You can edit almost every page by Creating an account. Otherwise, see the FAQ.

मीणा जातीय धर्म

EverybodyWiki Bios & Wiki से
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

मीणा जाती
सन् 1888 की तस्वीर
सन् 1888 की तस्वीर
धर्मावलंबियों की संख्या
5 मिलियन[१]
महत्वपूर्ण आबादी वाले क्षेत्र
 भारत
      राजस्थान,"मध्यप्रदेश,"उतरप्रदेश,"गुजरात,"महाराष्ट्र,43,45,528[२]

मीणा जाती राजस्थान हि नहीं उतरप्रदेश , मध्यप्रदेश , गुजरात , महाराष्ट्र , हरियाणा व मेवात मे निवास करने वाली सबसे पावर फुल कोम हे यह जाती अलग अलग क्षेत्र मे अलग - अलग नाम से पुकारी जाती है ! जैसे :- मीणा - मीना , मेर , मेव , ठाकुर मैना, परदेशी राजपूत , रावत , पटेल , देशवाली आदि नाम से जानी व पुकारी जाने वाली कोम हे ।[३]

सुमेरियन शहरों में सभ्यता का प्रकाश फैलाने वाले सैन्धव प्रदेश के मीणा लोगो को मानते है। इस प्राचीन आदिम निवासियों की सामुद्रिक दक्षता देखकर मछली ध्वजधारी लोगों को नवांगुतक द्रविड़ो ने मीणा या मीन नाम दिया मीलनू नाम से मेलुहा का समीकरण उचित जान पड़ता है कि स्टीफन ने गुजरात के कच्छ के मालिया को मीणाओ से संबंधित बताया है दूसरी ओर गुजरात के महर भी वहां से सम्बन्ध जोड़ते है । कुछ महर समाज के लोग अपने आपको हिमालय का मूल मानते है उसका सम्बन्ध भी मीणाओ से है हिमाचल में मेन(मीणा) लोगो का राज्य था । स्कन्द में शिव को मीणाओ का राजा मीनेश कहा गया है । हैरास सिन्धुघाटी लिपी को प्रोटो द्रविड़ियन माना है उनके अनुसार भारत का नाम मौहनजोदड़ो के समय सिद था इस सिद देश के चार भाग थे जिनमें एक मीनाद अर्थात मत्स्य देश था । फाद हैरास ने एक मोहर पर मीणा जाति का नाम भी खोज निकाला। उनके अनुसार मोहनजोदड़ो में राजतंत्र व्यवस्था थी । एक राजा का नाम "मीणा" भी मुहर पर फादर हैरास द्वारा पढ़ा गया ( डॉ॰ करमाकर पेज न॰ 6) अतः कहा जा सकता है कि मीणा जाति का इतिहास बहुत प्राचीन है इस विशाल समुदाय ने देश के विशाल क्षेत्र पर शासन किया और इससे कई जातियों की उत्पत्ति हुई और इस समुदाय के अनेक टूकड़े हुए जो किसी न किसी नाम से आज भी मोजूद है।

आज की तारीख में 10 -11 हजार मीणा लोग फौज में है बूंदी का उमर गांव पूरे देश मे एक अकेला मीणाओं का गांव है जिसमें 7000 की जनसंख्या मे से 2500 फौजी है टोंक बूंन्दी जालौर सिरोही मे से मीणा लोग बड़ी संख्या मे फौज मे है। उमर गांव के लोगो ने प्रथम व द्वीतिय विश्व युध्द लड़कर शहीद हुए थे शिवगंज के नाथा व राजा राम मीणा को उनकी वीरता पर उस समय का परमवीर चक्र, जिसे विक्टोरिया चक्र कहते थे, मिला था जो उनके वंशजो के पास है। देश आजाद हुआ तब तीन मीना बटालियने थी पर दूर्भावनावश खत्म कर दी गई थी ,मीणा सदियों से पेड़-पौधों को अपने कुलदेवता के रूप में पूजते रहे हैं।[४] इसमें विभिन्न सांस्कृतिक त्योहारों के दौरान पेड़ों की पूजा करना और उनकी रक्षा करना और भैंसों की पूजा करना शामिल है, विशेष रूप से दिवाली के त्योहार के दौरान, जो स्थानीय कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के सम्मान में फसल के मौसम के ठीक बाद होता है।

