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बोथरा वंश और मन्दिर स्थापत्य

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बोथरा वंश और मन्दिर स्थापत्य[सम्पादन]

भारतीय इतिहास मे जैन धर्म ओर इसको मानने वाले लोगों का हमेशा से ऊँचा स्थान रहा है । ऐसा माना जाता रहा है कि जैन धर्म सनातन हिंदु धर्म में फैली कुरुतियो के कारण बना था । उस समय सनातन हिंदु धर्म को मानने वाले अधिकांशत: राजपूत राजाओं को अहिंसा के विचार ने बड़ा ही प्रभावित किया था । जैन मुनीयो के प्रभाव में आकर अधिकांशत: राजपूत राजाओ ने जैन धर्म को अपनाया । आज भी जैन धर्म को मानने वाले लोग समानांतर सनातन हिंदु धर्म और वैदिक संस्कृति का उतना ही पालन करते है जितना की जैन धर्म का । बाएँ|अंगूठाकार|Adishwar jain Temple delwara भारतीय इतिहास मे दिलवाड़ा के प्रतापी शासक राजा बोईत्या जी (बोहित्थ जी) ने सन्‌ 1197 में जैन आचार्य श्री जिनदत्त सुरिश्वर जी महाराज से जैन धर्म की दीक्षा ली और बोथरा गौत्र अपनाकर महाजनी ओसवाल परम्परा को पुर्णत: अपना लिया था । अब राजा बोईत्या जी चौहान से राजा बोईत्या जी बोथरा बन गये थे । बाएँ|अंगूठाकार|Jain mandir rani gaon राजा बोईत्या जी बोथरा अपने गुरु आचार्य श्री जिनदत्त सुरिश्वर जी महाराज की आज्ञा पाकर उनके निर्देशानुसार जैन धर्म का प्रचार प्रसार शुरु कर दिया तथा अपने परिजनो को भी जैन धर्म का प्रचार प्रसार करने की प्रेरणा दी । अपनी प्रबल धार्मिक आस्था के कारण इन्होने अपने क्षेत्राधिकार वाले क्षेत्रो मे अनेको जैन भवन, दादाबाड़ी, उपासरे व जैन मंदिरो का निर्माण करवाया था ।

राजा श्री बोईत्या जी बोथरा के बड़े बेटे राणा श्री कर्ण बोथरा ने पाटन अन्हिलपुर मे जैन मंदिर व जैन धर्मशाला तथा मछिंद्रगढ में विशाल जैन मंदिर, तथा रानीगांव में मंदिर निर्माण का कार्य करवाया था।

  राणा श्री कर्ण बोथरा के बाद उनके पुत्र श्री समधर बोथरा ने जैन धर्म का अत्यधिक प्रचार प्रसार किया था । इन्होने शत्रुंजय तीर्थ यात्रा संघ निकाले तथा उनको संघपति बनाया । इन्होने दिल खोलकर दान कार्य किया व जैन मंदिरो का निर्माण कार्य करवाया । आचार्य श्री जी को साथ लेकर इन्होने सिद्दाचल जी का एक बड़ा संघ निकाला था जिसमे मार्ग मे मिलने वाले सभी साधर्मी भाईयो को एक एक सोने की मुहर व सुपरियों से भरा थाल भेंट स्वरूप दिया गया था । अंगूठाकार|shree Neminath mandir, Bikaner राजा श्री समधर बोथरा के पश्चात उनके पोते श्री विल्हा बोथरा को संघपति बनाया गया ।

श्री विल्हा बोथरा के पुत्र श्री कद्दुआ जी बोथरा संघपति बनकर चित्तोड. अपने पुरखों की धरती पर लौट के आये जहां इन्होने अनेको धर्मिक कार्य किये ।

