सैनिक क्षत्रिय वीर शिरोमणि राव हेमा गहलोत
वीर शिरोमणि राव हेमा गहलोत इतिहास
क्षत्रिय कुल भूषण वीर राव हेमा गहलोत (गुहिलोत) का सम्पूर्ण इतिहास । राव हेमा गहलोत का जन्म कुचेरा (नागौर) में पिता राव पदम जी गहलोत और माता गॅंवरी देवी (सोलंकी) के यहाँ हुआ। इनके पूर्वज ईशर जी गहलोत पुत्र राव आल्हा जी, जो राव काजल सिंह, जो चित्तौड़ से कुचेरा आये थे, जो बप्पा रावल जी के वंशज थे।
वीर राव हेमा गहलोत का शौर्य एवं वीरता
एक समय की बात है जब माता गँवरी देवी खेत में कृषि कार्य कर रही थी, उसी समय कुचेरा के राणा जय सिंह अपने सिपाईयों के साथ शिकार करने के लिए निकले हुए थे। राणा जी के सिपाईयों द्वारा गोपण (विशेष प्रकार का चमड़े से बना हुआ लम्बा रस्सी नुमा जिसमें कंकड़ को फंसा कर फेका जाता है) ये खरगोश पर चलाई जिससे घायल खरगोश दौड़ता हुआ क्षत्राणी गॅंवरी देवी की गोद में चला गया। गॅंवरी देवी ने उस खरगोश को अपनी गोद में (प्राण रक्षा हेतु) छुपा दिया। राणा जय सिंह ने खरगोश वापस करने की माँग की परन्तु गँवरी देवी ने खरगोश वापस देने से स्पष्ट मना कर दिया क्योकि यह मेरी शरण में आया हुआ है इसलिए इसे बचाना मेरा क्षत्रिय धर्म है परन्तु राणा जयसिंह और उनके सिपाईयों ने अपना अपमान समझते हुए जबरदस्ती छीनने की कोशिश की परन्तु क्षत्राणी गॅंवरी देवी ने विरोध किया। सिपाईयों के द्वारा अपनी माता के साथ झगड़े को देख राव हेमा गहलोत का खून खोल उठा। आपस में तलवारें खिच गई लड़ाई इतनी बढ़ गई कि कोई पीछे हटने को तैयार नहीं सैनिक क्षत्रिय राव हेमा गहलोत अपनी आन, बान शान की रक्षा और माता के साथ हुए अभद्र व्यवहार के कारण साहस और वीरता के साथ राणा जय सिंह से लड़ाई लड़ी।
जब सैनिक क्षत्रिय वीर शिरोमणि राव हेमा गहलोत की वीरता का पता बालेसर के ईन्दा राणा उगम सिंह प्रतिहार को चला तब उन्होने राव हेमा गहलोत को पत्र भेजा कि मंडोर में तुर्कों का कब्जा (ऐबक खान) और आये दिन अत्याचार, लूट-पाट, गौ भक्षण आदि चरम सीमा
पर है।
इस कारण हम आपकी वीरता और साहस को सुनकर आपको मंडोर आने का निमंत्रण देते है।
प्रधान नियुक्त करने के बाद क्षत्राणी पार्वती देवड़ा (पत्नी) तथा राव खेखो, नरसिंह, मोहन, तीथो (काका) थीरपाल, केलो, पोपो जी (पुत्र), अन्य परिवार के सदस्यों को दलबल सहित अपनी कुल देवी श्री बाण माता जी एवं ईष्ट देव काला गौरा भैरूजी की मूर्ति को छाबडी में डालकर कुचेरा से रवाना हुए , विक्रम संवत् 1446 चैत्र कृ. एकम (12 मार्च 1389 ) सोमवार को मूर्ति थापन कर शुक्ल पक्ष नवमी को मड़ोर में पुजा व प्राण प्रतिष्ठा की।
हेमा गहलोत के मण्डोर आगमन के कुछ वर्ष पश्चात दिल्ली में सल्तनत कमजोर होने से गुजरात के सूबेदार जाफर खां ने मण्डोर और नागौर का मुख्यत्यार बन बैठा और मण्डोर पर ऐबक खां को अपना हाकिम नियुक्त किया। ऐबक के हाकिम बनने के बाद वह कृषकों को ज्यादा लगान देने के लिए परेशान करने लगा, जिससे कृषक बर्बाद हो चुके थें। ईंदा परिहारों व मण्डोर के आस पास के जमीदारों में इतनी शक्ति नहीं थी कि वह इन तुर्कों से मुकाबला कर सके। ऐबक ने मण्डोर के भोमियों जागीरदारों से साधारण कर के अलावा अपने घोड़ों के लिए घास की 100 बैल गाड़ियों की मांग की परन्तु इन लोगों ने तुर्क ऐबक को अतिरिक्त लगान देने से मना कर दिया। कृषकों ने लगान अपने ईंदा परिहारों से लेने को कहा, ऐबक ने इस शर्त को नहीं माना और 100 गाड़ियों घास के लिए दबाव बनाता रहा। बढ़ती हुई परेशानी को देखते राव हेमा गहलोत की प्रधानी में ईंदा शाखा के मुखिया उगम सिंह ने एक युक्ति सोची। ऐसे तो ये परेशान करेगा क्यों न इस पर योजना बनाकर आक्रमण कर इन तुर्कों को यहां से हमेशा हमेशा के लिए भगा कर मण्डोर पर पुनः कब्जा किया जाए।
