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अशोक आत्रेय

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अशोक आत्रेय

अशोक आत्रेय
जन्म: 26 दिसम्बर 1944
बीकानेर (राजस्थान) (भारत)
कार्यक्षेत्र: हिन्दी साहित्य/ हिन्दी पत्रकारिता/ फिल्म
राष्ट्रीयता:भारतीय
भाषा:हिन्दी और अंग्रेज़ी
काल:आधुनिक काल
विधा:कहानी, उपन्यास, नाटक, निबंध, साक्षात्कार, कला-समीक्षा आदि
विषय:आधुनिक हिन्दी कथा लेखन
साहित्यिक
आन्दोलन
:
नई कहानी दौर के अलग कथाशिल्पी
प्रभाव:सेमुएल बेकेट, बर्तोल्ड ब्रेष्ट, हेनरी जेम्स, आल्बेयर कामू, फ्रेंज काफ्का
मेरे पिता की विजय / उदाहरण के लिए/ ऑल द ब्यूटीफुल डॉटर्स ऑफ़ मारा/ आदि


अशोक आत्रेय बहुमुखी प्रतिभा के संस्कृतिकर्मी सातवें दशक के जाने माने वरिष्ठ हिन्दी-कथाकार और (सेवानिवृत्त) पत्रकार हैं | मूलतः कहानीकार होने के अलावा यह कवि, चित्रकार, कला-समीक्षक, रंगकर्मी-निर्देशक, नाटककार, फिल्म-निर्माता, उपन्यासकार और स्तम्भ-लेखक भी हें|

जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि[सम्पादन]

इनका जन्म भारत के राज्य राजस्थान के बीकानेर में स्व. तुलेश्वर पूर्णिमाचंद्र गोस्वामी के यहाँ 26 दिसम्बर 1944 को हुआ| [१] "इनके पितामह स्व. पूर्णिमाचन्द्र और प्रपितामह बीकानेर के राजगुरु तांत्रिक स्व. भूऋषि गोस्वामी थे| मूलतः इनकी पारिवारिक-जड़ें आँध्रप्रदेश के तेलंगाना क्षेत्र से सम्बद्ध हैं - क्यों कि इनके पूर्वज तेलंगाना में कांचीपुरम के शिव कांची क्षेत्र में पाणंपट्ट के उच्चकुलीन पंचद्रविड़ वेल्लनाडू तेलगूभाषी ब्राह्मण थे, जो उत्तर भारतीय राजा-महाराजाओं से सम्मानित हो कर राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तर भारत के अन्य प्रान्तों में आ कर कुलगुरु, राजगुरु, धर्मपीठ निर्देशक, आदि पदों पर आसीन हुए थे |"[१] 'उत्तर भारतीय आन्ध्र-तैलंग-भट्ट-गोस्वामी-वंशवृक्ष' से ज्ञात होता है कि अशोक आत्रेय आमेर नरेश [[विष्णु सिंह]] के गुरु १७ वीं सदी के महान तांत्रिक शिवानन्द गोस्वामी | शिरोमणि भट्ट के वंशज हैं |

शिक्षा[सम्पादन]

इनकी प्रारम्भिक स्कूली शिक्षा विभिन्न राजकीय विद्यालयों में जयपुर में हुई, बाद में अपने पैतृक नगर बीकानेर में इन्होंने राजकीय डूंगर कॉलेज में जीव विज्ञान विषय का स्नातक स्तर तक आरंभिक अध्ययन किया|[२]

साहित्य[सम्पादन]

जयपुर और बीकानेर में रहते हुए पारिवारिक-संस्कार और आसपास के सघन साहित्यिक-परिवेश के प्रभाव से इन्होंने कॉलेज-जीवन की शुरुआत से ही में हिन्दी में अपने निजी ढंग के कहानी-लेखन की शुरूआत कर दी थी | अपनी आलोचना पुस्तक 'कहानी-दर्शन' के लिए [[राजस्थान साहित्य अकादमी]] से पुरस्कृत [[आचार्य भालचंद्र गोस्वामी 'प्रखर']] और प्रकाश परिमल लेखन में इनके प्रेरणा स्रोत रहे

पत्र-पत्रिकाओं में कहानियाँ[सम्पादन]

