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समकालीन भारतीय साहित्य

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कुछ लोग


कुछ लोगों का दिमाग नहीं घूमता लेकिन प्रिथवी घूमती है । जिन लोगों का घूमता है दिमाग वे बनाए रखते है प्रिथवी के साथ अपनी गतिशीलता । वे लोग ही जान पाते है प्रिथवी की परिवर्तन प्रक्रिया और सीख लेते है साधने की कला तथा बिठा लेते है प्रिथवी की तारतम्यता से अपनी तारतम्यता । वे ही बेध देते है ग्रह, नछत्रो की परिधि तथा खंडित करते है वज्र और बना देते है सुगम पथरीली राह । वे ही खंडित करते है शिव धनुष तथा पीते है समुद्र का पानी अजुरी मे तथा हो जाते है दधीचि । वे लोग ही बंधते है रावण तथा कसते है कंस और करते है सिंह की सवारी । हे ईश्वर ! घूम जाए उन लोगों का भी दिमाग जो नहीं घूम सका किसी विपदा के कारण वे भी प्राप्त कर सके प्रिथवी की तारतम्यता और बढा सकें अपनी गतिशीलता ।


Brijesh rai Arogayay nagar Gorakhpur 9935627500

                              जयहिन्द  

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