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राजा शालिनीवाहन

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सम्राट शालिवाहन परमार (शासनकाल:78-138AD)[सम्पादन]


'''शालिवाहन परमार''' भारत के परमार वंशीय शासकों में से एक थे। शालिवाहन एक प्रसिद्ध चक्रवर्ती सम्राट और विक्रमादित्य परमार के परपौत्र थे। अपने पूर्वजों का अनुसरण कर शालिवाहन ने भी शकों का भिषण वध किया। इसी कारण शालिवाहन '''शकारि''' कहलाए। शालिवाहन के लिए शकारिम शब्द का उल्लेख कयी पाश्चात्य इतिहासकारों ने भी किया है। शकारी शब्द का शाब्दिक अर्थ है - शकों को पराजित करने वाला या हराने वाला। शालिवाहन परमार ने शकों को मारकर उन्हें भगाया और उनका वध किया इसलिए उन्हें शकारि की उपाधि देकर संबोधित किया गया है। कयी इतिहासकार शालिवाहन को शकारि कहते हैं । शालिवाहन ने शकों का नाश किया इसलिए शालिवाहन शक नहीं थे। वीरचरित के अनुसार भी शालिवाहन परमार चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य परमार के परपौत्र और उज्जैन के सम्राट थे। कवि अनंतकृत वीर रस में लिखी वीरचरित कविता में शालिवाहन परमार के उज्जैन के शासक विक्रमादित्य के प्रतिद्वंद्वी होने का अलंकारिक वर्णन पौराणिक रूप से मिलता है। इसमें विक्रमादित्य और शालिवाहन परमार एक दूसरे के समय, स्थिति पर उनकी तुलना की गई है। यह कविता पौराणिक छंदों पर रची गई हैं।[सम्पादन]

शकारि शालिवाहन परमार के चलाए संवत् को शक संवत् नाम से आज जाना जाता है। शालिवाहन संवत् को ही शालिवाहन परमार का ऐतिहासिक काल (शालिवाहन युग) माना जाता है। [१] शालिवाहन परमार का शासनकाल लगभग ई. 78 से आरंभ होता है। यादव राजा की तासगाव में पाई गई प्लेट्स (1251CE) के अनुसार भी शालिवाहन के शासनकाल की पुष्टि होती है। [२]

<ref>Moriz Winternitz 1985, p. 377</ref>[३]>Viśvanātha Devaśarmā (1999). Shudraka. Sahitya Akademi. p. 4. ISBN 9788126006977. </ref>[४]></ref>[सम्पादन]

इ. स. 78 में शालिवाहन ने शकों को परास्त करते हुए शालिवाहन शक का आरंभ किया। उन्होंने प्रसिद्ध यज्ञ ''अश्वमेध'' का अनुष्ठान किया, तथा पर्शीया तक समस्त राष्ट्रों को अपने अधिन कर लिया। सम्राट विक्रमादित्य परमार के 59 वर्ष पश्चात सम्राट शालिवाहन परमार का राज्यभिषेक 78 ई. में हुआ था । अम्बावती अर्थात् वर्तमान उजैन के तत्कालीन शासन चक्रवर्ती शालिवाहन 78 ई. में राज्यसिंहासनारूढ़ होकर धार(राजधानी) तथा सेलरा - मोलरा पहाडीयों पर भारतवर्ष के संपुर्ण भूमंडल पर अपना वर्चस्व प्रतिष्ठित किया। देवात्मा हिमालय से लेकर कन्याकुमारी के दक्षिण तट तक विक्रमादित्य के भांति महान पराक्रमी बन दृतिय विश्व विजयेता होने का गौरव हासिल किया।

