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मोतीरावण कंगाली

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मोतीरावण कंगाली गोंड आदिवासी लेखक, गोंडी भाषा की लिपि व व्‍याकरण बनाने के कारण लोकप्रिय रहे। इनका मूल नाम मोतीराम कंगाली था जिसे इन्होने विरोध में बदल कर राम की जगह रावण लिखना शुरू किया।[१][२]

मोतीरावण कंगाली का दावा था कि हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की लिपियाँ गोंडी भाषा में पढ़ी जा सकती हैं।[३] इन्होने यह प्रस्थापना भी की कि गोंड लोगों का अगमान सिन्धु घाटी से हुआ रहा होगा।[४]

मोतीरावण कंगाली
जन्म मोतीराम कंगाली
2 फ़रवरी 1949 (1949-02-02) (आयु 75)
दुलारा, नागपूर, महाराष्ट्र
मृत्यु 30 ऑक्टोबर 2015
नागपुर, महाराष्ट्र
व्यवसाय लेखक
राष्ट्रीयता भारतीय
जीवनसाथी चंद्रलेखा कंगाली

जिवन परिचय[सम्पादन]

आचार्य तिरुमाल मोतीरावण कंगाली का जन्म 2 फरवरी 1949 को महाराष्ट्र के नागपुर जिले के रामटेक तहसील के दुलारा नामक गाँव में हुआ था। उनका जन्म स्थान नागपुर सिवनी राज्य मार्ग पर नागपुर से लगभग 75 किलोमीटर दूर देवलापार के निकट भांडेर के जंगलों में स्थित है और उनका जन्म एक गोंड समुदाय के तिरकाजी कंगाली (दादा) के परिवार में हुआ था। आपकी माता का नाम दाई रायतार कंगाली और पिता का नाम दाऊ छतीराम कंगाली था। इनके पिता जी ने प्यार से इनका नाम मोतीराम रखा था। पाँच भाई-बहनों में से मोतीराम सबसे बड़े थे। आपके दो छोटे  भाई और दो बहनें भी थीं। दोनों भाई अभी भी गाँव में रहते हैं और खेती-बारी का काम करते हैं।[५]

मोतीराम की प्रारम्भिक शिक्षा गाँव के निकट ही प्राथमिक पाठशाला करवाही में हुई, जहां पर उन्होंने चौथी कक्षा तक पढ़ाई की। आपकी माध्यमिक शिक्षा (5वीं से 8वीं तक) आंग्ल पूर्व माध्यमिक विद्यालय बोथिया पालोरा से हुई जो आपके गाँव दुलारा से लगभग 18 किलोमीटर दूर था, इसलिए वहीं से हॉस्टल में रहकर पढ़ाई करना शुरू की। आपने आठवीं की बोर्ड परीक्षा 1966 में उत्तीर्ण की तथा इसके बाद 9वीं की पढ़ाई करने वे रामटेक तहसील गए।उसके बाद नागपुर के हड्स हाई स्कूल में दाखिला लिया और वहीं से वर्ष 1968 में आपने दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। वर्ष 1972 में धरमपेठ महाविद्यालय, नागपुर से स्नातक की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए। अगले कुछ वर्षों में आपने पोस्ट ग्रेजुएट टीचिंग डिपार्टमेंट नागपुर से अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र और भाषाशास्त्र में परास्नातक (एमए) परीक्षा उत्तीर्ण की। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से सन 2000 में आपको पीएचडी की उपाधि मिली। जिसका विषय था “द फ़िलासाफिकल बेस ऑफ ट्राइबल कल्चरल वैल्यूज पर्टिकुलरली इन रेस्पेक्ट ऑफ गोंड ट्राइब ऑफ सेंट्रल इंडिया”।[६]

वर्ष 1976 में 27 वर्ष की उम्र में आपका चयन रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के नागपुर टकसाल में ‘नोट एंड करेंसी’ एक्ज़ामिनर के पद पर हुआ। सरकारी नौकरी में आने के बाद आपका विवाह रायताड़ (कुमारी) चंद्रलेखा रूपसिंह पुसाम से सम्पन्न हुआ। आपकी तीन बेटियाँ हैं जिनके नाम श्रृंखला कंगाली, वेरूंजली कंगाली, विनंती कंगाली हैं। श्रृंखला आईआरएस अधिकारी हैं और विनंती नेत्र विशेषज्ञ चिकित्सक हैं। इन दोनों का विवाह हो चुका है। मंझली बेटी वेरूंजली ने भी  मराठी साहित्य में एमफिल किया है और वर्तमान में ये नागपुर में रहकर जॉब कर रही है और माँ के कार्यों में हाथ बटाती हैं।

