बागड़ा
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बागड़ा ब्राह्मण / BAGDA/BAGRA/BAGADA[सम्पादन]
बागड़ा समाज की उतपत्ति[सम्पादन]
बाग़डा ब्राह्मणों की उत्पत्ति उन 52 ॠषियों से मानी जाती है, जिन्हे दिल्ली के राजा अनंङगपाल ने काशीपुरी के गंगातट से बुलाया था। यहां निवास करने वाले ब्राह्मण, ब्रह्म पुत्र ॠषि भारद्वाज के वंशज गौड ब्राह्मण ही थे। उपलब्ध जानकारी के अनुसार इनके गौत्र भी गौड ब्राह्मणों के ही हैं। जिन्ही से बागडा ब्राह्मणों कि उत्पत्ति हुई। इसिलिये कहा जा सकता है, कि बागडा ब्राह्मण ही है जो बाग़ौर नामक स्थान पर निवास करने के कारण 'बागौर ब्राह्मण' कहलाये। कालांतर में यही बागौर शब्द 'बाग़ौड' और बाद मे बागड़ा[१] के रूप में प्रचलित हो गया।
इतिहास[सम्पादन]
भारत की राजधानी दिल्ली में विक्रम सम्वत् 1169 को तँवर वँश के अन्तिम राजा रहे अनङगपाल का राजतिलक हुआ था। कुछ समय पश्चात 'दिल्ली' राजा अनङगपाल के सपने में आयी और उसे दिल्ली छोडकर जाने की बात कही। राजा ने अपने सपने की बात अपने कुल पुरोहित जगदीश ॠषि को बतायी और अपना राज्य स्थिर रहे इसके लिये उपाय पूछा। इस पर जगदीश ॠषि ने काशीपुरी के बागव ॠषि और उनके 51 शिष्यों को बुलाने व उन्हे अपने राज्य में रखने की बात कही। राजा ने अपने खास दीवान को बागव ॠषि को उनके कुटुम्ब व 51 शिष्यों सहित दिल्ली पधारने एवं राजा अनङगपाल के राज्य को स्थिर रखने का उपाय पूछने के लिये कहा। राजा का खास दीवान काशीपुरी बागव ॠषि के पास पहुँचा एवं उन्हे सारा वृतांत बताया एवं दिल्ली चलकर निवास करने की प्रार्थना की।
राजा के खास दीवान की प्रार्थना पर बागव ॠषि ने कहा कि 21 दिन अखण्ड यज्ञ होगा जिसमे 21 अंगुल की सर्वधातु की कील पृथ्वी में गाड़ी जाएगी और ये कील जब तक गडी रहेगी तब तक राजा का राज्य अचल रहेगा।
राजा अनङगपाल के निमंत्रण एवं प्रार्थना पर बागव ॠषि अपने कुटुम्ब एवं 51 शिष्यों सहित मार्गशीर्ष (मागसोर) शुक्ला दोज, गुरूवार विक्रम सम्वत् 1199 को रवाना हुए व दो महिने सात दिन बाद दिल्ली पहुँचे। दिल्ली नगर की सीमा के बाहर राजा अनङगपाल व जगदीश ॠषि ने उनका भव्य स्वागत किया।
दिल्ली पहुँचकर बागव ॠषि व उनके 51 शिष्यों नें वैशाख शुक्ला त्रयोदशी, गुरूवार, विक्रम सम्वत् 1200 को यज्ञ प्रारम्भ किया एवं ज्येष्ठ शुक्ला तृत्या, बुधवार को पूर्ण आहुति दी एवं 21 अंगुल की सर्वधातु की कील यज्ञ स्थल पर गाड़ी गयी।
बागव ॠषि नें राजा को कहा कि हे राजन यह कील बासिक नाग के शीश में गाड़ी गयी है। इसे कभी भी मत उखाड़ना। जब तक यह कील गड़ी रहेगी आपका राज्य भी अखण्ड रहेगा। तब राजा अनङगपाल ने बागव ॠषि व उनके शिष्यों को अपने वंश का द्वितीय गुरू बनाया |
बागव ॠषि ने राजा से कहा कि हे राजन ये कील बासिक नाग के शीश में गाडी गयी है इसे कभी भी मत उखडना। जब तक यह कील रहेगी तेरा राज्य अखण्ड रहेगा। तब राजा अनंङगपाल ने बागव ॠषि व उनके शिष्यों को अपने वंश का द्वितिय गुरू बनाया व 52 गांव गुरू दक्षिणा मे दिये। आषाढ कृष्णा, नवमी, मंगलवार विक्रम सम्वत् 1200 में बागव ॠषि व उनके 51 शिष्य 'बागौर' नामक क्षेत्र में पहुँचे एवं इसे ही अपना निवास स्थान बनाया। इसके पश्चात इन्होने विचार किया कि ब्राह्मण के षट्कर्मों में से दान लेना और देना ये मुख्य कार्य हैं तो अपने से दान लेने वाले कुल पुरोहित तो काशी में ही रह गये। उस समय बागौर क्षेत्र में चोखचंद नाम के ब्रह्मभट रहते थे। इनका शासन कटवालिया उपशासनिक कटारिया गौत्र भारद्वाज था जिन्हे अपना कुल पुरोहित बनाया व लाख पसाव का दान दिया।