सन १९६४ से इनकी कहानियां हिन्दी की प्रायः सभी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लगातार छपने लगीं| 'सारिका', 'माध्यम', 'आवेश', 'नई कहानियां', 'कहानी', 'क ख ग', 'ज्ञानोदय', 'अणिमा' 'कल्पना', 'वातायन', 'लहर', 'कहानियां, 'माया', 'गल्प-भारती', 'उत्कर्ष', मधुमती , बिंदु, कला-प्रयोजन आदि अनेक साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित[३] इनकी नई शैली और अप्रचलित कथावस्तु की अनेक आधुनिक कथाओं ने संपादकों और समीक्षकों का ध्यानाकर्षित किया| हिन्दी में यह समय नई कहानी आन्दोलन का उत्तर-काल था| वह 1964 से 1979 के मध्य अपने सक्रियता के दौर में सबसे ज्यादा छपने वाले कुछ कहानीकारों में से रहे हैं, जिन्होंने अज्ञात कारणों से प्रकाशन और सक्रिय-कहानी-लेखन से एकाएक सन्यास ले लिया|

समीक्षा[सम्पादन]

इनके कथा-साहित्य की विशेषताओं पर कमलेश्वर, भीष्म साहनी, प्रकाश परिमल, रमेश बक्षी, कृष्ण बलदेव वैद, प्रकाश आतुर और हेमंत शेष आदि कई साहित्यकार-समीक्षकों ने अलग-अलग साहित्य-प्रसंगों में स्फुट समीक्षात्मक टिप्पणियाँ लिखीं हैं | किन्तु इनकी रचनाओं पर कोई सुव्यवस्थित समालोचनात्मक मूल्यांकन अब तक सुलभ नहीं है|

कथा-ढंग[सम्पादन]

इनकी कथा-यात्रा चार दशकों से भी लम्बी है और इस यात्रा में उन्होंने कहानी में घटनाओं पर नहीं- पात्र / पात्रों की मानसिक-ऊहापोह और उनकी मन:ग्रंथियों के मनोवैज्ञानिक विश्लेषण पर ज्यादा ध्यान दिया है| अपनी कहानियों के माध्यम से वह मनुष्य के एकाकी और अकेलेपन की नियति के प्रश्न उठाते हुए हमें मानवीय-अनुभवों की लगभग अस्तित्ववादी संचेतना की सीमारेखा तक ले जाते हैं| यहाँ पारिवारिक-अलगाव, अवसाद, अकेलेपन, घुटन, कुंठा, जैसे सामाजिक और वैयक्तिक मनोवेगों का गहरा गद्यात्मक निर्वहन है, जहाँ आधुनिक-जीवन की पहचानहीनता और उसकी अस्मिता पर मंडराते संकट पाठक के सामने मूर्तमान होते हैं| व्यक्ति, परिवार, प्रेम, यौन, किशोर-मनोविज्ञान, घर, देह, स्त्री, समाज, समय-बोध, रचना-प्रक्रिया, यंत्रीकरण, वस्तु-चेतना, सब को यहाँ गहरी निरपेक्षता और भावुकताविहीन अंतर्दृष्टि के माध्यम से देखा गया है| वह कथा-तत्व को अधिकाधिक वस्तुनिष्ठ और 'क्षण' केन्द्रित रखने के पक्षधर कहानीकार हैं, उनकी आस्था और सोच, कहानी का पारंपरिक नेरेशन करने की बजाय 'कहानी' में उपस्थित 'वर्तमान' के विश्लेषण और उसके मनोवैज्ञानिक-मानसिक विस्तार में है| उनकी कहानी में आया समय-बोध दृश्य-केन्द्रित समय-बोध है जिसमें न अतीत के संकेत हैं, न अनदेखे भविष्य की चिंता; वह ठेठ 'अभी' और 'यहाँ' की कहानी है| हिन्दी में इस तौर-तरीके का लेखन कमतर कथाकारों के यहाँ हुआ है और इस अर्थ में अशोक आत्रेय अपने मौलिक कथा-ढंग से हिन्दी कहानी की सिम्फनी को कुछ नया, एक विवादी-स्वर देने वाले कलाकर्मी हैं|

अपने लेखन की प्रवृत्ति के आधार पर इन्हें कमलेश्वर द्वारा सारिका के माध्यम से आरम्भ समान्तर कहानी आन्दोलन का एक मुख्य कहानीकार भी माना जा सकता है |

