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रियो-१०, रियो डि जेनेरियो

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रियो+20 शिखर सम्‍मेलन जून 08, 2012

रियो+20 के प्रति दृष्‍टिकोण

पृष्‍ठभूमि

rio01सामाजिक – आर्थिक प्रगति की विचारधारा और रणनीति के रूप में सतत विकास पर 1980 के दशक के लगभग विश्‍व स्‍तर पर चर्चा आरंभ हुई। पर्यावरण एवं विकास पर पहले संयुक्‍त राष्‍ट्र सम्‍मेलन (यूएनसीईडी) का आयोजन वर्ष 1992 में रियो डि जेनारियो में किया गया था। इस शिखर स्‍तरीय बैठक में अन्‍य बातों के साथ-साथ एजेण्‍डा 21 को अंगीकार किया गया जो बाद के वर्षों में सतत विकास को बढ़ावा देने की दिशा में वैश्‍विक रूपरेखा बन गई।

यूएनसीईडी अथवा इसके लोकप्रिय नाम 'रियो अर्थ शिखर सम्‍मेलन' के बाद वर्ष 2002 में जोहानसबर्ग में सतत विकास पर विश्‍व शिखर सम्‍मेलन (डब्‍ल्‍यूएसएसडी) का आयोजन किया गया, जिसका उद्देश्‍य सतत विकास प्रतिमानों को और संवेग प्रदान करना था। इस शिखर सम्‍मेलन में जोहानसबर्ग घोषणा तथा जोहानसबर्ग कार्य योजना (जेपीओआई) पारित की गई। rio02 एजेण्‍डा 21 ने रियो सम्‍मेलन की प्रभावी अनुवर्ती कार्रवाई को बढ़ावा देने तथा अंतर्राष्‍ट्रीय सहयोग में वृद्धि करने और पर्यावरण एवं विकास संबंधी मुद्दों के समेकन हेतु किए जा रहे अंतर्राष्‍ट्रीय नीति निर्णय प्रक्रियाओं को तर्कसंगत बनाने और राष्‍ट्रीय, क्षेत्रीय तथा अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर एजेण्‍डा 21 के कार्यान्‍वयन की प्रगति की जांच करने के लिए एक संस्‍थागत तंत्र की स्‍थापना किए जाने की अनुशंसा की।

तदनुरूप वर्ष 1992 में संयुक्‍त राष्‍ट्र महासभा ने संयुक्‍त राष्‍ट्र आर्थिक एवं सामाजिक परिषद (इकोसोस) के एक कार्यात्‍मक आयोग के रूप में सतत विकास से संबद्ध संयुक्‍त राष्‍ट्र आयोग (सीएसडी) का सृजन किया, जिसे पर्यावरण एवं विकास पर रियो घोषणा के कार्यान्‍वयन में होने वाली प्रगति की समीक्षा करने का अधिदेश दिया गया।

रियो+20 सम्‍मेलन : सतत विकास से संबद्ध संयुक्‍त राष्‍ट्र सम्‍मेलन (यूएनसीएसडी) का आयोजन 20-22 जून, 2012 तक रियो डि जेनारियो, ब्राजील में किया जाएगा। इस सम्‍मेलन का आयोजन 1992 में रियो डी जेनारियो में आयोजित अर्थ शिखर सम्‍मेलन के 20 वर्षों के बाद किया जा रहा है और इसीलिए इसे रियो+20 भी कहा जाता है। रियो+20 को सतत विकास के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्‍यक्‍त करने और निरंतरता के संबंध में वैश्‍विक कार्रवाई को बढ़ावा देने संबंधी नई रूपरेखाओं की तलाश करने की प्रक्रिया में वैश्‍विक समुदाय के लिए एक महत्‍वपूर्ण अवसर के रूप में देखा जा रहा है। यूएनसीएसडी 2012 के निम्‍नलिखित उद्देश्‍य हैं :

सतत विकास के लिए नवीकृत राजनैतिक प्रतिबद्धता सुनिश्‍चित करना रियो सम्‍मेलन के बाद हुई प्रगति तथा निष्‍कर्षों के कार्यान्‍वयन की कमियों का आकलन करना नई एवं उभरती चुनौतियों का समाधान करना। यूएनसीएसडी 2012 के निम्‍नलिखित विषय हैं :