इतिहास प्रसिद्ध पूरात्वविद स्पेन निवासी फादर हेरास ने 1940-1957 तक सिन्धु सभ्यता पर खोज व शोध कार्य किया 1957 में उनके शोध पत्र मोहन जोदड़ो के लोग व भूमि शोध पत्र संख्या- 4 में लिखा है कि मोहन जोदड़ो सभयता के समय यह प्रदेश चार भागो में विभक्त था जिनमे एक प्रदेश मीनाद था जिसे संस्कृत साहित्य में मत्स्य नाम दिया गया और साथ ही यह भी लिखा कि मीणा आर्यों और द्रविड़ो से पूर्व बसा मूल आदिवासी समुदाय था जो ऋग्वेद काल के मत्स्यो के पूर्वज है जिसका गण चिन्ह मछली (मीन) था | इस समुदाय का प्राचीनतम उल्लेख ऋग्वेद में किया गया है वहा लिखा है कि ये लोग बड़े वीर पराक्रमी और शूरवीर है पर आर्य राजा सुदास के शत्रु है इसका ही उल्लेख District Gazetteer बूंदी 1964 के पृष्ट -29 पर भी किया गया है | हरमनगाइस ने अपनी पुस्तक द आर्ट एण्ड आर्चिटेक्चर ऑफ़ बीकानेर (The art and architecture of Bikaner) के पृष्ट - 98 पर मीणा समुदाय की प्राचीनता का उल्लेख करते हुए लिखा है कि मीणा आदिवासी लोग मत्स्य लोगो के वंशज है जो आर्यों की ओर से लड़े तथा राजा सुदास से पराजित हुए और महाभारत के युद्ध में मत्स्य जनपद के शासक के रूप में शामिल हुई | महाभारत युद्ध में हुई क्षति से ये बिखर गए तथा छोटे छोटे अनेक राज्य अस्तित्व में आ गए जिनमें इनका पूर्व का कर्द राज्य गढ़ मोरा महाभारत काल में, जिसका शासक ताम्र ध्वज थे, मोरी वंश प्रसिद्ध हुआ जिसका राजस्थान में अंतिम शासक चित्तोड़ के मान मोर हुए जिसे बाप्पा रावल ने मारकर गुहिलोतो का राज्य स्थापित किया जो आगे जाकर सिसोदिया कहलाया | मोरी (मोर्य) साम्राज्य के अंत और गुप्त साम्राज्य के समय अनेक छोटे छोटे राज्य हो गए जैसे मेर, मेव और मीणा कबीलाई मेवासो के रूप में अस्तित्व में आये, उत्तर से आने वाली आक्रमणकरी जातियों ने इनको काफी क्षति पहुचाई, शेष बचे गणराज्यो को समुद्रगुप्त ने कर्द राज्य बनाया उस समय मेरवाडा में मेर मेवाड़ में मेव और ढूढाड में मीणा काबिज थे, हर्ष वर्धन के समय उसके अधीन रहे | हर्ष वर्धन के अंत के बाद पुनः जोर पकड़ा | कई राज्य बने कमजोर थे लेकिन उन्होंने ताकत अर्जित करी |

