फकरूद्दीन बेन्नूर
फ्रेम| फकरूद्दीन बेन्नूर |पाठ=जन्म- 25 नवंबर 1938, सातारा प्रा. फकरूद्दीन बेन्नूर (फकरूद्दीन हजरत बेन्नूर) (فاکر الدین بینر) (Fakruddin Bennur)
जन्म : सातारा, 25 नवंबर 1938, मृत्यू सोलापूर, 18 अगस्त 2018)[१]
महाराष्ट्र के मुस्लिम समाज में बुद्धिजीवी सुधारको में फकरूद्दीन बेन्नूर का नाम लिया जाता हैं. वे एक पूर्व प्रोफ़ैसर, विचारक और साहित्यिक हैं. पेशे से व्याख्याता के रुप में उन्होनें 32 साल अध्यापन किया हैं. 1970से उन्होंने भारत में सांप्रदायिक सद्भावना के लिए पूर्णकालिक कार्य करने की इच्छा के साथ काम शुरू किया. हिंदुत्ववाद की बढती सरगर्मिया, सांप्रदायिक सद्भावना, मानवाधिकार और भारत में बढ़ रहे कट्टरवाद का विरोध करने के लिए महाराष्ट्र में असगरअली इंजिनियर और डॉ. मोईन शाकीर के साथ मिलकर काम किया हैं. 80 उम्र में लंबी बिमारी केे चलते 18 अगस्त 2018 को उनका निधन हो गया.[२]
प्रारंभिक जीवन[सम्पादन]
1938 में महाराष्ट्र के सातारा में जन्मे फकरूद्दीन बेन्नूर असगर अली इंजिनिअर, मोईन शाकीर, प्रफुल्ल बिडवई के सहयोगी रहे हैं. राजनितीशास्त्र में एम.ए. करने के बाद उन्होने लातूर के दयानंद कॉलेज में प्रोफैसर के रूप मे काम शुरू किया. एक साल बाद वह सोलापूर आये, वहाँ उन्होने संगमेश्वर कॉलेज में अधिव्याख्याता के रुप में काम शुरू किया. इतिहास, साम्राज्यवाद, भूमंडलीकरण, इतिहासशास्त्र, गांधीवाद,[३] वामपंथ, हिदुत्व, इस्लाम और अरब देश उनके अभ्यास के विषय रहे हैं. वे शुरू से ही मुसलमानो के प्रतिगामी परंपराओं एवं जमातवादी विचारों के विरुद्ध खड़े रहे. [४]
सामाजिक कार्य[सम्पादन]
फकरूद्दीन बेन्नूर एक परंपरावादी मुस्लिम परिवार में पैदा हुए. शुरु में उन्होने इस्लाम में विविध रूढि़वादी धारणा पर प्रहार करते हुये लेखनकार्य आरंभ किया. जिसके चलते उनकी प्रतिमा कट्टर मुस्लिमविरोधी के तौर पर स्थापित हो गई. 1970 के में वे हमीद दलवाई के संपर्क में आये, दलवाई समाजवादी विचारधारा से ताल्लुक रखते थे.[५] उन्होने मुस्लिम महिला के विवाह अधिकारों के संरक्षण के लिए काम हाथ में लिया था, कुछ दिन श्री. बेन्नूर ने दलवाई के साथ काम किया. 1977 में दलवाई के मृ्त्यू के पश्चात बाद वे उनके सत्यशोधक मंडल से अलग होकर अपना काम शुरू किया. बाद में वह दलवाई के प्रखर आलोचक बन गये. बेन्नूर का मानना हैं कि, दलवाई का मुस्लिम आकलन उपनिवे्शवादी इतिहासकारो ने दिया हुआ था. दलवाई दक्षिणपंथी विचारधारा के बेहद करीबी थे. दलवाई का इस्लाम का ज्ञान अल्प था, जिसके चलते उन्होने भारतीय मुसलमानो को पाकिस्तान का हमदर्द बताया था.
1992 में उन्होने मुस्लिम ओबीसी आंदोलन की स्थापना की.[६] महाराष्ट्र और कई राज्यो में इसको लेकर वे आगे बडे.. बेन्नूर के कोशीशो ने पहिला बार मराठी मुसलमानो के जातीयो का मुके्. दारा में लाने का काम किया.[७] मराठी मुसलमानो की सामाजिक संरचना पर भी उन्होने काम किया हैं. भारत के मुसलमान होमोजिनाईज हैं इस भ्रम को लेकर उन्होने तिखा प्रहार किया हैं, उनका मानना था कि, 'भारत के मुसलमान किसी सुरत में एक जैसे नही हैं, उनके विविध प्रांतो तथा राज्यो की प्रादेशिकता भरी हैं, वे किसी भी सुरत में अरबो जैसे नही हैं. भारतीय मुसलमानो धर्म तो अरबी हैं, पर उनका रहन सहन और जिंदगी विशुद्ध भारतीय हैं. वे कभी गुजराती हैं, तो कभी असमी तो कभी मराठी हैं. भारत में रहे विविध प्रदेशो में बसे मुसलमानो की प्रादेशिकता ही उनकी एक अलग पहचान हैं.' [८] सामंती राज, उपनिवेशवाद, भूमंडलीकरण, अरब वर्ल्ड और इस्लाम विषयो पर उनका गहरा अध्ययन था. विभाजन, हिंदुत्व की राजनिती पर भी उन्होने कई लेख लिखे हैं [९] फकरुद्दीन बेन्नूर नें महाराष्ट्र् गॅझेटियर, महाराष्ट्र साहित्य संस्कृती मंडल, राज्यशास्त्र परिषद तथा शिक्षा परिषद पर भी अपने कार्य की अमीट छाप छोडी हैं.