चक्रवर्ती शालिवाहन के सिंहासनारूढ़ होते ही कलिवर्ष 3179 में शालिवाहन के विशाल सेना द्वारा करोडों के संख्या में अश्शुरों पर युध्दाक्रमण कर आर्यावर्त को पुन्ह खंड से अखण्ड कर दिया। अखंड आर्यावर्त पर अपना अधिपत्य स्थापित कर वेदों के विरोधी म्लेच्छ के स्थानों को उध्वस्त कर उनकी भारी नुकसान कर दिया। आर्यावर्त को म्लेच्छो से मुक्त करने हेतु शालिवाहन ने युध्द अभियान चलाकर शक, चीन, तार्तर, रोम, खोरासन, बह्लिक इन सब राज्यों एवं राष्ट्रों पर आक्रमण कर दिया तथा 92 करोड़ से भी ज्यादा शक एवं अश्शुरों का भीषण नरसंहार कीया।संपुर्ण आर्यावर्त को शको से मुक्त कर उन्हें खदेड़ दिया। उन्हें उचित दंड दिया, अपने राज्य के प्रजाजनों को ऋण रहित कर दिया तथा प्रजा के अर्थ को वापस लाया। अखण्ड भारत समेत एक बेहद विशालकाय साम्राज्य का निर्माण किया। करोडों सैन्यों से राज्य की सीमाएं सुरक्षित की तथा कड़ी सुरक्षा का निर्माण किया ताकि पुन्ह किसी भी विदेशी आक्रांताओं का (म्लेच्छ,शक) आक्रमण सफल न हो पाए।

द्विग्विजय के बाद सम्राट शालिवाहन परमार ने भी समस्त राज्य के लोगों उऋण कर कलिकाल में सतयुग की स्थापना के भांति कार्य किया था। विक्म युग के विक्रम संवत के बाद शालिवाहन संवत् का आरंभ हुआ, जिसे शालिवाहन संवत् कहा जाता है।

[५]>[६]>

भारतीय संस्कृति अपने कर्मजणित वर्णव्यवस्था के अनुरूप ब्राह्मण-क्षत्रियों के अण्याणोश्रीत संबंधों पर टिकी थी। इस बात को प्रसिद्ध इतिहासकार व्हि. ए. स्मिथ ने भी माना है। व्हि. ए. स्मिथ द्वारा लिखित लेख का अर्थ है कि भारतीय सभ्यता को परकिय आक्रांताओं से रक्षा करने के लिए क्षत्रियों में दो अवतार अवतिर्ण हुए - सम्राट विक्रमादित्य परमार एवं सम्राट शालिवाहन परमार , जिनकी वीरता का कोई सानी नहीं था।

[७]>

युध्द[सम्पादन]

शालिवाहन परमार का पहला युद्ध अभियान : सन ७८ ईस्वी में शालिवाहन परमार के प्रथम युद्ध अभियान किये जाने का प्रमाण मिलता है। जहाँग हैन मूलतः चीन का सम्राट था और हाँग राजवंश का शासक था। जिनका वर्चस्व तार्तर भूभाग(तार्तर चीनी अश्शूरों का वृहत्तम भूभाग राज्य था जहा चीनी अश्शूरों का कब्ज़ा था इस भूभाग का टुकड़े होकर वर्त्तमान में कई देश बने रूस, उज़्बेकिस्तान, युक्रेन, क़ज़ाख़स्तान, यूरेशिया , तुर्क, तुर्कमेनिस्तान ,किर्ग़िज़स्तान, बुल्गारिया, रोमानिया, इत्यादि अन्य 18 देश मिलाकर तार्तर राज्य बना था) पर रहा। ये अत्यंत क्रूर थे। इनकी आक्रमण कितने क्रूर होते थे, इसके बारे में यूक्रेन की लिपि फ्रॉम प्री-हिस्ट्री यूक्रेन-रूस, दिमनिक मार्टिन कृत में वर्णित हैं। इस राजवंश के सम्राट ने यूक्रेन के शासक एलाख को परास्त कर उनके वंश का समूल नाश किया। राजा एलाख की गर्भवती पत्नी को मगरमच्छ से भड़े तलाब में फ़ेंक दिया। उक्रेन के 4 लाख प्रजाजनों की हत्या कर दियी। ऋण ना चुका पाने की वजह से क्रूरतम दण्ड से दण्डित कर प्रजा का नरसंहार किया। इस राजवंश के राजा जहाँग हैन की मलेच्छ कदम चीन और भारतवर्ष की तत्कालीन सीमारेखा आराकानयोमा पर रखने की दुसाहस किया था जिससे शालिवाहन परमार ने जहाँग हैन को परास्त कर दिया। जहाँग हैन की मृत्यु हो गयी। रणभूमि एवं चीन के क्रूर राजवंश के हाथो से तार्तर के सम्पूर्ण भूभाग स्वतंत्र हो गया । चीन से लेकर तार्तर तक सम्राट शालिवाहन परमार ने केसरिया ध्वज लहराया था ।

