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महोत्कट विनायक

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महोत्कट विनायक भगवान श्री गणेश के ६४ अवतारों में से प्रथम अवतार है। यह अवतार नरान्तक और देवान्तक नामक दो असुर भाइयों के विनाश के लिए अवतरित हुआ था। इनके पिता कश्यप प्रजापति थे एवम् माता अदिति थी। इनका वाहन अर्थात् सवारी सिंह अर्थात् शेर है। इनकी नौ भुजाओं में अस्त्र शस्त्र हैं। इनके हाथों में सुदर्शन चक्र , तलवार , बाण , धनुष , त्रिशूल , शंख , कमल , गदा एवम् परशु है तथा अपनी दसवीं भुजा से ये अपने भक्तों को मनोवांछित फल का आशीर्वाद देते हैं।

कथा[सम्पादन]

रुद्रकेतु और शारदा नामक दंपत्ति की कोई संतान नहीं थी। वे दोनों इस बात से दुःखी रहते थे। वे गणेश जी के परम भक्त थे सौभाग्यवश एक दिन गणेश जी की कृपा से शारदा गर्भवती हो गई और उसने कालांतर में देवान्तक और नरान्तक नामक दो पुत्रों को जन्म दिया। एक बार नारद मुनि उनसे मिलने आए तो उन्होंने उनसे कहा कि "आपके ये बालक महाविद्वान होंगे परन्तु अनिष्ट का भी संकेत दे सकते हैं। उन्होंने इतना कहकर उन्होंने उनके पुत्रों के बड़े होने पर उनसे कहा कि वे भगवान शंकर की तपस्या करें। जिसके बाद उन दोनों ने भगवान शंकर की तपस्या कर उनसे वर मांगा कि " यदि आप हमसे परम प्रसन्न हैं तो हमें वर दीजिए कि हम दोनों भाई तीनों लोकों पर शासन करें।" इसके बाद दोनों ने आतंक मचा दिया। नरान्तक ने इन्द्र को परास्त कर दिया और देवान्तक ने पृथ्वी के सभी राजाओं को हरा दिया। जिसके बाद देवता दर दर की ठोकरें खाने लगे। अपने पुत्रों की उस दशा पर अदिति को उन पर दया आ गई उन्होंने अपने पति कश्यप प्रजापति से इसका उपाय पूछा तो उन्होंने उन्हें महागणपति जी की तपस्या करने को कहा जिससे महागणपति जी प्रसन्न हुए और अदिति को वर मांगने को कहा अदिति ने कहा कि "आप मेरे गर्भ से मेरे पुत्र के रूप में जन्म लें।" महागणपति जी तथास्तु कहकर अंतर्ध्यान हो गए। मध्यरात्रि को अदिति के गर्भ से वे दशों भुजाओं के साथ सूर्य के समान तेज़ लेकर प्रकट हुए। उन्होंने नरान्तक और देवान्तक का वध कर देवताओं एवम् सभी पृथ्वी वासियों को उनके अत्याचारों से मुक्ति दिलवाई।


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