ब्रह्म-स्थान, पठकौली
स्तूप के आकृति का यह मिट्टी का टीला पश्चिम चंपारण, बिहार स्थित बगहा-2 के पठकौली-मलकौली ग्राम की बाहरी परिधि में स्थित है। इस स्थान को पूर्वजों की उपासना से जुड़ा हुआ धार्मिक स्थल माना जाता है। यह स्थान 13वीं शताब्दी के दो ऐतिहासिक व्यक्तियों, दामोदर पाठक, उनके छोटे भाई भूपाल पाठक (अपभ्रंश नाम- भुआल पाठक) एवं उनके परिवार के अन्य सदस्यों के पार्थिव अवशेष पर निर्मित है।
ब्रह्म-स्थान का इतिहास[सम्पादन]
बगहा स्थित पठकौली गाँव के पाठक समुदाय की वंशावली द्वारा प्राप्त विवरण के अनुसार 13वीं शताब्दी में इस क्षेत्र का प्रशासन एक स्थानीय ब्राह्मण प्रमुख, पंडित दामोदर पाठक एवं उनके छोटे भाई ब्रहमचारी भूपाल पाठक द्वारा संचालित होता था। परन्तु सन 1312 ईस्वी (1369 विक्रम संवत) में नेपाल में स्थित बुटवल के एक स्थानीय राजा के हिंसात्मक दमन के खिलाफ विद्रोह करते हुए उन्होंने सपरिवार यज्ञ-अग्नि में आत्मदाह कर लिया। भूपाल पाठक को थारू, तेली, डोम समेत कई स्थानीय समुदायों का समर्थन प्राप्त था। इन समुदायों के सहयोग से दामोदर पाठक के पौत्र डीहाराम पाठक को दामोदर पाठक के उत्तराधिकारी के रूप में पुनःस्थापित किया गया।
उनके वंशज पास के गांव पठकौली में बसे हैं।
राजगढ़ी (नौरंगिया गाँव) स्थित भूपाल पाठक का ‘चौरा’[१][सम्पादन]
बगहा के पठकौली स्थित पाठक समुदाय द्वारा मान्य उनके कुल-देवता के रूप में इस ब्रह्म स्थान के अलावा वाल्मीकि नगर के वन-प्रांतर में स्थित नौरंगिया गाँव में भूपाल पाठक के आराध्य देवी राजगढ़ी माई के स्थान पर भी थारू समुदाय द्वारा भूपाल पाठक के ‘चौरा’ (समाधि) की पूजा की जाती है.[१]
सन्दर्भ सूची[सम्पादन]
अन्य स्रोत[सम्पादन]
https://web.archive.org/web/20170924135939/http://ssprajgadhi.in/history.html
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