2015 में फकरूद्दीन बेन्नूर ने महाराष्ट्रीन मुस्लिम आरक्षण आंदोलन की नींव रखी, इस संघठन नें मुसलमानो के आर्थिक पिछडेपन की मांगे सरकार से समक्ष रखी, शिक्षा में आरक्षण, लघु उद्योगो के लिए कर्ज सुविधा आदी मांगो को लेखर राज्यभर कई आंदोलन किये.
लेखन कार्य[सम्पादन]
मुस्लिम समुदाय में बढ रहे जमातवाद, बुरी आदत और हिंदुत्ववाद आदी विषयो पर वे सन 1968 लिखते आ रहे हैं. फकरूद्दीन बेन्नूर ने हमेशा अपने लेखों के माध्यम से यह समझाने की कोशिश की कि भारत के मुस्लिम अन्य अरब देशो से अलग हैं. उनकी अपनी एक संस्कृती भारतीय हैं. वह इस सांझा विरासत को लेकर सदियो से चले आ रहे है. भूंमडलीकरण, सांमती राज, मुसलमानो की राजनिती, इस्लामिक देश और मुस्लिम स्त्रियों के अधिकार के लिए उन्होने बहुत काम किया हैं. मराठी भाषा के साथ उनके कई लेख हिंदी और अंग्रेजी पत्रिका में प्रकाशित हुये हैं. मुस्लिम मराठी साहित्य, कविता, इस्लाम, विश्व शांति, कौमी इखलास, मानवता, भारतीय लोकतंत्र जैसे विषयों पर उनका विशेष अध्ययन हैं. और वे अपने इस संदेश को भारत एवं विश्वभर में फैलाने के लिए कई सालो से काम करते आ रहे हैं. मुस्लिम विषयो पर मराठी में लिखने वालों में श्री. बेन्नूर का नाम अग्रणी हैं. मंथली समाज प्रबोधन पत्रिका, सत्याग्रही विचारधारा, आजचा सुधारक, परिनर्तनाचा वाटसरू आदी पत्रिका में उनके लेख नित्य आते हैं. उन्होने कई अखबारो के लिए भी लेखन किया हैं, जिनमें दैनिक लोकसत्ता, सोलापूर समाचार, संचार, दिव्य मराठी, एकमत आदी अखबार हैं.
मुस्लिम मराठी साहित्य[सम्पादन]
1990 के दशक में उन्होने मुस्लिम मराठी साहित्य परिषद की नींव रखी. जिसका मकसद हिंदू और मुसलमानो के बीच सांप्रदायिक सौहार्द को बढाना था. 1980 के बाद महाराष्ट्र में श्री. बेन्नूर, फ. म. शहाजिंदे, जावेद पाशा, बाबा मोहम्मद अतार, अजीज नदाफ आदी लेखक-कवीयो नें मराठी में मुसलमानो के समस्या तथा प्रश्नो को मराठी साहित्य में लाया. इन सब का कहेना एक ही था कि, मुख्य प्रवाह के मराठी साहित्य में मुसलमानो की कोई दखल क्यों नही ली जा रही हैं? मराठी सहित्य में मुसलमानो का सिर्फ नकारात्मक चित्रण क्यों किया जा रहा हैं? मुस्लिम विरोध से भरी ‘कलोनियल हिस्टरी’ का वर्चस्व इस साहित्य में पाया जा रहा था, जिसको नये से पेश करने के लिए फकरुद्दीन बेन्नूर और उनके सहयोगीयोंने मुस्लिम मराठी साहित्य परिषद की बुनियाद रखी.[१०]
प्रकाशित कृतियाँ[सम्पादन]
- भारतीय मुसलमानोंकी मानसिकता और सामाजिक संरचना (1998)
- भारत के मुस्लिम विचारक (2018)
- भारतीय मुसलमान, हिंदुत्व आणि वास्तव (मराठी) (2007)
- आधुनिक भारतातील मुस्लिम विचारवंत (मराठी) (2007)
- गुलमोहर (कवितासंग्रह) (मराठी) (2010)
- हिंद स्वराज्य : एक अन्वयार्थ (मराठी) (2018)[११]
- भारतीय मुसलमानांची समाजरचना आणि मानसिकता (2012)[१२]
- मुस्लिम राजकीय विचारवंत आणि राष्ट्रवाद (मराठी) (2018)
- सुफी संप्रदाय : वाड्मय, विचार आणि कार्य (मराठी) (2016)
- भारत के मुसलमानो की माशिअत और जेहनियत (उर्दू) (2018)
- उन्होंने अबतक 10 किताबे लिखी हैं. मुस्लिम विचारक, सुफीझम, महात्मा गांधी, भारतीय मुसलमानो की सामाजिक संरचना आदी विषयो पर उनकी यह किताबे हैं. उनकी 1998 में भारतीय मुसलमानोंकी मानसिकता और सामाजिक संरचना पहल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक जो काफी मशहूर हुई थी. यह किताब भारतीय मुसलमानो के रहन-सहन, उनकी सामाजिक और धार्मिक पहलू, आजादी के बाद की मुसलमानो के स्थिती के शोध पर आधारित थी. मराठी भाषा के अलावा हिंदी, उर्दू में भी उनके किताब अनुवाद किये गये हैं. हाल ही मेैं उनकी भारत के मुस्लिम विचारक प्रकाशित हुई हैं.