इनकी एक प्रतिनिधि कहानी 'स्कूटर' और उस पर एक संक्षिप्त टिप्पणी यहाँ पढ़ी जा सकती है-[२]

पत्रकारिता और मीडिया-कर्म[सम्पादन]

आजीविका के लिए स्नातक-अध्ययन बीच में ही छोड़ कर इन्होंने हिन्दी-पत्रकारिता का कैरियर चुना और सर्वप्रथम अखिल भारतीय न्यूज़ एजेंसी हिंदुस्तान समाचार जयपुर और बाद में भोपाल में कुछ वर्ष उप-संपादक रहे| अनेक दशकों के अपने पत्रकारिता-कैरियर के दौरान आप दैनिक नवज्योति के विशेष संवाददाता, 'राष्ट्रदूत' दैनिक के स्तम्भ-लेखक, राजस्थान पत्रिका समूह के दैनिक अखबार हरियाणा पत्रिका चंडीगढ़ के रेजिडेंट संपादक, बांगड़ समूह के दैनिक 'अक्षर भारत' के रेजिडेंट-संपादक, दैनिक भास्कर दिल्ली और जयपुर के विशेष-संवाददाता/ फीचर सम्पादक के अलावा एक पंजीकृत 'स्वाधीन-पत्रकार' भी रहे हैं | इन्हें लाइफ टाइम बुक्स के लिए राज्य विपणन-प्रभारी और कुछ वक़्त वॉयस ऑफ अमेरिका के लिए स्ट्रिंगर/ संवाददाता रहने का भी अनुभव है|[४] इन दिनों अशोक आत्रेय भोपाल, लखनऊ और देवरिया से एक साथ प्रकाशित भारतीय संस्कृति पर केन्द्रित समाचार मासिक-पत्रिका 'दिग्दर्शक' के समन्वय-सम्पादक भी हैं|

स्तम्भ-लेखन[सम्पादन]

शहर सवाया, तिरछा पन्ना, केसर-क्यारी आदि नियमित स्तम्भ-लेखन से आत्रेय ने जयपुर के इतिहास, कला, वास्तुशास्त्र, गली-मोहल्लों, लोगों, संस्कृति और परंपरा पर कई शोधपूर्ण सचित्र आलेख लिखे हैं, जो (पंद्रह वर्ष की अवधि के दौरान) जयपुर के 'राष्ट्रदूत', 'नवज्योति' आदि दैनिक अखबारों में धारावाहिक रूप से प्रकाशित होते रहे हैं |


साक्षरता कार्य/ स्वयंसेवी संस्थाओं से सम्बद्धता[सम्पादन]

अशोक आत्रेय कुछ समय तक मोहन सिंह मेहता की उदयपुर स्थित स्वयंसेवी संस्था सेवा मंदिर और तिलोनिया किशनगढ़ अजमेर जिला स्थित संदीप राय|बंकर राय / अरुणा राय की संस्था SWRC (सोशल वर्क एंड रिसर्च सेंटर) में साक्षरता की ग्रामीण-शिक्षा परियोजनाओं से जुड़े रहे हैं| राजस्थान विश्वविद्यालय में स्व. डॉ॰ गोविन्द चन्द्र पाण्डेय के कार्यकाल में इन्हें NSS (राष्ट्रीय समाजकार्य संगठन) में राज्यसभा सदस्य, 'पेट्रियट' के प्रसिद्ध पत्रकार स्व. ऋषि कुमार मिश्रा| के सहयोगी रूप में साक्षरता मिशन-प्रभारी (समन्वयक) और जनसंपर्क अधिकारी के रूप में कामकाज करने का अवसर भी मिला|[५] एक और अंतर्राष्ट्रीय स्वयंसेवी संगठन CECOEDECON (सिकोईडीकौन) की चाकसू परियोजना के यह उपनिदेशक भी रह चुके हैं| वह कुछ समय तक जयपुर स्थित रामबाग पैलेस (ताज समूह होटल ) में इतिहासज्ञ के रूप में भी सम्बद्ध रहे हैं |

प्रकाशित पुस्तकें और प्रमुख रचनाएं[सम्पादन]

