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महर्षि मेंहीं

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महर्षि मेंहीं
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Born 28 अप्रैल 1885 in धराहरा , बनमनखी Purnea District, India as रामानुग्रह लाल दास
🏳️ Nationality भारतीय



निर्वाण=8 जून, सन 1986 ई. रविवार। निर्वाणस्थल=कुप्पाघाट, भागलपुर, बिहार भारत। कार्यक्षेत्र=बिहार, कलकत्ता, दिल्ली, पंजाब, अमेरिका, रूस और संपूर्ण भारत। केले और बांस की खेतीकर स्वावलंबी जीवन बिताते हुए सत्संग ध्यान का प्रचार करना। राष्ट्रीयता=भारतीय। भाषा= भारती (हिन्दी), मैथिली, अंग्रेजी, बंगाली। काल=भक्ति काल, सन् 1885 से 1986 तक। विधा=कविता, लेख, टीकाकरण आदि। विषय=सामाजिक, आध्यात्मिक| आन्दोलन=भक्ति आंदोलन प्रमुख कृति=सत्संग योग, रामचरितमानस सार सटीक, श्रीगीता-योग-प्रकाश, महर्षि मेंही पदावली आदि। प्रभाव=सिद्ध, प्रभावित=डाक्टर, भक्त, वकील, विदेशी, विद्वान, संन्यासी, साहित्यकार, महर्षि संतसेवी परमहंस, शाही स्वामी जी महाराज।

महर्षि मेंहीं या सदगुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज 19वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। वे हिन्दी साहित्य के भक्तिकालीन युग में ज्ञानाश्रयी-निर्गुण शाखा की काव्यधारा के प्रवर्तक थे। इनकी रचनाओं ने भारती (हिन्दी) प्रदेश के भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया। उनके लेखन आधुनिक विद्वानों के साहित्यों मेंं मिला करता है।[१] ये परम प्रभु परमात्मा, (ईश्वर, God, वाहेगुरु) की उपासना अपने शरीर के अंदर ही बिंदु ध्यान और नाद ध्यान की साधना द्वारा करने में विश्वास रखते थे। इन्होंने सामाजिक भेड़िया धसान भक्ति की निंदा की, सामाजिक बुराइयों (झूठ, चोरी, नशा, हिंसा और व्यभिचार) की सख़्त आलोचना अपने प्रवचनों में की, गीता में फैले भ्रामक विचारों पर इन्होंने बहुत प्रकाश डाला है सत्संग योग की रचना कर इन्होंने यह सिद्ध कर दिया है कि सभी पहुंचे हुए संतों एवं वैदिक धर्मावलंबियों के विचारधारा एक हैं। इन्होंने संतमत परंपरा[२] को आगे बढ़ाते हुऐ संतमत बहुत ही विस्तार किए। इसके साथ-साथ संतमत सत्संग की एक निश्चित प्रणाली का विकास करके प्रचार-प्रसार करने की नियमावली तैयार की।

महर्षि मेंहीं[सम्पादन]

संतों की अविच्छिन्न परम्परा और गुरुदेव

संतों की अविच्छिन्न परम्परा और गुरुदेव सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंसजी महाराज ऋषियों और सन्तों की दीर्घकालीन अविच्छिन्न परम्परा की अद्भुत आधुनिकतम कड़ी के रूप में परिगणित हैं । भागलपुर नगर के मायागंज महल्ले के पास पावन गंगा - तट पर अवस्थित इनका भव्य विशाल आश्रम आज भी अध्यात्म - ज्ञान की स्वर्णिम ज्योति चतुर्दिक बिखेर रहा है ।

महर्षि का अवतरण

महर्षि का अवतरण विक्रमी संवत् १ ९ ४२ के वैशाख शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि तदनुसार २८ अप्रैल , सन् १८८५ ई ० , मंगलवार को बिहार राज्यान्तर्गत सहरसा जिले ( अब मधेपुरा जिले ) के उदाकिशुनगंज थाने के खोखशी श्याम ( मझुआ ) नामक ग्राम में अपने नाना के यहाँ हुआ था । जन्म से ही इनके सिर पर सात जटाएँ थीं , जो प्रतिदिन कंघी से सुलझा दिये जाने पर भी दूसरे दिन प्रातःकाल पुनः अपने - आप सात - की - सात जटाओं में उलझ जाती थीं । लोगों ने समझा कि अवश्य ही किन्हीं योगी - महात्मा का जन्म हुआ है ।

गुरुदेव का नामकरण

ज्योतिषी ने इनका जन्मराशि का नाम ' रामानुग्रहलाल दास ' रखा । पीछे इनके पिता के चाचा श्रीभारतलाल दासजी ने इनका नाम बदलकर में ही लाल ' रख दिया । बाद में इनके अन्तिम सद्गुरुदेवजी महाराज ने भी इनके इस नाम की उपयुक्तता एवं सार्थकता का सहर्ष समर्थन किया । महर्षि का पितृगृह पूर्णियाँ जिलान्तर्गत बनमनखी थाने के सिकलीगढ़ धरहरा नामक ग्राम में है ।