बचपन से आप पढ़ने लिखने में मेधावी और हमेशा अध्ययन करते रहने का शौक था। एक शोधार्थी के रूप में आपने भाषा-विज्ञान का अध्ययन करते हुए गोंडी भाषा को पुनर्जीवित करने का कार्य किया और बहुत सारी पुस्तकें गोंडी भाषा को सीखने और पढ़ने-पढ़ाने के लिए आम जनमानस को उपलब्ध करवाईं। गोंडी भाषा के पुनर्जीवन, संरक्षण, संवर्धन और विकास के लिए उनके योगदान को कोइतूर समाज वर्षों तक याद रखेगा। आपने गोंडी भाषा को देवनागरी में लिख कर आम लोगों तक पहुंचा दिया और यही कारण है कि आज के युवाओं में गोंडी भाषा के प्रति रुचि बरकरार है और वे गोंडी भाषा का अध्ययन कर रहे हैं।[७][८]

लेखन[सम्पादन]

आचार्य मोतीरावण के गुरु केशव बानाजी मर्सकोले, जो कचारगढ़ के पास के ही गाँव महारू टोला के रहने वाले थे, ने सबसे पहले उन्हें (आचार्य मोतीरावण कंगाली को) इस गुफा के बारे में बताया। उस गुफा में पहले वहाँ के स्थानीय गोंड़ निवासी गोंगों (पूजा पाठ) करने उस गुफा तक जाया करते थे।  तब आचार्य मोतीरावण कंगाली ने इसके बारे काफी अध्ययन किया और बहुत सारे प्रमाण जुटाये और इसके बारे में अपने सहयोगियों को बताया। इस गुफा के बारे में बहुत से अंग्रेज लेखकों ने भी काफी पहले वर्णन किया है और इसके धार्मिक महत्त्व को बताया है।

वर्ष 1980 में आचार्य मोती रावण कंगाली के नागपुर आवास पर गोंडवाना बैंक की अवधारणा देने वाले  तिरुमाल केशव बानाजी (के बी) मर्सकोले और भोपाल से गोंडवाना दर्शन के संपादक सुन्हेर सिंह ताराम मिले और तीनों ने कचारगढ़ की पहली जात्रा की और अगले कुछ वर्षों में कचारगढ़ को कोइतूर गोंडों के धार्मिक स्थान के रूप में चिन्हित किया। इसी क्रम में वर्ष 1984 की माघ पूर्णिमा के दिन इन तीन लोगों के साथ दो अन्य लोग तिरुमाल भारत लाल कोराम और गोंडवाना मुक्ति सेना के सर सेनापति शीतल कवडू मरकाम, ने पहली बार गुफा की धार्मिक जात्रा शुरू की। इस वर्ष ये पहला कार्यक्रम हुआ और केवल यही पाँच लोग टेंट में रहे और पत्रिका गोंडवाना दर्शन में इस यात्रा और मेले का विस्तार में प्रचार किया गया और वर्ष 1986 में फिर दादा हिरा सिंह मरकाम भी इस जात्रा से जुड़े।

फिर धीरे-धीरे हर साल माघ पूर्णिमा के दिन कई प्रदेशों से कोइतूर लोग इस  यात्रा (कचारगढ़ जात्रा) में भाग लेने लगे। इस प्रकार 1984 में केवल तीन लोगों द्वारा शुरू किया गये गये इस जात्रा में आज 40 वर्षों के बाद लाखों की संख्या में लोग जुटते हैं। आज यह सांस्कृतिक आंदोलन आसपास के कई राज्यों की कई राजनीतिक सीटों की दिशा और दशा तय करने लगा है। इस  जात्रा का श्रेय ऊपर वर्णित चार अन्य लोगों के साथ आचार्य मोतीरावण कंगाली को जाता है और यह उनकी धार्मिक- सांस्कृतिक आंदोलन की दिशा में सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जाती है जो हजारों  वर्षों के खोये कोया पुनेमी इतिहास को फिर से स्थापित कर देती है।[९][१०]

खोज[सम्पादन]