सतत विकास तथा गरीबी उन्‍मूलन के संदर्भ में हरित अर्थव्‍यवस्‍था; और सतत विकास के लिए संस्‍थागत रूपरेखा। तैयारी प्रक्रिया वर्ष 2010 के बाद से अनेक अंत:क्रियात्‍मक बैठकें हुईं, जिनमें विभिन्‍न पणधारियों को शामिल किया गया। यूएनसीएसडी सचिवालय ने अब तक तैयारी समिति की दो बैठकों का आयोजन किया है। पिछले कुछ महीनों के दौरान विभिन्‍न देशों ने विषयवस्‍तु से संबद्ध अनेक उच्‍चस्‍तरीय बैठकों का आयोजन किया, जिनका उद्देश्‍य दोनों विषयों में शामिल महत्‍वपूर्ण मुद्दों पर बेहतर समझबूझ और सर्वसम्‍मति को बढ़ावा देना था। भारत इस प्रक्रिया और अक्‍टूबर, 2011 में आयोजित दिल्‍ली मंत्रिस्‍तरीय संवाद में सक्रिय रूप से शामिल रहा है, जिसमें 'हरित अर्थव्‍यवस्‍था एवं समावेशी विकास' विषय पर विशेष बल दिया गया और जिसमें 11 देशों तथा 9 बहुपक्षीय संगठनों ने भाग लिया।

इसके अतिरिक्‍त विश्‍व के 5 भौगोलिक क्षेत्रों में भी इकोसोस के तत्‍वावधान में क्षेत्रीय तैयारी बैठकों का आयोजन किया गया। rio03इन बैठकों के निष्‍कर्षों के आधार पर 'परिणाम दस्‍तावेज' के शून्‍य मसौदे को तैयार किया जाएगा, जिसे रियो+20 के दौरान पारित किया जाना है। भारत की राष्‍ट्रीय सूचना सामग्रियों को अंतिम रूप दे दिया गया है और अंतर्मंत्रालयी परामर्शों, चुनिंदा तकनीकी संगठनों के अनुसंधान तथा विभिन्‍न पणधारियों के बातचीत पर आधारित एक व्‍यापक प्रक्रिया के उपरांत इसे सूचित भी कर दिया गया है, जिसे नीचे दिया गया है।

25-27 जनवरी, 2012 को शून्‍य मसौदे पर हुई आरंभिक चर्चा के उपरांत संयुक्‍त राष्‍ट्र मुख्‍यालय में अब तक 'अनौपचारिक-अनौपचारिक' वार्ताओं के तीन दौर हो चुके हैं। पिछली वार्ता 2 जून, 2012 को हुई थी। तैयारी समिति की तीसरी बैठक का आयोजन 13-15 जून, 2012 को रियो में किया जाएगा, जिसमें 20-22 जून, 2012 को आयोजित किए जाने वाले शिखर सम्‍मेलन से पूर्व अतिरिक्‍त चर्चा की जाएगी।

हरित अर्थव्‍यवस्‍था रियो+20 से पूर्व हरित अर्थव्‍यवस्‍था से संबद्ध विषय ने व्‍यापक तौर पर ध्‍यान आकर्षित किया है। विकासशील देशों का मानना है कि रियो सिद्धांतों द्वारा परिभाषित सतत विकास और इसकी तीन आधारशिलाओं नामत: आर्थिक, सामाजिक तथा पर्यावरणीय के आधार पर वैश्‍विक विकास मार्ग को परिभाषित करने की प्रक्रिया जारी रहनी चाहिए। उनकी समझ में हरित अर्थव्‍यवस्‍था को इस व्‍यापक रूपरेखा के साथ सहयोजित माना गया है तथा हरित विकास पर कार्रवाई तभी प्राप्‍त की जा सकती है जब विकासशील देशों को वित्‍त, प्रौद्योगिकी एवं क्षमता निर्माण की दिशा में सहायता प्रदान करते हुए समर्थकारी तंत्र उपलब्‍ध कराया जाए।

