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बल्लरी देवी

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बल्लरी देवी

वीरांगना महारानी बल्लरी देवी पासी

11 वीं सदी के नायक वीर सारोमणि सम्राट महाराजा सुहेलदेव राजपसी की राजमहिषि का नाम बल्लरी देवी थी। महारानी बल्लरी देवी के जीवन वृतान्त के विषय में इतिहासविदो ने अपनी लेखनी मौन रखी है। लेखक श्री यदूनाथप्रसाद श्रीवास्त्व एडवोकेट की पुस्तक “भाले सुल्तान ” ही एकमात्र ऐसा अभिलेख प्राप्त हुआ है जो उनके जीवन परिचय पर कम ,उनके अदम्य साहस और शौर्य पर ज्यादा प्रकाश डालती है। पुस्तक “भाले सुल्तान” का सारांश आपके सामने प्रस्तुत है।

11 वीं सदी में जब महमुद गजनवी एक विशाल सेना के साथ भारत पर आक्रमण किया तो उस समय भारत के तमाम राजा आपसी वैमनस्य के कारण आपस में लड़ते भिड़ते कमजोर हो चुके थे। अतः महमूद गजनवी के आक्रमण से कुछ राजा हारे और हार कर अपनेराज्य से बेदखल हुए तो वही कुछ राजा सत्ता की लालच मे अधीनता स्विकार किया या मुस्लिम धर्म स्वीकार करके अपनी जान बचाई। उसी समय अवध क्षेत्र में एक क्षत्रिय राजा का छोटा सा राज्य था । महमूद गजवनी ने उनके राज्य पर आक्रमण किया।क्षत्रिय राजा बड़ी बहादुरी के साथ अपनी छोटी सेना सहित मुकाबला किया, परन्तु गजनवी की विशाल सेना के सामने राजा की सेना टिक न सकी और राजा को भागकर जंगल की शरण लेनी पड़ी । जब महमुद गजनवी ने सोमनाथ मन्दिर पर आकम्रण की ओर अपना कदम बढ़ाया तो देवों के देव महादेव मन्दिर की रक्षार्थ भारत भर के हिन्दू राजाओ को युद्व में भाग हेतु आमंत्रित किया गया।यह क्षत्रिय राजा अपनी हार का बदला महमूद गजनवी से चुकाना चाहते थे। अतः उन्होने अपनी छोटी सी सेना साथ को लेकर सोमनाथ की तरफ प्रस्थान किये। सोमनाथ पस्थान के पहले राजा ने अपनी एक मात्र 5 वर्षीय राजकुमारी बल्लरी को अपने धार्मिक गुरु आयोध्या के ऋषि महेष्वरानन्द को सौंप गये। जाते समय ऋषि महेष्वरानन्द को कह गये, पता नही हम युद्ध से आये या न आये, यह बच्ची अब आप की बच्ची है।इसकी देखभाल और शादी का दायित्व मैं आप पर छोड़ता हूँ। वह बच्ची अयोध्या में ऋषि महेष्वरानन्द के आश्रम में रहने लगी। वह क्षत्रिय राजा सोमनाथ मन्दिर की रक्षा में लड़ते हुए मारे गये। समय बीतता गया ,धीरे-धीरे राजकुमारी की उम्र 16 वर्ष की हो गयी।महर्षि महेष्वरानन्द अपने आश्रम में ही राजकुमारी को बौद्विक,धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ अस्त्र-शस्त्र चलाने की भी शिक्षा दिये। ऋषि मेहष्वरानन्द के कुशल मार्ग दर्शन में राजकुमारी तीर , धनुष चलाने, भाला फेंकने, घुड़सवारी तथा अन्य अस्त्र-शस्त्र चलाने में प्रवीण हो गयी। महेष्वरानन्द जी श्रावस्ती सम्राट सुहेलदेव पासी के भी धार्मिक गुरु थे।


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