महाराष्ट्र में यादव
महाराष्ट्र में यादव भारतीय राज्य महाराष्ट्र के यादव (अहीर) समुदाय के सदस्य हैं। उन्हें गवली, अहीरराव/अहिरराव, जाधव, अहीरे/अहिरे आदि के नाम से भी जाना जाता है।[१][२] ब्रिटिश भारत के 1881 की जनगणना के रिकॉर्ड में कहा गया है कि यादव, जिनकी पहचान गवली और अहीरों से की जाती है, उस समय प्रमुख जाति थे।[३] महाराष्ट्र में मराठा और ब्राह्मण सहित विभिन्न जातियों में अहीर जातीयता के निशान दिखाई देते हैं।[४] भूतकाल में यादव मराठों में शामिल हो गए थे और आज भी बहुत से अपने को मराठा ही मानते हैं, किन्तु अब पुनः वे अपनी यादव जाति में लौटने को तत्पर हैं।[५]
इतिहास[सम्पादन]
कुछ अधिकारियों ने सुझाव दिया है कि अहीर (आज यादव) प्रारंभिक ऐतिहासिक काल में पंजाब और सिंध से महाराष्ट्र चले गए थे। अन्य शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया है कि ये लोग पिछले 5,000 से 10,000 वर्षों से महाराष्ट्र में निवास कर रहे हैं।[६] पी. एम. चंदोरकर जैसे इतिहासकारों ने साहित्यिक और पुरालेखीय दोनों स्रोतों का उपयोग करते हुए तर्क दिया है कि आधुनिक अहीरों और गवलियों की पहचान शास्त्रीय संस्कृत ग्रंथों के यादवों से की जानी चाहिए। इसके अलावा, महाराष्ट्र का खानदेश क्षेत्र, जिस पर एक समय अहीरों का शासन था, पहले अहीरों की भूमि के रूप में जाना जाता था, और वर्तमान खानदेश क्षेत्र में अहीर मराठी बोली बोलते हैं, जिसे अहिराणी कहा जाता है।साँचा:Sfnp
राजवंश[सम्पादन]
पुराणों का दावा है कि अहीर या अभीर सातवाहनो के उत्तराधिकारी थे। राजन ईश्वरसेन अहीर राजवंश के संस्थापक थे और उन्होंने एक युग की शुरुआत की जिसे कलचुरि-चेदि युग कहा जाता है। यह प्रणाली सितंबर 248 में शुरू हुई, वह वर्ष जो असविना महीने से शुरू हुआ। इसका उपयोग सबसे पहले गुजरात और महाराष्ट्र (विशेष रूप से उत्तरी महाराष्ट्र) में किया गया था, जहां से यह मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश तक फैल गया, जहां इसका उपयोग 13वीं शताब्दी ईस्वी तक किया जाता था।
देवगिरी के यादव[सम्पादन]
देवगिरि के यादवों को परंपरागत रूप से गवली राजा (अर्थात अभीर राजा) कहा जाता था।[७] परंपरा के अनुसार सिन्नर की स्थापना गवली (यादव) राजा राव सिनगुनी (सिंघुनी) ने कई सदियों पहले की थी।[८] उनके पुत्र राव गोविंदा ने उस युग में 2 लाख रुपए की लागत से गोंडेश्वर (गोविंदेश्वर) का भव्य मंदिर बनवाया।[९] भिल्लम-५ (A.D. 1185-93) ने अपनी राजधानी सिन्नर (नासिक के पास) से बदलकर देवगिरि में स्थापित की। वे आंध्र प्रदेश में गौल्ला नाम से भी जाने जाते थे, जो होयसलों के शत्रु थे।[१०][११] मूलतः नासिक से मध्यप्रदेश तक कि भूमि आभीरों के अधिपत्य में थी। होयसल यादवों की तरह, सेउना यादव भी मूल रूप से पशुपालक या गौपालक थे। यादवों ने अक्सर खुदको पशुपालक होने में गौरवांकित समझा है।[१२][१३][१४] यदुवंशी अहीरों के मजबूत गढ़, खानदेश से प्राप्त अवशेषों को बहुचर्चित 'गवली राज' से संबन्धित माना जाता है तथा पुरातात्विक रूप से इन्हें देवगिरि के यादवों से जोड़ा जाता है। इसी कारण से कुछ इतिहासकारों का मत है कि 'देवगिरि के यादव' भी अभीर(अहीर) थे।[१५][१६] यादव शासन काल में अने छोटे-छोटे निर्भर राजाओं का जिक्र भी मिलता है, जिनमें से अधिकांश अभीर या अहीर सामान्य नाम के अंतर्गत वर्णित है, तथा खानदेश में आज तक इस समुदाय की आबादी बहुतायत में विद्यमान है।[१७]
सन्दर्भ[सम्पादन]
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- ↑ (en में) Population Geography: A Journal of the Association of Population Geographers of India. The Association. 1988. पृ॰ 5. https://books.google.co.in/books?id=SQIzAAAAIAAJ&q=Ahirs+Jadhavs+Maharashtra&dq=Ahirs+Jadhavs+Maharashtra&hl=en&newbks=1&newbks_redir=0&source=gb_mobile_search&ovdme=1&sa=X&ved=2ahUKEwjKvLOc1e-FAxXC-TgGHV9ACaEQ6AF6BAgMEAM#Ahirs%20Jadhavs%20Maharashtra.
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- ↑ (en में) Maharashtra, Land and Its People. Gazetteers Department, Government of Maharashtra. 2009. पृ॰ 146. https://www.google.co.in/books/edition/Maharashtra_Land_and_Its_People/bl90u5lmwRAC?hl=en.
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- ↑ Dhere, Ramchandra (2011). Rise of a Folk God: Vitthal of Pandharpur South Asia Research. Oxford University Press, 2011. पृ॰ 246–247. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780199777648. https://books.google.com/books?id=jUeeAgAAQBAJ&dq.
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