आगे उनका मानना है कि एक रूपरेखा के रूप में 'हरित अर्थव्‍यवस्‍था' तभी सफल होगी जब इससे गरीबी उन्‍मूलन की समस्‍या का समाधान करने की क्षमताओं का उन्‍नयन हो, राष्‍ट्रीय परिस्‍थितियों एवं प्राथमिकताओं के लिए नीतिगत उपाय किए जाएं और यह सुनिश्‍चित किया जाए कि इसके परिणामस्‍वरूप आए ढांचागत बदलावों से हरित संरक्षणवाद एवं अवांछनीय शर्तों को बढ़ावा न मिले। हरित अर्थव्‍यवस्‍था के संबंध में भारत का नजरिया अनिवार्यत: गरीबी उन्‍मूलन, खाद्य सुरक्षा, आधुनिक ऊर्जा सेवाओं तक रोजगार सृजन जैसी तात्‍कालिक प्राथमिकताओं से संबंधित है। भारत का मानना है कि 'हरित अर्थव्‍यवस्‍था' एक गतिशील विचारधारा है, जिसका उद्देश्‍य निरंतरता के साथ गरीबी उन्‍मूलन की दिशा में कार्यकलापों को बढ़ावा देना अत: आर्थिक, सामाजिक एवं पर्यावरणीय विकास के क्रम में अर्थव्‍यवस्‍था को हरित स्‍वरूप प्रदान करना है। भारत का मानना है कि 'हरित अर्थव्‍यवस्‍था' पर किसी भी प्रकार की समझ से पूर्व समान परंतु साझे और भिन्‍न दायित्‍वों (सीबीडीआर) के सिद्धांत पर निश्‍चित रूप से ध्‍यान दिया जाना चाहिए।

रियो+20 को यह सतत विकास को वैश्‍विक विकास कार्यसूची के केन्‍द्र में लाने का अवसर भी मानता है। हरित अर्थव्‍यवस्‍था की विचारधारा के अंतर्गत विभिन्‍न देशों की विभिन्‍न क्षमताओं को भी ध्‍यान में रखा जाना चाहिए। हरित मॉडल को ऑपचारिक रूप देने की जल्‍दबाजी में विकास के एक ऐसे नए अंतर्राष्‍ट्रीय मानदण्‍ड की रूपरेखा बन सकती है, जिससे शायद अन्‍य प्रकार के विकास मॉडल अवैध हो जाएं। इसमें विकास का वह मॉडल भी शामिल हो सकता है, जिसका अनुपालन भारत जैसे अनेक देश अपने सामाजिक-आर्थिक विकास एवं गरीबी उपशमन के लिए करते रहे हैं।

जैसा कि प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने 1972 में स्‍टाकहोम में कहा था, गरीबी सबसे बड़ा प्रदूषक है। कुछ लोगों ने यह भी कहा है कि हरित मॉडलों की वकालत को रेखांकित करने वाले प्रतिमानों में बदलाव लाना उभरती अर्थव्‍यवस्‍थाओं के ऊपर विकसित देशों के आर्थिक लाभों को बनाए रखने का एक प्रयास भी हो सकता है जो अनेक क्षेत्रों में आज विकसित देशों की बराबरी करने का प्रयास कर रहे हैं। क्षमता एवं विकास अनिवार्यताओं के अनुरूप प्रत्‍येक देश के लिए सतत विकास के मूलभूत लक्ष्‍य से संबंधित कतिपय लोचनीयता नए वैश्‍विक मानक मॉडल के अनुरूप नहीं रही है, जिससे हमारे स्‍वयं के विकास मार्ग पर प्रश्‍न उठाए जा सकते हैं क्‍योंकि विकासशील देशों में अभी भी संसाधनों की कमी है।

लोगों की आजीविका को बनाए रखना भी समान रूप से महत्‍वपूर्ण है। विकासशील देशों में सामाजिक, आर्थिक विकास तथा गरीबी उन्‍मूलन के अनिवार्य लक्ष्‍य को विकास के नए मानदण्‍डों की स्‍थापना करके गौण नहीं बनाया जा सकता। इस तथ्‍य के अतिरिक्‍त कि वित्‍तीय एवं प्रौद्योगिक क्षेत्र में समर्थकारी संसाधन उपलब्‍ध कराने के लिए विकसित देशों पर समान रूप से दबाव बनाए रखा जाए, हरित अर्थव्‍यवस्‍था में क्रमिक बदलाव के लिए विकासशील देशों के पास रियायती एवं पारदर्शी तरीके से संसाधन भी उपलब्‍ध कराए जाने चाहिए। यह भी महत्‍वपूर्ण है कि देश विशेष के प्राकृतिक संसाधनों पर भी हरित अर्थव्‍यवस्‍था पर होने वाले विचार-विमर्शों में चर्चा की जाए।

