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भारत का राष्ट्रभाषा विवाद

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हिंदी भारत की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। लगभग एक-चौथाई भारतीय जनसंख्या हिंदी को मातृभाषा कहती है और 25% से अधिक भारतीय आबादी हिंदी को दूसरी भाषा के रूप में उपयोग करती है। हिंदी मुख्य रूप से उत्तर और मध्य भारत में बोली जाती है। पश्चिम और पूर्व भारत में जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा हिंदी को दूसरी भाषा के रूप में जानता है। लेकिन दक्षिण भारत में हिंदी की उपस्थिति बहुत कम है। दक्षिण भारत में विशेष रूप से तमिलनाडु में हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने के प्रयास पर विरोध प्रदर्शन प्रारंभ हो जाते है। तमिलनाडु में, लोग सोचते हैं कि हिंदी उत्तर भारत की एक क्षेत्रीय भाषा है और यह भारत की राष्ट्रीय भाषा नहीं हो सकती है। संस्कृत को राष्ट्रीय भाषा बनाने से इस समस्या को हल किया जा सकता है क्योंकि संस्कृत पूरे भारत में लोगों को सांस्कृतिक रूप से अधिक स्वीकार्य है और किसी को भी हिंदी जैसे संस्कृत को राष्ट्रीय बनाने के विरोध के लिए लोगों का लोकप्रिय समर्थन नहीं मिलेगा।

हिन्दी को लेकर गैर हिन्दी भाषियों विशेष रूप से दक्षिण भारतियों के मन में कई भय है-

उन्हें लगता है कि यदि हिन्दी को राष्ट्र भाषा बनाया गया ताे इससे उनकी मातृ भाषाओं पर संकट उत्पन्न हो जाएगा।

उन्हें लगता है कि हिन्दी उतर भारत की क्षेत्रीय भाषा है तथा इसका भारत के सभी भागों में समान प्रभाव नहीं है, इस भाषा की राष्ट्रीय पहचान नहीं है और यह भाषा मुख्य रूप से केवल उतर भारत का ही प्रतिनिधित्व करती है।

उनके अनुसार यदि हिन्दी काे राष्ट्र भाषा बनाया गया तो सरकारी नौकरीयों में उन्हें समान अवसर नहीं मिल पाएगें।


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