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सुबा देवहंस कषाणा

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सूबा देवहंस कषाणा
जन्म कुदिन्ना धौलपुर
व्यवसाय धौलपुर का क्रान्तिकारी राजा,[१]
प्रसिद्धि कारण 1857 स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी

देवहंस कषाणा ने मल्ल विद्या, लाठी, बनैती की कला सीखी और देवहंस की बाड़ी, बरोड़ी , धौलपुर, राजाखेड़ा, सेंपऊ-आगरा, मथुरा के दंगलेां में कुश्ती लड़ने की धाक जम गई। देवहंस के शरीर सौष्टव व वीरता की प्रशंसा सुनकर राणा भागवत सिंह ने उसे अंग्रेंजी फौज में भर्ती कराके प्रशिक्षण दिलाया । अंग्रेंजों को यह मालूम नहीं था कि यह सैनिक ट्रेनिंग लेकर 1857 ई0 में आगरे क्षेत्र से उनके राज्य को समाप्त कर देगा।[२] धौलपुर के राणा भगवत सिंह ने अपनी फौज का उसे सर्वोच्च सेनापति बना दिया। धौलपुर का शासक भगवंत सिंह था जिसने अंग्रेजो का साथ दिया देवहंस ने अश्वारोही दल बढ़ा कर फौजी छावनी का रूप दे दिया और देवहंस टंटकोर नामक की अलग ट्रांसपोर्ट कमान कायम की । जिसे धौलपुर के अंग्रेंज पोलिटिकल ऐजेंट ने वेलेजली की सहायक प्रथा नीति के विरूद्ध माना था। जिसकी शिकायत उसने बड़े लाट साहब से की थी । देवहंस ने 6 महीने में गुर्जरों की विशेष फौज तैयार की उसे प्रशिक्षण देकर और फौज साथ लेकर सरमथुरा पर धावा बोल दिया । किले को ध्वस्त करके धूल में मिला दिया और राजा को कैद कर लिया। झिरी सरमथुरा के किले की किवाड़ उतार लाए थे जो बाद में इन्होने अपने किले देवहंस गढ़ में लगाए गए थे जो आज भी देवहंस की विजय गाथा के प्रतीक हैं।[३]

देवहंस ने 1857 की क्रान्ति में आगरा जिले की 3/4 तहसीलों पर अधिकार करके इस क्षेत्र में अंग्रेंजी राज को समाप्त सा कर दिया था। दमनचक्र के दौरान अंग्रेज हकूमत ने अपने वफादार जमीदार हर नारायण की सहायता लेकर देवहंस को हराना चाहा मगर उसे स्वयं नीचा देखना पड़ा । इस लड़ाई में 3000 बन्दूकें, 2 स्टेनगन तथा 2 लाख की सम्पति सूबा देवहंस के हाथ लगी । इण्डियन एम्पायर के लेखक मार्टिन्स ने इस सम्बन्ध में लिखा है गुर्जरों के सिवाय हिन्दू जनता में किसी ने भी विद्रोहियों का साथ नहीं दिया । विद्रोह की आग घंटों में मेरठ से दिल्ली, दादरी, बुलन्दशहर, आगरा, सहारनपुर तक सामूहिक रूप से फैल गई।[४][५] धौलपुर के सूबा देवहंस ने आगरे की तहसीलों पर कब्जा कर लिया।[६] झिरी सरमथुरा की विजय के पश्चात देवहंस को धौलपुर राज्य का सूबा नियुक्त हुआ और धौलपुर का राजा बन गया और वह सूबा देवहंस के नाम से प्रसिद्ध हो गया।

धौलपुर का देवहंसगढ किला[सम्पादन]

सूबा देवहंस ने देवहंसगढ़ नामका किला बनाया जो धौलपुर से लगभग 15 मील दूर है। किला बहुत भव्य एवं सुन्दर है। किले का मुख्य द्वार मुगलकालीन जैसा है परन्तु उसकी बनावट भारतीय हिन्दू किलों के समान है। द्वार पर द्वारपालों के लिए प्रकोष्ट बने हैं। इस द्वार के उपर पंचखंडा महल जो दरबार हाल रहा होगा । दुर्ग लाल पत्थर का बना है, खम्भों पर नक्काशी शहतीर डालकर पटिटयों से छत बनाई गई है। शिल्पकला देखते ही बनती है। सारे चैक में चैकोर बावड़ी है जिसमें पानी भरा हुआ है। इस चैक से लगी के बाद एक तीन हवेली है जो रनिवास और रहवास के लिए काम में लाई जाती थी हवेली के अन्दर अनाज के लिए पत्थर की कोठी बनी हुई है। किले की चारदीवारी 20 फुट चौड़ी हैं चारों और गुम्बज है। किले के पश्चिम में अर्ध कलाकार एक लम्बा चैड़ा खाल है जिसे उतर पूर्व की ओर बांध की तरह बांधा है। इसमें पानी भरा रहता था। पूर्व की ओर भी एक तालाब है। दक्षिण का भाग खुला है। सामरिक दृष्टि से सूबा देवहंस का किला बहुत महत्वपूर्ण है। यह किला देवहंस के गांव कुदिन्नना से लगभग 3 मील दूर है। [७]

इन्हें भी देखें[सम्पादन]

१८५७ का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम धन सिंह गुर्जर


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