इसी क्रम में आचार्य मोतीरावण कंगाली ने गोंड़ कोइतूरों के धार्मिक स्थलों को हिंदुओं के कब्जे से मुक्त कराया। हिंदुओं ने गोंड पुरखों के बदले अपने देवी-देवताओं को स्थापित कर रखा था। डॉ. कंगाली ने इस विषय पर भी कार्य किया और आम जनमानस में कई किताबें लिख कर इन देवी स्थानों की सच्चाई को सबके सामने ले आए। जिनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण देवी स्थान जैसे डोंगरगढ़ की बमलेश्वरी दाई, बस्तर की दंतेश्वरी दाई, कोरोडीगढ़ की तिलका दाई और चांदागढ़ की कली कंकाली दाई के बारे में उन्होने छोटी-छोटी पुस्तकें लिखी।  गोंडी दर्शन संस्कृति के क्षेत्र में उनके कार्य को आगे बढ़ाने की बहुत ज्यादा जरूरत है अगर यह कार्य जल्दी नहीं किया गया तो शीघ्र ही गोंडवाना में आयी सांस्कृतिक जागृति फिर से सुप्तावस्था में चली जाएगी।[११]

गोंडी दर्शन और धर्म (कोया पुनेम) को स्थापित और प्रचारित करने लिए उन्होने भुमका (पुरोहित) महासंघ की परिकल्पना की और उसका प्रचार प्रसार शुरू किया, जिसे बाद में तिरुमाल रावन शाह इनवाती को सौंप कर खुद लेखन में व्यस्त हो गए। आज भुमका महासंघ महाराष्ट्र,छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश सहित अन्य राज्यों में अपने भुमकाओं को प्रशिक्षण देकर कोया पुनेम की स्थापना और प्रचार प्रसार के लिए सक्रिय है।

उनकी पत्नी तिरुमाय चंद्रलेखा कंगाली स्वयं एक समाजशास्त्री और विद्वान लेखिका हैं जिनके साथ मिलकर उन्होने गोंडवाना के सांस्कृतिक इतिहास को दुनिया के सामने ले आए और गोंडवाना के प्राचीन गौरव को कोइतूर जान-पहचान सके। गोंड़ी भाषा के क्षेत्र में उन्होंने अनेक कार्य किया और गोंडी को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलवाने में अपना पूरा समर्थन और सहयोग भी दिया था।  लेकिन दुर्भाग्य देखिये इतनी प्राचीन भाषा, जिसे बोलने वाले करोड़ों की संख्या में हैं जिसका अपना सुंदर व्याकरण और लिपि है, उसे भारत सरकार की अनदेखी झेलनी पड़ रही है और इतने संघर्षों और आंदोलनों के बाद भी गोंडी भाषा को भारत की आठवीं अनुसूची में स्थान नहीं मिल पा रहा है।[१२]

गोंडी भाषा को लेकर आचार्य मोतीरावण कंगाली बहुत चिंतित रहते थे। वे कहते थे कि भाषा के बिना किसी भी संस्कृति के अंदर नहीं उतरा जा सकता है और अगर किसी संस्कृति को नष्ट करना हो तो उसकी भाषा को खत्म कर दो। इस देश में गोंडी भाषा के साथ यही हो रहा है। अगर गोंडी भाषा ही नहीं रहेगी तो गोंड, गोंडवाना की कल्पना ही बेमानी हो जाएगी और प्राचीन गौरवशाली संस्कृति और उसको मनाने वाले लोग भी एक दिन विलुप्त हो जाएंगे। यह एक चिंता का विषय है जिसे सरकारों को समझना चाहिए और गोंडी भाषा संस्कृति को सहेजने और सँवारने के प्रयास करना चाहिए।[११]

बाहरी कड़ियाँ[सम्पादन]

किताबे

  • गोंडवाना का सांस्कृतिक इतिहास [१३]
  • गोंडी व्याकरण तथा भाषा रचना गोंडी कळकियान उंडे लम्बेज चवळी [१४]
  • गोंडो का मूल निवास स्थल परिचय [१५]

सन्दर्भ[सम्पादन]

