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चैत्र वंश

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चैत्र वंश एक प्राचीन क्षत्रिय वंश हैं , ये वंश श्री चित्रगुप्त भगवान से संबंधित हैं , इस वंश में महान राजा और मंत्री , सेनापति , और आध्यात्मिक गुरु हुए जो इस प्रकार हैं :- [भारत|मार्कण्डेय पुराण के अनुसार (दुर्गा सप्तशती) पर आधारित ये कहा गया है कि धर्माधिकारी भगवान श्री चित्रगुप्त जी की प्राकट्य प्रथम मन्वन्तर में हुई थी, उज्जैन के अंकपात क्षेत्र में , ब्रम्ह देव के 11000 वर्षों के तप करने के बाद , जिसके बाद भगवान श्री चित्रगुप्त जी, ब्रम्ह देव की समस्या को समाधान करने हेतु मा चंडी की उपासना करके सर्व गुण संपन्न एवं सर्वज्ञ की वरदान प्राप्त किए एवं 14 हो मन्वन्तर तक अजर अमर होने का भी वरदान प्राप्त किए। उसके बाद ब्रह्मवर्त देश के महाराज हुवे जिनका विवाह सूर्य देव के पुत्र वैवस्वत मनु जिन्हे श्राद्ध देव भी कहा जाता है उनकी पुत्री माता नंदिनी/ सूदक्षीना जी से हुई एवं सूर्य वंश के ही धर्म शर्मा जी के पुत्री माता सोभवाती जी से हुई है जिनके वंशज कायस्थवंशी कहे जाते है जो द्विज क्षत्रिय वर्ण के हुवे। अर्थात कायस्थवंशी आदि युग में ब्रम्ह्नीस्थ थे और कलियुग में क्षत्रिय हुवे है ब्रम्ह देव का विशेष वरदान है !]]

धर्माधिकारी भगवान श्री चित्रगुप्त जी के वंशज राजा चित्र रथ जो दूसरे मन्वन्तर के राजा हुवे जिन्होंने चित्रकूट एवं चित्तौड़ नगरी को बसाया था और इनके पुत्र राजा सुर रथ हुवे जिनका वर्ण दुर्गा सप्तशती में अध्याय 1 से 13 तक किया गया है जो मां दुर्गे देवि के प्रथम उपासक हुवे। जिन्हे मां दुर्गा के आशीर्वाद से आठवे मन्वन्तर के सावर्णिक मनु होने का वरदान प्राप्त हुआ है जो सूर्य पुत्र होंगे। अर्थात धर्माधिकारी भगवान श्री चित्रगुप्त जी , भगवान श्री राम के पूर्वजों के संबंधी है एवं चैत्रवंशी/कायस्थवंशी , वैवस्वत मनु के कुल संबंधी है अर्थात सूर्यवंशी। ये वेदों एवम् पुराणों से ज्ञात होता है। इसलिए भगवान श्री चित्रगुप्त जी को 13 वे यमराज वंशी चित्र एवं 14 वे यमराज वंशी चित्रगुप्त से जाना जाता है। ( वैदिक एवं पौराणिक तत्थ्य )

चैत्रवंशी / कायस्थ कुल से सूर्यवंशी रघु कुल का सम्बन्ध :-

अयोध्या नरेश महाराजा दशरथ की पत्नी महारानी कैकई, कायस्थ कुल शिरोमणी केकेय नरेश महाराजा अश्वपति की पुत्री थी। इनकी माता का नाम शुभलक्षणा था। जो अति सुन्दर कोमलांगी, विदूषी, कुशल शासक होने के साथ साथ युद्ध कला और रथ संचालन में विशेष पारांगत थी। कहते हैं एक बार युद्ध क्षेत्र में महाराजा दशरथ के रथ की धुरी की कील निकल कर गिर गई। जिससे रथ पहिया धुरी से बाहर निकलने लगा। ऐसी विकट स्थिति में युद्ध के चलते रथ का पहिया धुरी से बाहर न निकल जाये, उसे रोके रखने के लिए सारथी बनी महारानी कैकई ने अपने हाथ की उंगली का कील के स्थान में प्रयोग कर, महाराजा दशरथ को युद्ध में विजयश्री दिलायी थी। महारानी कैकई के इस अद्भुत पराक्रम और सूजबूझ से प्रशन्न होकर महाराजा दशरथ ने उन्हें दो वरदान दिये थे। जिनकी परिणति अयोध्या पति महाराजा दशरथ के पुत्र राजकुमार राम, जगतपति भगवान राम बने। जो आज हम सब के आराध्य हैं। ( वैदिक एवं पौराणिक तत्थ्य )


