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सम्पदा व्रत

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विधि[सम्पादन]

भाद्रपद् मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को धन सम्पति की देवी लक्ष्मी जी का डोरा बाँधते हैं। तथा आश्विन मास कि कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को डोरा खोलते है। डोरा बाँधते समय और डोरा खोलते समय व्रत रखकर कथा सुनते हैं। व्रत में पूजन करने के बाद दिन में एक बार हलवा-पूरी का भोजन किया जाता हैं। डोरे में सोलह तार और सोलह गाँठे लगाकर हल्दी में रंग लेते हैं।

सम्पदा व्रतकथा[सम्पादन]

कथाः हमारे देश में एक राजा हुए थे - नल। उनकी पत्नी का नाम था दमयन्ती। एक बार चैत्र मास की प्रतिपदा को बुढ़िया रानी दमयन्ती के पास आई। उसने अपने गले में पीला गाँठ लगा डोरा बाँध रखा था। रानी ने उससे डोरी के बारे में पूछा तो वह बोली,” यह सम्पदा का डोरा हैं। इसके पहनने से घर में सुख सम्पति की वृद्धि होती है। रानी ने भी उससे एक डोरा लेकर अपने गले में बाँध लिया राजा नल ने रानी के गले में बधे डोरे के विषय में पूछा तो रानी ने बुढ़िया द्वारा बताई सारी बातें बता दी।

राजा कहने लगा,” तुम्हें किस चीज़ की कमी है जो तुमने डोरा बाँधा है।“ इतना कहकर रानी के मना करने पर भी राजा ने उस डोरे को तोड़कर फेंक दिया। रात्रि में राजा को स्वप्न में एक स्त्री बोली- ” मैं जा रही हूँ तथा दूसरी स्त्री बोली मैं आ रही हूँ।“ इस प्रकार इस बारह दिन तक रोज यही स्वप्न आता रहा। वह उदास रहने लगा। रानी के पूछने पर राजा ने रानी को स्वप्न की बात बता दी। रानी ने राजा से दोनों स्त्रियों का नाम पूछने को कहा। राजा द्वारा उनसे पूछने पर पहली स्त्री बोली मैं लक्ष्मी हूँ और दूसरी ने अपना नाम दरिद्रता बताया। दूसरे दिन राजा ने देखा की उसका सब धन समाप्त हो गया है। वे इतने निर्धन हो गये कि उनके पास खाने तक को न रहा। दुःखी मन ने राजा रानी जंगल में कन्द मूल खाकर अपने दिन बिताने लगे। राह में उनक पाँच बरस के बेटे को भूख़ लगी। तो रानी ने राजा से मालिन के यहाँ से छाछ माँगकर लाने को कहा। राजा ने मालिन से छाछ माँगी तो मालिन ने कहा छाछ समाप्त हो गई। आगे चलने पर राजा पर एक विषधर ने कुंअर को डस लिया। आगे चलने पर राजा दो तीतर मार लाया। रानी ने तीतर भूने तो तीतर उड गये। राजा स्नान कर धोती सुखा रहा था तो धोती को हवा उडा ले गई। तब रानी ने अपनी धोती फाड़कर राजा को दी। वे भुखे प्यासे आगे बढ गये तो मार्ग में राजा के मित्र का घर पडा। मित्र ने दोनो को कमरे में ठहराया। वहाँ लोहे के औजार रखे तो वे धरती में समा गए। चोरी का दोष लगने के भय से वहाँ से भागे। आगे चलकर राजा की बहन का घर पडा। राजा की बहन ने उन्हे एक पुराने महल में ठहराया सोने के थाल में उन्हे खाना भेजा तो थाल मिट्टी में बदल गया। राजा बड़ा लज्जित हुआ। थाल को वही जमीन में गाढकर भाग निकलें। आगे चलने पर एक साहुकार का घर आया। साहुकार ने राजा के ठहरने की व्यवस्था पुरानी हवेली में कर दी। वहाँ पर खंटी पर एक हीरो का हार टंगा था। पास ही दीवार पर एक मोर का चित्र बना था। वह मोर हार को निगलने लगा। यह देखकर वे वहाँ से भी चोरी के डर से भागे।