[८]

सम्राट शालिवाहन परमार के समय में विलुप्त हो चुकी रोम राज्य को अपनी खोयी हुयी पहचान पुन्ह प्राप्त हो गई। शालिवाहन परमार रोम राज्य की प्रजाजनों के स्थिति से दुखी थे। रोम राज्य में ग्लेडियेटर्स उत्सव के नाम पर हूण निर्दोष मनुष्य को मारते थे। नारियों का शील भंग करते थे। रोम की धरती पर त्राहि त्राहि मच गयी थी,अराजकता की स्थिति आ गयी थी। ऐसे राजकीय परिस्थितियों में आर्यावर्त के सम्राट शालिवाहन परमार ने 1 करोड़ 43 लाख सैन्यबल के साथ ८१ ईस्वी (81A.D) रोम पर आक्रमण किया था। बर्बर हूण कबीलों के साथ युद्ध हुआ। हूणों की सैन्य संख्या 2 करोड़ 78 लाख थी । सम्राट शालिवाहन परमार ने हूणों को परास्त कर खदेड़ा नही बल्कि मृत्यु दण्ड दे दिया। अश्शुरों को जीवन दान देने का अर्थ क्या होता हैं, ये दुर्दार्शीय सम्राट भलिभाँति जानते थे। इसलिए जर्मन से लेकर रोम तक शासन करनेवाले हूणों का समूल विनाश कर दिया। रोम से लेकर गेर्मानिया (वर्त्तमान जर्मन) तक बर्बर हूण के कबीलों को ध्वस्त कर भारतीय संस्कृति एवं विकशित राष्ट्र चिकित्सालय, विद्यालय , रस्ता, नगर निर्माण इत्यादि कई तरह के उन्नत कार्य किये। रोम से लेकर गेर्मानिया (वर्त्तमान जर्मन) तक अत्याचार के काले बादल हटा दिए एवं भारतीय राजपूत सम्राट के हाथो एक नवयुग का आरंभ हुआ। शालिवाहन के इस शासन काल को शालिवाहन युग के नाम से भी जाना जाता है।

[९] Bharatiya Eras, The kings of Agni Vamsa, by Kota Venkatachalam Chapter 12 )

टाइटस ग्रीक-रोम के राजा था। टाइटस ने त्रिविष्टप पर आक्रमण किया था। सन ८० (ई.) ग्रीक-रोम के इस शासक ने ३०० घुड़सवार सैनिक ६०,००० पैदल सैनिको के साथ आक्रमण किया था। भारतीय पुराणों में ग्रीक-रोम निवासीयों को गुरूंड कहाँ गया है। त्रिविष्टप पर सम्राट शालिवाहन मात्र १२००० की सेना के साथ तैयार थे। जय महाकाल नामक युध्द घोषणा के साथ परमार सेना का आक्रमण रोम आक्रमणकारियों पर तुट पड़ा। सन ८० (ई.) से रोम आक्रमणकारियों का भारत पर आक्रमण निरंतरता के साथ होता रहा पर कभी आर्यावर्त को परतंत्र नहीं कर पाया।

शालिवाहन से पराजित होने के पश्चात रोम साम्राज्य का ५२% हिस्सा शालिवाहन ने हिन्दू राज्य में सम्मिलित कर लिया था। इस युद्ध का ऐतिहासिक वर्णन Cassius Dio, Roman History LXV.15 में किया गया हैं ।