ब्राम्हणों से दान लेने के अधिकारी सिर्फ चैत्रवंशी/ कायस्थ कुल के वंशज है :-

कहते है जब भगवान् राम दशानन रावण को मार कर अयोध्या लौट रहे थे, तब उनके खडाऊं को राजसिंहासन पर रख कर राज्य चला रहे राजा भरत ने गुरु वशिष्ठ को भगवान् राम के राज्यतिलक के लिए सभी देवी देवताओं को सन्देश भेजने की वयवस्था करने को कहा I गुरु वशिष्ठ ने ये काम अपने शिष्यों को सौंप कर राज्यतिलक की तैयारी शुरू कर दीं I

ऐसे में जब राज्यतिलक में सभी देवीदेवता आ गए तब भगवान् राम ने अपने अनुज भरत से पूछा चित्रगुप्त नहीं दिखाई दे रहे है इस पर जब खोज बीन हुई तो पता चला की गुरु वशिष्ठ के शिष्यों ने भगवान चित्रगुप्त को निमत्रण पहुंचाया ही नहीं था जिसके चलते भगवान् चित्रगुप्त नहीं आये I इधर भगवान् चित्रगुप्त सब जान तो चुके थे और इसे भी नारायण के अवतार प्रभु राम की महिमा समझ रहे थे फलस्वरूप उन्होंने गुरु वशिष्ठ की इस भूल को अक्षम्य मानते हुए यमलोक में सभी प्राणियों का लेखा जोखा लिखने वाली कलम को उठा कर किनारे रख दिया I

सभी देवी देवता जैसे ही राजतिलक से लौटे तो पाया की स्वर्ग और नरक के सारे काम रुक गये थे , प्राणियों का का लेखा जोखा ना लिखे जाने के चलते ये तय कर पाना मुश्किल हो रहा था की किसको कहाँ भेजे I तब गुरु वशिष्ठ की इस गलती को समझते हुएभगवान राम ने अयोध्या में भगवान् विष्णु द्वारा स्थापित भगवान चित्रगुप्त के मंदिर ( श्री अयोध्या महात्मय में भी इसे श्री धर्म हरि मंदिर कहा गया है धार्मिक मान्यता है कि अयोध्या आने वाले सभी तीर्थयात्रियों को अनिवार्यत: श्री धर्म-हरि जी के दर्शन करना चाहिये, अन्यथा उसे इस तीर्थ यात्रा का पुण्यफल प्राप्त नहीं होता।) में गुरु वशिष्ठ के साथ जाकर भगवान चित्रगुप्त की स्तुति की और गुरु वशिष्ठ की गलती के लिए क्षमायाचना की, जिसके बाद नारायण रूपी भगवान राम के आदेश मानकर भगवान चित्रगुप्त ने लगभग ४ पहर (२४ घंटे बाद ) पुन: कलम की पूजा करने के पश्चात उसको उठाया और प्राणियों का लेखा जोखा लिखने का कार्य आरम्भ किया I कहते तभी से कायस्थ दीपावली की पूजा के पश्चात कलम को रख देते हैं और यम द्वीत्या के दिन भगवान चित्रगुप्त का विधिवत कलम दवात पूजन करके ही कलम को धारण करते है

कहते है तभी से कायस्थ ब्राह्मणों के लिए भी पूजनीय हुए और इस घटना के पश्चात मिले वरदान के फलस्वरूप सबसे दान लेने वाले ब्राह्मणों से दान लेने का हक़ भी कायस्थों को ही है I

#चौदह मनुओं के नाम इस प्रकार से हैं:-

1. स्वयंभू मनु

2.स्वरोचिष मनु

3.उत्तम मनु

4.तामस मनु या तापस मनु

5.रैवत मनु

6.चाक्षुषी मनु

7.वैवस्वत मनु या श्राद्धदेव मनु( सूर्यवंशी , सूर्य देव के ज्येष्ठ पुत्र जिनकी पुत्री सुदक्षिना/ नंदनी माता जी से भगवान् श्री चित्रगुप्त जी का प्रथम विवाह सम्बन्ध हुवा है !)

