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मीडिया का मनोविज्ञान और मीडिया/संचार सिद्धांत ( Communication Theories )

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‘मन’ के विज्ञान को मनोविज्ञान कहा जाता है । जहां मनोविज्ञान व्यक्ति को, समाज को तथा दोनों के अंतर्संबंधों को समझने का विज्ञान है, वहीं मीडिया व्यक्ति को, समाज को तथा दोनों के अंतर्संबंधों को प्रभावित करने का माध्यम है । यानि मनोविज्ञान समझने पर जोर देता है और मीडिया समझाने पर । समझाने का काम मीडिया खास तरह से करता है । मीडिया का संचालनकर्ता कौन है, वह किस समाज के सच की रचना कर रहा है, कौन-से सच की रचना कर रहा है, इन प्रश्नों से जूझना मीडिया के मनोवैज्ञानिक पहलुओं के जवाब तलाशने जैसा है । हर मीडिया संस्थान सच दिखाने का दावा करते दिखाई पड़ते हैं, तो फिर एक ही खबरों के अलग-अलग माध्यमों पर विभिन्न संस्करण क्यों उपलब्ध हैं ? अब मीडिया उपयोगकर्ता कौन सा सच ग्रहण करे और कौन सा छोड़ दे, ये मीडिया और मनोविज्ञान के आपसी संबंधों की रूपरेखा है ।

संचार के विकास का रिश्ता उसके इस्तेमाल करने वाले सामाजिक वर्ग से जुड़ा है । इतिहास में संचार के विकास पर नजर डाले तो यह पाते हैं कि उन संचार तकनीकों को ज्यादा जल्दी स्वीकारोक्ति मिल गई जिन्हें समाज के नेतृत्वकारी तबके ने इस्तेमाल किया चाहे वो हिटलर हो या मुसोलिनी । जर्मनी के प्रख्यात समाजशास्त्री हर्बर्ट मारकोज़े का कहना है कि संचार मीडिया के प्रचार के परिणाम स्वरूप सामने आने वाला उपभोग, मनुष्य में एक द्वितीय प्रवृत्ति उत्पन्न करता है और उसे पहले से अधिक, समाज में प्रचलित हित साधने के वातावरण पर निर्भर कर देता है । मीडिया आज मानव के स्वभाव को भी परिवर्तित कर रहा है, असंतुष्टि का भाव पैदा कर रहा है । बाजार व मीडिया मनोविज्ञान के सहारे विकल्पों का बाजार भी रच रहा है जो हमें अनिश्चितता के गर्त में धकेल रहा है । यह भी मीडिया का एक मनोवैज्ञानिक प्रभाव ही है । आत्मविश्वास को सृजत करने के लिए लोग मीडिया पर निर्भर हो गए हैं और मीडिया साक्ष्य देने का एक सशक्त माध्यम बन गया है । मीडिया ने समाज को विखंडित कर व्यक्ति में तब्दील कर रहा है जिसका सबसे बड़ा उदाहरण किसी बड़े सामाजिक जन आंदोलन के अभाव के रूप में नजर आता है । आज  मीडिया का अध्ययन अन्य विषयों जैसे समाजशास्त्र, राजनीति शास्त्र, अर्थशास्त्र, मनोविज्ञान इत्यादि से जोड़कर किया जा रहा है ।

मनोविज्ञान दृष्टिकोण से मीडिया शोध का महत्व और उद्देश्य-

मीडिया शोध अपने आरंभिक काल से रही मनोविज्ञान से प्रभावित रहा है । इसी तरह कई प्रकार के मनोवैज्ञानिक शोधों के लिए मीडिया की मदद ली जाती रही है , अर्थात् दोनों विधाओं को अनिवार्य रूप से एक-दूसरे की जरूरत कभी-न-कभी रही ही है और दोनों ने विभिन्न शोध परणामों के जरिये एक-दूसरे को प्रभावित करने के साथ-साथ नए-नए सिद्धांतों के निर्माण में योगदान दिया है ।

·       जीवनशैली पर मीडिया के मनोवैज्ञानिक प्रभावों के अध्ययन में सहायक-

उपभोक्ता व्यवहार, ब्रांड पोजीशनिंग, फैशन, खान-पान, रहन-सहन की आदतों तथा अन्य दैनिक क्रियाकलापों पर पर जनमाध्यमों के मनोवैज्ञानिक प्रभाव का विश्लेषण किया जाता है ।

·       राजनीतिक संचार, जनमत निर्माण व मतदाता व्यवहार के संदर्भ में मीडिया के मनोवैज्ञानिक प्रभावों का अध्ययन

·       सरकारी तथा गैर-सरकारी योजनाओं की सफलता का मनोवैज्ञानिक दृष्टि से मूल्यांकन

·       सूचना तथा तकनीक के समाज द्वारा ग्रहण करने की क्षमता का अध्ययन

·       मीडिया द्वारा निर्मित छवियों का मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से अध्ययन

·       पाठक, दर्शक, मीडिया उपभोक्ता की अभिवृत्तियों में हुए परिवर्तनों पर हुए शोध में सहायक

·       मीडिया समाज को और समाज मीडिया को किस प्रकार बदल रहा है, क्यों बदल रहा है, इत्यादि प्रश्नों के उत्तर ढूंढ़ने में सहायक ।

मनोविज्ञान से संबंधित मीडिया शोधों में सहायक संचार मॉडल और संचार सिद्धांत-

संचार और मीडिया के समाज पर मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से पड़ने वाले प्रभावों को कई संचार माध्यमों और संचार मॉडलों के माध्यम से समझा जा सकता है जिनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं-

Ø बुलेट/हाइपोडरमिक नीडल थ्योरी

Ø टू-स्टेप फ्लो थ्योरी

Ø मल्टी-स्टेप फ्लो थ्योरी

Ø एजेंडा सेटिंग का सिद्धांत

Ø उपयोग एवं परितुष्टि का सिद्धांत

Ø अरस्तू का मॉडल

Ø ऑसगुड-श्रैम का संचार मॉडल

Ø सेलेक्टिव एक्सपोजर

Ø सेलेक्टिव एटेंशन

Ø सेलेक्टिव परसेप्शन

Ø सेलेक्टिव रिटेंशन


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