पानी में सिक्के डालकर बुलबुलों के उठने, ना उठने में अपनी मनोकामनाओं का फल देखते हैं। बाद में महात्माजी ने जल पीकर गायों की ओर देखकर दूध मांगा। खंगारजी ने कहा बिना बछड़ों के दूध नहीं निकलवाती। ऐसे में महात्माजी ने जलधारा पर पानी पीने आई पहली बछड़ी का दूध निकालने को कहा। खंगारजी बोले कि बिना प्रसव के कोई गाय दूध नहीं देती। लेकिन महात्माजी की आज्ञानुसार खंगारजी ने बछड़ी के स्तनों से दूध निकालने हेतु हाथ आगे बढ़ाया ही था कि बछड़़ी के स्तनों से दूध की धारा फूट पड़ी। इसलिए इस स्थान का नाम दूधालेश्वर पड़ा। महात्मा ने जल व दूध पीकर भोजन की मांग रखी। शाम को जंगल में भोजन की व्यवस्था करना संभव नहीं था। ऐसे में महात्माजी ने अपनी जटाओं में से एक डेगची और कुछ चावल के दाने निकालकर खीर बनाने के लिये दिये। अब तो खंगारजी को पूर्ण विश्वास हो गया कि वह साक्षात् महादेव के सामने ही खड़े है और उनकी आज्ञा से ही कार्य कर रहे है। खंगारजी ने बड़े मनोयोग से डेगची में दूध और चावल से खीर बनाई। उसी खीर को सभी ने भरपेट खाया फिर भी डेगची में खीर समाप्त नहीं हुई। खीर खाने के बाद महात्माजी वहां से जाने लगे तो खंगारजी ने उनसे आशीर्वाद लिया और महात्माजी ने खंगार से इच्छानुसार वरदान मांगने को कहा तो खंगारजी ने महादेव की भक्ति और उनकी श्रद्धा में रखे रहने का वर मांगा। महात्माजी ने कहा कि "यह तो तुम्हारे में विद्यमान है, अन्य वर मांगो।" खंगारजी ने खीर की भरी हुई डेगची देने का वर मांगा, तब महात्माजी ने वह डेगची खंगारजी को यह कहते हुए दी कि "तुम्हारे परिवार में जब भी कोई बडे़ भण्डारे या भोजन प्रसादी का कार्यक्रम हो तो रसोई में डेगची रख देना। इससे किसी भी तरह भोजन की कमी नहीं आयेगी।" इस प्रकार खंगारजी को वर देकर महात्माजी अंतर्ध्यान हो गये। उसी स्थान पर खंगारजी ने भगवान शिव की प्रतिमा स्थापित कर भक्ति आराधना शुरू कर दी। खंगारजी चौहान के पुत्र देवराज, चरड़ा, चांदा, गोपा, केहा, पीथा, सहाड़ा, केना आदि हुए जिनके वंशज मालातो की बेर एवं भागावड़ में निवास करते है।
मेले का आयोजन[सम्पादन]
इस दिव्य तपोभूमि दूधालेश्वर में प्रतिवर्ष श्रावण मास की हरियाली अमावस्या और शिवरात्रि को विशाल मेले का आयोजन होता है। खंगार जी के समस्त वंशज इस स्थान की व्यवस्था एवं प्रबन्ध एक प्रबन्धकारिणी समिति द्वारा करते है।
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सन्दर्भ[सम्पादन]
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