8.सावर्णि मनु

9.दक्ष सावर्णि मनु

10.ब्रह्म सावर्णि मनु

11. धर्म सावर्णि मनु

12. रुद्र सावर्णि मनु

13. देव सावर्णि मनु या रौच्य मनु

14. इन्द्र सावर्णि मनु या भौत मनु

#अभी 7 वे मन्वन्तर में है हम लोग जिसके मनु अर्थात राजा सूर्य देव के पुत्र वैवस्वत मनु जिन्हे श्राद्ध देव भी कहा जाता हैं और जिनके पुत्री(माता सुदक्षिण) से ही भगवान श्री चित्रगुप्त जी का प्रथम विवाह संबंध स्थापित हुआ है। और दूसरा विवाह संबंध भी सूर्य देव के कुलवशाज धर्मशर्मा/शुषर्मा जी के पुत्री से स्थापित हुआ है। और सातवे मन्वंतर से ही कायस्थ वंश / चैत्रवंश की सुरुआत हुई है ! जो सुर्यवंश का ही सम्बंधित कुल है | कायस्थ वंश की गिनती पञ्च गौड़ ब्राम्हण एवं सूर्यवंशी , नागवंशी क्षत्रिय कुल में किया जाता है |

#यजुर्वेद ३/१५ में इस मंत्र का उल्लेख आया है :-

अयमिह प्रथमो धायि धातृभिहाता यजिष्टो अध्वरेष्वीड्य:

यमप्नवानो भृगवो विरुरुचुर्वनेषु चित्रं विम्बं विशेविशे।।

भावार्थ :- भगवान श्री चित्रगुप्त अपने आश्रित प्रजासंघ के राष्ट्रपुरुषों के शत्रु को संतापित करके अपने शरणागत की रक्षा करते हैं। राष्ट्र पुरुष संग्राम में शत्रु को पराजित करके भगवान श्री चित्रदेव की स्तुति करते हैं। जिस तरह वानप्रस्थी अपने संतान हित के लिये यज्ञादि सतकर्म करते हैं उसी प्रकार श्री चित्रगुप्त भगवन एकताके सूत्र मे प्रत्येक प्राणी को संगठित करके उनकी रक्षा करते हैं।

#अग्नि_पुराण के 369वें अध्याय में लिखा है कि :-

यमदूतैर्मनुष्यस्तु नीयते तं च पश्यति।

धर्मी च पूजयते तेन पापिष्ठस्ताड्य गृहे।

शुभाशुभं कर्म तस्य चित्रगुप्तो निरुपयेत्।

अर्थात :- मनुष्य के शुभ अशुभ कर्मो का निरुपण भगवान श्री चित्रगुप्त स्वयं करते हैं। जिसके आधार पर मनुष्य को यमराज के उन दूतों का दर्शन होता है जो दूत धर्मात्मा मनुष्य का आदर सत्कार तथा पापात्मा मनुष्य को दण्ड देते हैं।

#शिवपुराण उमा संहिता के सातवें अध्याय में वर्णन है कि :-

गर्भस्थैजायंमानैक्ष्च बालैस्तरुणमध्यमें:।

स्त्रीपुन्नपुन्नसकं र्जीवैर्ज्ञातव्य सर्वजन्तुषु।

शुभाशुभं फलं चात्र देहिनां सर्वविचार्यते।

चित्रगुप्तादिभिस्सर्वेर्वसिष्ठ प्रमुखैस्तथा।।

अर्थात :- गर्भ में स्थित होने वाले सभी स्त्री , पुरुष, नपुंसक, जीव जन्तु आदि सभी प्राणियों को यह जान लेना चाहिये कि सबके शुभ व अशुभ कर्मो का विचार श्री चित्रगुप्त भगवान व वशिष्ठ जैसे मुनियों द्वारा ही किया जाता है।

चैत्रवंशी / कायस्थ वंश कि एक सूची:

वैदिक युग :

1. श्री धन्वन्तरि आयुर्वेद के प्रवर्तक

2. श्री सुषेण धन्वन्तरि के भाई रावण के राजवैद्य।लक्ष्मण जी को संजीवनी बूटी द्वारा

जीवनदान देने वाले वैद्य।

3.श्री वचक्ष राजा रामचन्द्र जी के मंत्री।राजा लव के मंत्री।

4.श्री सोमदत्त सक्सेना राजा कुश के मंत्री।

5.श्री तनपुरा दास श्री कृष्ण के मंत्री।

6.श्री रंगजी राजा अज के मंत्री।

7.श्री सुमन्त तथा कमल दत्त राजा दशरथ के मंत्री।

पुराण काल  :

