जाल नियतकालिक
जाल नियतकालिक छापेखाने में परंपरागत रूप से कागज़ पर छापे जाने की बजाय अंतर्जाल (world wide web) पर इलेक्ट्रानिक माध्यम से स्थापित की जाती है। अंतर्जाल पर स्थित होने के कारण इसको दुनिया के किसी भी कोने से अपने कंप्यूटर पर पढ़ा जा सकता है। इसमें आलेख और चित्रों के साथ-साथ ध्वनि और चलचित्रों का भी समावेश किया जा सकता है। इसकी देखभाल के लिए एक संपादक मंडल भी होता है। इसके प्रकाशन का समय निर्धारित होता है जैसे साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक या द्विमासिक। जो साहित्य आंतरजालपर नियमित रूप से प्रकाशित होता हैं, उसे जाल नियतकालिक कहते हैं। इसीलिए हिंदी चिठ्ठे भी जाल पत्रिका कहलवाते हैं।
निरंतर नामक जाल नियतकालिक के उदय के पश्चात ब्लॉगज़ीन शब्दावली का भी प्रयोग होने लगा है जिसका आशय है पत्रिका और ब्लॉग के तत्वों, जैसे पाठक का किसी लेख पर फार्म का उपयोग कर टिप्पणी कर पाना, का मिलाप[१]।
कुछ जाल नियतकालिक परंपरागत रूप से मुद्रित भी होते हैं, जैसे हंस और वागार्थ, यानि इनका प्रिंट एडीशन या अंक भी निकलता है। कई जाल नियतकालिक अपने अंतर्जाल और छपे अंकों की सामग्री में फर्क भी रखते हैं क्योंकि दोनों माध्यमों के पाठकों के पठन का ढंग अलग होता है[२]।
माईक्रोसॉफ्ट फ्रंटपेज जैसे वेब पब्लिशिंग के औजारों के अलावा अंतर्जाल पत्रिकाएं प्रकाशित करने के लिये संप्रति ड्रीम वीवर और जूमला या ड्रूपल जैसे सी.एम.एस भी बाज़ार में उपलब्ध हैं।
इन्हें भी देखें[सम्पादन]
उद्धरण[सम्पादन]
- ↑ "परिचय". निरंतर. http://www.nirantar.org/content/view/48/31/.
- ↑ "Differences Between Print Design and Web Design". Alertbox. 24 जनवरी 1999. http://www.useit.com/alertbox/990124.html.
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