सम्राट अकबर और जैन आचार्य श्री जिनचंद्र सुरि
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मुगल काल और जैन धर्म
श्री जिनचंद्र सुरि श्री जिन माणिक्य सुरि के शिष्य थे आपका जन्म संवत 1595 में हुआ था । संवत 1604 में आपने दीक्षा ग्रहण की संवत 1612 में आप सुरि पद पर प्रतिष्ठित हुए । आपको बादशाह अकबर ने युग प्रधान का पद प्रदान किया था ।
बादशाह अकबर का दरबार भिन्न भिन्न प्रकार के दर्शन शास्त्रियो, विद्दानो, और राजनीति दक्ष लोगो से भरा रहता था । उसकी विधा रसिकता और धार्मिक स्वाधीनता अतुलनीय थी । बीकानेर के सुप्रसिद्द दीवान कर्मचंद जी बोथरा भी उसके दरबार मे आया जाया करते थे । एक दिन बादशाह अकबर ने दरबार में पुछा कि इस समय जैनियों में सबसे प्रभावशाली आचार्य कौन है, उत्तर मे किसी ने आचार्य श्री जिनचंद्र सुरि का नाम बतलाया और यह भी बतलाया कि आपके चहेते करमचंद जी बोथरा उनके शिष्य है । तब बादशाह अकबर ने मंत्री करमचंद जी बोथरा को आचार्य श्री जिनचंद्र सुरि को लाहौर बुलाने को कहा । बादशाह की आज्ञा से मंत्री कर्मचंद जी बोथरा ने आचार्य श्री जिनचंद्र सुरि को लाहौर चातुर्मास करने क़े लिये मनाया । बादशाह अकबर ने आपका बहुत सम्मान एवं स्वागत किया । बादशाह के आग्रह से आचार्य श्री जिनचंद्र सुरि ने लाहौर में चातुर्मास किया । बादशाह पर आचार्य श्री के उपदेशो का बहुत प्रभाव पड़ा । आचार्य श्री के कहने से उसने शत्रुंजय के सब जैन तीर्थों की व्यवस्था मंत्री कर्मचंद जी बोथरा के सूपुर्द करने का लिखित फरमान अपनी मुद्रा से अंकित कर आजमखान को दिया और कहा कि सब जैन तीरथ मंत्री कर्मचंद जी बोथरा को वक्ष दिये जाए एवं उनकी रक्षा की जाए ।
जब अकबर कश्मीर जाने लगे तो उसने सबसे पह्ले मंत्री करमचंद जी बोथरा के द्वारा आचार्य श्री जिनचंद्र सुरि जी को बुलाकर उनसे धर्म लाभ लिया । इसके उपलक्ष में आषाढ सुदी 9 से लेकर सात दिन तक सारे साम्राज्य मे जीवहिंसा न की जाये इस आशय का फरमान निकाल कर अपने ग्यारह सूबों मे भेज दिया । बादशाह के इस हुक्म को सुनकर उसको खुश करने के लिये उनके अधिनस्थ राजाओं ने भी अपने अपने राज्य की सीमा मे कहीं पंद्रह दिन, कहीं बीस दिन, कहीं एक साल तक जीव हिंसा न करने का फरमान निकाला । इसी सिलसिले में बादशाह अकबर ने आचार्य श्री जिनचंद्र सुरि को वि.स. 1646 में युग प्रधान का पद प्रदान किया और उनके शिष्य मुनि मानसिह को आचार्य पद प्रदान किया जो बाद में जिनसिंह सुरी के नाम से प्रसिद्द हुए । अकबर के पश्चात 1669 मे जहाँगीर बादशाह ने हुक्म निकाला कि सब साधुओं को देश से बाहर निकाल दिया जाये । इससे जैन मुनि मंडल मे बहुत भय हो गया । तब आचार्य श्री जिनचंद्र सुरि आगरा आकर बादशाह को समझाते है और हुक्म को रद्द करवाते है ।
पंजाब मे जैन धर्म का इतिहास बड़ा उज्जवल, महत्वपुर्ण और प्राचीनकाल से है । सबसे प्राचीन अवशेष मुगल सम्राट अकबर के है । सम्भवतया खोज करने पर इससे भी पुराने अवशेष मिल जाये । लाहौर के पुराने जैन घराने श्वेताम्बर जैन धर्म को मानने वाले ओसवाल है जिनको यहां की आम बोलचाल मे भाबड़े कहते है । लाहौर नगर के जिस भाग में ओसवालों की बस्ती थी, उसे थड़ियाँ भाबड़ियाँ कहते थे जिसे बाद मे जैन स्ट्रीट कहने लगे थे ।
लाहौर से ७-८ मील दुर दक्षिण की तरफ एक गांव है जिसका नाम भाबड़ा है । शायद यहां भाबड़ा - ओसवालो की बस्ती होगीं जिससे यह नाम पड़ा है । भाबड़ा ग्राम में मंत्री कर्मचंद बोथरा ने आचार्य जिनकुशल सुरि क़े चरणबिम्ब स्थापित किये थे ।
अकबर के बेटे सलीम (जहांगीर) के यहां मूल नक्षत्र मे एक लड़की पैदा हुई ज्योतिषियों ने बतलाया कि यह लड़की अपने माता पिता के लिये कष्टप्रद होगी, उसके लिये कुछ उपाय करना चाहिये । तब अकबर के गुरु श्री भानुचंद्र जी ने सलाह दी कि श्री जैन तीर्थंकर भगवंतो की अष्टोत्तरशत स्नान पूजा कराने से मूल नक्षत्र का प्रभाव जाता रहेगा । सम्राट ने आदेश दिया कि फौरन जिन पूजा करवाई जाये । इस पूजा मे मंत्री श्री कर्मचंद जी बोथरा को भी बुलाया गया था । पूजा की समाप्ति पर श्री कर्मचंद जी बोथरा ने अकबर को हाथीं-घोडे भेंट किये । [१]
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- ↑ madhya asiya aur jain dharm