नौ सौ चूहे खा के बिल्ली हज को चली
"नौ सौ चूहे खा के बिल्ली हज को चली" हिन्दी भाषा की एक कहावत है जिसका अभिप्राय होता है जीवन-भर पाप करके अब पूजा-पाठ का ढोंग।[१] मतलब कि किस प्रकार कोई व्यक्ति कई पाप करने के पश्चात निर्दोष होने का नाटक करता है।[२] इसे अन्य कई तरीकों से भी लिखा जाता है, जैसे "बिल्ली हज को चली, नौ सौ चूहे खा के"।[३] हज इस्लाम धर्म के अनुयायियों के लिए सर्वोच्च तीर्थ है जिसमें मुस्लमान सउदी अरब के मक्का शहर जाते हैं, परन्तु इस कहावत का किसी विशेष धर्म से संबंध नहीं है। यह भारत में हिन्दी व उर्दू भाषियों द्वारा इस्तेमाल की जाती है।[४]
सन्दर्भ[सम्पादन]
- ↑ तेजपाल चौधरी (994). हिन्दी व्याकरण विमर्श. वाणी प्रकाशन. प॰ 209. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788170553441.
- ↑ मंजुश्री चौहान. जापानी लोक कथाओं में पंचतंत्र. ग़ाज़ियाबाद: अनुभव प्रकाशन. प॰ 89. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 8189133721.
- ↑ बलवंत सिंह. चक पीरां का जस्सा. राजकमल प्रकाशन. प॰ 363. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 8171785964.
- ↑ इज़लाल मज़ीद; मंजूर एहतेशाम. कि आती है उर्दू ज़बां आते आते. वाणी प्रकाशन. प॰ 8. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 8170551285.
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