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फ्रांसिसी संविधान की मुख्य विशेषताएं

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फ्रांस ने अपनी परिस्थितियों के अनुरूप जिस संविधान को अपनाया है, उसकी अपनी कुछ विशेषताएं हैं जिनका उल्लेख निम्न रूपों में किया जा सकता :

1.संविधान की प्रस्तावना

चतुर्थ गणतंत्र के संविधान के समान ही पंचम गणतंत्र के संविधान में भी प्रस्तावना का समावेश है। लेकिन इन दोनों ही संविधानों की प्रस्तावना इस दृष्टि से विशेष है कि इनमें संविधान के स्रोत, आदर्श और लक्ष्य की घोषणा करने के बजाय नागरिक अधिकारों, अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रति वचनबद्धता और फ्रांसीसी संघ का उल्लेख किया गया है।

2.संकटकाल का शिशु

1946 के संविधान के निर्माण के समय फ्रांस में मिश्रित वातावरण था। एक तरफ राजनीतिक अशांति थी, तो दूसरी तरफ जनता उल्लास के साथ विजय के गीत भी गा रही थी, लेकिन  1958 के संविधान के निर्माण के समय न तो राजनीतिक अशांति, वरन् मृत्युकालीन निराशा छायी हुई थी। राजनीतिक अस्थायित्व और सैनिक विद्रोह के कारण व्यापक गृह-युद्ध छिड़ जाने की आशंका थी। इस स्थिति का एकमात्र हल कार्यपालिका के प्रधान राष्ट्रपति को अधिकाधिक शक्तियां प्रदान करना ही था और 1958 के संविधान द्वारा ऐसा ही किया गया। इसलिए इसे ‘संकटकाल का शिशु’ कहा जाता है। वस्तुतः पंचम गणतंत्र के संविधान पर तत्कालीन संकटकाल की स्पष्ट छाया अंकित है।

3.निर्मित, लेकिन बिना संविधान परिषद का संविधान

पंचम गणतंत्र का संविधान एक निर्मित संविधान है, किंतु इसका निर्माण किसी संविधान परिषद द्वारा नहीं किया गया है। इसका निर्माण दि गॉल मंत्रीमण्डल के सदस्यों और 39 सदस्यों की परामर्शदात्री सभा ने किया। इस सभा को संविधान परिषद इसलिए नहीं कहा जा सकता कि इसे जनता द्वारा निर्वाचित नहीं किया गया था और न ही इस सभा के द्वारा जनता के विभिन्न वर्गों की विचारधारा को दृष्टि में रखा गयाI इसने तो केवल दि गॉल की विचारधारा को ही क्रमबद्ध रूप प्रदान किया। एक व्यक्ति विशेष की विचारधारा पर आधारित होने के कारण इसे ‘दि गॉल  संविधान’  भी कहते हैं।

4.लिखित संविधान

चतुर्थ गणतंत्र की भाँति ही पंचम गणतंत्र का संविधान भी  एक लिखित प्रलेख है।

5.कठोर संविधान

एकात्मक शासन व्यवस्था को अपनाते हुए भी फ्रांस में कठोर संविधान अपनाने की परंपरा रही है। पंचम गणतंत्र का संविधान भी चतुर्थ गणतंत्र की भांति ही कठोर है।

6.लोकप्रिय सम्प्रभुता पर आधारित संविधान

1946 के संविधान की भाँति ही 1958 का संविधान भी लोकप्रिय संप्रभुता पर आधारित संविधान है। संविधान का प्रथम अध्याय संप्रभुता से ही प्रारंभ होता है और धारा 3 में कहा गया है, ‘संप्रभुता जनता में निहित है और जनता अपनी इस शक्ति का प्रयोग अपने प्रतिनिधियों द्वारा या जनमत संग्रह के द्वारा करेगी’। यद्यपि संविधान का निर्माण जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा नहीं किया गया, लेकिन जनमत संग्रह में इसे जो भारी समर्थन प्राप्त हुआ, उससे स्पष्ट है कि संविधान जन इच्छा का ही परिणाम है।

7.धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना

प्राचीनकालीन फ्रांस में धर्म राजनीतिक विरोधों और उत्पातों का कारण रहा, अतः 1789 की क्रांति के बाद से ही धर्म को राजनीति से पृथक् रखने की चेष्टा की गयी। पंचम गणतंत्र के संविधान द्वारा भी फ्रांस को धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित करते हुए कहा गया है कि ‘राज्य सभी विश्वासों का आदर करेगा और सभी नागरिकों के बीच जाति या धर्म के आधार पर भेदभाव किये बिना समानता स्थापित करेगा’। संविधान की प्रस्तावना में कहा गया है कि राज्य धर्मनिरपेक्ष शिक्षा की व्यवस्था करेगा।

