महाराजा भीम सिंह राणा
महाराजा भीम सिंह राणा | |
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[[File:|frameless|alt=|गोहद नरेश महाराजा भीम सिंह राणा]] | |
गोहद नरेश महाराजा भीम सिंह राणा | |
शासनकाल | 1717-1756 |
पूर्वाधिकारी | जसवंत सिंह |
उत्तराधिकारी | गिरधर प्रताप सिंह |
राजघराना | सिंह राजवंश |
जन्म | 1707 |
मृत्यु | 1756 ग्वालियर |
धर्म | हिंदु |
राजा भीम सिंह राणा (1707 ई – 1756 ई), एक शक्तिशाली साशक थे जिनका राज्य वर्तमान मध्य प्रदेश का उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र के गोहद में था। राणा इनकी उपाधि थी , बमरौलिया इनका गोत्र था। अलेक्जेंडर कनिंघम और विलियम क्रुक्स के अनुसार, ग्वालियर के निकट गोहद नामक इस नगर की स्थापना १५०५ ई में आगरा के निकट स्थित बमरौली गाँव के राणा ने की थी। इन्होने कई बार मराठों को कड़ी टक्कर दी थी। इन्होने ग्वालियर के किले को जीता था।
महाराजा भीम सिंह राणा गोहद, ग्वालियर नरेश[सम्पादन]
राणा शासकों का शासन इतिहास की दृष्टि से सबसे गौरवशाली, गरिमामय, लम्बा और पुराना है, तथा आजादी वर्ष 1947 के समय तक निरन्तर शासन रहा । राणा शासकों की राजधानी गोहद जिला भिंड, ग्वालियर, बाद में धौलपुर रही है। गोहद शासन काल सन् 1505 से लेकर 1805 कुल 300 वर्ष उसके बाद धौलपुर सन 1805 से सन 1947तक 142 वर्ष ,देश आजादी तक 442 वर्ष का रहा है , और ग्वालियर दुर्ग पर महाराजा भीम सिंह राणा ने शासन सन् 1754 से सन 1756 मृत्यु पर्यन्त तक किया उनके बाद महाराजा छत्र सिंह राणा ने सन् 1761से 1765 व सन 1781से सन 1783 तक किया । महाराजा छत्र सिंह के शासनकाल में तीन राजधानियां, गोहद जिला भिंड, ग्वालियर और बेहट जिला ग्वालियर थीं। विस्तृत शासक विवरण -
गोहद - राणा सिघन देव 1505-1512
राणा अभय सिंह 1512-1531
राणा रामचन्द्र 1531-1550
राणा रत्न चन्द्र 1550-1588
राणा उदय सिंह 1588-1619
राणा नागराज 1619-1654
राणा गज सिंह 1654-1690
राणा जसवन्त सिंह 1690-1702
राणा भीम सिंह 1702-1756
राणा गिरधर प्रताप सिंह 1756-1757
राणा छत्र सिंह 1757-1784
राणा कीर्ति सिंह 1784-1805
राणा भीमसिंह (1707-1755)[सम्पादन]
राणा जसवन्त सिंह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र राणा भीमसिंह गोहद के राज सिंहासन पर आसीन हुए. उनका समारोह बड़ी धूमधाम से गोहद दुर्ग में मनाया गया. इस समय राणा की शक्ति बहुत बढ़ गयी थी. गोहद दुर्ग अपनी सृदृढ़ चहार दीवारी के कारण प्रसिद्ध था तथा आस-पास के गाँवों में राणा के छोटे-छोटे पक्के दुर्ग बने थे. राणा भीम सिंह ने आसपास के छोटे दुर्गों पर सुरक्षा हेतु सैनिक रखे. राणा सेना में लगभग 25000 सैनिक थे. उनके राणा सरदारों की संख्या 125 थी. कुछ प्रमुख राणा निम्न थे.