वरदराज विष्णु को हीदा मीणा लाया था दक्षिण से आमेर रोड पर परसराम द्वार के पीछे की डूंगरी पर विराजमान वरदराज विष्णु की ऐतिहासिक मूर्ति को साहसी सैनिक हीदा मीणा दक्षिण के कांचीपुरम से लाया था। मूर्ति लाने पर मीणा सरदार हीदा के सम्मान में सवाई जयसिंह ने रामगंज चौपड़ से सूरजपोल बाजार के परकोटे में एक छोटी मोरी का नाम हीदा की मोरी रखा। उस मोरी को तोड़ अब चौड़ा मार्ग बना दिया लेकिन लोगों के बीच यह जगह हीदा की मोरी के नाम से मशहूर है। देवर्षि श्री कृष्णभट्ट ने ईश्वर विलास महाकाव्य में लिखा है कि कलयुग के अंतिम अश्वमेध यज्ञ के लिए जयपुर आए वेदज्ञाता रामचन्द्र द्रविड़, सोमयज्ञ प्रमुख व्यास शर्मा, मैसूर के हरिकृष्ण शर्मा, यज्ञकर व गुणकर आदि विद्वानों ने महाराजा को सलाह दी थी कि कांचीपुरम में आदिकालीन विरदराज विष्णु की मूर्ति के बिना यज्ञ नहीं हो सकता हैं। यह भी कहा गया था कि द्वापर में धर्मराज युधिष्ठर इन्हीं विरदराज की पूजा करते थे। जयसिंह ने कांचीपुरम के राजा से इस मूर्ति को मांगा लेकिन उन्होंने मना कर दिया, तब जयसिंह ने साहसी हीदा को कांचीपुरम से मूर्ति जयपुर लाने का काम सौंपा, हीदा ने कांचीपुरम में मंदिर के सेवक माधवन को विश्वास में लेकर मूर्ति लाने की योजना बना ली। कांचीपुरम में विरद विष्णु की रथयात्रा निकली तब हीदा ने सैनिकों के साथ यात्रा पर हमला बोला और विष्णु की मूर्ति जयपुर ले आया। इसके साथ आया माधवन बाद में माधवदास के नाम से मंदिर का महंत बना। अष्टधातु की बनी सवा फीट ऊंची विष्णु की मूर्ति के बाहर गण्शो मध्ययुगीन प्राचीन समय मे मीणा राजा आलन सिंह ने एक असहाय राजपूत माँ और उसके बच्चे को उसके दाबच्चे, ढोलाराय को दिल्ली भेजा, मीणा राज्य का प्रतिनिधित्व करने के लिए। राजपूत ने इस एहसान के लिए आभार मे राजपूत सणयन्त्रकारिओ केया और दीवाली पर निहत्थे मीनकि लाशे बिछा दी ,जब वे पित्र तर्पन रस्में कर रहे थे। मीणाओ को उस समय निहत्था होना होता था। जलाशयों को जो मीणाओ के मृत शवों के साथ भर गये और इस प्रकार कछवाहा राजपूतों ने खोगओन्ग पर विजय प्राप्त की थी, सबसे कायर हरकत और राजस्थान के इतिहास में सबसे शर्मनाक।

एम्बर के कछवाहा राजपूत शासक भारमल हमेशा नह्न मीणा राज्य पर हमला करता था, लेकिन बहादुर बड़ा मीणा के खिलाफ सफल नहीं हो सका। अकबर ने राव बादा मीणा को कहा था,अपनी बेटी की शादी उससे करने के लिए लेकिन बाद में भारमल ने अपनी बेटी जोधा की शादी अकबर से कर दी । तब अकबर और भारमल की संयुक्त सेना ने बड़ा हमला किया और मीणा राज्य को नष्ट कर दिया। मीणाओ का खजाना अकबर और भारमल के बीच साझा किया गया था। भारमल ने एम्बर के पास जयगढ़ किले में खजाना रखा ।

कुछ अन्य तथ्य

महाभारत के काल का मत्स्य संघ की प्रशासनिक व्यवस्था लौकतान्त्रिक थी जो मौर्यकाल में छिन्न- भिन्न हो गयी और इनके छोटे-छोटे गण ही आटविक (मेवासा ) राज्य बन गये । चन्द्रगुप्त मोर्य के पिता इनमें से ही थे। समुद्रगुप्त की इलाहाबाद की प्रशस्ति मे आटविक (मेवासे) को विजित करने का उल्लेख मिलता है राजस्थान व गुजरात के आटविक राज्य मीणा और भीलो के ही थे इस प्रकार वर्तमान ढूंढाड़ प्रदेश के मीणा राज्य इसी प्रकार के विकसित आटविक राज्य थे ।

वर्तमान हनुमानगढ़ के सुनाम कस्बे में मीणाओं के आबाद होने का उल्लेख आया है कि सुल्तान मोहम्मद तुगलक ने सुनाम व समाना के विद्रोही जाट व मीणाओं के संगठन 'मण्डल' को नष्ट करके मुखियाओ को दिल्ली ले जाकर मुसलमान बना दिया ( E.H.I, इलियट भाग- 3, पार्ट- 1 पेज 245 ) इसी पुस्तक में अबोहर में मीणाओं के होने का उल्लेख है (पेज 275 बही) इससे स्पष्ट है कि मीणा प्राचीनकाल से सरस्वती के अपत्यकाओ में गंगानगर, हनुमानगढ़ एवं अबोहर- फाजिल्का मे आबाद थे ।

