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माँ बगलामुखी

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दशम महाविद्याओं में से अष्टम महाविद्या - माता बगलामुखी है। माता बगलामुखी का वैदिक नाम वल्गामुखी जिसका अर्थ है "लगाम"। इसके अनुरूप माँ को बगला, वलगामुखी, वल्गामुखी, ब्रह्मास्त्र विद्या और पीताम्बरा नामों से पुकारा जाता है। वेदों कि "वल्गा" तंत्र में "बगलामुखी" है।

माता बगलामुखी अष्टम महाविद्या है और इन्हें मूलतः"स्तम्भनकारी महाविद्या" के रूप में भी जाना जाता है। भगवान नारायण और माता त्रिपुर सुंदरी, दोनों के तेज से निकलने के कारण इनका कुल श्रीकुल है और यह वैष्णव शक्ति है।

माँ की साधना में पीत रंग सामग्री का प्रयोग अति आवश्यक है। जिसमे आसन से लेके माँ को चढ़ाया जाने वाला प्रशाद भी पीले रंग का होता है। पीली बाती, पीला चोला, पीला आसन और माता की पीले फूलों की माला। माता को हल्दी की माला चढ़ाने से मात अति प्रसन्न होती हैं।

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बगलामुखी ग्रन्थ ऊत्तपति[सम्पादन]

बगलामुखी की उपासना प्रजापती ब्रह्मंजी द्वारा सबसे पहले वैदिक रीति से की गई। तब वह सृष्टि संरचना में सफल हुए। उनसे सनत्तकुमार और सनतकुमारों से नारद जी को बगलामुखी उपदेश का ज्ञान हुआ।सांख्यान नामक परमहंस ने 36 पटलों में "बगला तंत्र" जैसे अनमोल ग्रन्थ की रचना की। फिर भगवन नारायण, प्रभु परशुराम और अंत उनके शिष्य आचार्य द्रोण ने इस ग्रँथ का ज्ञान लिया। महर्षि च्यवन ने इसी विद्या से इंद्र के वज्र का स्तम्भन किया था। आदि गुरु शंकराचार्य ने रेवा नदी की धारा का स्तम्भन भी बगला ग्रँथ की स्तुति से किया था। लंका युद्ध में मेघनाथ लंका के राज मंदिर में माता बगलामुखी को उपासना किया करता था जिसके फल स्वरूप ही लक्ष्मण जी को मूर्छित कर पाया। रावण के दरबार में अंगद ने स्तम्भन शक्ति

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