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शिवरीनारायण का अन्नपूर्णा मन्दिर

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देवी अन्नपूर्णा

शिवरीनारायण का मां अन्नपूर्णा मंदिर

प्रो॰ अिश्वनी केशरवानी

महानदी के तट पर लक्ष्मीनारायण का अति प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर पूर्वाभिमुख है। इस मंदिर प्रांगण में मां अन्नपूर्णा का दक्षिणाभिमुख सौम्य मूर्ति से युक्त भव्य मंदिर है। इस मंदिर के परिसर में समस्त सोलह शक्तियां मेदनीय, भद्रा, गंगा, बहुरूपा, तितिक्षा, माया, हेतिरक्षा, अर्पदा, रिपुहंत्री, नंदा, त्रिनेती, स्वामी सिद्ध और हासिनी मां अन्नपूर्णा के साथ विराजित हैं। ``माता विशालाक्षि भगवान सुन्दरी त्वां अन्नपूर्णे शरण प्रपद्ये´´ ऋतुओं के संधिकाल में पड़ने वाले नवरात्रि में किये जाने वाले आध्यात्मिक जप तप अनुष्ठान और समस्त धार्मिक कार्य फलदायी होते हैं। शरदीय वसंत पर्व में मां अन्नपूर्णा प्रत्येक दिन अलग अलग रूपों में सुशोभित होती हैं। पहले दिन मां अन्नपूर्णा महागौरी, दूसरे दिन ज्येष्ठा गौरी, तीसरे दिन सौभाग्य गौरी, चौथे दिन श्रृंगार गौरी, पांचवे दिन विशालाक्षी गौरी, छठे दिन ललिता गौरी, सातवें दिन भवानी और आठवें दिन मंगलागौरी के रूप में विराजित होेती हैं। छत्तीसगढ़ की महिला समाज द्वारा यहां मंगलागौरी की पूजा और उसका उद्यापन किया जाता है।

त्रेतायुग में श्रीरामचंद्रजी जब लंका पर चढ़ाई करने जाने लगे तब उन्होंने मां अन्नपूर्णा की आराधना करके अपनी बानर सेना की भूख को शांत करने की प्रार्थना की थी। तब मां अन्नपूर्णा ने सबकी भूख को शांत ही नहीं किया बल्कि उन्हें लंका विजय का आशीर्वाद भी दिया। इसी प्रकार द्वापरयुग में पांडवों ने कौरवों से युद्ध शुरू करने के पूर्व मां अन्नपूर्णा से सबकी भूख शांत करने और अपनी विजय का वरदान मांगा था। मां अन्नपूर्णा ने उनकी मनोकामना पूरी करते हुए उन्हें विजय का आशीर्वाद दिया था। सृिष्ट के आरंभ में जब पृथ्वी का निचला भाग जलमग्न था तब हिमालय क्षेत्र में भगवान नारायण बद्रीनारायण के रूप में विराजमान थे। कालांतर में जल स्तर कम होने और हिमालय क्षेत्र बर्फ से ढक जाने के कारण भगवान नारायण सिंदूरगिरि क्षेत्र के शबरीनारायण में विराजमान हुए। यहां उनका गुप्त वास होने के कारण शबरीनारायण ``गुप्त तीर्थ´´ के रूप में जगत् विख्यात् हुआ। कदाचित इसी कारण देवी-देवता और ऋषि-मुनि आदि तपस्या करने और सिद्धी प्राप्त करने के लिए इस क्षेत्र में आते थे। उनकी क्षुधा को शांत करने के लिए मां अन्नपूर्णा यहां सतयुग से विराजित हैं।

शक्ति से शिव अलग नहीं हैं। अधिष्ठान से अध्यस्त की सत्ता भिन्न नहीं होती, वह तो अधिष्ठान रूप ही है। शिव एकरस अपरिणामी है और शक्ति परिणामी हैं। यह जगत परिणामी शक्ति का ही विलास है। शिव से शक्ति का अविर्भाव होते ही तीनों लोक और चौदह भुवन उत्पन्न होते हैं और शक्ति का तिरोभाव होते ही जगत अभावग्रस्त हो जाता है।

