बर्तवाल
बर्त्वाल [१]एक पहाड़ी क्षत्रिय है जो परमार राजवंश की एक उपशखा है( ये पौड़ी में रहने वाले बर्थवाल से अलग है जो की एक ब्राह्मण जाति है कई बार लोग दोनो जातियों एक समझने लगते हैं ) ,मूलत: बर्त्वाल 9 शताब्दी ई0 में धारानगरी–उज्जैन से आकर गढ़वाल में बस गए थे। इनका पहला गांव रडुवा–चंदनीखाल में है जो खदेड़ पट्टी में पड़ता है, जहां से ये रुद्रप्रयाग,चमोली,टिहरी और उत्तरकाशी और पौड़ी के कुछ क्षेत्रों में बस गए।बर्त्वालो की इस्ट देवी दक्षिण कलिंका भवानी है आज भी इनका मंदिर बर्त्वालो के प्रथम गांव रडुआ में है और कई जगह इनकी पूजा राजराजेश्वरी देवी के रूप में भी जाती हैं। बर्त्वाल लोग अपने नाम के आगे "ठाकुर" और नाम और जाति के बीच में "सिंह "का उपयोग होता है। इनका गोत्र भारद्वाज है।
बर्त्वालो में सबसे अलग यह है की ये अपने माता पिता को "जिया–बबाजी" या जिया–पिताजी",ससुर को "दीवान जी"और सास को "जी" कहकर बुलाते है,बर्त्वालो में "जदेसा" अभिवादन के रूप मे उपयोग किया जाता है,जो पहले गढ़वाल राजवंश के लोग भी किया करते थे।
बर्त्वालो का बहुत समृद्ध इतिहास है कुछ इन्ही में एक है खदेड़ पट्टी का नाम तुंग क्षेत्र जिसे खदेड़ पट्टी कहते है पहले यह नागपुर पट्टी का ही एक हिस्सा था लेकिन इस का नाम खदेड़ तब पड़ा जब गढ़वाल पर नेपाली लोगों ने आक्रमण किया (जिसे गोरखाली भी कहा जाता है) तब इस क्षेत्र की सुरक्षा के लिए बर्त्वालौं ने नेपालियों से युद्ध किया और उनको इस क्षेत्र से बाहर खदेड़ दिया लगभग 1803 में पूरे गढ़वाल पर कब्जा कर चुके नेपाली इस क्षेत्र को बहुत समय तक कब्जा नहीं कर पाए थे रडुवा में आज भी उन वीरों की तलवारे मौजूद हैं। बर्त्वालौं ने अन्य कई लड़ाइयां लड़ी जिसमें उन्होंने तिब्बत, हूण देश,कुमाऊं एवं नेपालीयों से कई युद्ध किए और सफल भी रहे।
बर्त्वाल कई प्रसिद्ध लोग हुए जैसे–
1.जसू बर्त्वाल और पंचमू बर्त्वाल –ये दोनो ही प्रसिद्ध योगी रहे हैं इनका कई बार भैरव जागर, नरसिंग जगरो में इनका जिक्र आता है लेकिन इनके बारे में उपयुक्त जानकारी नहीं है।
2.भीम सिंह बर्त्वाल[२] और उदय सिंह बर्त्वाल–ये दोनो भाई जिन्हे बर्तवाल बंधुओ के नाम से जाने जाते थे।इनका गांव रडुवा–चांदनीखाल था। वह राजा महिपति शाह के मुख्य सेनापतियो में से एक थे। इन्होंने तिब्बत के दाबा राज्य पर आक्रमण किया और विजयी हुए । राजाज्ञा के अनुसार भीम सिंह बर्त्वाल व उदय सिंह बर्त्वाल को दापा का राजकाज चलाने का राजशाही फरमान सुनाया व सेना लेकर वापस लौटे। इस विजय में बर्त्वाल भाई काफी सोना व जेवर लेकर लौटे थे! व उन्होंने दापा पर लगभग 20 बर्ष बहुत सुंदर तरीके का सुशासन किया कुछ सालो बाद वहा दाबा के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। आज भी बर्त्वाल बंधुओ की तलवारे दाबा के थोलिंग मठ में विजय समारक के रूप में रखी हुई हैं जिनकी पूजा आज तक होती है।