उधर बासिक नाग के पुत्र तक्षक नाग ने बासिक नाग के शीश में गाड़ी गयी कील उखाडने का निश्चय किया। तक्षक नाग ब्राह्मण का रूप धारण कर राजा अनंङगपाल के पास दिल्ली पहुँचा। राजा ने ब्राह्मण रूपी तक्षक नाग को प्रणाम किया कपट रूप धारण किये तक्षक नाग ने राजा को आशिर्वाद दिया और अपनी सफ़ेद चादर तानकर उसपर विराजा गया। राजा ने सोचा ये कोई पहुँचे हुये ॠषि हैं। तब ब्राह्मण भेष धरे तक्षक नाग ने पृथ्वी पर कील गाडे जाने का कारण पूछा। राजा ने बताया कि यहाँ 21 दिन का अखण्ड यज्ञ किया गया था इसिलिये यह कील बासिक नाग के शीश में गाडी गयी है।
जब तक यह कील रहेगी तब तक हमारा राज्य रहेगा। इस पर ब्राह्मण रूपी तक्षक नाग ने कहा राजा तुम भी अच्छे पागल हो, यह 21 अंगुल की कील बासिक नाग के शीश में कैसे गाडी जा सकती है, जब कि कुँआ, बावडी तो इससे भी अधिक गहरे खोदे जाते हैं उनमे तो बासिक नाग नहीं निकलता। फिर भी यदि यह बात सच है तो इस कील को उखाडा जाये, यदि वह खून में भरी हुई निकले तो आपकी बात सच है अन्यथा झूंठी तो है ही।
जब ब्राह्मण तक्षक नाग ने राजा को यह बात कही तो राजा को उस पर और अधिक विश्वास हो गया। "विनाश काले विपरीत बुद्धि" राजा को ब्राह्मण रूपी तक्षक नाग की बात सही लगी एवं राजा ने उस कील को उखडवा दिया तभी 3 बूंद खून की पडी और उसी समय वह ब्राह्मण रूपी तक्षक नाग गायब हो गया।
तो राजा ने कील वापस गडवा दी एवं भारी पश्चाताप किया। और अपने कुल गुरू बागव ॠषि को बुलवाया और सारा वृतांत कह सुनाया। तब ॠषि ने कहा आपकी भारी भूल के कारण अब तुम्हारा यह राज्य नहीं रह सकता। और उन्होने एक बात कही 'कील जो ढीली हुई, तँवर हुआ मतिहीन' सत्य है जो गुरू के वचनों को नहीं मानता है उसकी यही दशा होती है। राजा बागव ॠषी के चरणों में गिर पडे तब ॠषि नें कहा हे राजन! अब पश्चाताप करने से क्या, जो होनी है सो होकर रहती है। इस पर राजा ने बागव ॠषि से आगे क्या किया जाये यह बात पूछी। ॠषि ने कहा राजन् आपने हमको 52 गाँव गुरू दक्षिणा में दिये हैं आप उन गांवों में जाकर राज्य करो, तब राजा ने पूछा की यदि मे वहाँ राज्य करूंगा तो आप कहाँ रहेंगे, तब ऋषि बागव ने कहा हम काश्त (खेती) करके अपना जीवन यापन करेंगे। जिस दिन आपके वंश का राज्य होगा और हमारे वंश का गुरु होगा तब हम यह दक्षिणा पुन: प्राप्त करेंगे।
राजा ने कहा महाराज आपके वंश की पहचान क्या होगी, इस पर राजा के कुल गुरू बागव ॠषि ने कहा कि आज से हमारे वंश का नाम 'बागडा ब्राह्मण' होगा और हम न किसी के गुरू बनेंगे और ना ही किसी को शिष्य बनायेंगे।