रावत एक उपाधि थी जो महान वीर योद्धाओ को मिलती थी वे एक तरह से स्वतंत्र शासक होते थे यह उपाधि मीणा, भील व अन्य को भी मिली थी मेर मेरातो को भी यह उपाधि मिली थी जो सम्मान सूचक मानी जाती थी मुस्लिम आक्रमणो के समय इनमे से काफी को मुस्लिम बनाया गया अतः मेर मेरात मेहर मुसलमानों में भी है। 17 जनवरी 1917 में मेरात और रावत सरदारो की राजगढ़ (अजमेर) में महाराजा उम्मेद सिंह शाहपूरा भीलवाड़ा और श्री गोपाल सिह खरवा की सभा मेँ सभी लोगो ने मेर मेरात मेहर की जगह रावत नाम धारण किया। इसके प्रमाण के रूप में 1891 से 1921 तक के जनसंख्या आकड़े देखे जा सकते है, 31 वर्षो मे मेरो की संख्या में 72% की कमी आई है वही रावतो की संख्या में 72% की बढोतरी हुई है। गिरावट का कारण मेरो का रावत नाम धारण कर लेना है।

सिन्धुघाटी के प्राचीनतम निवासी मीणाओ का अपनी शाखा मेर, महर के निकट सम्बन्ध पर प्रकाश डालते हुए कहा जा सकता है कि -- सौराष्ट्र (गुजरात ) के पश्चिमी काठियावाड़ के जेठवा राजवंश का राजचिन्ह मछली के तौर पर अनेक पूजा स्थल "भूमिलिका" पर आज भी देखा जा सकता है, इतिहासकार जेठवा लोगो को मेर( महर,रावत) समुदाय का माना जाता है जेठवा मेरों की एक राजवंशीय शाखा थी जिसके हाथ में राजसत्ता होती थी (I.A 20 1886 पेज नः 361) कर्नल टॉड ने मेरों को मीणा समुदाय का एक भाग माना है (AAR 1830 VOL- 1) आज भी पोरबन्दर काठियावाड़ के महर समाज के लोग उक्त प्राचीन राजवंश के वंशज मानते है अतः हो ना हो गुजरात का महर समाज भी मीणा समाज का ही हिस्सा है। फादर हैरास एवं सेठना ने सुमेरियन शहरों में सभ्यता का प्रकाश फैलाने वाले सैन्धव प्रदेश के मीणा लोगो को मानते है। इस प्राचीन आदिम निवासियों की सामुद्रिक दक्षता देखकर मछली ध्वजधारी लोगों को नवांगुतक द्रविड़ो ने मीणा या मीन नाम दिया मीलनू नाम से मेलुहा का समीकरण उचित जान पड़ता है कि स्टीफन ने गुजरात के कच्छ के मालिया को मीणाओ से संबंधित बताया है दूसरी ओर गुजरात के महर भी वहां से सम्बन्ध जोड़ते है । कुछ महर समाज के लोग अपने आपको हिमालय का मूल मानते है उसका सम्बन्ध भी मीणाओ से है हिमाचल में मेन(मीणा) लोगो का राज्य था । स्कन्द में शिव को मीणाओ का राजा मीनेश कहा गया है । हैरास सिन्धुघाटी लिपी को प्रोटो द्रविड़ियन माना है उनके अनुसार भारत का नाम मौहनजोदड़ो के समय सिद था इस सिद देश के चार भाग थे जिनमें एक मीनाद अर्थात मत्स्य देश था । फाद हैरास ने एक मोहर पर मीणा जाति का नाम भी खोज निकाला। उनके अनुसार मोहनजोदड़ो में राजतंत्र व्यवस्था थी । एक राजा का नाम "मीणा" भी मुहर पर फादर हैरास द्वारा पढ़ा गया ( डॉ॰ करमाकर पेज न॰ 6) अतः कहा जा सकता है कि मीणा जाति का इतिहास बहुत प्राचीन है इस विशाल समुदाय ने देश के विशाल क्षेत्र पर शासन किया और इससे कई जातियों की उत्पत्ति हुई और इस समुदाय के अनेक टूकड़े हुए जो किसी न किसी नाम से आज भी मोजूद है।