1.श्री सूत जी पौराणिक कथावाचक।

2.श्री सुशर्मा महाराजा पाण्डु के मंत्री।

हिन्दू चमोत्कर्ष काल:-

1.आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्य (कौटिल्य) तक्षशिला विश्वविद्यालयके आचार्य,मौर्य साम्राज्य के संस्थापक, सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के गुरू एवं प्रधानमंत्री। चाणक्य के नीति के जनक

2.मुद्राराक्षश चंद्रगुप्त मौर्य के मंत्री।

3.श्री शकटार मगध सम्राट महापद्यनंद के प्रधान मंत्री।

4.श्री ब्रहमकांत (सूर्यकांन) सम्राट विक्रमादित्य के प्रधानसेनापति।

5.श्री चतुर्भज सक्सेना चित्रगज-कन्नौज नरेश जयचन्द्र केमंत्री।

6.श्री उदयकान्त पृथ्वीराज-हस्तिनापुर राज्य के वित्त मंत्री।

7.श्री बुद्धिकांत माथुर विक्रमादित्य के न्याय मंत्री।

8.श्री बुद्धिसागर राजा भोज के मंत्री।

9.श्री वाणभट्ट हर्ष चरित्र के रचयिता

आधुनिक भारतवर्ष के कायस्थ संत सिरोमणि :-

10.आचार्य नागार्जुन

11.माध्वाचार्य

12.वल्लभाचार्य

13.समर्थ गुरूरामदास

14. स्वामी विवेकानंद

15. महर्षि महेश योगी

16. परमहंश योगानंद

17. श्री प्रभु पद (ISKON के संस्थापक )

18. महर्षि मेंही

19. निर्मला देवी श्रीवास्तव (सहज योग के संस्थापक )

20. चतुर्भुजी सहाय

21. श्री अरविंदो घोष

22. ठाकुर नरोतम दास

23. शालिग्राम जी

24. चक्रपाणी जी महाराज (अखिल भारतीय हिन्दू सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष )

25. महर्षि अन्जनेश सरस्वती जी ( तारा चंडी धाम रोहतास , बिहार )


प्रमुख चैत्रवंशी / कायस्थ राजवंश एवं राजा / सम्राट :-

राजा चित्र - सारस्वत प्रदेश के राजा

राजा सुररथ - कुण्डलपुर (भारतवर्ष के वैदिक काल के राजा ) जिनका जिक्र मार्कन्डेय पुराण एवं पदम् पुराण में है !

राजा चित्ररथ - चित्रकूट (नगरी को स्थापित करने वाले और जिनका चित्तोडगढ राजस्थान भी स्थापित किया हुवा है!)

राजा अश्वपति - कैकई (रामायण कालीन महाराज जो महाराज दशरथ की पत्नी एवं श्री राम भगवान की माता जी महारानी केकई के पिता थे !)

सम्राट ललितादित्य मुक्तापिद - काश्मीर

सम्राट क्रिशन देव राय - विजयनगर

राजा प्रतापदित्य - जैसोरे बंगाल

राजा कंदर्प नारायण - चन्द्रदीप बंगाल

राजा केदार राम - विक्रमपुर ढाका

राजा विक्रम सिंह - बंगाल

राजा आशुतोष नाथ राय - बंगाल

  1. सेन वंश - बंगाल
  2. पाल वंश - बंगाल
  3. कर्कोटक वंश - काश्मीर
  4. पलव वंश - दक्षिण भारत
  5. सातवाहन वंश - दक्षिण भारत
  6. चालुक्य वंश - दक्षिण भारत
  7. विजय नगर साम्राज्य - दक्षिण भारत
  8. कर्नाट वंश - बिहार
  9. काकतीय वंश - दक्षिण भारत एवं छत्तीसगढ़
  10. चंद्रा वंश - बंगाल
  11. वर्मन वंश - बंगाल
  12. परिहार वंश - दक्षिण भारत
  13. कामरूप वंश - आसाम
  14. बसु वंश - बंगाल
  15. अम्बस्थ वंश - तक्ष्सिला
  16. श्रीवास्तव वंश - अयोध्या
  17. जय पल सक्सेना वंश - अफगानिस्तानी


