You can edit almost every page by Creating an account. Otherwise, see the FAQ.

ज्योतिष विज्ञान है

EverybodyWiki Bios & Wiki से
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

भारत के बहुत सारे लोगों को शायद इस बात का ज्ञान भी न हो कि विगत कुछ वर्षों में उनके अपने देश में ज्योतिष की एक नई शाखा का विकास हुआ है, जिसके आधार पर वैज्ञानिक ढंग से की जानेवाली सटीक तिथियुक्त भविष्यवाणी जिज्ञासु बुfद्धजीवी वर्ग के मध्य चर्चा का विषय बनीं हुई है। सबसे पहले दिल्ली से प्रकाfशत होनेवाली पत्रिका `बाबाजी´ के अंग्रजी और हिन्दी दोनो के ही 1994-1995-1996 के विभिन्न अंकों तथा ज्योतिष धाम के कई अंकों में `गत्यात्मक ज्योतिष´(GATYATMAK JYOTISH) को ज्योतिष के बुfद्धजीवी वर्ग के सम्मुख रखा गया था। जनसामान्य की जिज्ञासा को देखते हुए 1997 में दिल्ली के एक प्रकाशक `अजय बुक सर्विस´ के द्वारा इसपर आधारित पुस्तक `गत्यात्मक दशा पद्धति : ग्रहों का प्रभाव´(GATYATMAK DASHA PADDHATI) के पहले परिचय के रूप में पाठकों को पेश की गयी। इस पुस्तक का प्राक्कथन लिखते हुए रॉची कॉलेज के भूतपूर्व प्राचार्य डॉ विश्वंभर नाथ पांडेयजी ने `गत्यात्मक दशा पद्धति की प्रशंसा की और उसके शीघ्र ही देश-विदेश में चर्चित होने की कामना करते हुए हमें जो आशीर्वचन दिया था, वह इस पुस्तक के प्रथम और द्वितीय संस्करण के प्रकाfशत होते ही पूर्ण होता दिखाई पड़ा। इस पुस्तक की लोकप्रियता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि शीघ्र ही 1999 में इस पुस्तक का द्वितीय संस्करण प्रकाfशत करवाना पड़ा। पुस्तक के प्रकाशन के पश्चात् हर जगह `गत्यात्मक ज्योतिष´ चर्चा का विषय बना रहा। कादfम्बनी पत्रिका के नवम्बर 1999 के अंक में श्री महेन्द्र महर्षि जी के द्वारा इस सिद्धांत को प्रस्तुत किया गया। जैन टी वी के प्रिया गोल्ड यूचर प्रोग्राम में भी इस पद्धति की चर्चा-परिचर्चा हुई। दिल्ली के बहुत से समाचार पत्रों में भी इस पद्धति पर आधारित लेख प्रकाfशत होते रहें। रॉची दूरदशZन, रॉची द्वारा भी पिछले वर्ष श्री विद्यासागर महथा जी से इंटरव्यू लेते हुए इस सिद्धांत की जानकारी जनसामान्य को दी गयी। [१] विभिन्न ज्योतिषियों की भविष्यवाणी में एकरुपता के अभाव के कारणों को ढूंढ़ने के क्रम में इनके वैज्ञानिक मस्तिष्क को ज्योतिष की कुछ कमजोरियॉ दृष्टिगत हुईं। फलित ज्योतिष की पहली कमजोरी ग्रहों के शक्ति-आकलन की थी। ग्रहों के शक्ति निर्धारण से संबंधित सूत्रों की अधिकता भ्रमोत्पादक थी, जिसके कारण ज्योतिषियों को एक निष्कर्ष में पहुंचने में बाधा उपस्थित होती थी। हजारो कुंडलियों का अध्ययन करने के बाद इन्होने ग्रहों की गत्यात्मक शक्ति को ढूंढ निकाला। ग्रह-गति छः प्रकार की होती है---- अतिशीघ्री, 2.