नक्षत्रादीनां मानानयनम
नक्षत्रादीनां मानानयनम्[सम्पादन]
नक्षत्रादीनां मानानयनम
भ्याय दानव की तपस्या से प्रसन्न होकर सुर्य ने अंशावतार रूप मे जो ज्ञान दिया है, वो ज्योतिष शास्त्र मे उत्तम ज्ञान है।सूर्य सिद्धान्त अनुपम ग्रन्थ है।जिससे उत्पति की चर्चा कि गयी है।सूर्य से ही सृष्टी की उत्प्ती हुइ है।गृह,नक्षत्र,सौरमण्ड्ल,तारों की गणना किस प्रकार की गयी इसका विस्तार से वर्णन सूर्य सिद्धान्त मे दिय गया है।
नक्षत्र जानने की रीति :
भभोगोअष्टशतीलिप्ताः खाशिवशौलास्तथा तिथेः । गृहलिप्ता भभोगाप्ता भानि भुघ्तया दिनादिनकम ॥[१]
नक्षत्र का योग ८०० कला और तिथि का भोग ७२० कला होत है।गृह की कला को नक्षत्र भोग ८०० से भाग देने पर लब्धि गत नक्षत्र होत है।यदि यह जानना हो कि गृह वर्तमान नक्षत्र मे कब आया है तो गत कला को गृह की दैनिक गति से भाग दे देने से दिन घडी आदि की संख्या निकल जयेगी।८०० कला मे से गत कला को घटाकर शेष की दैनिक गति से भाग देने पर यह ज्ञात होगा कि गृह वर्तमान नक्षत्र मे कब तक रहेगा ।नक्षत्र क्रान्तिवृत चक्र ३६० अशो का ३६० × ६० अर्थात २१६०० कलाओ के समान होता है।इसलिये एक नक्षत्र २१६०० ÷ २७ अर्थात ८०० फल समान होता है।
चन्द्र की मध्यम गति ७९०′३५″ मानी गयी है। इसका आधा ३९५′१७·५″ होती है।नक्षत्रो का मान प्राचीन काल मे चन्द्र की मध्यम गति के अनुसार किया गया है। Sushma0104 (talk) 13:01, 23 November 2018 (UTC)सुषमा शर्मा
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- ↑ पाण्डेय्, राम्चन्द्र. सूर्यसिद्धन्त (२०१६ सं॰). वाराणसी: चौखंबा विदयाभनवन.