लैंगिक रुझान
शिव पुराण के अनुसार अतिसूक्ष शरीर को लिंगशरीर बताया है। ब्रह्माण्ड में सिवाय शिव और शिंवलिंग के कुछ भी नहीं है। आदि ओर अंत शिव ही है। शिंवलिंग की पूजा अर्चना, शिव लिंग के प्रति झुकाव भी लैंगिक रुझान कहलाता है। भौतिक दृष्टि से लैंगिक रुझान से आशय किसी पुरुष का परनारी अथवा एक ही लिंग के प्रति आकर्षण एव सेक्स नजरिया रखने से माना जाता है। नालंदा विशाल शब्दसागर नामक पुस्तक में लैंगिक रुझान का एक अर्थ परलिंग के प्रति गुप्तेन्द्रीयरुझान लिखा है। व्याकरण के अनुसार स्त्री-पुरुष में मिलन का आधार लैंगिक रुझान ही है। यह सबमें पाया जाता है। अमृतम मासिक पत्रिका फ़रवरी अंक 2011 में शिव रहस्योउपनिषद के संदर्भ से लिखा है कि सृष्टि में प्रत्येक स्त्री लिंग का पुरुष लिंग के प्रति सेक्सुअल या शारीरिक आकर्षण लैंगिक रुझान कहलाता है। यह लैंगिक रुझान इस चराचर जीव-जगत में सभी सुक्ष, स्थूल, कृमि, कीट पतंग आदि में एक दूसरे के प्रति लैंगिक रुझान पाया जाता है। लैंगिक रुझान द्वारा स्त्री-पुरुष के भेद का पता चलता है। शिंवलिंग के प्रति हिंदुओं की आस्था को भी लैंगिक रुझान की चर्चा मीमांसा में की गई है। इसे आध्यात्मिक लैंगिक रुझान कहा गया है। कैथ के वृक्ष को संस्कृत में लिंगक और लैंगिक कहा है। अंधकार, तिमिर को लिंगनाश लाख है। 18 पुराणों में से एक लिंग पुराण में लैंगिक का वर्णन मिलता है। अपामार्ग नामक जंगली जड़ी-बूटी को लिंगवर्धनि कहा गया है, जिसे बकरी देखकर आकर्षित हो जाती है। इसे भी लैंगिक रुझान बताया है। आयुर्वेद ग्रन्थ के चिकित्सा के अनुसार ज्यादा लैंगिक रुझान से आदमियों को लिंगवस्ति रोग हो जाता है। इसे लिंगाष्र्श गुप्त रोग कहते हैं। इस रोग में शिश्न पर अर्श जैसे मस्से पड़ जाते हैं। आदि शंकराचार्च ने हदेव की भक्ति में शिंवलिंग के प्रति गहरी आस्था की वजह से और लैंगिक रुझान के वशीभूत होकर लिंगाष्टक की रचना की थी। इस अमृतम शिव स्त्रोत में लिखा है- ।।अष्टदरिद्र विनाशन लिंगम।। अमृतम पत्रिका, ग्वालियर से साभार
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