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श्री केसर सिंह गुप्ता

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चित्र:श्री केसर सिंह गुप्ता .jpg

जीवन सार :-[सम्पादन]

अर्थशास्त्रीय पत्रकारिता में अपना बहुमूल्य योगदान देने वाले स्वतंत्रता सेनानी नंदन श्री केसर सिंह गुप्ता का जन्म हरियाणा की अमरभूमि पानीपत जिले के एक छोटे से गावं पट्टी कल्याना में २५ नवम्बर १९३४ को हुआ था, गरीब गोयल परिवार से ताल्लुक रखने के बाद भी इनका घर एक संस्कारी और सम्माननीय स्थान रखता था, जो इन्हे अपने बड़ों से विरासत में प्राप्त हुआ था, जो जीवन पर्यन्त इनके व्यक्तित्व की परछाईं रहा।


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श्री के.एस. गुप्ता एंड फेमिली
प्रारम्भिक जीवन[सम्पादन]

श्री केसर सिंह गुप्ता जी बचपन से ही ईश्वर प्रदत्त असाधारण प्रतिभा के धनी थे, इनके पिता का नाम श्री नेकीराम गुप्ता तथा माता का नाम श्री मति मनबहोती था। श्री गुप्ता जी अपनी तीन बहनों से छोटे और आठ भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। बड़ी बहनें शांति, शकुंतला, सावित्री, और उनके बाद चार भाई कैलाश चंद गुप्ता, धर्मपाल गोयल, सुरेंद्र गुप्ता, राजेंद्र गुप्ता फिर तीन छोटी बहनें संतोष, कृष्णा और राज थीं। ज्ञान विषयक सचेतना और तेज बुद्धि के कारण श्री गुप्ता परिवार में सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र रहते थे, कभी-कभी अपने बचपन के दिनों को याद करके वो कहते थे -तेरह सदस्यों वाले परिवार में जिंदगी यूँ आसान नहीं थीं। इनके पिता लाहौर में भारतीय रेल के माल सम्बंधित विभाग में एक क्लर्क (मुंशी) के पद पर कार्य करते थे, उनकी मासिक आय मात्र ३० रूपये थी, बड़ा परिवार और छोटी सी आय के बावजूद वो परिवार के सभी लोगो की आवश्यकताओं का पूरा ध्यान रखते थे, नौकरी के साथ-साथ इनके पिता जी ने देश की आजादी के लिए एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में भी अहम् योगदान दिया।

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श्री केसर सिंह गुप्ता

शिक्षा[सम्पादन]

एक कठिन और व्याकुल गुजरने वाली अनियमितता भरी जीवनशैली के बाद भी उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी, उन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा अपने जन्मज गावं पट्टी कल्याना से पूरी की। अपने बचपन के दिनों की शिक्षा को याद करके श्री केसर सिंह गुप्ता बताते थे की उनका विद्यालय उनके गावं से करीब तीन किलोमीटर दूर था, जिसे वे पैदल तय किया करते थे। उन दिनों वे स्कूल नंगे पैर ही जाया करते थे, गर्मियां और कठोर पड़ने वाली सर्दी उनके लिए अत्यंत दुःखद हुआ करती थी, गर्मियों में सुबह-सुबह स्कूल जाना प्रसन्नता से भर देता था पर दोपहर में वापस घर आना बेहद दुःखद होता था, तपती हुई जमीन से बचने के लिए वो पेड़ो की छाँव का सहारा लेते थे और भाग-भाग कर पेड़ों की छावं में अपने पैरों को धुप से बचाते थे। लेकिन बचपन अनमोल होता है, कठिन से कठिन परिस्थितियों को भी आनंदमयी खेल बना लेता है, जिसे बड़े-बुजुर्ग हानिकारक समझते है। धुप और छावं के इस खेल में गर्मियां और सर्दियाँ कब गुजर जाती पता ही नहीं लगता। अपने बाल्यकाल से ही वे शिक्षा के प्रति बड़ी गंभीरता से उन्मुक्त थे, कक्षा में अत्यन्त मेधावी होने, सीखने सम्बन्धी कौशल और ज्ञान उत्सुकता के कारण अपने अध्यापको से इन्हे सदैव ही सरहाना मिलती थी, प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद १९५४ में पंजाब यूनिवर्सिटी (विश्वविद्यालय) से इन्होने मैट्रिकुलेशन (विश्वविद्यालय-प्रवेश) की शिक्षा ली। वित्तीय बाध्यताएं होने के बाद भी उन्होंने उच्च शिक्षा का सपना नहीं छोड़ा और दिल्ली के रामजस विद्यालय में दाखिला लिया। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के दिनों में श्री गुप्ता को रामजस महाविद्यालय की ओर से वर्ष १९५४-५५ में दिल्ली की प्रथम एन सी सी (नेशनल कैडेट कोर-राष्ट्रिय सैनिक इकाई) बटालियन छावनी की प्रशिक्षण-विषयक शिक्षा में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने के लिए प्रथम सैनिक छात्र पुरष्कार से नवाजा गया।

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श्री केसर सिंह गुप्ता अपने पिता जी के साथ

पत्रकारिता के क्षेत्र में आगमन :-[सम्पादन]

श्री गुप्ता जी के अनुसार- शैक्षिक जीवन के बाद व्यस्क अवस्था नयी चुनौतियों का अम्बार होती है, रेलवे में होने के कारन इनके पिता जी का बार-बार तबादला होता रहता था, जिसकी वजह से उन्हें नए स्थानों पर जाना पड़ता था, नौकरी के दौरान लाहौर, रोहतक, कालका, शिमला, भटिंडा, मोरिंडा, सोनपत और दिल्ली जैसे स्थानों पर उनका रहना हुआ, अपने पिताजी के तबादले के साथ श्री गुप्ता जी और परिवार के लोंगो को भी उनके साथ यहाँ-वहाँ होना पड़ता था, करीब १९५० के समय में श्री गुप्ता जी ने अपने पिता जी के साथ काम करना शुरू कर दिया, और रेलवे में तकाज़ा सम्बन्धी पत्रों का प्रारूप तैयार करने लगे और यहीं से उनके साहित्यिक जीवन से जुड़े कार्यक्षेत्र की शुरुआत हुई,


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