मुग़ल काल के कायस्थ वंशज : -

1.राजा टोडरमल सम्राट अकबर के नवरत्न लगानव्यवस्था के प्रवर्तक।

2.तानसेन सम्राट, अकबर के नवरत्न, महानगायक, दीपक राग के अविष्कर्ता।

3.हिम्मतराय सम्राट अकबर के वित्त मंत्री।

4.श्री चतुर्भज सक्सेना जहांगीर बादशाह के मंत्री।

5.श्री नागरदास व विजय सिंह औरंगजेब के मुंशी।

6.सरदार फतेहसिंह (अष्टाना) रूहेलखंड (बरेली) के नवाब कप्रधान सेनापति।

दिल्ली के मुगल सम्राटशाहआलम पर विजय प्राप्त की।

लशकरियाअल्ल के जनक। कोठी-जकाती मोहल्लाछावनी मो० भूड़ (बरेली) ।

7.अजमेरी दास सक्सेना पुरूषोत्तम दास-जहांगीर बादशाह के वित्त मंत्री।

8.इन्द्रजीत सक्सेना व त्रिलोक चन्द्र औरंगजेब बादशाह के मंत्री।

9.राजा मानराय भटनागर मोहम्मदशाह के अवध के हाकिम।

10.राजा नवलराय नवाब सफरजंग के द्वारा नियुक्त

बुंदेखण्ड के शासक।

11.चि० आनन्दधन मोहम्मद शाह के दीवान।

12.राजा टिकैटरायसा नवाब आसफउद्दौला (अवध प्रान्त) के दीवान।

13.राजा झाऊमल नवाब आसफउद्दौल के मंत्री।

14.राजा रामप्रसाद नवाब नसीरूद्दीन हैदर के मुख्य प्रबन्धक।

15.राजा दयाकृष्ण नवाब दाराशिकोह के मंत्री।

16.मुंशी ज्वाला प्रसाद नवाब अमजद अली के मुख्य प्रबन्धक।

17.श्री चन्द्र भानु नवाब दाराशिकोह के मंत्री।

18.श्री मनजीत जी सिसोलिया बादशाह गयासुद्दीन वलवन के दीवान।

चैत्रवंशी / कायस्थ वंश की लिपि :-

कैथी एक ऐतिहासिक लिपि है जिसे मध्यकालीन भारत में प्रमुख रूप से उत्तर-पूर्व और उत्तर भारत में काफी बृहत रूप से प्रयोग किया जाता था। खासकर आज के उत्तर प्रदेश एवं बिहार के क्षेत्रों में इस लिपि में वैधानिक एवं प्रशासनिक कार्य किये जाने के भी प्रमाण पाये जाते हैं [1]।। इसे "कयथी" या "कायस्थी", के नाम से भी जाना जाता है। पूर्ववर्ती उत्तर-पश्चिम प्रांत, मिथिला, बंगाल, उड़ीसा और अवध में। इसका प्रयोग खासकर न्यायिक, प्रशासनिक एवं निजी आँकड़ों के संग्रहण में किया जाता था।

उत्पत्ति[सम्पादन]

'कैथी' की उत्पत्ति 'कायस्थ' शब्द से हुई है जो कि उत्तर भारत का एक सामाजिक समूह (हिन्दू जाति) है। इन्हीं के द्वारा मुख्य रूप से व्यापार संबधी ब्यौरा सुरक्षित रखने के लिए सबसे पहले इस लिपी का प्रयोग किया गया था। कायस्थ समुदाय का पुराने रजवाड़ों एवं ब्रिटिश औपनिवेशिक शासकों से काफी नजदीक का रिश्ता रहा है। ये उनके यहाँ विभिन्न प्रकार के आँकड़ों का प्रबंधन एवं भंडारण करने के लिये नियुक्त किये जाते थे। कायस्थों द्वारा प्रयुक्त इस लिपि को बाद में कैथी के नाम से जाना जाने लगा।

इतिहास[सम्पादन]

कैथी एक पुरानी लिपि है जिसका प्रयोग कम से कम 16 वी सदी मे धड़ल्ले से होता था। मुगल सल्तनत के दौरान इसका प्रयोग काफी व्यापक था। 1880 के दशक में ब्रिटिश राज के दौरान इसे प्राचीन बिहार के न्यायलयों में आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया गया था। इसे खगड़िया जिले के न्यायालय में वैधानिक लिपि का दर्ज़ा दिया गया था।


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