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पाखरिया खुटेला

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पांडव वंशी सम्राट [[अनंगपाल तोमर]] के वंशज मथुरा भरतपुर जिलों में 384 ग्रामो में निवास करते है। इन ग्रामो को खूटेल पट्टी बोला जाता है। इस [[खूटेल पट्टी]] में बहुत से दुर्ग के अधिपति कुंतल(तोमर ) जाट थे इन वीरो में पुष्कर सिंह नाम का एक वीर इस धरती पर हुआ। अपनी वीरता से वो पाखरिया कहलाया। दुश्मन के सबसे शक्तिशाली हाथी या यौद्धा को निहत्य ही मार गिराने वाला वीर पाखरिया कहलाता है। यह उपाधि सदी के श्रेष्ठ यौद्धा को दी जाती थी। पुष्कर सिंह को भी यह उपाधि मिली थी। इतिहास में यह वीर पाखरिया नाम से प्रसिद्ध हु। जवाहर सिंह कि दिल्ली विजय (अक्टूबर 1764) में पाखरिया का योगदान अतुल्यनीय है। जब जाट सेना दिल्ली पहुंची और दिल्ली को फ़तेह करने के लाल किले के फाटक की कुण्डी (अर्गला ) तोडना जरुरी था ताकि सेना किले में प्रवेश कर सके। पर जब लाल किले के फाटक को तोड़ने के लिए केसरिया नाम के हाथी ने 12 टक्कर मारी, पर फाटक नहीं टूट पाया। हर बार हाथी के सिर पर फाटक पर लगी कीले चुभ जाने से हाथी घायल हो गया। यह देख महाराज जवाहर सिंह बोले किला मुश्किल से टूटेगा। युद्ध अध् पर में छूटेगा। जाट सेना में निराशा छा गयी। तभी वीरता दिखाने पुष्करसिंह आगे आये।

पुष्कर सिंह के आया खून में ऊबाल
इन कीलो को देख महराजा काये घबराय कीलो कि बात है मामूली,
मै सीना दूँगा अडाये पीछे से हाथी दियो छोड़।
पखरिया वीर ने अड़ा दी यो सीना फाटक पै

इस तरह फाटक टूट गया और दिल्ली पर जाटों कि विजय का डंका बज गया शहीद पाखरिया की देह को खुटैल पट्टी में लाया गया मानसिंह गंगा पर राजकीय सम्मान से अंतिम संस्कार किया गया उसके बलिदान और दिल्ली विजय को चिर स्थाही बनाने के लिए वो लाल किले के फाटक जिन पर पाखारिया ने अपना बलिदान दिया भरतपुर लाये गए जो आज भी भरतपुर में रखे हुए है


कौन्तेय वीर पाखरिया कुंतल (तोमर )--दिल्ली बलिदान की अतुल्यनीय प्रतिमा:

जब शेर-ए-हिन्द वीर जवाहर सिंह दिल्ली विजय कर भरतपुर महलों में लोटे तो उनसे माँ किशोरी ने पूछा की बेटा दिल्ली विजय से तुम कौनसी अनमोल वस्तु लाये हो तो वीर जवाहर सिंह ने जबाब दिया उन चित्तोड़ कोट के किवाड़ो को लाया हूँ जिनपर वीर पाखरिया ने बलिदान दिया वीर जवाहर से माता किशोरी पूछती है - पंडित कौशिक जी दवारा रचित और ब्रिजेन्द्र वंश भास्कर में पाखारिया का वर्णन