कुल और माता-पिता

मैथिली कर्ण कायस्थ - कुलोत्पन्न इनके पिता श्रीबबुजनलाल दासजी यद्यपि आर्थिक दृष्टि से बड़े सम्पन्न थे , तथापि शौक से वर्षों तक बनैली राज्य के कर्मचारी रहे । जब महर्षि केवल ४ वर्ष के थे , तभी इनकी सौभाग्यशालिनी माता जनकवतीजी का देहान्त हो गया ।

गुरुदेव का लालन-पालन

बालक महर्षि को इनके पिता और इनकी बड़ी बहन झूलन देवीजी ने इतने स्नेह और सुख - सुविधापूर्ण वातावरण में पालित - पोषित किया कि इन्हें अपनी माता का अभाव कभी खटक नहीं पाया । ५ वर्ष की अवस्था में मुण्डन - संस्कार होने के बाद अपने गांव की ही पाठशाला में इनकी प्रारंभिक शिक्षा आरंभ हुई , जिसमें इन्होंने कैथी लिपि के साथ - साथ देवनागरी लिपि भी सीखी ।

प्रारंभिक शिक्षा और वैराग्य

प्रारंभिक शिक्षा समाप्त करके इन्होंने ग्यारह वर्ष की अवस्था में पूर्णियाँ जिला स्कूल में पुराने अष्टम वर्ग में अपना नाम लिखवाया । यहाँ उर्दू , फारसी और अँगरेजी में कक्षा की पाठ्य पुस्तकें पढ़ने के साथ - साथ , पूर्व आध्यात्मिक संस्कार से प्रेरित होकर रामचरितमानस , महाभारत , सुखसागर आदि धर्मग्रंथों का भी अवलोकन करते और शिव को इष्ट मानकर उनके प्रति जल चढ़ाया करते । इसी अवधि सन् १ ९ ०२ ई ० में इन्होंने जोतरामराय ( जिला पूर्गियाँ ) के एक दरियापंथी साधु स्वामी श्रीरामानन्दजी से मानस जप , मानस ध्यान और खुले नेत्रों से किये जानेवाले बाटक को दीक्षा ले ली और नियमित रूप से अभ्यास करने लगे । योग - साधना की ओर बड़ती हुई अभिरुचि के कारण अब ये पाठ्य पुस्तकों की ओर से उदासीन होने लगे और मन - ही - मन साधुओं की संगति चाहने लगे ।

प्रबल वैराग्य और गृह त्याग

सन् १ ९ ०४ ई ० की ३ जुलाई से प्रारंभ हो रही एन्ट्रेस ( प्रवेशिका ) के फर्स्ट क्लास ( आधुनिक मैट्रिक ) की परीक्षा में ये सम्मिलित हुए । दूसरे दिन की अंगरेजी परीक्षा के प्रश्नपत्र के पहले प्रश्न में ' Builders ' ( बिल्डर्स ) नामक कविता की जिन प्रारंभिक चार पंक्तियों को उद्धृत करके उनकी व्याख्या अंगरेजी में लिखने का निर्देश किया गया था , वे इस प्रकार दो For the structure that we raise , Time is with material's field . Our todays and yesterdays , Are the blocks with which we build . इन पंक्तियों को उद्धृत करके इनकी व्याख्या लिखते - लिखते इनमें वैराग्य की भावना इतनी प्रबल हो गयी कि इन्होंने मानस की यह अर्धाली "देह घरे कर यहि फल भाई । भजिय राम सब काम बिहाई ॥ " लिखकर परीक्षा - भवन का परित्याग कर दिया और यहीं इनकी स्कूली शिक्षा का भी अन्त हो गया ।

सन्यास और साधना

इन्होंने आजीवन ब्रह्मचारी रहकर ईश्वर की भक्ति में अपना समस्त जीवन बिता देने का संकल्प किया । ये आरम्भ के अपने गुरु स्वामी श्रीरामानन्दजी की कुटिया आ गये और वहाँ उनकी निष्ठापूर्वक सेवा करते हुए रहने लगे । जब इन्होंने देखा कि गुरुजी इनकी जिज्ञासाओं का समाधान नहीं कर पा रहे हैं , तब ये किन्हीं सच्चे और पूर्ण गुरु की खोज के लिए निकल पड़े । भारत के अनेक प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों की इन्होंने यात्राएं की ; परन्तु कहीं भी इनके चित्त को समाधान नहीं मिला । अन्त में , इन्हें जब जोतरामराय - निवासी बाबू श्रीधीरजलालजी गुप्त द्वारा मुरादाबाद - निवासी परम संत बाबा देवी साहब और उनकी सन्तमत - साधना के विषय में पता लगा , तब इनके हृदय में सच्चे गुरु और सच्ची साधना - पद्धति के मिल जाने की आशा बंध गयी । बड़ी आतुरतावश इन्होंने १ ९ ० ९ ई ० में बाबा देवी साहब - द्वारा निर्दिष्ट दृष्टियोग की विधि भागलपुर नगर के मायागंज - निवासी बाबू श्रीराजेन्द्रनाथ सिंहजी से प्राप्त की , तो इन्हें बड़ा सहारा मिला । उसी वर्ष विजया दशमी के शुभ अवसर पर श्रीराजेन्द्रनाथ सिंहजी ने भागलपुर में ही बाबा देवी साहब से इनकी भेंट कराकर उनके हाथ में इनका हाथ थमा दिया । बाबा देवी साहब - जैसे महान् सन्त को पाकर ये निहाल - से हो गये । उनके दर्शन - प्रवचन से इन्हें बड़ी शान्ति और तृप्ति का बोध हुआ ।

