You can edit almost every page by Creating an account. Otherwise, see the FAQ.

कालसर्पयोग

EverybodyWiki Bios & Wiki से
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

भारतीय फलित ज्योतिष के अनुसार कुण्डली में राहु और केतु के संदर्भ में अन्य ग्रहों की स्थितियों के अनुसार व्यक्ति को कालसर्प योग लगता है। कालसर्प योग को अत्यंत अशुभ योग माना गया है। ज्‍योतिष की प्राचीन पुस्‍तकों में कहीं भी कालसर्प योग का उल्‍लेख नहीं मिलता है। कुछ पुस्‍तकें सर्प योग के बारे में बताती हैं, लेकिन वह भी जातक कुण्‍डली के बजाय मण्‍डेन से संबंधित परिणाम देने वाला ही बताया गया है।

किसी व्यक्ति के जन्म के समय ब्रह्माण्ड में प्रमुख ग्रहों एवं नक्षत्रों की जो स्थिति होती है वही उस व्यक्ति के कुंडली में दर्ज हो जाती है। कह सकते हैं की जन्म के समय की ग्रह एवं नक्षत्र स्थिति का स्नैपशॉट (snapshot) होता है कुंडली।

भारतीय ज्योतिष के अनुसार किसी भी व्यक्ति के जीवन में 9 ग्रहों एवं 27 नक्षत्रों का विशेष प्रभाव पड़ता है। कुंडली के विभिन्न भावों में इन 9 ग्रहों की स्थिति के आधार पर बहुत सारे शुभ-अशुभ योगों का निर्माण होता है। यदि कुंडली में शुभ योग अधिक हों तो व्यक्ति अपने जीवन में कम परिश्रम करके भी अधिक सुख-साधन प्राप्त कर लेता है। वहीँ अगर अशुभ योग अधिक हुए तो जीवन में अधिक संघर्ष करना पड़ता है।

क्या है कालसर्प योग ?[सम्पादन]

भारतीय ज्योतिष में राहु और केतु को छाया ग्रह मन जाता है। इनका कोई भौतिक अस्तित्व नहीं है लेकिन यह व्यक्ति के जीवन पर व्यापक असर डालते हैं।

राहु और केतु ऐसे ग्रह हैं जो हमेशा एक दूसरे के सामने रहते हैं या यूँ कहें की एक दूसरे के सापेक्ष हमेशा 180 डिग्री पर होते हैं। यदि राहु कुंडली के पहले भाव में स्थित है तो केतु हमेशा सातवें भाव में होगा, यदि केतु ग्यारहवें भाव में है तो राहु हमेशा पांचवे भाव में स्थित होगा।

अब यदि किसी की कुंडली में बाकी सारे ग्रह राहु और केतु के axis के एक तरफ ही आ जाएँ तो यह एक योग का निर्माण करेगा जिसे हम कालसर्प योग के नाम से जानते हैं। उदहारण के लिए मान लेते हैं की किसी की कुंडली में राहु पंचम भाव में और केतु ग्यारहवें भाव में स्थित है। अब यदि बाकी सारे  ग्रह (सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र एवं शनि) राहु-केतु axis के एक ही तरफ यानी छठे, सातवें, आठवें, नौवें और दसवें भाव या फिर बारहवें, पहले, दूसरे, तीसरे और चौथे भाव में ही स्थित हो जाएँ तो उस कुण्डली में कालसर्प योग माना जायेगा।

कालसर्प योग के प्रकार[सम्पादन]

जन्म कुंडली में बारह भाव होते हैं। इन बारह भावों में राहु-केतु की स्थिति के अनुसार मुख्य तौर पर कुल बारह प्रकार के कालसर्प योग बनते हैं।

1. अनंत कालसर्प योग[सम्पादन]

लग्न कुंडली में प्रथम भाव में राहु और सप्तम  भाव में केतु बैठा हो और मध्य में सभी ग्रह हो तो अनंत नामक कालसर्प योग का निर्माण होता है। जब आपके कुंडली में अनंत नामक कालसर्पयोग निर्माण होता है तो आपको प्रायः शारीरिक सुख नहीं मिलता है, मन अशांत रहता है। किसी किसी व्यक्ति को मानसिक पीड़ा भी बहुत होती है। 