जगमग जगमग करता जलुस
रण विजयी वीर जवाहर का
माँ किशोरी बोली
कुछ सुना बात दिल्ली रण की
सौगात वहां से क्या लाया
बेटा मेरे वचनों पर ही
तूने अत्यन्य कष्ट पाया
चर्चा क्या उन सौगातो की
जो भरी बहुत तेरे ही घर
दो वस्तु किन्तु लाया ऐसी
जिनका उज्ज्वल इतिहास प्रखर
चित्तोड़ कोट के माँ किवाड़
लाया हूँ आज्ञा पालन कर
है ये किवाड़ तेरे मनकी
मेरे मन की है और अपर
पाखरिया ने बलिदान दिया
निज तन का किवाड़ो पर
उनकी स्मृति स्वरुप लाया
उनके भी बजा नगाडो पर
सुन माँ ने चूम कर सिर
दी वाह वाह खुस हो मन भर
मणि मानक मुक्त मूल्यवान
कर दिए निछावर झोली भर
तब यह उद्घोस अंबर में गूंजा था
श्री गोवर्धन गिर्राज की जय
जवाहर सिंह की जय
जाटों के सक्ल समाज की जय
रन अजय भरतपुर राज की जय

ब्रिजेन्द्र वंश भास्कर के अनुसार जवाहर सिंह ने वीर पाखरिया का अतिंम संस्कार पुरे सम्मान के साथ गोवर्धन के घाटो पर लिया उनकी याद में एक छतरी का निर्माण भी करवाया था. यह प्रसंग भरतपुर राजपरिवार द्वारा लिखित ब्रिजेन्द्र वंश भास्कर और पंडित गोपालप्रसाद दवार लिखित जोहर नामक किताबो से लिया गया है.

लेखक:कौन्तेय मानवेन्द्रसिंह तोमर

कुछ इतिहासकारों के कथन[edit][सम्पादन]

  • दिलीप सिंह अहलावत पाखरिया वीर के बारे में लिखते है - तोमर खूंटेल जाटों में पुष्करसिंह अथवा पाखरिया नाम का एक बड़ा प्रसिद्ध शहीद हुआ है। यह वीर योद्धा महाराजा जवाहरसिंह की दिल्ली विजय में साथ था। यह लालकिले के द्वार की लोहे की सलाखें पकड़कर इसलिए झूल गया था क्योंकी सलाखों की नोकों पर टकराने से हाथी चिंघाड़ मार कर दूर भागते थे। उस वीर मे इस अनुपम बलिदान से ही अन्दर की अर्गला टूट गई और अष्टधाती कपाट खुल गये। देहली विजय में भारी श्रेय इसी वीर को दिया गया है। इस पर भारतवर्ष के खूंटेल तथा जाट जाति आज भी गर्व करते हैं।

  • ठाकुर देशराज पाखरिया वीर के बारे में लिखते हैं - महाराजा जवाहरसिंह भरतपुर नरेश के सेनापति तोमर गोत्री जाट जिसने लाल किले के किवाड़ उतारकर भरतपुर पहुंचाये । पाखरिया -खूंटेला जाटों में पुष्करसिंह अथवा पाखरिया नाम का एक बड़ा प्रसिद्ध शहीद हुआ है । कहते हैं, जिस समय महाराज जवाहरसिंह देहली पर चढ़कर गये थे, अष्टधाती दरवाजे की पैनी सलाखों से वह इसलिये चिपट गया था कि हाथी धक्का देने से कांपते थे । पाखरिया का बलिदान और महाराज जवाहरसिंह की विजय का घनिष्ट सम्बन्ध है ।
  • भरतपुर महाराजा ब्रिजेन्द्र सिंह के दरबार में रचित ब्रिजेन्द्र वंश भास्कर नामक ग्रन्थ में भी दिल्ली के दरवाजो पर बलिदान देने वाले वीर का नाम खुटेल पाखारिया अंकित है राजपरिवार भी पाखारिया खुटेल को भी बलिदानी मानता है
  • जाटों के जोहर नामक किताब में भी पंडित आचार्य गोपालदास कौशिक जी ने दिल्ली पर बलिदान हुए वीर को पाखारिया और उसके वंश को कुंतल (तोमर ) लिखा है |
  • जाटों के नविन इतिहास में उपेन्द्र नाथ शर्मा ने भी दिल्ली विजय पर खुटेल पाखरिया के बलिदान होने की बात लिखी है
  • राजस्थान ब्रज भाषा अकादमी दुवारा प्रकाशित "राजस्थान के अज्ञात ब्रज भाषा साहित्यकार" नामक किताब के लेखक विष्णु पाठक ,मोहनलाल मधुकर ,गोपालप्रसाद मुद्गल ने दिल्ली विजय पर लिखा है पेज 135 पर लिखा है -
                कहे कवी "माधव " हो तो न एक वीर 
               कैसे बतलाओ दिल्ली जाट सेना  लुटती 
               आप ही विचार करो अपने मनन मोहि 
               पाखरिया खुटेल न होतो ,तो दिल्ली नाय टूटती ||