8.मौलिक अधिकारों की व्यवस्था

पंचम गणतंत्र के संविधान द्वारा मौलिक अधिकारों की व्यवस्था भी की गई है, लेकिन इस संबंध में व्यवस्था संविधान के किसी अध्याय में करने की अपेक्षा संविधान की प्रस्तावना में ही की गई है। संविधान की प्रस्तावना में 1789 के ‘मानवीय अधिकारों की घोषणा-पत्र’ को स्वीकार किया गया है। जीवन के सभी क्षेत्रों में स्त्रियों को पुरुषों के सामान ही अधिकार प्रदान किये गये हैं और व्यक्ति के स्वास्थ्य, भौतिक उन्नति, उसकी सुख-सुविधा और उसके परिवार की उन्नति का दायित्व राज्य पर ही है। शिक्षा सुविधाओं का प्रसार भी राज्य का कर्तव्य निश्चित किया गया है।

9.संसदात्मक एंव अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था का समन्वय

पंचम गणतंत्र के संविधान की एक प्रमुख और संभवतः सबसे अधिक प्रमुख विशेषता संसदात्मक एवं अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था के तत्वों का समन्वय है। चतुर्थ गणतंत्र के संविधान द्वारा फ्रांस में  संसदात्मक व्यवस्था को अपनाया गया था, लेकिन फ्रांस की विशेष राजनीतिक परिस्थितियों के कारण संसदात्मक व्यवस्था में अनेक दुर्बलताएं अनुभव की गयी, जिनके प्रकाश में पंचम गणतंत्र के संविधान में संसदात्मक एंव अध्यक्षात्मक तत्वों का समन्वय किया गया है।

10.अधिकार सम्पन्न राष्ट्रपति और निर्बल विधायिका

चतुर्थ गणतंत्र के संविधान का सबसे बड़ा दोष राजनीतिक अस्थायित्व था और इस राजनीतिक अस्थायित्व का सबसे प्रमुख कारण यह था कि इस संविधान के द्वारा शक्तिसम्पन्न विधायिका और इसके साथ निर्बल कार्यपालिका की व्यवस्था की गई थी। अतः कार्यपालिका का अस्तित्व न केवल सिद्धान्त, वरन् व्यवहार में भी पूर्णतया विधायिका की इच्छा पर निर्भर करता था। पंचम गणतंत्र के संविधान द्वारा इसे परिवर्तित कर नितान्त विपरीत रूप प्रदान कर दिया गया है। इसके द्वारा एक अत्यधिक अधिकार सम्पन्न राष्ट्रपति पद की व्यवस्था की गयी है। प्रधानमंत्री और मन्त्रिपरिषद् के सदस्यों को वही नियुक्त करता है और उसके प्रत्येक कार्य पर प्रधानमंत्री के प्रति–हस्ताक्षर की आवश्यकता नहीं है। उसे सैनिक और असैनिक नियुक्तियाँ करने, संधियों के लिए वार्ता करने और संसद के पास सन्देश भेजने के अधार प्राप्त हैं।

11.शक्ति विभाजन के सिद्धान्त पर आधारित

शक्ति विभाजन के सिद्धांत का विधिवत रूप से प्रतिपादन करने वाला माण्टेस्क्यू फ़्रेंच विचारक ही था। अतः फ्रांस की राजनीतिक विचारधारा और संविधान पर इस सिद्धांत का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। चतुर्थ गणतंत्र के संविधान में इस सिद्धांत की उपेक्षा की गयी थी, लेकिन पंचम गणतंत्र के संविधान में इस सिद्धांत को अपनाते हुए कार्यपालिका और विधानमंडल को पृथक् करने का प्रयास किया गया है।

12.राजनीतिक दलों को संवैधानिक मान्यता

वर्तमान समय के सभी प्रजातंत्रीय राज्यों में राजनीतिक दल महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं, लेकिन ब्रिटेन, भारत और अमरीका, आदि इन सभी देशों में राजनीतिक दल इस दृष्टि से संविधानेत्तर हैं कि संविधान में उनका कोई उल्लेख नहीं किया गया है। लेकिन फ्रांस के पंचम गणतंत्र के संविधान में राजनीतिक दलों को स्पष्ट मान्यता प्रदान की गयी हैं। संविधान की धारा 4 के स्पष्टतया कहा गया है कि मताधिकार की अभिव्यक्ति का मुख्य साधन राजनीतिक दल होगा।

13.संवैधानिक परिषद की व्यवस्था

नवीन संविधान की एक विशेषता संवैधानिक परिषद के रूप में एक ऐसी संस्था की स्थापना है, जिसका समरूप सम्भवतया अन्य किसी देश में नहीं मिलता। संवैधानिक परिषद की व्यवस्था चतुर्थ गणतंत्र में थी, किन्तु नवीन संविधान में उनकी रचना में संशोधन किया गया है। पहले की तुलना में उसका महत्व भी बढ़ा दिया गया है। संवैधानिक परिषद् में 9 सदस्य है जो 9 वर्ष के लिए नियुक्त किये जाते हैं। एक-तिहाई सदस्य प्रति तीसरे वर्ष हट जाते हैं। संवैधानिक परिषद् द्वारा चुनाव, जनमत संग्रह और कानून की वैधानिकता की जाँच का कार्य किया जाता है। इसके अतिरिक्त संकटकाल की घोषणा के पूर्व राष्ट्रपति के लिए यह जरूरी है कि वह संवैधानिक परिषद से परामर्श ले। संवैधानिक परिषद का एक कार्य चुनाव व्यवस्था का निरीक्षण  और परिणामों की घोषणा भी है।


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