जी ने कई शास्त्र से अध्यन करने के बाद यह निष्कर्ष दिये यदि राहु प्रथम भाव में स्थित हो और केतु सप्तम भाव में, और उनके अक्ष के एक ही तरफ सारे अन्य ग्रह स्थित हो जाएँ तो अनंत कालसर्प योग बनता है।

2. कुलिक कालसर्प योग[सम्पादन]

यदि राहु दूसरे भाव में और केतु अष्टम भाव में स्थित हो तथा उनके बीच सारे अन्य ग्रह स्थित हो जाएँ तो कुलिक कालसर्प योग का निर्माण होता है।

3. बासुकी कालसर्प योग[सम्पादन]

जब कुंडली के तृतीय भाव में राहु और नवम भाव में केतु स्थित हों और उनके बीच सारे ग्रह आ जाएँ तो इस योग को बासुकी कालसर्प योग कहा जाता है इससे होने वाला हानि जैसे लंबी विमारि aadi

4. शंखपाल कालसर्प योग[सम्पादन]

यदि राहु चतुर्थ भाव में स्थित हो और केतु दशम भाव में और बाकी सारे ग्रह इन दोनों के अक्ष के एक ही तरफ स्थित हो जाएँ तो ऐसी स्थिति में शंखपाल कालसर्प योग का निर्माण होता है।

5. पद्म कालसर्प योग[सम्पादन]

जब कुंडली के पंचम भाव में राहु स्थित हो और ग्यारहवें भाव में केतु और बाकी सारे ग्रह राहु-केतु अक्ष के एक ही तरफ स्थित हों तो इस स्थिति में पद्म कालसर्प योग का निर्माण होता है। ऐसा व्यक्ति अपने पूर्वजों (यथा दादा,परदादा आदि) के शाप से शापित होता है या फिर उसके किसी पूर्वज ने ही उसके रूप में जन्म लिया होता है।

6. महापद्म कालसर्प योग[सम्पादन]

जन्मकुंडली के छठे भाव में राहु स्थित हो और बारहवें भाव में केतु हो और बाकी सारे ग्रह इनके अक्ष के एक ही तरफ स्थित हो जाएँ तब महापद्म कालसर्प योग का निर्माण होता है।

7. तक्षक कालसर्प योग[सम्पादन]

यदि कुण्डली के सातवें भाव में राहु और प्रथम भाव में केतु स्थित हो एवं अन्य सभी ग्रह राहु-केतु अक्ष के एक तरफ ही आ जाएँ तब तक्षक कालसर्प योग बनता है।

8. कर्कोटक कालसर्प योग[सम्पादन]

यदि जन्मकुंडली के आठवें भाव में राहु और दूसरे भाव में केतु स्थित हो और इनके अक्ष के एक ही ओर बाकी सारे ग्रह स्थित हो जाएँ तब कर्कोटक कालसर्प योग बनता है।

9. शंखनाद कालसर्प योग[सम्पादन]

जब जन्मकुंडली के नौवें भाव में राहु एवं तीसरे भाव में केतु हो और अन्य सारे ग्रह राहु-केतु अक्ष के एक ही तरफ स्थित हों तो ऐसे योग को शंखनाद कालसर्प योग कहते हैं।

10. घातक कालसर्प योग[सम्पादन]

यदि कुंडली के दशम भाव में राहु एवं चतुर्थ भाव में केतु हो और बाकी सारे ग्रह राहु-केतु अक्ष के एक ही तरफ आ जाएँ तो घातक कालसर्प योग का निर्माण होता है।

11. विषधर कालसर्प योग[सम्पादन]

जब कुंडली के ग्यारहवें भाव में राहु और पंचम भाव में केतु हो और अन्य सभी ग्रह इनके अक्ष के एक तरफ हों तब ऐसे योग को विषधर कालसर्प योग कहेंगे।

12. शेषनाग कालसर्प योग[सम्पादन]

यदि जन्मकुंडली के बारहवें भाव में राहु एवं छठे भाव में केतु स्थित हो और अन्य सभी ग्रह राहु-केतु अक्ष के एक ही तरफ स्थित हों तब इस योग को शेषनाग कालसर्प योग कहते हैं।

बाहरी कडि़यां[सम्पादन]

साँचा:धर्म-आधार


This article "कालसर्पयोग" is from Wikipedia. The list of its authors can be seen in its historical and/or the page Edithistory:कालसर्पयोग.



Read or create/edit this page in another language[सम्पादन]