You can edit almost every page by Creating an account. Otherwise, see the FAQ.

माता-पिता

EverybodyWiki Bios & Wiki से
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

माता-पिता या जनक का अंग्रेजी अनुवाद अधिक प्रयोग में आता है, जिसे  parent शब्द से उल्लिखित किया जाता है। भारतीय सभ्यता में माता-पिता का एक विशिष्ट स्थान है उन्हें गुरु व भगवान से भी ऊपर का दर्जा दिया गया है।[१] इसे अति सरल शब्दो में समझनें के लिये बस इतना ही पर्याप्त है कि भारत में जितने भी अवतार आज तक हुए हैं, उन में से अधिकतर ने किसी न किसी माता के गर्भ से ही जन्म लिया है। चाहे भगवान श्री राम चन्द्र हो , श्री कृष्ण हो , श्री वामन अवतार हो , परशुराम अवतार हो या फिर संकट मोचन हनुमान हो। ये अवतार चाहे किसी भी भगवान ने लिया हो सब को किसी न किसी माता के गर्भ से जन्म लेना ही पड़ा है। अर्थात् हर अवतार को परिपूर्ण रूप से माता-पिता की स्नेह रूपी छाया में रह कर प्राम्भिक शिक्षा, संस्कार व आचार विहार सब कुछ ग्रहण करना पड़ता है। इस श्रेणी में पालक माता-पिता और पालक सम्बन्धी भी अन्तर्भूत होते हैं। जिसका सन्दर्भ श्रीकृष्ण की पालक/अभिभावक माता यशोदा और नन्द हैं।

भारतीय सभ्यता का मूल रूप व आचरण सर्व प्र्थम माता-पिता द्वारा दी गई प्रारम्भिक शिक्षा पर ही निर्भर करता है। जिसके लिये भारतवर्ष पूर्णतय शक्ष्म है लेकिन इन्ही सस्कांरो ,आचरणो व आचार विहार को खण्डित करने में उन सभी बाहरी ताकतो ने कभी कोई कसर नहीं छोड़ी जिन्होने इस पावन धरती पर हजारों साल राज किया और हमारी धरोहर संस्कृति को तार-२ करने में कोई कसर नहीं छोडी। ये सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि आपके पूर्वज कितने गुणवान ,सभ्य व स्ंस्कारी थे और भारत का इतिहास व स्ंरचना तो ऐसे कर्मठ योगियों,साधु-सन्तो व ऋषि-मुनियों द्वारा रचित की गई है जो अपने आप में उस समय के पुर्ण विज्ञानिक थे उनके एक-२ शोध वेदों व विज्ञानिक दृषिट से सम्पुर्ण थे। भारतीय संस्कृति में माता-पिता का आदर करना ,उनके द्वारा दी गई शिक्षा का पालन करना बच्चो का प्र्मुख कर्त्तव्य रहता है भारतीय समाज निर्माण में भी माता-पिता का एक विशिष्ठ स्थान है

यह एक ऐसा सत्य है जिसके बीसीयों परिमाण हमारे देश में मौज़ूद है माता-पिता के आदर्शो पर चलने वाले असख्य्ं ऐसे महापुरषों के उदाहरण है जेसे :- आदर्श पुरुष श्री राम चन्द्र जी , श्रवण कुमार , महाराजा रण्जीत सिंह , शिवाजी महाराजा , शहिद भगत सिंह व अन्य

कितनी विडम्बना है कि आज के परिपेक्ष में हम लोग ही अपनी धरोहर संस्कृति से दूर होते जा रहें है इन सब के अनेक कारण है जेसे :- संयुक्त परिवार

संयुक्त परिवार का विघटन, हजारों साल की गुलामी ,पाश्चात्य संस्कृति का बिना सोचे समझे अनुसरण ,कार्य की अत्यधिक व्यस्तता , बडों के प्र्ति आदर-सम्मान की कमी व मोबाईल और नेट के अत्य्धिक प्रचलन ने भी हमें अपनो से ही दूर होने पर मजबुर कर दिया है इस का एक और अत्यधिक सवेदनशील् ज्जवलंत कारण है पेसा कमाने की होड में आज के परिपेक्ष में माता-पिता दोनो का नौकरी करना जिसकी वजह से आज के युग में भारतीय बच्चे अपने माता-पिता के सुख व उनके द्वारा दिये जाने वाले संस्कारो से वंचित रह रहे हैं दूसरे एकाकी परिवारवाद ने भी हमें अपने बजुर्गो के आशिर्वाद से हमें वंचित कर दिया है परन्तुं अभी भी आधुनिक् भारतीय परिपेक्ष में हमनें अपने वैदिक संस्कारों को नहीं भुला है माता-पिता जितना भी हो सके अपने बच्चों में भरतीय संस्कार देना नहीं भुलते।


सन्दर्भ[सम्पादन]

  1. मातृ देवो भव। पितृ देवो भव। - तैत्तिरीयोपनिषद् शिक्षावल्ली अनुवाकः - 11 


बाहरी कड़ियाँ[सम्पादन]

This article "माता-पिता" is from Wikipedia. The list of its authors can be seen in its historical and/or the page Edithistory:माता-पिता.



Read or create/edit this page in another language[सम्पादन]