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हिन्दी भाषा के विविध रूप

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हिन्दी भाषा के विविध रूप वस्तुतः जितने व्यक्ति हैं, उतनी भाषाएं हैं, कारण यह है कि किन्हीं दो व्यक्तियों के बोलने का ढंग एक नहीं होता। इसका प्रमाण यह है कि अंधकार में भी किसी की वाणी सुनकर हम उसे पहचान लेते हैं।यह अन्तर केवल बोलने के ढंग से ही नहीं, उच्चारण, शब्द भंडार, यहां तक कि वाक्य विन्यास में भी देखा जाता है। साहित्य में इसी का अध्ययन शैली के अंतर्गत होता है। प्रेमचंद्र की भाषा प्रसाद से भिन्न हैऔर पन्त की निराला से।हिंदी का प्रयोग तो यों सभी करते हैं, फिर यह अंतर क्यों ? जो इन लेखकों या कवियों की रचनाओं से परिचित है, वे दो - चार पंक्तियां पढ़ते - पढ़ते भी अन्यास कह देते हैं कि यह अमुक की भाषा है। प्रेमचंद और प्रसाद की भाषा मे किसी को भ्रम नहीं हो सकता। यह इसलिए कि उस भाषा के पीछे उनका व्यक्तित्व है व्यक्तित्व का यह प्रभाव शिक्षित व्यक्तियों की ही भाषा में नहीं, बल्कि अशिक्षितों की भाषा में भी उसी रूप में पाया जाता है।जिसका जैसा व्यक्तित्व है, उसकी भाषा उसी सांचे में ढल जाती है। इस तथ्य को स्वीकार कर लेने पर भाषा के अनंत रूप हो जाते हैं ; वस्तुतः उसके अनंत रूप है भी। भाषा का आभिभाव व्यक्ति में होता है,इसलिए भाषा की उत्पत्ति का आधार वही है, किंतु उसका प्रेरक तत्व समाज है क्योंकि भाषा का उपयोग सामाजिक योग - क्षम के लिए किया जाता है। भाषा के वैयक्तिक और सामाजिक पक्षों की चर्चा अंशत: पहले भी हो चुकी है।भाषा के रूपों पर विचार करते समय इन दोनों पक्षों को ध्यान में रखना आवश्यक है। ये दोनों पक्ष भाषा के पूरक हैं, एक के बिना दूसरे की सत्ता ही संभव नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति की भाषा भिन्न होती है।यदि इस तथ्य तक ही अपने को सीमित रखें तो भाषा के भी अनंत भेद मानने होंगे। एक दृष्टि से यह सही है, किंतु सामाजिक दृष्टि से विचार न करना दृष्टि की एकांगिता का घोतक होगा।वक्ता के भेद से भाषा के अनेक रूप हो जाते हैं। जिस प्रकार व्यक्ति की निरपेक्ष सत्ता नहीं है, उसी प्रकार उसकी भाषा की भी निरपेक्ष सत्ता नहीं है। विभिन्न दृष्टियों से देखने पर एक ही व्यक्ति विभिन्न श्रेणियों में आता है; उदाहरणार्थ,शिक्षा, संस्कृति, व्यवसाय, वातावरण, पर्यावरण, आदि के भेद से व्यक्ति की स्थिति और संस्कार में भेद पड़ता है जिसका अनिवार्य प्रभाव भाषा पर पड़ता है। अंग्रेजी पढ़ें सभी लोग एक ही भाषा का व्यवहार नहीं करते। डॉक्टर की भाषा से वकील की भाषा भिन्न होती है तो इन्जीनियर की भाषा से भाषाविज्ञानी की। स्थूल दृष्टि से देखने पर सभी अधित और शिक्षित हैं, किंतु उनके विशेषीकरण का प्रभाव उनकी भाषा में भी परिलक्षित होता है। भाषा के पार्थक्य मे उपर्युक्त कारणों के अतिरिक्त इतिहास, भूगोल, राजनीतिक, आर्थिक स्थिति, सामाजिक स्थिति, आदि का भी पर्याप्त प्रभाव पाया जाता है। भाषा के रूपों का विचार करते समय इन सारी बातों को स्मरण रखना आवश्यक है।भाषा के तीन रूप होते हैं- वाणी, भाषा और अधिभाषा; अर्थात भाषा की स्थिति तीन प्रकार से संभव है -- व्यक्ति में, समुदाय में, और सामान्य अमूर्त रूप में।सामान्य या अमूर्त रूप भाषा की वह व्यापकता है जिसमें भेद का अवकाश नहीं है। वहां पहुंचकर भाषा निरुपाधी हो जाती है, किंतु शेष दो व्यावहारिक हैं और उन पर विचार किया जा सकता है। परिनिष्ठत भाषा-भाषा का आदर्श रूप वह है जिसमें वह एक वृहत्तर समुदाय के विचार - विनिमय का माध्यम बनती है, अर्थात उसका प्रयोग शिक्षा, शासन, और साहित्य रचना के लिए होता है। हिंदी, अंग्रेजी, रूसी, फ्रांसीसी इसी श्रेणी की भाषाएं हैं। भाषा के इस रूप को मानक, आदर्श या परिनिष्ठित कहते हैं। जो अंग्रेजी के ' स्टैंडर्ड ' शब्द का रूपान्तर है। परिनिष्ठित भाषा विस्तृत क्षेत्र में प्रयुक्त और व्याकरण से नियंत्रण होती है । विभाषा ( बोली )-एक परिनिष्ठित भाषा के अंतर्गत अनेक विभाषाएँ या बोलियां हुआ करती है। भाषा के स्थानीय भेद से प्रयोग भेद में जो अंतर पड़ता है, उसी के आधार पर विभाषा का निर्माण होता है। जैसा हमने अभी देखा है, प्रत्येक व्यक्ति की भाषा दूसरे व्यक्ति से भिन्न होती है। ऐसी स्थिति में यह असंभव है कि बहुत दूर तक भाषा की एकरूपता कायम रखी जा सके। स्वभावत: एक भाषा में भी कुछ दूरी पर भेद दिखायी देने लगता है। यह स्थानीय भेद, जो मुख्यतः भौगोलिक कारणों से प्रेरित होता है, विभाषाओं का सर्जक बनता है। उदाहरणार्थ - खड़ी बोली - जाता हूँ। ब्रजभाषा - जात हौं। भोजपुरी - जात हई। मगही - जा ही। इन चारों वाक्यों को देखने से भी भाषा का रूप स्पष्ट हो जाता है स्थान भेद से एक ही क्रिया विभिन्न रूप धारण कर लेती है फिर भी यह ग्रुप इतने भी नहीं है कि परस्पर समझ में ना आए बोधगम्यता रहते हुए स्थानीय भेद को भी विभाषा कहते हैं। इस कसौटी पर उपरिलिखित चारों वाक्य खरे उतरते हैं। यही भेद जब इतना अधिक हो जाता है कि समझ न आये तो वह विभाषा का नहीं, भाषा का भेद बन जाता है। उदाहरणार्थ, ' जाता हूँ ' के बदले यदि 'आई गो ' कहें तो दोनों में कोई सम्बन्ध नहीं रह जाता। ' जाता हूँ ' समझने वाला यदि अंग्रेजी नहीं जानता तो ' आई गो ' नहीं समझ सकता। भाषा भेद और भी विभाषा भेद का अन्यतम आधार बोधगम्यता है। प्राय: विभाषाओं मे से ही कोई परिस्थिति की अनुकूलता से भाषा बन बैठती है। भाषा और विभाषा का अन्तर बहुव्यापकता और अल्पव्यापकता का है जिसके मूल में भौगोलिक सीमा काम करती है। अंग्रेजी में विभाषा को 'डायलेक्ट ' कहते हैं।