  1. News, Maharashtra (11 अक्टूबर 2016). "'राम' की जगह इस जाति की नई पीढ़ी लिख रही ‘रावण’ का नाम, मानते हैं इष्ट देवता". https://www.maharashtratoday.co.in/ravan-is-lord-for-gond-samaj-people/. अभिगमन तिथि: 11 अप्रैल 2020. 
  2. "यहां राम की जगह रावण का नाम लिख रहे हैं लोग, मानते हैं इष्ट देवता" (hi में). https://www.jagran.com/maharashtra/nagpur-these-people-believe-on-ravana-not-rama-14869207.html. 
  3. "BBC Hindi - भारत - क्या हड़प्पा की लिपियाँ पढ़ी जा सकती हैं?". https://www.bbc.com/hindi/mobile/india/2014/09/140906_hadappa_civilization_script_vr.shtml. अभिगमन तिथि: 11 अप्रैल 2020. 
  4. Singh, S. Harpal (16 दिसम्बर 2014). "Gonds may have migrated from Indus Valley" (en-IN में). The Hindu. https://www.thehindu.com/news/national/telangana/gonds-may-have-migrated-from-indus-valley/article6698419.ece. अभिगमन तिथि: 11 अप्रैल 2020. 
  5. बाली, Sanjay jothe/ Surya Bali संजय जोठे / सूर्या (2016-06-23). "मोतीरावण कंगाली की बहुजन आँखों में भारत" (hi-IN में). https://www.forwardpress.in/2016/06/achary-motirawan-kangali-ki-bahujan-ankhon-me-bharat_sanjay-jothesurya-bali/. 
  6. डेस्‍क, FP Desk एफपी (2019-02-09). "बनारस में याद किए गए गोंडी भाषा के विशेषज्ञ डॉ. मोती रावण कंगाली" (hi-IN में). https://www.forwardpress.in/2019/02/national-news-moti-ravan-kangali-birth-anniversary/. 
  7. जोठे, Sanjay Shraman Jothe संजय श्रमण (2020-02-02). "जानें, कौन थे डॉ. मोतीरावण कंगाली, जिन्होंने दुनिया को बताया कोया पुनेम का राज" (hi-IN में). https://www.forwardpress.in/2020/02/birth-anniversary-motiravan-kangali-hindi/. 
  8. "डॉ. मोतीरावण कंगाली" (hi में). 2015-11-14. https://www.bhaskar.com/chhatisgarh/korba/news/CHH-OTH-MAT-latest-korba-news-023504-3015212-NOR.html. 
  9. कुमार, Nawal Kishore Kumar नवल किशोर (2020-01-30). "गोंडवाना में कचारगढ़ : भारतीय संस्कृति की मूल जड़ों की तलाश" (hi-IN में). https://www.forwardpress.in/2020/01/book-review-gondwana-kachargar-hindi/. 
  10. author/lokmat-news-network (2018-01-13). "आदिवासीचे श्रद्धास्थान कचारगड" (mr-IN में). https://www.lokmat.com/gondia/tribal-shrine-kachargad/. 
  11. ११.० ११.१ जोठे, Sanjay Shraman Jothe संजय श्रमण (2020-02-02). "जानें, कौन थे डॉ. मोतीरावण कंगाली, जिन्होंने दुनिया को बताया कोया पुनेम का राज" (hi-IN में). https://www.forwardpress.in/2020/02/birth-anniversary-motiravan-kangali-hindi/. 
  12. "हम्पी शिलाखंड पर लिखी लिपि को पढ़ने में मिली कामयाबी" (hi में). https://www.amarujala.com/news-archives/india-news-archives/motiravan-got-succeeded-to-read-the-signs-written-on-the-rock-hindi-news. 
  13. (Hindi में) Gondvana Ka Sanskrutik Itihas. BSPK Book Publishing Company. 2018. https://www.amazon.in/Gondvana-Sanskrutik-Acharya-Motiravan-Kangali/dp/B083RBSK9H. 
  14. (Gondi में) Gondi Vyakaran Tatha Bhasha Rachana Gondi Kalkiyan Unde Lambej Chavali. BSPK Book Publishing Company. 2018. https://www.amazon.in/Vyakaran-Bhasha-Rachana-Kalkiyan-Chavali/dp/B083RBWB1H. 
  15. (Hindi में) Gondo Ka Mul Nivas Sthal Parichay. BSPK Book Publishing Company. 2011. https://www.amazon.in/Gondo-Mul-Nivas-Sthal-Parichay/dp/B085S3YFMW/ref=mp_s_a_1_2?dchild=1&qid=1597111166&refinements=p_27:Acharya+Motiravan+Kangali&s=books&sr=1-2. 



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