तभी से 'बागडा ब्राह्मण' जाति कि उत्पत्ति मानी जाती है। कालांतर में बागौड शब्द अपभ्रंश होता रहा एवं आज इसे बागडा के नाम से जाना जाता है | बागव ॠषि ने राजा अनंङगपाल को दिल्ली का राज्य अपनी लडकी के पुत्र पृथ्वीराज को देने की बात कही जो कि अजमेर मे रहते थे । तब राजा के प्रथम गुरू ने बागव ॠषि से राजा की राजधानी के बारे में पूछा। जगदीश ॠषि कि हार्दिक इच्छा थी कि राजा उनके गांव जाकर रहे। बागव ॠषि नें उनके मन की बात जानकर राजा से कहा हे राजन् ! आप गांव में जाकर राजधानी बनाओ और हम भी अब बागौर गाँव में नहीं रहेंगे। तब राजा अनंङगपाल ने अजमेर से पृथ्वीराज को बुलवाया और मिति वैशाख शुक्ला चतुर्दशी विक्रम सम्बत् 1201 में उसका राजतिलक किया एवं राजा अनंङगपाल स्वयं गाँव जाकर रहने लगे।
बागौर गाँव में बाग़ौड ब्राह्मणों ने 11 महिने 5 दिन राज्य किया एवं मिति ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी विक्रम संवत् 1201 को गाँव छोडकर चल दिये। जो आज पूरे भारत में फ़ैलकर अपने वंश एवं समाज की वृद्धि कर समाज एवं देश सेवा में तन, मन, धन से संलग्न है।
बागड़ा समाज की वैबसाइट[सम्पादन]
ये वैबसाइट सम्पूर्ण बागड़ा समाज को समर्पित है, बागड़ा समाज से जुड़ी सभी जानकारी यहाँ उपलब्ध है |
बागडा समाज गोत्र परिचय[सम्पादन]
1. बाड़ीवाल 2. चौधरी 3. बांड्या 4. जासरावत 5. बूरा 6. सुंठिया (दूसरी बकनाड) 7. पतालिया 8. सीमावत 9. लुनीवल मेहता 10. नारनोल्या मेहता 11. मेहता 12. दुन्दा 13. तुन्द्वाल (दूसरी " बहरोडिया) 14. छाजावत 15. गिलारिया 16. रामुंड्या 17. लोकंडा 18. खोज (दूसरी " कंडीरा) 19. सोजत्या 20. मंडावरा बोहरा 21. घाटसेरिया बोहरा 22. राय प्रधान 23. उतरेस्या प्रधान 24. कालसोरिया प्रधान 25. मन्होरया प्रधान 26. बौपला 27. पांड्या 28. मोगरा 29. ठनकता पंचौली 30. चेला पंचौली 31. चावंड्या पंचौली 32. नाड़ पंचौली 33. पापडा पंचौली 34. फयालिन पंचौली 35. कुचिला पंचौली 36. सौरठिया पंचौली 37. काठ पंचौली 38. बडवाल्या पंचौली 39. बांगला पंचौली 40. बीया पंचौली 41. रवाक्षा पंचौली 42. रुथाला पंचौली 43. धरल पंचौली 44. लाम्बा पंचौली 45. बच्छेर पंचौली 46. खाकस्या पंचौली 47. रवाखसा पंचौली 48. मागंस पंचौली 49. तालड पंचौली 50. मंडोलिया पंचौली 51. राय पंचौली 52. रावल्या पंचौली 53.तिवारी 54.सीटाटिया दुबे 55.शान्डिल्य दुबे 56.भारद्वाज 57.मुदगल 58.वशिष्ठ 59.व्यास
बागड़ा समाज के जिले जहां वे निवास करते है |[सम्पादन]
वर्तमान समय में बागड़ा ब्राह्मण राजस्थान के जयपुर, बूंदी, अलवर, नागौर, भरतपुर जिले में अवस्थित हैं, इसके अलावा सम्पूर्ण भारत मे निवास करते है |
बागडा ब्राह्मणों के कुछ गाँव जो भरतपुर मे है |[सम्पादन]
1. रंधीरगढ़ , सैन्धली , बारोली , सिरस, गांगरोली , गुर्धा नदी , बछेना , नावली , खट्नावाली, बिड्यारी , दहगांव ,नगला छीतरिया , पिंगोरा , अंधियारी , हाड़ोली , मुन्ढेरा , पिचूना , भैंसा , बहरावली , मदरियापुरा , बंशी, दाउदपुर , वोकौली , घाटा , दाहिना गाँव I इनके अलावा सम्पूर्ण भारत मे बागड़ा ब्राहमण अपने आप में सर्व संपन्न है । ये ब्राहमण अपने नियम व संयम के अनुसार ही अपना जीवन यापन करते है तथा समाज एवं देश सेवा में तन, मन, धन से संलग्न है।
References[सम्पादन]
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