अब रानी की सलाह पर राजा जंगल में कुटिया बनाकर रहने की सोचने लगा। वे जंगल में एक सूखे बगीचे में जाकर ठहरे। वह बगीचा हरा भरा हो गया। बाग का स्वामी यह देखकर बड़ा प्रसन्न हुआ। स्वामी ने उनसे पूछा तुम दोनो कौन हो? राजा बोला हम यात्री हैं। मज़दूरी की खोज में आये हैं। स्वामी ने उन्हे अपने यहाँ नौकर रख लिया। एक दिन बाग की स्वामिनी बैठी-बैठी कथा सुन रही थी और डोरा ले रही थी। रानी के पूछने पर उसने बताया कि सम्पदा का डोरा हैं रानी ने भी कथा सुनकर डोरा ले लिया। राजा ने रानी से पूछा ये कैसा डोरा बाँधा हैं? रानी बोली यह वही डोरा जिसे आने एक बार तोडकर फेंक दिया था। और हमें इतनी विपत्तियाँ झेलनी पडी। सम्पदा देवी हम पर नाराज हैं। रानी बोली, ” यदि सम्पदा माता सच्ची हैं तो हमारे दिन फिर से लौट आएगे।“

उसी रात को राजा को स्वप्न आया। एक स्त्री कह रही हैं मैं जा रही हूँ, दूसरी स्त्री मैं आ रही हूँ। राजा के पूछने पर पहली स्त्री ने अपना नाम दरिद्रता बताया और दूसरी ने अपना नाम लक्ष्मी बताया। राजा ने लक्ष्मी से पूछा अब तो नहीं जाओगी। लक्ष्मी बोली यदि तुम्हारी पत्नी सम्पदा का डोरा लेकर कथा सुनती रहेगी तो मैं नहीं जाऊँगी। यदि तुम डोरा तोड दोगे तो चली जाऊँगी। बाग की मालकिन किसी रानी के हार देने जाती थी उस हार को दमयन्ती बनाती थी। रानी वह हार बहुत पसन्द आया। रानी के पूछने पर मालकिन बनाया कि हमारे यहाँ एक दम्पति नौकरी करते हैं उसने ही बनाया हैं। रानी ने बाग की मालकिन से दोनो के नाम पूछने को कहा। घर आकर दोनो के नाम पुछे त उसे पता चला कि वे नल दमयन्ती हैं बाग का मालिक उनसे क्षमा माँगने लगा तो राजा नल ने उससे कहा कि हमारे दिन खराब चल रहे थे इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है।

अब दोनो अपने राजमहल की तरफ चले। रास्ते में साहुकार का घर आया। वह साहुकार के यहाँ ठहरे और वहाँ देखा कि दीवार पर बना मोर नौलखा हार उगल रहा हैं। साहुकार ने राजा के पैर पकड लिये। आगे चलने पर बहन के घर पहुचा। राजा बहन के पुराने महल में ही ठहरा। राजा ने वह जगह खोदी तो हीरे से जडत थाल निकला। राजा ने बहन को बहुत सा धन भेट स्वरूप दिया। आगे चल मित्र के घर पहुँचकर उसी कमरे में ठहरा। वहाँ मित्र के लोहे के औजार मिल गये। आगे चलने पर उसकी धोती एक वृक्ष पर मिल गयी। नहा धोकर आगे बढने पर राजकुमार जिसको ने सर्प डस लिया था खेलता हुआ मिल गया। महलों में पहुचने पर रानी की सखियो ने मंगल गान गाकर उनका स्वागत किया। यह सब सम्पदा जी का डोरा बाँधने का ही फल था जो उनके बुरे दिन अच्छे दिनो में बदल गये।

बाहरी कड़ी[सम्पादन]

संपदा देवी व्रत


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