हिन्दी संरक्षण संघ
हिन्दी संरक्षण संघ हिन्दी को भारत की वास्तविक राजभाषा बनाने के लिये प्रयत्नशील एक हिन्दीसेवी संगठन है। इन्दौर के श्री मोहनलाल रावल इसके संस्थापक अध्यक्ष हैं।
परिचय[सम्पादन]
विश्व में सर्वाधिक बोली जानेवाली भाषा में हिंदी का स्थान तीसरा है, फिर हिंदी का संरक्षण किस बात का? और क्यों? यह प्रश्न उठना बहुत स्वाभाविक है। विगत वर्षों में हिंदी का प्रसार बहुत तेजी से हुआ है। हिंदी, अंग्रेजी का विकल्प बनने जा रही है, इसी बात ने अंग्रेजी के निहित स्वार्थी तत्वों की नींद हराम कर रखी है और वे पूरी ताकत से हिंदी को पीछे धकेलने में लग गए हैं। उनके प्रयासों को विफल करने के लिए ही हिंदी के संरक्षण की आवश्यकता है।
प्राचीनकाल से ही भारत ज्ञान का प्रतीक माना जाता रहा है। देश गुलाम हुआ और अंग्रेजों ने अपने स्वार्थ के लिए भारत पर अंग्रेजी थोप दी, जिसका नतीजा यह निकला कि जनता ज्ञान से दूर होती गई और उच्चवर्ग का ज्ञान पर एकाधिकार हो गया। आजादी के दीवानों का विचार था कि आजादी मिलने के बाद समाज के सब वर्गों का विकास हो, इसलिए ज्ञान उनकी भाषा में ही दिया जाए। भारत के अघिकतम लोगों की मातृभाषा और संपर्क-भाषा हिंदी है, इसलिए गाँधीजी ने हिंदी को ही राष्ट्र-भाषा का दर्जा दिया। आजादी के बाद उच्च-वर्ग अंग्रेजी की सीढ़ी से समृद्ध हो गया तथा आम आदमी ज्ञान के अभाव में और गरीब हो गया। सब ज्ञान प्राप्त करें, सब विकास करें, इसलिए राष्ट्र-भाषा हिंदी को प्रतिष्ठित करने हेतु ही हिंदी-संरक्षण-संघ की स्थापना की गई है।
वर्तमान भारत में अंग्रेजी का बोलबाला है। इंग्लैंड और अमेरिका अपनी औपनिवेशिक मानसिकता तथा आर्थिक लाभ के लिए भारतीय जनता को मानसिक गुलाम बनाकर अपना पिछलग्गू बनाना चाहते हैं। वे अंग्रेजी के हथियार से अपना हित पूरा कर रहे हैं। उनकी व्यर्थ हुई तकनीक और मशीनी कबाड़े से अकूत धन कमा रहे हैं। भारत पुरानी तकनीक के प्रयोग से हमेशा पिछड़ा ही रहेगा। भारत को विश्व का सिरमोर बनना है, तो अपने बलबूते पर हिंदी के माध्यम से विकास करना होगा, क्योंकि अंग्रेजी तो मात्र 10 प्रतिशत लोगों का विकास करती है और हिंदी 90 प्रतिशत लोगों का विकास करती है। हिंदी को प्रतिष्ठित करना, देश का विकास करना है। इसलिए हिंदी-संरक्षण-संध, हिंदी को राष्ट्र-भाषा के पद पर वास्तविक रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृत-संकल्प है।
हिंदी-संरक्षण-संघ की मान्यताएं[सम्पादन]
1-भारत का विकास हिंदी और भारतीय भाषाओं को ज्ञान और रोजगार का आधार बनाकर ही संभव है।
2-हिंदी और भारतीय भाषाओं की प्रतिष्ठा से ही भारत में सांस्कृतिक एकता संभव हैै।
3-हिंदी इतनी सक्षम है कि अब हर जगह अंग्रेजी की अनिवार्यता समाप्त होनी चाहिए। जिन्हें अंग्रेजी में काम करना हो, वे अंग्रेजी में काम करें, परंतु जो हिंदी में काम करना चाहते हैं, उन्हें हिंदी में ही काम करने दिया जाए। उन्हें अंग्रेजी में काम करने को मजबूर नहीं किया जाए। हिंदी ही अंग्रेजी का एकमात्र विकल्प है।
4-हिंदी के विकास में ही भारतीय भाषाओं का विकास निहित है और भारतीय भाषाओं के विकास में हिंदी का विकास है।
5-हिंदी को हिंग्लिश बनाकार सांस्कृतिक प्रदूषण फैलाया जा रहा है, इसे अनिवार्य रूप से रोकना होगा। स्वाभाविक रूप से आए हुए इंग्लिश के प्रचलित शब्दों से कोई परहेज नहीं होगा।
6-अंग्रेजी, विदेशी तथा भारत के उच्च-वर्ग का, शोषण करने का हथियार है। विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अंग्रेजी के हथियार से राष्ट्रीय हितों को नष्ट कर भारत का आर्थिक शोषण कर रही है। भारत को आर्थिक विकास के नाम पर मानसिक और आर्थिक गुलाम बनाया जा रहा है।
7-प्रतियोगी चयन परीक्षाओं में अंग्रेजी की अनिवार्यता के कारण 2 प्रतिशत अंग्रेजी जानने वाले लोगों का 100 प्रतिशत आरक्षण हो जाता है। यह सामाजिक अन्याय है।
हिंदी-संरक्षण-संघ के उद्देश्य[सम्पादन]
1-अंग्रेजी की अनिवार्यता समाप्त कर हिंदी को अंग्रेजी का विकल्प बनाना।
2-हिंदी को ज्ञान-विज्ञान तथा तकनीकी विषयों के शिक्षण का माध्यम बनाना, ताकि हिंदी, ज्ञान और रोजगार की भाषा बन सके।
3-हिंदी-भाषी राज्य तथा केन्द्र-शासित-प्रदेश अपना समस्त कार्य हिंदी में करें।
4-केंद्र सरकार हिंदी में कार्य करे। यदि अंग्रेजी में कार्य किया जाता है, तो अनिवार्य रूप से उसका हिंदी विकल्प भी होना चाहिए। केवल अंग्रेजी में कार्य करने को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।
5-भारत सरकार अन्तर-राष्ट्रीय मंचों पर हिंदी का प्रयोग करंे, ताकि भारतीय अस्मिता की पहचान हो।
6-इंडिया शब्द के स्थान पर भारत शब्द का प्रयोग अनिवार्य हो।
7-हिंदी तथा प्रादेशिक भाषाओं के साहित्य को बढ़ावा देना।
8-हिंदी के मानक स्वरूप को बनाए रखना तथा उसे अधिकाधिक सरल बनाना।
9-हिंदी को विकृत करने वाले क्रिया-कलापों से हिंदी की रक्षा करना।
10-शोध के माध्यम से हिंदी का सतत विकास करना, ताकि वह आधुनिक विज्ञान तथा तकनीकी के मामले में विश्व की किसी भी भाषा से कम नहीं हो।
11-हिंदी माध्यम से शिक्षण और प्रशिक्षण देना तथा प्रकाशन करना। हिंदी में काम करनेवालों को पुरस्कृत करना।
पता[सम्पादन]
हिंदी-संरक्षण-संघ
संस्थापक-अध्यक्ष
मोहन रावल
152/2, वैभवभवन, अमितेषनगर इंदौर, म.प्र. 452014
दूरभाष-
919893525253
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