बनारसी भौकाल
बनारसी पान
विधाता का कुछ ऐसा विधान है कि जिस शब्द के आगे ‘बनारसी’ लग गया वह अनूठा, अनुपम और अद्वितीय बन गया। यहां के पान की तो बात ही निराली है, पान बनारस का पेटेन्ट पदार्थ है। इसे न ही खाद्य पदार्थ कह सकते हैं और न ही पेय पदार्थ। पूरी दुनिया आज तक इसका जोड़ नहीं खोज पायी। इसके आकर्षण का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बनारस आने पर हर कोई इसे जरूर खाना पसंद करता है। दुनिया में सबसे बेमिसाल और निहायत ही उम्दा तरीके से पान चबाने वाले लोग सिर्फ बनारस में पाये जाते हैं। दोनों गालों के नीचे पान के बीड़े को दबाये रहना बनारसियों का स्वभाव है। बनारसी पहले खोजते हैं कि किस पान वाले की दुकान में शीशा लगा है इसके बाद पान खाने के पहले अपने चेहरे पर तरह-तरह के भाव-भंगिमा बनाकर पान लगाने का आदेश देते हैं। फिर शुरू होता है दुनिया भर के विभिन्न मुद्दों पर वाद-विवाद। किसी भी विषय पर ऐसी बहस होगी कि तमाम तरह के निष्कर्ष निकलेंगे। कम पढ़ा लिखा भी ऐसा ज्ञान देते हैं कि विद्वानों की भी बोलती बंद हो जाती है। बनारसियों में पान की ऐसी तलब रहती है कि एक बीड़ा पान मुंह में अभी खत्म नहीं हुआ कि दूसरा बीड़ा लोग दबा लेते हैं। जैसे जीवन एवं मृत्यु शाश्वत है उसी प्रकार काशी में पान भी निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। बनारसी पान की करामात ऐसी की किसी कारणवश यदि कोई परेशान है या किसी से अनबन हो गयी हो, ऐसे में एक बीड़ा पान मुंह में घुलाते ही सारा गुस्सा छूमंतर और खराब मूड पान की गिलौरी के साथ फिर से बन जाता है। ऐसा लगता है जैसे पान और उसमें शामिल कत्था, चूना, लौंग, इलायची, सौंफ, तम्बाकू, पीपरमेंट सहित अन्य सामग्री का ज्ञान से कुछ नाता होता है तभी तो पान खाने के बाद तो जैसे बनारसियों के कण्ठ ही खुल जाते हैं। एक से एक दार्शनिक विचार निशुल्क सुनने को मिलते हैं। बनारसी पान ऐसा शब्द है जिसमें कई प्रकार के पान समाये हुए हैं। मघई पान, सिंघाड़ा पान, साची पान समेत अन्य कई प्रकार के पान बनारस के गली मोहल्ले चौक चौराहे की शान बढ़ाते हैं। पान के शौकीनों के लिए पान दिनचर्या का हिस्सा है। बनारसियों के दिन की शुरूआत भी पान और समापन भी इसी अदभुत चीज से होता है।
बनारसी पान
बनारसी पान दुनिया भर में मशहूर है। बनारसी पान चबाना नहीं पड़ता। यह मुँह में जाकर धीरे-धीरे घुलता है और मन को भी सुवासित कर देता
This article "बनारसी भौकाल" is from Wikipedia. The list of its authors can be seen in its historical and/or the page Edithistory:बनारसी भौकाल.