इनका पहला कहानी-संग्रह मेरे पिता की विजय [३] [४] राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर से प्रकाशित हुआ था, जिसमें १९६३-६४ और आगे के वर्षों की कहानियां संकलित थीं, दूसरा संकलन टाइम फीवर मोनोग्राफ राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर से ही छपा जिसमें इनकी कथा-यात्रा पर प्रकाश परिमल द्वारा लिखी दीर्घ आलोचनात्मक टिप्पणी के अलावा कुछ प्रतिनिधि कहानियां भी प्रकाशित थीं| इनका तीसरा कथा संकलन उदाहरण के लिए (विवेक प्रकाशन, जयपुर) से प्रकाशित हुआ- जिसमें सत्तर के दशक में प्रकाशित और चर्चित कई कहानियां शामिल थीं |

सन सत्तर के दशक में बाल-साहित्य पर लिखे इनके एक उपन्यास धरती का स्वर्ग (अलंकार प्रकाशन), (दिल्ली) को भारत सरकार के मानव संसाधन मंत्रालय का पुरुस्कार मिला |

इनकी लम्बी कविता का एक संग्रह अबूझ माड़ (प्रेरणा प्रकाशन, जयपुर) से प्रकाशित हुआ था, जिसमें विन्ध्य आदिवासी-जीवन के चित्रण को सम्पूर्ण मानवीय-जिजीविषा और भारतीय मनीषा के सांस्कृतिक-आलोक में देखा गया था |

उन्नीस सौ सत्तर के पहले दशक के दौरान सुप्रसिद्ध साहित्यिक मासिक 'लहर' में अलग-अलग समयों में छपी दो लम्बी कविताओं 'एक उदास कबूतर का पागलपन' और 'जलते हुए वसंत की चीख' तथा अंग्रेज़ी में प्रकाशित इनकी एक और लम्बी कविता "इनोसेंट एनार्किस्ट" [ वर्ष २०१० ][५] समकालीन जीवन-सन्दर्भों पर इनकी तीखी काव्यात्मक-प्रतिक्रियाएं हैं, जिनमें भारतीय-समाज की अनेकानेक विडंबनाओं को आधुनिक मुहावरे मेंअभिव्यक्ति दी गयी है | अपने सोच और कविता के रूप दोनों की मौलिकता को इन लम्बी कविताओं के अलावा 'अबूझ माड़ ' में भी पहचाना जा सकता है |

आत्रेय का लेखन बहुआयामी है| वह केवल इतिहास-संबंधी पत्रकारिता तक सीमित नहीं, वरन भारतीय संस्कृति के सांस्कृतिक निहितार्थों को भी अपना विषय बनाता है | उदाहरण के लिए ललिता-अर्चना की तांत्रिक परंपरा के सांस्कृतिक स्रोतों को ले कर शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के सन्दर्भ में इनकी एक सचित्र पुस्तिका (मोनोग्राफ) २००६ में '(पंचब्रह्मासनस्थिता महाराज्ञो) " ललिता [[त्रिपुर सुन्दरी]] " प्रकाशित हुई |[६]

प्रौढ़-शिक्षा और वयस्क-साक्षरता के क्षेत्र में सेवा मंदिर उदयपुर और अरुणा राय के सोशल वर्क एंड रिसर्च सेंटर, तिलोनिया द्वारा प्रकाशित इनकी कई पुस्तिकाएं[६] प्रकाशित हैं, जिनमें कुछ पुरस्कृत भी हैं| इन्हें अपने रचनात्मक योगदान के लिए 'तैलंग-कुलम' संस्था द्वारा 'लाइफ टाइम एचीवमेंट एवार्ड' से भी सम्मानित्त किया जा चुका है ! [७] [८] [९]

वर्ष २०१९ में 'बोधि प्रकाशन , जयपुर से प्रकाशित इनकी सम्पूर्ण उपलब्ध कहानियों का एक वृहद् ४०४ पेजी संचयन "आसमान के बिना" शीर्षक से लम्बी समीक्षात्मक भूमिका सहित [[हेमंत शेष ]] ने आकल्पित और सम्पादित किया है |


अशोक आत्रेय ने हिन्दी और अंग्रेज़ी दोनों भाषाओँ में लिखा है |

इनका एक सम्पूर्ण अंग्रेज़ी उपन्यास "ऑल द ब्यूटीफुल डॉटर्स ऑफ़ मारा" इन्टरनैट पर पुस्तकाकार सुलभ है [१०] [११] इनकी कवितायेँ, लघु-कथाएँ और अन्य लेखन; इन लिंकों पर देखे जा सकते हैं -