शोध कार्य[सम्पादन]
- हिंदू-मुस्लिम प्रश्न और राजनिती
- हिंदू मुस्लिम सामाजिक सौहार्द
- महात्मा गांधी
- डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर
- महात्मा ज्योतिबा फुले
- कार्ल मार्क्स
- महात्मा गांधी
- पंडित जवाहरलाल नेहरू
- छत्रपती शाहू महाराज
- उपरोक्त विषय पर कर्नाटक विश्वविद्यालय, नागपूर विश्वविद्यालय, कोल्हापूर विश्वविद्यालय, मराठवाडा विश्वविद्यालय, पुणे विश्वविद्यालय, आदी विश्वविद्यालयो में कूल १५० से ज्यादान शोधनिबंध पेश किये हैं.
सामाजिक कार्य[सम्पादन]
- 1970 से महाराष्ट्र में मुस्लिम प्रबोधन और समाज सुधारक आंदोलन में कार्यरत
- 1970 से ही मुस्लिम महिलाओ के प्रश्न, हिंदू-मुस्लिम समस्या और राजनिती, जमातवाद, हिंदू-मुस्लीम सौहार्द, मुस्लिम मराठी सहित्य आदी संबधी महाराष्ट्र के अग्रणी समाचार पत्र, पाक्षिक, पत्रिका और साप्ताहिको में विपुल लेखन
- भूमंडलीकरण, सामंतीवाद, अरब जगत, आधुनिक भारत की राजनिती आदी राजकीय मुद्दो पर नियमीत लेखन
- मुस्लिम महिला के प्रश्न, हिंदू-मुस्लिम राजकारण, जमातवाद, हिंदू-मुस्लिम सौहार्द आदी समस्या पर समुचे महाराष्ट्र में दौरे और भाषण
संस्थाओं की स्थापना[सम्पादन]
- मुस्लिम मराठी साहित्य परिषद, सोलापूर (1990)
- मुस्लिम ओबीसी आंदोलन (1992)
- डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर अकादमी, सातारा
- महाराष्ट्रीयन मुस्लिम अधिकार आंदोलन (2015)
- भारतीय मुस्लिम इतिहास सशोधन परिषद (2016)
सन्मान[सम्पादन]
- अध्यक्ष- राज्यशास्त्र परिषद, कोल्हापूर विश्वविद्यालय (1994 -1996)
- अध्यक्ष- महाराष्ट्र राज्यशास्त्र परिषद, 1994 सांगली
- सदस्य- महाराष्ट्र राज्य साहित्य संस्कृती मंडल- (1993-1995)
- तज्ज्ञ सदस्य- महाराष्ट्र गॅझेटियर विभाग (2000-2004)
- संशोधन व्यक्ती- कर्नाटक विश्वविद्यालय, राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपूर विश्वविद्यालय, शिवाजी विश्वविद्यालय कोल्हापूर, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर मराठवाडा विश्वविद्यालय, सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय
- तज्ज्ञ सदस्य- महाराष्ट्र राज्य पाठ्यपुस्तक निर्मिती व अभ्यासक्रम संशोधन मंडल (1994-2001)
- संपादन- नागरिकशास्त्र (राज्यशास्त्र) पाँचवी से आठवी
- कार्याध्यक्ष- मुस्लिम मराठी साहित्य परिषद- सोलापूर (1990-2002)
- अध्यक्ष- चौथा मुस्लिम मराठी साहित्य संमेलन, पुणे
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