[१०]

सम्राट शालिवाहन परमार ने अपना दृतिय महत्वपूर्ण युद्ध सन 82 इ.में दोमिटियन (Domitian) के विरुद्ध लड़ा था। इस युध्द में शालिवाहन परमार ने दोमिटियन को परास्त किया था। जो की रोम एवं फ्रैंको (वर्तमान में फ्रांस) का राजा था। जिसने स्पेन तक अपनी साम्राज्य विस्तार किया था। इस युद्ध का वर्णन Heinrich Friedrich Theodor ने अपनी पुस्तक “A history of German” में लिखा था एवं Previte Orton द्वारा लिखा गया पुस्तक “The Shorter Medieval History” vol:1 पृष्ठ-: १५१ एवं Suetonius, The Lives of Twelve Caesars, Life of Vespasian 9 में आपको मिलेगा सम्राट शालिवाहन परमार के साथ कुल तीन युद्ध हुए थे। प्रथम दो युद्धों में भारतवर्ष पर आक्रमण करने के कारण शालिवाहन परमार के हाथों हार कर वापस लौटना पड़ा | [११][१२]<ref>Suetonius, The Lives of Twelve Caesars.Life of Vespasiun 9.</ref>

तीसरे युद्ध में शालिवाहन ने फ्रैंको पर आक्रमण कर दोमिटियन (Domitian) को हराकर पूर्वी फ्रान्किया (वर्तमान जर्मन) और स्पेन पे अधिकार कर लिया था । दोमिटियन ने शालिवाहन शासित राज्य परतंगण पर आक्रमण किया था। यह राज्य वर्तमान में भारत चीन सीमांत क्षेत्र में मानसरोवर के पास उपस्थित हैं। दोमिटियन की सेना ८०,००० की थी तथा घुड़सवार और पैदल सैनिक २५-२७,००० थे। शालिवाहन की सेना ३०००० से ४० हज़ार की थी। शालिवाहन की युद्धकौशल, रणनीति कौशल के समक्ष यवन पीछे हटने पर मजबूर हो गये थे। दोमिटियन की लाखों की सेना के साथ आये थे। पर इस ऐतिहासिक युद्ध को जिक्र विदेश इतिहासकारों ने “war of blood” के नाम से घोषित किया क्योंकी यह भयंकर युद्ध इतिहास में सायद ही दोबारा हुआ होगा। १ लाख से अधिक सेना के साथ आक्रमण करनेवाले दोमिटियन रोम में मात्र १२०० सैनिक के साथ वापस लौटा था । इसके बाद शालिवाहन ने मात्र ४५,००० सेना के साथ स्पेन पर आक्रमण कर दिया था। स्पेन के राजा दोमिटियन युद्ध करने का साहस नहीं कर पाया और समझौता कर दिया। स्पेन का आधा राज्य और पूर्वी फ्रान्किया पर भी शालिवाहन ने अपना भगवा ध्वज लहरा दिया था । इस तरह शालिवाहन ने स्पेन पर विजय प्राप्त कीं।

ट्राजन (Trajan) मेसोपोटामिया एवं अर्मेनिया के ज़ार (राजा) थे। जिन्होंने भारतवर्ष पर सन ११४ (ई.) में आक्रमण किया था। स्वीडिश एवं स्कॅन्डिनेवियन (Scandinavian) जर्नल में लिखा गया हैं कि शालिवाहन शासित राज्य ''विदेह'' जो नेपाल की राजधानी ''जनकपुर'' का हिस्सा हैं, वहा आक्रमण किया था। ज़ार को पराजय देखनी पड़ी थी। शालिवाहन के पास ६७ रणनीति में कुशल, शस्त्र विद्या में पारंगत, युद्ध व्यू रचने में भी पारंगत सेनापतियों की टोली थी। सेनापति अह्वान परमार के साथ शालिवाहन ने १५००० की सेना के साथ ज़ार ट्राजन को पराजित कर दिया। स्कॅन्डिनेवियन पर शालिवाहन ने सनातन वैदिक राज की स्थापना कि एवं ज़ार के साथ लड़े गए युद्ध, मेरु युद्ध जो मेसोपोटामिया में लड़ा गया था उसमें शालिवाहन ने मेसोपोटामिया की ३ चौथाई राज्य जीत लिया था ।