  • उपन्यास अंग्रेज़ी में: 'सेवन समर नाइट्स' [१२]
  • लम्बी कविता : 'इन्वर्टेड ट्री' [१३]
  • लघु कथाएँ : 'फोरकास्ट ऑफ़ एन आउल' :[१४]

वर्ष २०१५ में 'अम्बा पब्लिकेशंस ( जयपुर/ मुंबई से ) प्रकाशित इनका ४२३ पृष्ठीय अंग्रेज़ी उपन्यास 'ऑल दि ब्यूटीफुल डॉटर्स ऑफ़ मारा' भी अब किताब के रूप में सुलभ है|

जवाहर कला केन्द्र, जयपुर में २ अक्टूबर २०१३ को प्रदर्शित अशोक आत्रेय की एक फिल्म 'द इन्वर्टेड ट्री ' का एक बैनर, जो 'कृष्णायन' प्रेक्षागृह के बाहर प्रदर्शित हुआ

फिल्म-निर्माण[सम्पादन]

पिछले कुछ सालों से यह फिल्म-निर्माण और टेलीवीज़न के लिये आलेख-लेखन में सक्रिय हैं| इन्होंने सूरत के हीरा उद्योग, जयपुर में कुष्ठ रोगियों के स्वावलंबन और पुनर्वास, अजमेर की गंगा-जमनी संस्कृति, गुजरात में भूकंप के बाद पुनर्निर्माण के काम, द्वारिका के शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती, निजी स्तर पर भूमि और जल-संरक्षण के प्रयासों [१५], महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोज़गार गारंटी अधिनियम, गांधी-दर्शन [१६] आदि कई भिन्न विषयों पर फ़िल्में निर्मित और प्रदर्शित कीं हैं |

दूरदर्शन के राष्ट्रीय चैनल के लिए भारत के स्वाधीनता संग्राम पर एकाग्र भारतायन नामक १३ एपिसोडों की इनकी फिल्म-सीरीज[७] को व्यापक स्तर पर दर्शकों की सराहना मिली | इसी तरह गांधी-जयंती २०१३ पर इनकी एक फिल्म 'इन्वर्टेड ट्री' का प्रीमियर-प्रदर्शन जवाहर कला केंद्र जयपुर में हुआ था | राजकोट और अन्य स्थानों पर भी गांधीजी के जीवन दर्शन पर एकाग्र इस फिल्म का प्रदर्शन किया गया|[१७] (चित्र) इन्होंने इसके अलावा और कई यूमेटिक वीडियो फिल्मों का निर्माण और निर्देशन किया है जिनमें शिक्षा, समाज कार्य, संस्कृति-साहित्य की कार्यरत प्रतिभाओं के जीवन और कृतित्व पर केन्द्रित लघु फ़िल्में शामिल हैं|[१८]प्रकाश परिमल और हेमंत शेष की काव्य-यात्रा और लेखकीय व्यक्तित्व पर आत्रेय ने दो कलापूर्ण वृत्तचित्रों का निर्माण भी किया है |

आकाशवाणी और दूरदर्शन पर आपकी वार्ताएं, कवितायेँ और कहानियाँ वर्षों से सुनी-देखी जा रही हैं|

रंगकर्म[सम्पादन]

आधुनिक संवेदना के नाट्य-लेखन के प्रति भी इनकी रूचि गहरी है| 'काला-घोड़ा', 'भूखा भूकंप, प्यासी सुनामी', ' आदि इनके बहु-अंकीय सम्पूर्ण नाटक हैं| रंगकर्म और फिल्म को मिला कर बनाये 'थियेटर इंस्टालेशन' प्रयोग के रूप में 'भूखा भूकंप, प्यासी सुनामी' के प्रदर्शन पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र उदयपुर के तत्वावधान में दर्पण-सभागार और भारतीय लोक कला मंडल के उदयपुर प्रेक्षागृहों में सफलतापूर्वक हो चुके हैं|[८]

समीक्षा और कला[सम्पादन]

