बोथरा वंश ओर इतिहास
बोथरा वंश ओर इतिहास[सम्पादन]
आज बोथरा समाज बहुत विशाल है, यह न केवल भारत अपितु सम्पुर्ण विश्व में बोथरा समाज के लोग फैले हुए है | बोथरा कौन थे, कैसे सोनगरा चौहान से बोथरा बने, कैसे एक महान राजपुत परम्परा से महान जैन परम्परा का अनुसरण कर महाजन ओसवाल परम्परा को अपनाया गया, कहाँ से बोथरा शब्द आया, कैसे यह एक गोत्र बना ओर कैसे बोलचाल की भाषा में आया ? इसे जानने कि उत्सुकता हम सबको हमेशा से रही है, लेकिन इनका कोई खास वर्णन कहीं भी नही मिला, हम अपने अथक प्रयासो से, भिन्न भिन्न जगहों से, ऐतिहासिक पुस्तकों से ओर भी अन्य स्त्रोतो से जानकारी जुटाकर इन प्रशनों के उत्तर देने का प्रयास कर रहे है फिर भी हो सकता है, हमारे प्रयासो मे कोई त्रुटी रह जाये, तो इसके लिये पाठकों के सुझावों का हमेशा स्वागत रहेगा ।
बोथरा वंश का उद्दभव स्थल जालोर रहा है, यह यहीं से आगे बढा ओर विभिन्न कारणों से देश प्रदेश ओर विदेशों के विभिन्न भागो में पहुंचकर अपना विशेष स्थान बनाया। जालोर पर लम्बे समय तक राजपुत सोनगरा चौहान वंश का शासन रहा है इनके अन्तर्गत देलवाड़ा, सिरोही, भीनमाल, डुंगरपुर, चित्तौड, मण्डोर, खेडीनगर तथा पाटन जैसे अन्य ओर भी प्रदेश रहे थे।
जालोर के शासक श्री सामन्त सिहं जी बडे़ वीर, साहसी ओर न्यायप्रिय शासक थे । राजा श्री सामन्त सिहं जी के दो रानियां थी, जिनमें एक रानी देलवाड़ा बाई जी जो कि उस समय के देलवाड़ा के राजा श्री भीमसिहं जी पुत्री थी, उनसे सागर सिहं का जन्म हुआ तथा दुसरी रानी से मालदेव नामक पुत्र का जन्म हुआ जो आगे चलकर राव मालदेव के नाम से विख्यात हुए । आपसी कारणो के चलते रानी देलवाड़ा बाई जी अपने पीहर देलवाड़ा लौट गई, इनके पिता राजा श्री भीमसिहं जी के कोई पुत्र नही था इसलिये राजा श्री भीमसिहं जी ने अपने नाती सागर को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया ओर देलवाड़ा का राजा बना दिया था, राजा सागर की जैन धर्म मे विशेष रूचि थी।
राजा सागर के तीन पुत्र थे जिनमे से अपने मझले पुत्र बोईत्या जी ( बोहित्थ जी ) थे,जिनको राजा सागर ने अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था, इस प्रकार बोईत्या जी राजा बन गये। बोईत्या जी के बचपन में आचार्य श्री जिनदत्त सुरिश्वर जी द्वारा किये गये चमत्कार की घटना के कारण इनकी जैन धर्म में आस्था और भी गहरी हो गई थी।
राजा बनने के कुछ समय उपरान्त श्री बोईत्या जी अपने राज्य का भविष्य जानने के लिये आचार्य श्री जिनदत्त सुरिश्वर जी के पास गये ,जहाँ आचार्य श्री जिनदत्त सुरिश्वर जी ने इनका उज्जवल भविष्य को देखते हुए इन्हे जैन धर्म व बोथरा गौत्र अपनाने की सलाह दी अपने गुरूदेव की सलाह को मानते हुए, बोईत्या जी ने अपने नाम के आगे बोथरा गोत्र लिखने की परम्परा को शुरू कर दिया ओर पुर्णत: जैन धर्म अपना लिया था।
राजा श्री बोईत्या जी बोथरा के आठ पुत्र जिनमे श्री कर्ण बोथरा, श्री जैसा बोथरा, श्री ताल्हा बोथरा, श्री जगन्नमल बोथरा, श्री भीमसिहं बोथरा, श्री सोमसी बोथरा, श्री पुण्यपाल बोथरा श्री पदम बोथराऔर, एक पुत्री पदमा कंवर थी ।
इस प्रकार बोथरा गौत्र (वंश) बोथरा शब्द प्रचलन मे आया, यही से राजा श्री बोईत्या जी बोथरा के वंशजो द्वारा नाम के आगे बोथरा गौत्र लगाने की परम्परा का शुभारम्भ हुआ ।
इन सब बातो का उल्लेख चैत्र मास शुक्ल पक्ष की अष्टमी वार शनिवार को श्री जयसोम गुरुजी द्वारा श्री तोसामपुर के राजमहल मे आयोजित एक राजसभा में किया गया है ।
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