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राष्ट्रवाद बना मुखौटा

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राष्ट्रवाद एक सांस्कृतिक अवधारणा है ,जो जनता को एक सूत्र में बांधने का काम करती है ,परतु ये एकता का सूत्र अब ढीला पड़ता दिखाई दे रहा है , राष्ट वाद के नाम पर कही खून हो रहे है तो कही बलत्कार जैसे घिनोने कृतो कोअंजाम दिया जा रहा है ,तोकहि हिन्दू मुस्लिम का माहौल पैदा किया जा रहा है |

आपस मे बांधने वाला यह सूत्र आज कमजोर पड़ता दिखाई दे रहा है। आये दिन समाचार पत्रों में कोई न कोई राष्ट्रवाद पर अपने मंतव्य देते नजर आते है । राष्ट्रवाद के मुखौटे को समझने से पहले राष्ट्रवाद पर एक नज़र डाल लेते है ,

राष्ट्र यानि एक भाषा ,एक जाति , एक धर्म, एक नस्ल के बाशिंदे , वाद यानि विचारधारा ।

लेकिन भारत एक ऐसा देश है जहाँ अनेक भाषा , अनेक धर्म , अनेक धर्म, अनेक सम्प्रदाय , अनेक नस्ल के बाशिंदों के लिए राष्ट्र शब्द प्रयोग किया जाता है जिसे किसी तंग दृष्टि से नही देखा जा सकता है ।

हम वर्तमान परिदृश्य पर नज़र डालते है तो हम देखते की राष्ट्रवाद से राष्ट्र शब्द का ही लोप हो गया

है यह चंद नेताओ की हाथों की कटपुतली बन कर

रह गया है ।

ये जैसे चाहते है राष्ट्रवाद की परिभाषा गढ़ देते है लोग आपस मे लड़ने के लिए विवश नज़र आ रहे है

कही आगजनी हो रही है तो कही राष्ट्रवाद का

प्रमाणपत्र दिया जा रहा है तो कही राममन्दिर , तो

कही बाबरी मस्जिद पर राजनीति हो रही है , तो कही तीन तलाक पर विवाद हो रहा है ।

समाज मे ऐसा माहौल पैदा किया जा रहा है कि एक तरफ हिन्दू बहुसंख्यक दिखाई दे रहा है तो दूसरी तरफ मुस्लिम की अल्पसंख्यकता का बोध हो रहा है , तो कही करणी सेना समाचार पत्रों के माध्यम से न्यायपालिका की न्याय को चुनौती देती नज़र आ रही है तो कही लव जिहाद के षडयंत्र के तहत

गैर - मुस्लिम लड़कियों को प्रेम के जाल में फंसा कर धर्म परिवर्तन की कोशिश की जा रही है ।

हिन्दू मुस्लिम एकता को तोड़ने की जी तोड़ कोशिश की जा रही है । समाचार पत्रों से लेकर टेलीविजन तक नेता भड़काऊ भाषण देते नजर आ

रहे है , कही दलित मारे जा रहे है तो कही हिन्दू तो कही मुसलमान ,ये समाज के ठेकेदार धर्म का चोला पहनकर अपने कृत्यों को अंजाम दे रहे है

ये तो आम बात हो गयी है मानो कभी सुनने में आता है कि बॉर्डर पर इतनी सेना मारी गयी , कही पाकिस्तान की तरफ से घुसपैठ में इतने जवान शहीद , भारतीय सेना ने इतने पाकिस्तानी घुसपैठियो को मार गिराया ,

ये मरने और मारने का सिनसिला ऐसे ही चलता रहता है । हिंदुस्तानी मरे तो पाकिस्तानी ताली बजाते है , पाकिस्तानी मरे तो हिन्दूस्तानी

पर ये कोई नही सोचता , मरे भारत अथवा पाकिस्तान के मरते तो जवान ही है जिस दिन किसी जवान की मृत्यु होती है , उस दिन एक घर से उसका छत , एक माँ से उसके बुढ़ापे का सहारा उसका लाल , एक पिता से उसका पुत्र , एक बहन से उसका भाई छीन लिया जाता है ,

पर इससे किसी को क्या फर्क पड़ता है इन्हें तो अपनी राजनीति चमकानी है ये राष्ट्रवाद का मुखौटा

ओढ़े अपनी राजनीति को अंजाम देते रहेगे , इसी तरह देश का माहौल बिगड़ता रहेगा

इसी तरह से चलता रहा है तो एक दिन ऐसा आयेगा जब भारत कई छोटे छोटे राष्ट्रों में टूट जायेगा

भारत आन्तरिक संकट का शिकार हो जायेगा , कही

हिन्दू राष्ट्र नज़र आयेगा तो कही मुस्लिम तो कही दलित तो कही राजपूत ऐसे अनेक राष्ट्र भारत मे उभर जायेगा ,

जिसमे साथ तो सब रह रहे होंगे पर आपस का प्रेम ही समाप्त हो जायेगा

वसुधैय कुटुम्बकम का नारा विफल हो जायेगा जब अपने मे बंधुत्व का भाव नही रहेगा तो विश्व बंधुत्व का भाव कैसे रह पायेगा।

क्या ग़ांधी ने इसी राष्ट्र की कल्पना की थी जिस ओर

हम बढ़ते जा रहे है ग़ांधी की प्रासंगिकता पर सवाल

खड़े हो उठे है जिस हिन्दू मुस्लिम एकता की दुहाई दिया करते थे वह धीरे धीरे समाप्त होता दिख रहा है हम ग़ांधी को भूलते जा रहे है

मीडिया भी इससे अछूती नही रही है इसे मात्र खबर

चाहिए होती है जिसे वो मक्खन में पिरो कर जनता के सामने रह देती है जिससे इनके टी0आर0पी0 बढ़ोत्तरी हो ,

सरकार का चौथा स्तम्भ भी असफल होता नजर आ रहा है जो किसी भी राष्ट्र के विनाश के लिए काफी है

क्या ऐसे राष्ट्र की हमने कल्पना की थी जिनमे सामने तो हम दिख रहे हो पर कृत्यों को कोई और ही अंजाम दे रहा हो ......

==सन्दर्भ== शिव कुमार खरवार (एम० ए० )

      काशी हिन्दू विश्वविद्यालय 
        राजनीति विज्ञान विभाग
            वाराणसी

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