1966, 1968, 1974 और 1996 में बीकानेर में इन्होने अपनी कलाकृतियों का, जो मिश्रित-माध्यमों से निर्मित थीं, प्रदर्शन किया| इनका काम सीरी फोर्ट एरिया में स्थित कलादीर्घा में भी वर्ष 2009 में एकल प्रदर्शन के रूप में सामने आया था| इस प्रदर्शनी का उद्घाटन अपर्णा कौर ने किया था और कमलेश्वर ने इनके चित्रों पर टिप्पणी लिखी |[९]

कई पत्र-पत्रिकाओं के लिए समय समय पर कला-समीक्षा लिखने वाले अशोक आत्रेय कला पर प्रकाशित हिन्दी-पुस्तकों के समालोचक भी हैं|[१९] उन्होंने आधुनिक कला को 'लोकप्रिय' बनाने के अपने प्रयासों के अंतर्गत १९९४ में अपने फ्रांसीसी चित्रकार दोस्त डेनियल फिलोद के सहयोग से १२ फीट चौड़ा और १०० फीट लम्बा एक कैनवास सड़क पर बिछा कर जयपुर के १४ प्रसिद्ध चित्रकारों से कुछ ही घंटों में पूरा करवाया, जिसको ब्रिटिश हाई कमिश्नर और तत्कालीन संस्कृति मंत्री समेत सेंकड़ों प्रेक्षकों ने देखा![समाचार 'दैनिक भास्कर' ] दस हज़ार फुट लम्बे कागज़ के विशाल न्यूजपेपर रोल पर अशोक आत्रेय ने स्याही, जलरंग, पेस्टल आदि माध्यमों से अमूर्त चित्रांकन का सिलसिला कई साल पहले से आरम्भ किया हुआ है, जिसका प्रदर्शन अभी होना है|

आजकल अपने जयपुर स्थित निवास [२०]पर रह कर वह फिल्म-निर्माण की और कई लेखन-परियोजनाओं में पूर्णकालिक तौर पर सक्रिय हैं|

पता[सम्पादन]

  • डी- 38-39, देव नगर, टोंक रोड, जयपुर -३०२०१८ (राजस्थान) फोन 0141-2707555/ +91-9828402226
  • 3, 'अक्षर', राधाविहार, इस्कॉन मंदिर के पास, न्यू सांगानेर रोड, जयपुर-३०२०२० [२१]

सन्दर्भ[सम्पादन]

  1. 'तैलंग-वंश वृक्ष': 'उत्तर भारतीय आन्ध्र-तैलंग-भट्ट-गोस्वामी-वंशवृक्ष' : संपादक: बालकृष्ण राव: २०१२: पृष्ठ 71
  2. About the Poet : Innocent Anarchist: Three Chairs Publishers and Distributors, D-38-39, Dev Nagar, Tonk Road, Jaipur- Page 25-26
  3. About the Poet : Innocent Anarchist: Page 25-26
  4. A Poet of Protest : Innocent Anarchist: Three Chairs Publishers and Distributors, D-38-39, Dev Nagar, Tonk Road, Jaipur- Back Cover
  5. UOR Handbook : University of Rajasthan: Research and Reference: 1977)
  6. '(पंचब्रह्मासनस्थिता महाराज्ञो)'ललितात्रिपुरसुन्दरी' में लेखक द्वारा दिया गया 'आत्म-परिचय'
  7. '(पंचब्रह्मासनस्थिता महाराज्ञो)'ललितात्रिपुरसुन्दरी' में लेखक द्वारा दिया गया 'आत्म-परिचय'
  8. नाटक के प्रदर्शन पर उदयपुर में जारी ब्रोशर
  9. One Man Show : Exhibition Catalogue


बाहरी कड़ियाँ[सम्पादन]

  • अशोक आत्रेय से साक्षात्कार का वीडियो [२२]
  • अशोक आत्रेय का परिचय और कृतित्व [२३]
  • अशोक आत्रेय से इंटरव्यू [२५] [२६]
  • अशोक आत्रेय की कुछ कृतियाँ [२७]
  • अशोक आत्रेय का अंग्रेज़ी उपन्यास [२८]
  • अशोक आत्रेय से साक्षात्कार का वीडियो [२९]
  • अशोक आत्रेय का ब्लॉग [३०]
  • अशोक आत्रेय द्वारा आरम्भ एक ई-पत्रिका [३३]


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