[१३]>[१४]>

शालिवाहन के परमार साम्राज्य पर ई.125 में पर्शिया के शासक हद्रियन ने आक्रमण किया था। उसका लक्ष्य था - भारतवर्ष के अमुल्य धन संपत्ति की लूट करना और परमार शालिवाहन को बंदि बनाकर अपना गुलाम बनाकर आर्यावर्त पर अपना अधिपत्य प्राप्त करना। पर्शिया के राजा हद्रियन की नज़र भारतवर्ष की धन दौलत पर पड़ी थी। सम्राट शालिवाहन परमार को गुप्तचर शिव सिंह से सुचना मिली की हद्रियन अपने लश्कर के साथ निकल चूका है। हद्रियन ने सिंघल्द्वीप (श्रीलंका) पर आक्रमण किया था। तीस से चालीस हज़ार पैदल लश्कर ९,००० घुड़सवार और ग्यारह से बारह हज़ार की तादात पर धनुर्धारी लश्कर की फ़ौज थी। शालिवाहन परमार ने बाज़ व्यूह का उपयोग किया था। सम्राट शालिवाहन ने २१नये युद्ध व्यूह की रचना कि। जिससे पलक जपकते ही दुश्मन दल को नेस्तनाबूद कर सकते थे। इसलिए सम्राट शालिवाहन की सात से नौ हज़ार की घुड़सवार फ़ौज और विश्व के श्रेष्ठ धनुर्धरों सैनिको ने हद्रियन को धूल चटा दिया था।


==राजवंश==

परमार (प्रमार) या पोवार अग्निवंश के अत्यंत शक्तिशाली शासक थे। "पृथ्वी पँवारो की है ऐसी कहावत यह दर्शाती है कि उनका प्रभुत्व व्यापक था।(विक्रमादित्य के समय और शकारि शालिवाहन के समय इस वंश ने चक्रवर्ती राज किया था।) उनकी 35 शाखाएं थीं।[१५]परमार राजवंश की सूची ईसा पूर्व में उनके शासनकाल सहित -

*1.परमार(392-386)

*2.महामारा(386-383)

*3. देवापी(383-380)

*4. देवदत्ता(380-377)

*5. (377-182) शकों से पराजित होकर परमार उजैन को छोड़कर श्रीशैलाम चलें गए। (अप्रभावी और अनामिक राजा) पुराणों में इनके नामों का कोई जीक्र नहीं किया गया है क्योंकि यह शासन में नहीं थे।

*6. गंधर्वसेन(182-132) सर्वप्रथम शकों को परास्त किया। अम्बावती(उज्जैन) को मुक्त करवाया। शासनकाल:50 वर्ष।गंधर्वसेन के बड़े पुत्र सम्राट भर्तृहरि थे तथा उनके अनुज विक्रमसेन परमार थे।विक्रम सेन का जन्म कलियुग वर्ष 3000 संवत् को हुआ था।[१६]

  [१७][१८]

*7.शंखराज(132-102) सम्राट गंधर्वसेन अपने ज्येष्ठ पुत्र शंखराज को राजपाठ सौंप कर सन्यास लेकर तप करने चले गये थे। शंखराज ने ३० वर्ष तक शासन किया। 132-102 ईस्वी पूर्व तक शंखराज की अकाल मृत्यु होने के पश्चात महाराज गंधर्वसेन को राज्य की सुरक्षा के लिए तप छोड़कर फिरसे राजपाठ संभालना पड़ा। 102-82 ईस्वी पूर्व तक गंधर्वसेन परमार ने शासन किया। अपने पुत्र विक्रमादित्य को 82 ईस्वीपूर्व में राजपाठ सौंपकर सन्यास ले लिए एवं तपस्या करने चले गये ।