आनंद स्वरूपा भक्त वत्सला मां भवानी भक्तों के भावनानुसार अनेक रूपों को धारण करती है- दुर्गा, महाकाली, राधा, ललिता, त्रिपुरा, महालक्ष्मी, महा सरस्वती और अन्नपूर्णा। चूंकि शिव से इनकी सत्ता अलग नहीं है अत: इनको ``िशिव-शक्ति´´ कहते हैं। भगवान शंकराचार्य के अनुसार ``परमात्मा की अष्टाक्त नामावली शक्ति जिसने समस्त संसार को उत्पन्न किया है, अनादि, अविद्या, त्रिगुणाित्मका और जगत रूपी कार्य से परे है।´´ कार्यरूप जगत को देखकर ही शक्तिरूपी माया की सिद्धी होती है। जिस प्रकार बालक माता के गर्भ में नौ माह तक रहकर जन्म लेता है, उसी प्रकार तीनों लोक और चौदह भुवन शक्ति रूपी माता के गर्भ में स्थित है। मां अन्नपूर्णा हमारा पालन और पोशण करती है। गीता में श्रीकृष्ण जी कहते हैं-` हे अर्जुन! मेरी शक्ति रूपी योनि गर्भाधान का स्थान है और मैं उस योनि में चेतनरूप बीज स्थापित करता हूं। इन दोनों के संयोग से संसार की उत्पत्ति होती है। नेक प्रकार के योनि में जितने शरीरादि आकार वाले पदार्थ उत्पन्न होते हैं, उनमें त्रिगुणमयी शक्ति तो गर्भ धारण करने वाली माता है और मैं बीज का स्थापन करने वाला पिता हूं।`

``धान का कटोरा´´ कहलाने वाला छत्तीसगढ़ का सम्पूर्ण भूभाग मां अन्नपूर्णा की कृपा से प्रतिफलित है। छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिलान्तर्गत जांजगीर से 60 कि.मी., बिलासपुर से 64 कि॰मी॰ और रायपुर से 120 कि॰मी॰ व्हाया बलौदाबाजार की दूरी पर पवित्र महानदी के पावन तट पर स्थित शिवरीनारायण की पिश्चम छोर में रामघाट से लगा लक्ष्मीनारायण मंदिर परिसर में दक्षिण मुखी मां अन्नपूर्णा विराजित हैं। काले ग्रेनाइट पत्थर की 12 वीं शताब्दी की अन्यान्य मूर्तियों से सुसज्जित इस मंदिर का जीर्णोधार महंत हजारगिरि की प्रेरणा से बिलाईगढ़ के जमींदार ने 17वीं शताब्दी में कराया था। मंदिर परिसर में भगवान लक्ष्मीनारायण के द्वारपाल जय-विजय और सामने गरूण जी के अलावा दाहिनी ओर चतुर्भुजी गणेश जी जप करने की मुद्रा में स्थित हैं। दक्षिण द्वार से लगे चतुर्भुजी दुर्गा जी अपने वाहन से सटकर खड़ी हैं। मंदिर की बायीं ओर आदिशक्ति महागौरी मां अन्नपूर्णा विराजित हैं। इस मंदिर का पृथक अस्तित्व है। मंदिर के जीर्णोद्धार के समय घेराबंदी होने के कारण मां अन्नपूर्णा और लक्ष्मीनारायण मंदिर एक मंदिर जैसा प्रतीत होता है और लोगों को इस मंदिर के पृथक अस्तित्व का अहसास नहीं होता। अन्नपूर्णा जी की बायीं ओर दक्षिणाभिमुख पवनसुत हनुमान जी विराजमान हैं। पूर्वी प्रवेश द्वार पर एक ओर कालभैरव और दूसरी ओर शीतला माता स्थित है। मां अन्नपूर्णा और भगवान लक्ष्मीनारायण के विशेष कृपापात्र मंदिर के पुजारी और सुप्रसिद्ध ज्योतिशाचार्य पंडित विश्वेश्वर नारायण द्विवेदी के कुशल संरक्षण में यहां प्रतिवर्ष शरदीय और वासंतिक नवरात्रि में सर्वसििद्ध और मनोकामना ज्योति कलश प्रज्वलित की जाती है। मां अन्नपूर्णा की कृपा हम सबके उपर सदा बनी रहे, यही कामना है। उन्हें हमारा शत् शत् नमन पंडित लोचनप्रसाद पांडेय के शब्दों में :-

महामाया रूपे परमविशदे शक्ति ! अमले ! रमा रम्ये शान्ते सरल हृदये देवि ! कमले ! जगन्मूले आद्ये कवि विवुधवन्द्ये श्रुतिनुते ! बिना तेरी दया कब अमरता लोग लहते !!

रचना, आलेख, फोटो एवं प्रस्तुति

प्रो॰ अिश्वनी केशरवानी राघव, डागा कोलोनी, चांपा-495671 (छत्तीसगढ़)


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