आज की तारीख में 10 -11 हजार मीणा लोग फौज में है बूंदी का उमर गांव पूरे देश मे एक अकेला मीणाओं का गांव है जिसमें 7000 की जनसंख्या मे से 2500 फौजी है टोंक बूंन्दी जालौर सिरोही मे से मीणा लोग बड़ी संख्या मे फौज मे है। उमर गांव के लोगो ने प्रथम व द्वीतिय विश्व युध्द लड़कर शहीद हुए थे शिवगंज के नाथा व राजा राम मीणा को उनकी वीरता पर उस समय का परमवीर चक्र, जिसे विक्टोरिया चक्र कहते थे, मिला था जो उनके वंशजो के पास है। देश आजाद हुआ तब तीन मीना बटालियने थी पर दूर्भावनावश खत्म कर दी गई थी।

परंपराओं[सम्पादन]

यह धर्म धाराडी परंपरा से उपजा है, जो प्रकृति के विभिन्न रूपों के प्रति प्रेम दिखाने वाली प्रथाओं में है। मीणा जंगल के संरक्षक रहे हैं। पितरों के रीति-रिवाजों के आधार पर विवाह के समय मीणा जातीय धर्म में धारड़ी के वृक्षों की पूजा करने की प्रथा चल रही है।[४]

आधुनिक काल[सम्पादन]

मीणा बड़ी हिंदू संस्कृति का हिस्सा हैं, जो त्रिमूर्ति और उसके विभिन्न अवतारों के साथ-साथ हिंदू देवी अंबिका का भी सम्मान करते हैं । मीणा भी अपने गोत्र (वंश) और कोला (परिवार या कबीले) के आधार पर अपने स्थानीय देवताओं की पूजा करती हैं ।[५]

मीणा पूर्वी राजस्थान और मध्य प्रदेश के चंबल बुंदेलखंड मालवा भागों में हिंदू संस्कृति के दृढ़ विश्वासी और रक्षक हैं । अपने जातीय विश्वासों की वकालत करना जारी रखते हैं, जो मुस्लिम आक्रमणकारियों के शासन के दौरान और बाद में ब्रिटिश काल के दौरान बड़ी अनातन संस्कृति का हिस्सा थे।[६]

सन्दर्भ[सम्पादन]

  1. "मीणा एक क्षत्रिय कोम हे जिसने भारत की भूमि पर हजारो सालो तक शासन किया हे". https://www.bbc.com/hindi/india-54975388. 
  2. CST/dh_st_rajasthan.pdf "censusindia". https://censusindia.gov.in/Tables_Published/S CST/dh_st_rajasthan.pdf. 
  3. Le Bon, Gustave (1887). "Civilizations of India" (French में). Librairie De Firmin Didot, Paris. p. 128. JSTOR 23659746. https://archive.org/details/gri_33125009891140. 
  4. ४.० ४.१ Meena, Professor (2020-05-05). Sociolinguistic Study of Meena / Mina Tribe In comparison to other Tribes of Rajasthan. 67. pp. 45–58. https://www.researchgate.net/publication/341151233. 
  5. "राजस्थान के किले में सामुदायिक ध्वज फहराकर शांति भंग करने के आरोप में भाजपा सांसद गिरफ्तार". https://www.hindustantimes.com/cities/jaipur-news/bjp-mp-held-for-disturbing-peace-after-hoisting-community-flag-at-rajasthan-fort-101627799540423.html. 
  6. "'हमें हिंदू बनाने की कोशिश'- कैसे जयपुर का किला आदिवासी मीणाओं और हिंदू समूहों के बीच फ्लैशपॉइंट बन गया". https://theprint.in/india/trying-to-hinduise-us-how-jaipur-fort-became-flashpoint-between-tribal-meenas-hindu-groups/718681/. 


This article "मीणा जातीय धर्म" is from Wikipedia. The list of its authors can be seen in its historical and/or the page Edithistory:मीणा जातीय धर्म.



Read or create/edit this page in another language[सम्पादन]