- नीरपुरा - राव बलजू
- इटायली - कुंवर माधो सिंह
- करवास - हमीर सिंह
- पिपाड़ा - विक्रमदत्त
- मुढ़ैना - कुंवर गुमान सिंह
राणा भीमसिंह को अपने पिता राणा जसवन्त सिंह से एक सुव्यवस्थित एवं विस्तृता राज्य मिला था. चम्बल तथा सिंद नदियों के बीच गोहद शक्तिशाली राज्य के रूप में अभ्युदय हो चुका था. राणा भीमसिंह 1707 तक निर्विवाद रूप से गोहद पर शासन करता रहा तथा अपने राज्य की सीमाओं के विस्तार हेतु प्रयासरत रहा.
गोहद दुर्ग पर भदौरिया राजपूत का आधिपत्य : 4 मार्च 1707 को औरंगजेब की मृत्यु हो गयी. राव चूड़ामन सिहंजाट को मुग़ल सम्राट का जागीरदार बना दिया गया था जिससे गोहद राज्य अकेला पड़ गया था. अटेर राजा गोपाल सिंह भदौरिया राजपूत ने अवध के नवाब की सहायता से 1707 में गोहद पर आक्रमण कर अधिपत्य कर लिया. गोपाल सिंह का केवल गोहद दुर्ग पर अधिपत्य हुआ था शेष राज्य भीम सिंह के अधिकार में ही था. गोहद दुर्ग पर भदौरिया का अधिकार 1707 से 1739 तक रहा. इस अवधी में भीम सिंह झाँकरी चला गया. उस समय झाँकरी का सामंत राव बलजू था, राणा भीम सिंह का परिवारी चाचा था. राणा भीम सिंह ने 1739 तक झाँकरी गढ़ से शेष शेष राज्य का संचालन किया।
गोहद दुर्ग पर राणा भीमसिंह का पुनः आधिपत्य : पेशवा बाजीराव (1720-40) दिल्ली अभियान पर आगरा जा रहा था तब गोहद दुर्ग पर अनुरूद्ध सिंह भदौरिया राजपूत का आधिपत्य था. पेशवा ने भदौरिया से सैन्य सहायता मांगी. अनुरूद्ध सिंह भदौरिया मुगलों का पुस्तैनी सामंत था इसलिए पेशवा को सैन्य सहायता देने से इनकार कर दिया. जिससे नाराज होकर पेशवा ने अटेर के राजा पर आक्रमण कर दिया.
राणा भीमसिंह जो अपने गोहद दुर्ग पर अधिकार पाने के लिए 32 वर्ष से प्रतीक्षारत था, जाकर पेशवा से मिल गया. राणा-मराठा संयुक्त सेना ने अनिरूद्ध सिंह भदौरिया की सेना के विरुद्ध जटवारे में पचेहरा नामक स्थान पर घमासान युद्ध हुआ. अचानक पेशवा ने मराठा सेना की एक टुकड़ी को जैतपुर के रास्ते अटेर की ओर भेजा। अनिरुद्ध सिंह युद्ध का मैदान छोड़कर अपनी राजधानी बचने अटेर पहुंचा. अनिरुद्ध सिंह के भागने पर राणा भीम सिंह को उसकी कुछ तोपें, नगाड़ों के निशान तथा 11 हाथी मिल गए जिन को वह गोहद लेकर गए. यह युद्ध मराठा सेना की सहायता से भीम सिंह ने जीत लिया. राणा भीम सिंह का भादो सुदी 10 बृहस्पतिवार संवत 1796 के दिन गोहद पर पुनः आधिपत्य हो गया.
मराठा युद्ध - कुम्हेर दुर्ग 1754 : 20 जनवरी 1754 को मराठा सेनाओं ने कुम्हेर दुर्ग का घेरा डाला था. राजा सूरजमल ने मराठा सेनाओं का सामना करने के लिए पर्याप्त प्रबंध किये. राणा भीम सिंह अपनी 5000 की सेना लेकर सूरजमल के पक्ष में मराठों के विरुद्ध युद्ध में भाग लेने कुम्हेर पहुंचे. इस युद्ध में 15 मार्च 1754 को मल्हार राव होल्कर का पुत्र खांडेराव मारा गया. 18 मई 1754 के दिन मराठा सेनाओं ने कुम्हेर का घेरा उठा लिया. कुम्हेर दुर्ग पर सूरजमल का आधिपत्य बना रहा.
