भड्डरी
भड्डरी के नाम से बहुत सी हिन्दी कहावतें प्रसिद्ध हैं। लेकिन इनके बारे में ठीक-ठीक कुछ भी पता नहीं है।
ऐसी किन्वदंति है कि भड्डरी, घाघ की ही बहू थी। कुछ विद्वान दोनो को पृथक व्यक्ति मानते हैं। वो भी अपने ससुर की भाँति बहुत विद्वान और कुशाग्र बुद्धि की थी। उसने भी घाघ की तरह बहुत सारी कृषि, ज्योतिष और सामाजिक व्यवहार से संबंधित कहावतें लिखी हैं। घाघ की तरह उसकी भी कहावतें ग्रामीण समाज में बहुत लोकप्रिय हैं।
कहा जाता है भड्डरी हमेशा घाघ के जवाब मे उल्टा लिखती थी। ऐसा कुछ विद्वानों की खोज में प्राप्त हुआ है कि घाघ अपनी बहू भड्डरी से किसी कारणवश बहुत नाराज़ रहते थे परंतु घाघ ने बहुत सारी कहावतों में अपनी बहू को संबोधित किया है,जैसे: "घाघ कहैं सुन भड्डरी महुआ तर की गाय.. "
भड्डरी की कुछ प्रसिद्ध कहावतें[सम्पादन]
भड्डरी की रचनाएं वर्षा, ज्योतिष और आचार-विचार से विशेष रूप से संबद्ध हैं।
- बरसात के बारे में
- तीतरी, बरनी बादरी, रहै गगन पर छाय ।
- डंक कहै सुन भड्डरी, बिन बरसै न जाय॥
- (जब तीतर के रंगवाली लहरदार बदली आकाश पर छा रही हो, तो डंके की चोट से कहा जायेगा कि वह बिना बरसे नहीं जायेगी।)
- सुक्करवारी बादरी, रहै सनीचर छाय।
- यों भाखैं भड्डरी, बिन बरसे ना जाये॥
- (शुक्रवार को आकाश में छानेवाली बदली, यदि शनिवार को भी छायी रहे, तो वह बरसे बिना नहीं जाती।)
- ढेले ऊपर चील जो बोलै।
- गली गली में पानी डोलै॥
- (अगर चील ढेले पर बैठकर बोले तो समझना चाहिए कि इतना पानी बरसेगा कि गली-गली पानी से भर जाएंगे।)
- सोमं सुक्रम सुरगुंरा जै चंदो उंगत ।
- डंक कहै है भड्डली जल, थल एक करंत ॥
- (यदि आषाढ मास में चंद्रमा सोमबार गुरुवार या शुक्रवार को उदय हो तो डंक भड्डली से कहता है की जल थल एक हो जाएँगे यानि वर्षा खूब होगी।)
सन्दर्भ[सम्पादन]
इन्हें भी देखें[सम्पादन]
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