भाषा का सर्जनात्मक आचरण के समानान्तर जीवन के विभिन्न व्यवहारों के अनुरूप भाषिक प्रयोजनों की तलाश हमारे दौर की अपरिहार्यता है। इसका कारण यही है कि भाषाओं को सम्प्रेषणपरक प्रकार्य कई स्तरों पर और कई सन्दर्भों में पूरी तरह प्रयुक्ति सापेक्ष होता गया है। प्रयुक्ति और प्रयोजन से रहित भाषा अब भाषा ही नहीं रह गई है।भाषा की पहचान केवल यही नहीं कि उसमें कविताओं और कहानियों का सृजन कितनी सप्राणता के साथ हुआ है, बल्कि भाषा की व्यापकतर संप्रेषणीयता का एक अनिवार्य प्रतिफल यह भी है कि उसमें सामाजिक सन्दर्भों और नये प्रयोजनों को साकार करने की कितनी संभावना है।इधर संसार भर की भाषाओं में यह प्रयोजनीयता धीरे-धीरे विकसित हुई है और रोजी-रोटी का माध्यम बनने की विशिष्टताओं के साथ भाषा का नया आयाम सामने आया है : वर्गाभाषा, तकनीकी भाषा, साहित्यिक भाषा, राजभाषा, राष्ट्रभाषा, सम्पर्क भाषा, बोलचाल की भाषा, मानक भाषा आदि। बोलचाल की भाषा ‘बालेचाल की भाषा’ को समझने के लिए ‘बोली’ (Dialect) को समझना जरूरी है। ‘बोली’ उन सभी लोगों की बोलचाल की भाषा का वह मिश्रित रूप है जिनकी भाषा में पारस्परिक भेद को अनुभव नहीं किया जाता है।विश्व में जब किसी जन-समूह का महत्त्व किसी भी कारण से बढ़ जाता है तो उसकी बोलचाल की बोली ‘भाषा’ कही जाने लगती है, अन्यथा वह ‘बोली’ ही रहती है। स्पष्ट है कि ‘भाषा’ की अपेक्षा ‘बोली’ का क्षेत्र, उसके बोलने वालों की संख्या और उसका महत्त्व कम होता है। एक भाषा की कई बोलियाँ होती हैं क्योंकि भाषा का क्षेत्र विस्तृत होता है।जब कई व्यक्ति-बोलियों में पारस्परिक सम्पर्क होता है, तब बालेचाल की भाषा का प्रसार होता है। आपस में मिलती-जुलती बोली या उपभाषाओं में हुई आपसी व्यवहार से बोलचाल की भाषा को विस्तार मिलता है। इसे ‘सामान्य भाषा’ के नाम से भी जाना जाता है। यह भाषा बडे़ पैमाने पर विस्तृत क्षेत्र में प्रयुक्त होती है।


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