3.भीमसेन बर्तवाल–ये मुगल दरबार में 1658–1678 ई० तक मनसबदार के पद पर नियुक्त थे,इनको 1000सवार और 600 जातियों का मनसब मिल रखा था बाद में इन्होंने मदन सिंह भंडारी ने मिल कर पंचभयाखाल में पांच भाई कठैतो को उनकी "कठैतगर्दी" के कारण खत्म किया ,इनको खत्म करने की योजना पुरिया नैथानी ने बनाई थी , भीमसेन की बहन महारानी बर्तवाली जो कि फतेहपति शाह की 7 साल तक संरक्षिका रही थी उस समय तक रानी बर्तवाली और रानी सिरमौरी ने ही गढ़वाल का शासन चलाया।
4.ठाकुर धन सिंह बर्तवाल–ये तल्ला नागपुर के सतेरा स्युपुरी गांव के मालगुजार हुआ करते थे।ये भगवान बद्रीनाथ के बड़े भक्त थे इनके द्वारा भगवान बद्रीनारायण की सुप्रसिद्ध आरती “पवन मंद सुगंध शीतल ” सन 1881 इ० में लिखी गई थी। इन्ही के गांव में और भी कई अन्य प्राचीन पांडुलिपी मिली है जिनमे गढ़वाल के राजवंश,आयुर्वेद,गढ़वाल के अन्य इतिहासो के बारे में जानकारी मिलती है
5.स्वामी सच्चिदानंद स्वामी(सज्जन सिंह बर्तवाल)–इनका जन्म 1885 में तल्ला नागपुर के चमस्वाड़ा गांव में हुआ था,ये जन्म से ही अंधे पैदा हुए थे इन्होंने रुद्रप्रयाग में 1944 में मिडिल स्कूल की स्थापना जो कि बाद में राजकीय इंटर कॉलेज, संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना, चिकित्सालय निर्माण, सुरंग निर्माण, गुलाबराय मैदान, धर्मशाला के निर्माण आदि जनसरोकारों से जुड़े विभिन्न विषयों पर महाराज जी ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
6.चन्द्रकुंवर बर्त्वाल[३]चंद्रकुंवर बर्तवाल]]–इनका जन्म 20 अगस्त 1919 में मालकोटी,पट्टी तल्ला नागपुर,रुद्रप्रयाग में हुआ था।ये हिंदी के कवि थे जिन्हे हिंदी का कालिदास भी कहा जाता है,प्रकृति के चितेरे कवि, हिमवंत पुत्र बर्त्वाल जी अपनी मात्र 28 साल की जीवन यात्रा में हिन्दी साहित्य की अपूर्व सेवा कर अनन्त यात्रा पर प्रस्थान कर गये। 1947 में इनका आकस्मिक देहान्त हो गया।
इन्हों ने हिंदी में कई प्रसिद्ध रचनाएं की जैसे–
मुझको पहाड़ ही प्यारे है / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल
मेघकृपा / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल
आओ हे नवीन युग / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल
काफ़ल पाकू / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल
रैमासी / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल
हिमशृंग / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल
मैकाले के खिलौने / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल
उस दिन के बादल / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल
इसके अलावा गढ़वाल के प्रथम मानचित्रकार रहे हैं सुरेंद्र सिंह बर्त्वाल, जिन्हें मानचित्र बनाने पर पुरुस्कार स्वरूप'गोल्ड मैडल' दिया गया परन्तु उन्होंने अस्वीकार कर दिया
सन्दर्भ[सम्पादन]
- ↑ [गढ़वाल की राजपूत जातियों का इतिहास - Bugyal Valley "पहाड़ी राजपूत जाति"]. भीष्मा कुकरेती. गढ़वाल की राजपूत जातियों का इतिहास - Bugyal Valley.
- ↑ आशीष. › ... सोशल बलूनी पब्लिक स्कूल के तत्वावधान में आयोजित “इगास का भैलो” कार्यक्रम ... "Error: no
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