सतत विकास लक्ष्‍य (एसडीजी) रियो+20 के परिणामों के भाग के रूप में सतत विकास लक्ष्‍यों को संभावित डेलिबरेबल के रूप में देखा जा रहा है। जोहानसबर्ग कार्यान्‍वयन योजना के विभिन्‍न अध्‍यायों के अंतर्गत मात्रात्‍मक एवं गुणात्‍मक दोनों लक्ष्‍यों के प्रस्‍ताव रखे गए हैं। उपलब्‍ध समय को ध्‍यान में रखते हुए प्रस्‍ताव किया जा रहा है कि रियो+20 के दौरान एसडीजी पर चर्चा हो और इसे अंगीकार किए जाने की बाद की तारीख निर्धारित करने के लिए एक प्रक्रिया शुरू की जाए जो वर्ष 2015 के बाद भी जारी रहे। भारत ऐसे किसी मात्रात्‍मक लक्ष्‍यों का निर्धारण किए जाने का समर्थन नहीं करता है, जिससे विकासशील देशों में कार्यान्‍वयन के तौर तरीकों का प्रावधान किए बिना ही आर्थिक विकास के मार्ग में बाधा उत्‍पन्‍न हो।

इसके अतिरिक्‍त रियो+20 में सतत विकास से संबद्ध किसी कार्यान्‍वयन आधारित निष्‍कर्ष में साझे परंतु भिन्‍न दायित्‍वों (सीबीआरडी) का अवश्‍य ध्‍यान रखा जाए। एमडीजी में विशेषकर विकासशील देशों की कार्यान्‍वयन प्रक्रियाओं पर ही बल दिया गया था, परंतु एसडीजी न सिर्फ सभी के लिए होनी चाहिए अपितु सीबीआरडी के सिद्धांतों के अनुरूप विकसित देशों को ही सर्वप्रथम लक्ष्‍यों को पूरा करने की दिशा में आगे आना चाहिए।

सतत विकास के लिए संस्‍थागत रूपरेखा सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए वैश्‍विक संस्‍थागत रूपरेखा (आईएसडी) को सुदृढ़ बनाने की आवश्‍यकता है। विभिन्‍न देशों का मानना है कि संयुक्‍त राष्‍ट्र की प्रणाली के अंतर्गत खण्‍डित सतत विकास रूपरेखा की उपस्‍थिति तथा अनेक बहुपक्षीय पर्यावरणीय करारों में बेहतर समन्‍वय एवं सामंजस्‍य स्‍थापित किए जाने की आवश्‍यकता है। सतत विकास से संबद्ध वर्तमान आयोग को सतत विकास परिषद (एसडीसी) में परिवर्तित करने अथवा यूएनईपी को एक छत्र अंतर्राष्‍ट्रीय संगठन के रूप में उन्‍नयित करने और/अथवा इकोसॉस तथा/अथवा के अंतर्गत एक उच्‍चस्‍तरीय राजनैतिक मंच का सृजन करने जैसे अनेक विचारों पर चर्चा की जा रही है, जिसका उद्देश्‍य सतत विकास को उच्‍चस्‍तरीय राजनैतिक दृश्‍यता प्रदान करना है।

अधिकांश विकासशील देशों का मानना है कि आईएफएसडी के प्रश्‍न को इसके आर्थिक, सामाजिक एवं पर्यावरणीय आयामों के बीच संतुलन स्‍थापित करने के विशेष संदर्भ में देखा जाना चाहिए, जबकि विकासशील देशों की जरूरतों एवं बाधाओं का समाधान करने, खासकर समर्थकारी एवं रियायती वित्‍तीय एवं तकनीकी संसाधनों के अंतरण तथा क्षमता निर्माण में सहायता पर भी विशेष बल दिया जाना चाहिए।


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