स्वाबलंबी जीवन और संतमत

एकमात्र मधुकरी वृत्ति के द्वारा जीवन - निर्वाह करते हुए ईश्वर - भक्ति करने की इच्छा रखनेवाले इन युवा संन्यासी को बाबा देवी साहब ने कड़ी डाँट लगाते हुए स्वावलम्बी होकर जीवन बिताने का कठोर आदेश दिया और कहा कि स्थायी जीविका के लिए कोई काम करो ; यदि तुम सौ वर्ष जी गये , तो क्या खाओगे ! एक सच्चा शिष्य गुरु - आज्ञा की अवज्ञा करने का दुस्साहस कैसे कर सकता है ! विवश होकर इन्हें जीविका के लिए भंगहा ( पूर्णियाँ जिला ) और सिकलीगढ़ धरहरा में क्रमशः अध्यापन और कृषिकार्य अपनाना पड़ा ।

ईश्वर प्राप्ति और नादानुसंधान साधना

सन् १९१२ ई ० में बाबा देवी साहब ने स्वेच्छा से इन्हें शब्दयोग की विधि बतलाते हुए कहा कि अभी तुम दस वर्ष तक केवल दृष्टियोग का ही अभ्यास करते रहो । दृष्टियोग में पूर्ण हो जाने पर ही शब्दयोग का अभ्यास करना । शब्दयोग की विधि अभी मैंने तुम्हें इसलिए बता दी कि यह तुम्हारी जानकारी में रहे । बीच - बीच में इन्हें बाबा देवी साहब की सेवा करने और उनके साथ भारत के विभिन्न स्थानों में भ्रमण करने का भी मौका मिलता रहा । सन् १ ९ १ ९ ई ० में सिकलीगढ़ धरहरा में इन्होंने जमीन के नीचे एक ध्यान - कूप बनाया और उसमें लगातार तीन महीने तक अकेले रहकर तपस्यापूर्ण साधना की , जिसमें इनका शरीर अत्यन्त क्षीण हो गया । सन् १ ९ १ ९ ई ० की १ ९ जनवरी को बाबा देवी साहब के परिनिवृत्त हो जाने के बाद इनके मन में इसी जन्म में मोक्ष प्राप्त कर लेने की बारंबार प्रबल कामना उठती रही । सन् १ ९३३-३४ ई ० में इन्होंने पूर्ण तत्परता के साथ १८ महीने तक भागलपुर नगर के मायागंज महल्ले के पास गंगा - तट पर अवस्थित कुप्पाघाट की गुफा में शब्दयोग की गंभीर साधना की , फलस्वरूप ये आत्मसाक्षात्कार करने में सफल हो गये ।

महर्षि मॅहीं साहित्य - सुमनावली-[सम्पादन]

1 . सत्संग - योग ( चारो भाग ) 2 . विनय - पत्रिका - सार सटीक 3 . महर्षि मॅहाँ - वचनामृत , प्रथम खंड 4 . सत्संग - सुधा , प्रथम भाग 5 . सत्संग सुधा , द्वितीय भाग 6 . सत्संग - सुधा , तृतीय भाग 7 . सत्संग - सुधा , चतुर्थ भाग 8 . भावार्थ - सहित घटरामायण - पदावली 9 . वेद दर्शन - योग 10 . ईश्वर का स्वरूप और उसकी प्राप्ति 11 . ज्ञान - योग - युक्त ईश्वर भक्ति 12 . संतवाणी सटीक 13 . श्रीगीता - योग - प्रकाश 14 . रामचरितमानस - सार सटीक 15 . मोक्ष दर्शन 16 . महर्षि मॅहीं - पदावली 17 . महर्षि मेंहीं सत्संग - सुधा सागर 1 . 18 . महर्षि मेंहीं सत्संग - सुधा सागर 2


प्राप्ति स्थान

. प्रकाशन विभाग, महर्षि मेंहीं आश्रम , कुप्पाघाट , भागलपुर - ३ ( बिहार ) 812003

. सत्संग ध्यान ऑनलाइन स्टोर


सन्दर्भ[सम्पादन]


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