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ब्रह्मर्षि

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ब्रह्मा के द्वारा प्रत्येक व्यक्ति को ब्रह्म का ज्ञान प्राप्त ना हो इस उद्देश्य से उसे आसक्ति ब मोह माया मैं जकड़े रहने का सिद्धांत बनाया ताकि जीव सालों सालों तक जन्म मरण के चक्कर में फंसा रहे जो व्यक्ति साधना व नित्य कर्म द्वारा इंद्रियों को वश में करते हुए और अपनी इच्छाओं का त्याग करके जो व्यक्ति सांसारिक मोह माया का त्याग कर कई वर्षों तक (१२ बरस) ब्रह्मचर्य का पालन नियम व साधना द्वारा करता है तो उसके मुख पर स्वयं तेज उत्पन्न हो जाता है और वह ब्रह्म ऋषि कहलाताहै उदाहरण के लिए भगवान बुद्ध द्वारा ईश्वर को जंगलों में भटकते हुए 12 वर्ष तक कठोर साधना फिर भी भगवान प्राप्त नहीं हुए केवल उनके सिर पर ब्रह्म का तेज प्रकट हो गया भगवान बुद्ध द्वारा बताया गया कि मनुष्य स्वयं ही अपने कर्मों का देवता है कि ब्रह्म ऋषि का शाब्दिक अर्थ है स्वयं ब्रह्मा और ऋषि का अर्थ है जो व्यक्ति तप और साधना में लीन हो। उदाहरण के लिए महाभारत युद्ध के उपरांत जब पांडवों ने अश्वमेध यज्ञ कराया तो शंख द्वारा कोई ध्वनि ना किए जाने पर श्री कृष्ण द्वारा बताया गया कि जो व्यक्ति भोजन कर रहे हैं वह किसी ना किसी जन्म में किसी योनि में अन्य प्रकार के जीव जंतु राक्षस इत्यादि नीच कर्म करने वाले व्यक्ति थे जबकि ब्रह्म ऋषि प्रत्येक जन्म में ब्रह्म का ज्ञान बांटने के लिए पृथ्वी पर आते हैं और इस समय एक ग्रस्त बाल्मीकि संत संत सुदर्शन निवास करते हैं आप उनको निमंत्रण दें तब आपका काम संपूर्ण होगा अन्यथा नहीं होगा तो पांडवों द्वारा संत सुदर्शन की याचना करने पर उन्होंने भोजन किया तब जाकर शंख ने ध्वनि उत्पन्न किए और अश्वमेघ यज्ञ सफल हुआ अतः ऋषि को किसी भी लालच या माया द्वारा या किसी भी प्रकार की माया द्वारा छला नहीं जा सकता है


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