राणा भीमसिंह का ग्वालियर दुर्ग पर आधिपत्य (1754)[सम्पादन]
मराठो का ग्वालियर दुर्ग पर आक्रमण - जब मराठा सेना ने 1754 में कुम्हेर दुर्ग का घेरा उठाकर दक्षिण की ओर लौट रही थी, तब उनके एक सेनानायक विठ्ठल शिवदेव विंचुरकर ने ग्वालियर में अपना सैन्य पड़ाव डाला. विंचुरकर ने ग्वालियर दुर्ग पर घेरा डाल दिया और आक्रमण कर दिया. किलेदार किश्वर अली खां के नेतृत्व में मुग़ल बादशाह की और से नियुक्त राजपूत सैनिक एक माह तक मराठों का सामना करते रहे. मुग़ल साम्राज्य में उस समय षड्यंत्रों का दौर चल रहा था. जिसकी वजह से दिल्ली दरबार ग्वालियर दुर्ग पर मराठों का सामना करने के लिए सेना नहीं भेज सका. किलेदार किश्वर अली ने दुर्ग पर नियुक्त उच्च अधिकारियों से विमर्श किया. किश्वर अली खां के वकील किशनदास ने सलाह दी कि 'दक्षिण के लुटेरों के सामने आत्म समर्पण करने के बजाय गोपाचलगढ़ गोहद के राणा भीम सिंह को सौंपना उचित होगा'.
किलेदार किश्वर अली खां ने वकील की सलाह के अनुसार गोहद के राणा भीम सिंह को पत्र भेजकर ग्वालियर दुर्ग राणा भीम सिंह को सौंपने के निर्णय से अवगत कराया.
जाट सेना का ग्वालियर दुर्ग में प्रवेश - किलेदार किश्वर अली खां की अधिकृत सूचना पर राणा भीम सिंह ने मराठों को ग्वालियर से खदेड़ने तथा ग्वालियर दुर्ग पर आधिपत्य करने के लिए जाट सेना फ़तेहसिंह के नेतृत्व में 1000 बन्दूक सैनिक ग्वालियर दुर्ग पर भेज दिए. जिन्हें कबूतरखाने के रास्ते से दुर्ग में प्रवेश करा दिया गया. जाट सेनापति फ़तेह सिंह ने मराठा सेना का सामना करने के लिए मोर्चा लगाया.
जाट मराठा युद्ध 1754 - मराठा सरदार विट्ठल शिवदेव विचुंरकर बहादुरपुर गांव के निकट मोर्चा लगाये थे. राणा भीम सिंह अपने साथ 5000 पैदल, 1000 घुडसवार, 1000 बंदूकों वाले सैनिक की विशाल सेना लेकर युद्ध के मैदान में पहुंचे. ग्वालियर, नरवर आदि राज्यों के अमीर, सामंत, जमींदार तथा सरदार इकट्ठे होकर मराठों का सामना करने के लिये राणा भीम सिंह के पक्ष में पहुंचे. राणा भीम सिंह ने गिरगांव के निकट अपना मोर्चा लगाया. जाट सेना तथा मराठा सेना मे घमासान युद्ध हुआ. जाट सेना के सामने मराठा सेना ठहर न सकी. मराठों के बहुत से सैनिक मारे गये तथा घायल हो गये. मराठा सेना बुरी तरह परास्त हुई. राणा भीम सिंह ने विट्ठल शिवदेव विचुंरकर के मोर्चे को बुरी तरह ध्वस्त कर दिया. विट्ठल शिवदेव विचुंरकर अपनी सेना लेकर ग्वालियर से 20 मील दूर स्थित आंतरी भाग गया. कुछ मराठा सैनिकों को भीम सिंह की सेना ने कैद कर लिया.