योजना अनुसार उन्होंने गांवों से 500 जंगी योद्धाओं को एक एक बैल गाड़ी में चार चार जवानों को हथियार सहित घास के बोरों में छुपा दिया और बैल गाड़ी हांकने वाले जवान को भी फूल पत्तों से ढके हथियार के साथ 100 गाड़ियों में 500 जवानों को मण्डोर किले के दरवाजे पर खड़ी कर दी। हाकिम ऐबक से कहा मुजरा लायक घास लेकर आए हैं, आपकी नजर पेश है। ऐबक के भांजे ने क्रूरता दिखाते हुए एक भाला घास में मारा जो एक क्षत्रिय योद्धा की जांघ में लगा उसने बड़ी चतुराई से खून पोछ कर भाले को बाहर जाने दिया। भाले के देर से व कठिनाई से निकलने में गाड़ियों को घास से खूब भरी समझ हाकिम का भानजा उन्हें अन्दर ले गया जहां गाड़ियों के खुलते ही 500 सैनिकों ने घास में से निकल कर जोशीले नारे (आयो लड़णो फतह कर दो) के साथ तुर्कों पर काल बनकर बरस पड़े और ऐबक के सैनिकों को मार गिराया। मण्डोर के पूरे किले में घूम-घूम कर कत्लेआम किया। ऐबक और उनके साथियों को मार मण्डोर किले को पुनः अपने अधीन कर लिया। मण्डोर से तुर्की का सफाया कर विदेशी दास्ता से मुक्त करवाया। जिस के उपलक्ष में आज भी होली के अगले दिन राव जी की गैर के रूप में सैनिक क्षत्रिय समाज का विजय जुलूस निकाला जाता है जो कि (मंडोर के सभी गहलोत सैनिक क्षत्रिय वीर शिरोमणि राव हेमा गहलोत के वंशज है) मंडोर के खोखरिया बेरा से शुरू होकर मंडावता बेरा, भियाली बेरा , गोपी का बेरा, बड़ा बेरा, फूलबाग बेरा, फतेह बाग, आमली बेरा, भलावता बेरा से होकर मंडोर उद्यान से होते हुए काला गौरा भैरूजी मन्दिर के आगे धोक देकर जनाना महल में नाग कुंड में इसका समापन होता है। जिसमे सर्वप्रथम राव बनने का अधिकार दंत कथाओं के अनुसार गोपी का बेरा को था तत्पश्चात फुलबाग बेरा को प्राप्त हुआ और वर्तमान में खोखरिया बेरा के नवविवाहित गहलोत वंशी क्षत्रिय जो आमली बेरा के बुजुर्गों (गहलोत) द्वारा छापा लगाकर एक दिन का राव बनाया जाता है और मंडावत बेरा राव जी की रक्षा करता है, गोपी बेरा, बड़ा बेरा, आमली बेरा, भियाली बेरा, फुलबाग बेरा, पदाला बेरा, नागौरी बेरा (मंडोर नाग कुंड की रक्षा करते हैं), राव जी की गैर में मुख्य भूमिका निभाते हैं और फागण के गीत और ढोल, चंग की थाप तथा घुघरे (रमजोड़) की झंनकार के साथ विजय जुलूस निकाला जाता है।
राव हेमा गहलोत के साहस और शौर्य व पराक्रम से राज्य स्थापित हुआ. परन्तु ईंदा परिहारों के पास इतनी शक्ति नहीं थी पुनः ईंदा परिहारों कि पुनः प्राप्त सत्ता को संभाल सके क्योंकि नागौर पर अभी भी शक्तिशाली तुर्कों की सत्ता कायम थी। उधर चित्तौड़ के राणा भी मण्डोर की सत्ता हथियाने के फिराक में थे पर ईंदा परिहारों ने विचार किया कि तुर्कों से सत्ता बचाना नामुमकिन है क्यों न शक्तिशाली हो रहे राठौड़ों को मण्डोर का राज्य राव चूडा को सौंप दे। ईंदा परिहार ने अपनी राजकुमारी की शादी राव चुंडा से की ओर मण्डोर दहेज में देदिया। प्रधान राव हेमा गहलोत ने बुद्धिमता रणकौशल व दूरदर्शिता का परिचय देते हुए राव चूडा का राजतिलक किया । ताकि मंडोर को तुर्कों के हमलों से बचाया जा सके। राव भाटों की उपलब्धि बहियों के अनुसार राव हेमा गहलोत ने चूंडा जी को राज तिलक किया और राव चूंडा जी ने अपने इकरार के माफिक जो पौष वदि 10 संवत 1449 (08 दिसम्बर 1392 बुधवार) में हुआ राव हेमा गहलोत को मण्डोर से सालोड़ी गांव तक कृषि भूमि माफी दी थी। सैनिक क्षत्रिय राव हेमा गहलोत कुचेरा उड़ा जीमाय ने आपरी जमीन से सीलो लिखत मण्डोर आवास रो नाम मंडाय ने 5 घोड़ा जोत रथ.15 सेर तांबा से तांबा पत्र राव जी ने दीनो मण्डोर के खेड़े राव चुंडा के वारे।
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