मौलाना सैय्यद ग़ुलाम कुतबुद्दीन ब्रह्मचारी
हज़रत मौलाना सैय्यद ग़ुलाम कुतबुद्दीन ब्रह्मचारी अलैहिर्रहमा का जन्म सहसवान ज़िला बदायूँ में हुआ। आप हज़रत मौलाना हक़ीम सैय्यद सख़ावत हुसैन चिश्ती अलैहिर्रहमा के पुत्र और शिष्य थे, आप ने पहले अपने पिता ही से पढ़ा, उस के बाद अपने समय के महान इस्लामी धर्मगुरु और शिक्षक, मुफ्ती लुत्फुल्लाह अली गढ़ी अलैहिर्रहमा के पास जा कर शिक्षा प्राप्त की। आप हज़रत मौलाना सैय्यद मुहम्मद असलम खैराबादी अलैहिर्रहमा के मुरीद और आला हज़रत अशरफी मियाँ किछौछवी अलैहिर्रहमा के ख़लीफ़ा (प्रतिनधि) थे।
आप ने कई वर्ष तक बनारस के मंदिर में बड़े पंडित से हिन्दू फ़लसफ़ा (Hindu Philosophy) की शिक्षा प्राप्त की। आप फज्र (प्रातः काल की नमाज़) के बाद से ले कर अस्र (सांय क़ाल की नमाज़) तक यानि लगभग 10-12 घण्टे तक अध्यन्न करने में मग्न रहते, और अस्र के वक़्त अपने कमरे में जा कर अंदर से कमरा बन्द कर लेते और छूटी हुई नमाज़ को पढ़ते। उस दौर में साल में कई-कई बार इस्लाम धर्म के विश्व प्रसिद्ध प्रचारक, अल्लामा शाह अब्दुल अलीम सिद्दीक़ी मेरठी अलैहिर्रहमा जिन के हाथ पर विश्व भर के लगभग 1 लाख गैर मुस्लिमों ने इस्लाम क़बूल किया था, आप से मिलने आते, और पुल पर खड़े हो कर पराठे और कबाब कपड़े में लपेट कर आप की तरफ फेंक देते, आप उसे ले कर कमरे में चले जाते।
संस्कृत और हिन्दू फ़लसफ़ा को पूरी तरह समझ जाने के बाद एक दिन आप अपने पंडित शिक्षक से बहस करने लगे, और इस तरह आप के मुसलमान होने का पर्दा फाश हो गया। जिस से उस पंडित को बहुत अफ़सोस हुआ। यहाँ से आप कलकत्ता के प्रसिद्ध क़व्वाल के पास पहुंचे, पहले तो उस ने सिखाने से इंकार किया, परन्तु जब उस को आप का मक़सद मालूम हुआ तो पूरी तवज्जह से एक ही हफ्ते में सारे राग सिखा दिये। (तज़किरा उल्मा ए अहले सुन्नत/ पे०: 202-203)
आप के दौर में जब आर्य समाज वालों का शुद्धि आंदोलन (घर वापसी आंदोलन) ज़ोर पकड़ा, और बड़े-बड़े कट्टर हिन्दू धनवानों के समर्थन की वजह से यह आंदोलन एक तूफ़ान का रूप धारण कर गया, जिस की वजह से बड़ी संख्या में मुसलमान हिन्दू बनने लगे, तो आला हज़रत अशरफी मियाँ अलैहिर्रहमा और अल्लामा सैय्यद नईमुद्दीन मुरादाबादी अलैहिर्रहमा (संस्थापक : जामिया नईमिया मुरादाबाद) के आदेश पर आप भारत के विभिन्न क्षेत्रों और मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश का तूफानी दौरा शुरू किया। आप ने लाखों मुसलमानों को मुर्तद होने से बचाया और हज़ारों गैर मुस्लिमों को मुसलमान किया। (भीगी पलकों का बोझ/ पे०: 136)
अल्लामा शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिस मुरादाबादी अलैहिर्रहमा (संस्थापक : जामिया अशरफिया मुबारक पुर) आप के बारे में फरमाते हैं:
[आप] हैवानात [जानवरों], वैद्य, हक़ीम, गाने वाली पार्टी और साधुओं के भजन गाने वाली पार्टी बना कर अवाम [लोगों] का मजमा [भीड़] लगाते और इस्लाम पर हिंदुवाना एतेराज़ क़ायम करते, फिर हिन्दुओं की किताबों से उन का जवाब देते, उसी मजमे में सैकड़ों हिन्दू हलका ब'ग़ोश ए इस्लाम [इस्लाम में दाखिल] हो जाते, इस तरह आप ने दूर दराज़ इलाक़ों का सफर किया और खूब इस्लाम की अशाअत फ़रमाई। (हयात ए मखदूमुल औलिया/ पे०: 387)
शुद्धि आंदोलन की इस तेज़ लहर में आप ने सुना कि बदायूँ या बांदा की तरफ एक दो मुसलमान मुर्तद हो गए हैं, तो इस खबर ने आप को तड़पा दिया, तुरन्त आप अपने एक शिष्य को ले कर उस जगह के लिये रवाना हुए, गाड़ी से उतर कर स्टेशन के एक किनारे जा कर अपना इस्लामी वस्त्र बदला, पुरे शरीर पर भभूत मला, माथे पे टीका लगाया और गले में चंदन की माला डाली, और एक देवता का रूप धारण कर के बाहर निकले, फिर उस इलाके में गए, और इस तरह आप ने एक दो मुसलमानों के बदले में सैकड़ों ग़ैर मुस्लिमों को अपना भक्त बना कर मुसलमान बना दिया, और वह एक दो मुर्तद भी फिर से मुसलमान हो गए। (भीगी पलकों का बोझ/ पे०: 136-137)
आप मुनाज़िर भी थे, आप ने हिन्दू पंडितों, शंकराचार्यों और आर्य समाजियों से कई कामयाब मुनाज़रे भी किये, वह लोग हिन्दू धर्म से संबंधित आप की जानकारियों को देख कर दंग रह जाते थे। (भीगी पलकों का बोझ/ पे०: 136) और आप लेखक भी थे, आप ने कई किताबें भी लिखीं, जैसे:- बे नक़ाब हसीन, दरबार सैय्यदुल अबरार, साढ़े चार लाख मुसलमानों का शिकार। सहसवान ही में 18 रमज़ान सन् 1350 हि० को आप का देहांत हुआ। आप की इच्छानुसार आप की नमाज़ ए जनाज़ा हज़रत मौलाना ख़्वाजा सैय्यद मिस्बाहुल हसन फफूँदी अलैहिर्रहमा ने पढ़ाई। (तज़किरा उल्मा ए अहले सुन्नत/ पे०: 203)
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