राणा भीम सिंह का ग्वालियर दुर्ग पर आधिपत्य (1754) - राणा भीम सिंह ने मराठों को बुरी तरह पराजित कर ग्वालियर दुर्ग पर आधिपत्य कर लिया. उसने दुर्ग की सुरक्षा की नये सिरे से व्यवस्था की. किले पर रह रहे उन लोगों को हटा दिया, जिन्हें युद्ध कला का कोई ज्ञान नहीं था. बादशह की ओर से नियुक्त राजपूत दुर्ग रक्षकों को भी हटा दिया, जबकि किलेदार किश्वर अली खां को उसके पद पर बना रहने दिया.
मराठा रघुनाथ राव का ग्वालियर दुर्ग पर आक्रमण -1755 - अगले वर्ष 1755 मे जब मराठा सेनापति दादा रघुनाथ राव अपने दिल्ली अभियान से दक्षिण की ओर सेना सहित वापस लौट रहा था, तब ग्वालियर दुर्ग पर पुन: घेरा डाला गया. जाट सेना ने भी दुर्ग पर मोर्चा लगाया. दोनों पक्षों मे लगभग एक माह तक युद्ध चलता रहा, लेकिन किसी पक्ष को कोई विशेष नुकसान नहीं हुआ.
मराठों का राणा भीमसिंह पर धोखे से हमला (1755)[सम्पादन]
मराठा सरदार विट्ठल शिवदेव विचुंरकर बहादुरपुर गांव के पास व राणा भीमसिंह ग्वालियर दुर्ग पर अपना मोर्चा लगाये थे. एक दिन राणा भीम सिंह अपने कुछ अंगरक्षकों के साथ दुर्ग से नीचे उतर के ’सालू’ गांव के पास खडे होकर स्थिति का आंकलन कर रहे थे, कि उनको मराठा गुप्तचरों ने देख लिया, उन्होंने मराठा सेनापति विट्ठल शिवदेव विचुंरकर को इसकी सूचना दे दी.
मराठा सरदार विट्ठल शिवदेव विचुंरकर ने अपने साथ मराठा सरदार महादजी सौतेले को लाकर राणा भीमसिंह को घेर लिया. राणा भीम सिंह घोडे पर भी सवार नहीं थे, फ़िर भी उन्होने युद्ध के मैदान में वीरता और साहस का परिचय दिया. मराठा सरदार विट्ठल शिवदेव विचुंरकर ने राणा भीम सिंह के सिर में तलवार से कई वार कर दिये, जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गये. घायल राणा को उनके अंग रक्षक पालकी में लिटाकर दुर्ग पर ले गये.
घायल राणा भीम सिंह का उपचार किया गया. लेकिन घाव बहुत गहरे थे, जिसकी वजह से तीन दिन बाद सम्वत 1812 चैत्र मास शुक्ल पक्ष नवमी (राम नवमी) के दिन उनकी म्रुत्यु हो गई.
राणा भीम सिंह की अन्त्येष्टि: राणा भीम सिंह की अन्त्येष्टि ग्वालियर दुर्ग पर विशाल सरोवर के किनारे पूर्ण हिन्दू धार्मिक कर्म काण्डों के अनुसार हुई. राणा भीम सिंह की छोटी रानी ’रोशन’ भी चिता में बैठ कर सती हो गई
इन्हें भी देखें[सम्पादन]
संदर्भ[सम्पादन]
डॉ। अजय कुमार अग्निहोत्री (1985): गोहद के जतन की इतिहस (हिंदी), नव साहित्य भवन, नई दिल्ली, पृष्ठ.14-15
जेएन शर्मा: जाटों का नवीन इतिहस, पी। ४६
डॉ। नत्थन सिंह (2004): जाट-इतिहस, जाट समाज कल्याण परिषद, ग्वालियर, पृ। 359
डॉ। नत्थन सिंह (2004): जाट-इतिहस, जाट समाज कल्याण परिषद, ग्वालियर, पृ। 359
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