*8. सम्राट विक्रमादित्य परमार (82ई.पू-19ई.) ने संपुर्ण विश्व पर 100 वर्ष शासन किया।

*9. देवभक्त (19-29ई.) मात्र 10 वर्ष तक शासन किया था।

*10. (29-78 ई.) यह अनामिक राजाओं का शासन काल रहा। पुराणों में इनका नाम दर्ज नहीं है।

*11. चक्रवर्ती शालिवाहन परमार (78-138ई.) 60 वर्ष तक शासन किये थे।

*12-20).(138-638ई.) सलीहोत्र, सालिवर्धन, सुहोत्र, हावीहोत्र, इन्द्रपाल, मलायावन, सम्भुदत्ता, भौमाराज,वत्सराज इन सभी राजाओ ने कुल मिलाकर ५० (50) वर्ष १३८-६३८ ईस्वी तक शासन किया।

*21.भोजराज परमार (638-693-94ई.) 56 वर्ष तक शासन किया था।

*22-28). सम्भुदत्ता, बिन्दुपल, राजापाल माहिनारा, सोमवर्मा, कामवर्मा, भूमिपाल अथवा (वीरसिंह) ३००(300) वर्ष तक शासन किये थे ६९३-९९३-९४ (693-993-94) तक ।

*29-30).रंगापाल,कल्पसिंह २०० (200) वर्ष तक शासन किये थे ९९३-११९३-९४ (993-1193-94) ईस्वी तक ।

*31) गंगासिंह [१९]परमार राजवंश का अंतिम गंगा सिंह परमार थे।


संदर्भ[सम्पादन]



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  1. ""Journal of the Asiatic Society of Bombay". Asiatic Society of Bombay. 1875. pp. xli–xliii". https://books.google.com/books?id=oOqyrxaeqgYC&pg=PR41. 
  2. "D. C. Sircar (1965). Indian Epigraphy. Motilal Banarsidass. pp. 262–266". https://books.google.com/books?id=hXMB3649biQC&pg=PA262. 
  3. Vishwanath Devasharma. Shudrak. Vishwanath Devasharma, Sahity Academy.. पृ॰ P. 4. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788126006977.. https://books.google.com/books?id=EPljAAAAMAAJ. 
  4. Indian Eras.. Kota venkatachalam (1956).. पृ॰ 66-70.. https://books.google.com/books?id=gXcQAQAAIAAJ. 
  5. Prof. Dr. Radha krishnan. Salivahana performed the ashamedh sacrifice. 
  6. भविष्य महापूराण. पृ॰ 3-3-2-17,21verses. 
  7. Early History of India. V. A. Smith(Vincent Arthur Smith, CIE.). 
  8. The History of Vikrama and Salivahana vol IV,Dr.S.D.Kulkarni
  9. Bharatiya Eras, The kings of Agni Vamsa. by kota Venkatachalam. पृ॰ Chapter 12. 
  10. cassius Dio, Roman History LVX.15
  11. A History of German.Heinrich Friedrich Theodor.
  12. The shorter Medieval History,Vol:1.पपृ.151. Previte Orton.
  13. Scandinavian journal. Scandinavian. 
  14. Swidish. Swidish journal. 
  15. Rajputana Classes.. Government Monotype press.. 1921. 
  16. Shriyut Vishveshwarnath. (1932). Raja bhoj.. इलाहाबाद. हिंदुस्तानी एकेडमी. U. P.. 
  17. "Error: no |title= specified when using {{Cite web}}". http://www.sacred-texts.com/goth/vav/vav03.htm. 
  18. "Error: no |title= specified when using {{Cite web}}". http://www.sacred-texts.com/goth/vav/vav17.htm. 
  19. King Ganga Simha reigned from 1113 to 1193 A.D. In the battle of Kurukshetra, the 90 year-aged Ganga Simha died on the field along with Prithviraja etc.. Bhavishya Puranam. Agni king.. 


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