कुछ भ्रांतियों का प्रमाणों से खण्डन[edit][सम्पादन]

भरतपुर महाराजा बृजेन्द्र सिंह के समय लिखी गयी बृजेन्द्र वंश भास्कर में उस वीर का नाम पाखरिया खुटेला लिखा गया है। भरतपुर राज परिवार से अधिक इस विषय पर किसको जानकारी होगी। इतिहासकार भी राज परिवार के कथन की पुष्टि करते हैं। परन्तु कुछ लोगो को यह भ्रान्ति है कि वो शहीद बलराम था। महाराजा सूरजमल के दो साले थे - जिनका नाम बलराम था प्रथम रानी किशोरी देवी का भाई होडल का बलराम सोलंकी (सोरोत)। दूसरा - बल्लभगढ़ का बलराम तेवतिया। दोनों ही महाराजा जवाहर सिंह के मामा थे।

अब आते है महाराजा जवाहर सिंह की दिल्ली विजय युद्ध जो अक्टूबर 1764 में हुई। जबकि बलराम तेवतिया की मृत्यु महाराजा सूरजमल के जीवनकाल में मुर्तिज़ा खान के बेटे अकवित महमूद से लड़ते हुए 29 नवम्बर 1753 को ही हो गई थी। इसका प्रमाण सूरजमल कालीन इतिहास में मिलता है। बलराम के मारे जाने के बाद में महाराज सूरजमल ने उनके लड़के विशनसिंह , किशनसिंह का किलेदार और नाजिम बनाया। वे सन् 1774 तक बल्लभगढ़ के कर्ता-धर्ता रहे। जब बलराम तेवतिया की 29 नवम्बर 1753 में मृत्यु हो चुकी थी तो वो कैसे शहीद हुए अक्टूबर 1764

दूसरा था होडल के बलराम तो उनके बारे में इतिहासकार दिलीप सिंह, ठाकुर देशराज ,उपेंद्र नाथ शर्मा लिखते है| दिल्ली विजय के बाद देहली की चढ़ाई से लौट आने के पीछे उन्होंने अपरे आन्तरिक शत्रुओं के दमन करने की अत्यन्त आवश्यकता समझी। कुछ समय के पश्चात् वह आगरे गए और होडल के बलराम तथा दूसरे लोगों को गिरफ्तार करा लिया। बलराम और एक दूसरे सरदार ने अपने अपमान के डर से आत्महत्या कर ली। जब दिल्ली विजय के बाद बलराम ने आत्महत्या की थी तो उनके दिल्ली पर शहीद होने का सवाल ही पैदा नहीं होता है

कविता[edit][सम्पादन]

जब हुए जवाहर निराश

कैसे टूटे यह द्वार

तब रोशनी की किरण जागी थी

देनी है अपने प्राणो की आहुति

पुष्कर ने यह दहाड़ लगाई थी

सामने पहाड़ हो, सिंह की दहाड़ हो

जाट कभी झुके नहीं ,जाट कभी रुके नहीं

जाटों की हुकांरो से दिल्ली की नीव हिल जाती है

पाखरिया के बलिदान से दिल्ली भी झुक जाती है

बलिदान दे अपना वीर ने लाज बचाई थी

अड़ा दिया सीना फाटक पै

बही खून की धार द्वार खुले अपडारे।

पाखरिया की जयघोष के होने लगे जयकारे।

हे वीर तेरी वीर गति, पर श्रद्धा सुमन चढ़ाते हैं।


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