इसी क्रम में इनके वंश में दीवान (प्रधानमंत्री) श्री बछराज जी बोथरा ने १५०४ ईस्वी मे बीकानेर में श्री चिंतामणी पार्श्वनाथ मंदिर का निर्माण करवाया था तथा इस मंदिर में भगवान श्री आदिनाथ कि चतुर्विशति धातु प्रतिमा मण्डौर से लाकर  स्थापित की ।  दीवान श्री बछराज जी बोथरा के पुत्र दीवान श्री कर्मचंद बोथरा ने बीकानेर मे सन्‌ 1513 मे भगवान श्री नेमीनाथ जी के विशाल मंदिर का निर्माण कार्य करवाया । मुगल सम्राट अकबर पर भी जैन धर्म का अच्छा प्रभाव था जिससे प्रभावित होकर मुगल सम्राट अकबर ने मंत्री श्री कर्मचंद बोथरा, जो कि इस समय अकबर के खास लोगो मे शामिल थे, से आचार्य श्री   जिनचंद्र सुरिश्वर से मिलने की इच्छा जाहिर की और श्री कर्मचंद जी बोथरा के माध्यम से आचार्य श्री जिनचंद्र सुरिश्वर को लाहौर आने का न्यौता भिजवाया जिसे स्वीकार कर आचार्य श्री ने लाहौर आने का कार्यक्रम बनाया और अंगूठाकार|The rare sculptures लाहौर आकर मुगल सम्राट अकबर से मिले । इस मुलाकात से मुगल सम्राट इतना प्रभावित हुआ कि अपने सेनापति द्वारा लुटी गई बेशकीमती 1116 जैन मुर्तियाँ जो कि 10 वीं सें 16 वीं शताब्दी कि है, उन्हें मंत्री श्री कर्मचंद बोथरा को १६३३ में ससम्मान के साथ लौटा दी जो कि आषाढ़ सुदि ११ वि. संवत्‌ १६३९ को बीकानेर लाई गई थी और दीवान श्री कर्मचंद बोथरा ने इन जैन मुर्तियों को भविष्य में मुगल आततायियों से सुरक्षित रखने के लिये श्री चिंतामणी पार्श्वनाथ जैन मंदिर बीकानेर के तहखाने मे रखवा दी थी जो आज भी वहां सुरक्षित है । इसी क्रम मे दीवान श्री कर्मचंद बोथरा ने उदयरामसर (बीकानेर) मे जैन भवन, गोगागेट स्थित पार्श्वनाथ मंदिर, फलव्रद्दि, मेडता, सिरोही, लाहोर (पाकिस्तान), गोगलाव, नागौर, संग्रामपुर, शत्रुंजय पर्वत, गिरनार आदि जिनालयों का प्रमुखतया से निर्माण करवाया था।

चित्र:Jd03-Chintamani Mandir, Bikaner.jpg

दीवान (प्रधानमंत्री) श्री बछराज जी बोथरा के पुत्र मंत्री श्री वरसिंह बोथरा द्वारा नालग्राम में श्री जिनकुशलसुरि दादाबाड़ी नाल का  संवत्‌ १५८३ मे निर्माण कराया गया । मंत्री श्री वरसिंह बोथरा के पोत्र मंत्री श्री संग्रामसिंह बोथरा द्वारा रांगडी चौक बीकानेर का जैन बड़ा उपासरा जो की उस समय माणक चौक कहलाता था में बनवाया था,  इन ऐतिहासिक धरोहरो कि उस समय की लागत करोड़ों मे थी । इनकी आज के समय मे कीमत आंकी भी नही जा सकती है ।

चित्र:Jd05-Mughal Smrat Akbar with jain aacharya shree jindutt surishwer ji Maharaj.jpg
Mughal Smrat Akbar with jain aacharya shree jindutt surishwer ji Maharaj

इतनी बेशकीमती धरोहरो का निर्माण करने वाले महान समाज सेवी लोगों को समाज के चंद लोगों ने न केवल नजर अंदाज कर दिया बल्कि इन ऐतिहासिक धरोहरो पर इनके नाम के कोई भी शिलालेख या कोई विशेष उल्लेख तक नही किया गया ।

ये धार्मिक और ऐतिहासिक इमारते, जैन मंदिर, जैन उपासरे राजस्थान व गुजरात के अनेक भागो में बोथरा वंश के तत्कालीन गणमान्य लोगो द्वारा बनवाये गये थे । इन बेशकीमती अचल सम्पतियो के रख रखाव की कोई समुचित व्यवस्था न तो पुरातत्व विभाग न देवस्थान विभाग न राज्य सरकारों तथा न ही समाज के लोगों ने की । विभिन्न शहरो मे जहां ये अचल सम्पतियाँ है वहां समाज के चंद लोगो ने आपस मे बैठकें आयोजित कर व तथाकथित ट्रस्ट बनाकर इनको अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया। अपने निजी हितो को साधने के लिये इन्होने इनके वंशजो की खोज खबर तक ही नही ली बल्कि इन ऐतिहासिक इमारतो के आंशिक भागो पर रंग रोगन, पुताई आदि का कार्य कर अपने परिवारजन या स्वयं के नामों का महिमामंडन मात्र करने का कार्य किया जो कि उचित प्रतीत नहीं होता है । इनको बनाने वाले महान लोगों को उनका उचित सम्मान व स्थान मिलना चाहिये था, जो कि आज तक उन्हे नहीं मिला है ।    


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