शीघ्री, 3. सामान्य, 4. मंद, 5.वक्र, 6.अतिवक्र। अपने अध्ययन में इन्होनें पाया कि किसी व्यक्ति के जन्म के समय अतिशीघ्री या शीघ्री ग्रह अपने अपने भावों से संबंधित अनायास सफलता जातक को जीवन में प्रदान करते हैं। जन्म के समय के सामान्य और मंद ग्रह अपने-अपने भावों से संबंधित स्तर जातक को देते हैं। इसके विपरीत वक्री या अतिवक्री ग्रह अपने अपने भावों से संबंधित निराशाजनक वातावरण जातक को प्रदान करते हैं। 1981 में सूर्य और पृथ्वी से किसी ग्रह की कोणिक दूरी से उस ग्रह की गत्यात्मक शक्ति को प्रतिशत में निकाल पाने के सूत्र मिल जाने के बाद उन्होने परंपरागत ज्योतिष को एक कमजोरी से छुटकारा दिलाया। फलित ज्योतिष की दूसरी कमजोरी दशाकाल-निर्धारण से संबंधित थी। दशाकाल-निर्धारण की पारंपरिक पद्धतियॉ त्रुटिपूर्ण थी। अपने अध्ययनक्रम में उन्होने पाया कि ज्योतिष के प्राचीन ग्रंथों में वर्णित ग्रहों की अवस्था के अनुसार ही मानव-जीवन पर उसका प्रभाव 12-12 वर्षों तक पड़ता है। जन्म से 12 वर्ष की उम्र तक चंद्रमा, 12 से 24 वर्ष की उम्र तक बुध, 24 से 36 वर्ष क उम्र तक मंगल, 36 से 48 वर्ष की उम्र तक शुक्र, 48 से 60 वर्ष की उम्र तक सूर्य, 60 से 72 वर्ष की उम्र तक बृहस्पति, 72 से 84 वर्ष की उम्र तक शनि,84 से 96 वर्ष की उम्र क यूरेनस, 96 से 108 वर्ष क उम्र तक नेपच्यून तथा 108 से 120 वर्ष की उम्र तक प्लूटो का प्रभाव मनुष्य पड़ता है। विभिन्न ग्रहों की एक खास अवधि में निश्चित भूमिका को देखते हुए ही ‘गत्यात्‍मक दशा पद्धति की नींव रखी गयी। अपने दशाकाल में सभी ग्रह अपने गत्यात्मक और स्थैतिक शक्ति के अनुसार ही फल दिया करते हैं। उपरोक्त दोनो वैज्ञानिक आधार प्राप्त हो जाने के बाद भविष्यवाणी करना काफी सरल होता चला गया। ‘ गत्यात्मक दशा पद्धति ’ में नए-नए अनुभव जुडत़े चले गए और शीघ्र ही ऐसा समय आया, जब किसी व्यक्ति की मात्र जन्मतिथि और जन्मसमय की जानकारी से उसके पूरे जीवन के सुख-दुख और स्तर के उतार-चढ़ाव का लेखाचित्र खींच पाना संभव हो गया। धनात्मक और ऋणात्मक समय की जानकारी के लिए ग्रहों की सापेक्षिक शक्ति का आकलण सहयोगी सिद्ध हुआ। भविष्यवाणियॉ सटीक होती चली गयी और जातक में समाहित विभिन्न संदर्भों की उर्जा और उसके प्रतिफलन काल का अंदाजा लगाना संभव दिखाई पड़ने लगा। गत्यात्मक दशा पद्धति के अनुसार जन्मकुंडली में किसी भाव में किसी ग्रह की उपस्थिति महत्वपूर्ण नहीं होती, महत्वपूर्ण होती है उसकी गत्यात्मक शक्ति, जिसकी जानकारी के बिना भविष्यवाणी करने में संदेह बना रहता है। गोचर फल की गणना में भी ग्रहो की गत्यात्मक और स्थैतिक शक्ति की जानकारी आवश्यक है। इस जानकारी पश्चात् तिथियुक्त भविष्यवाणियॉ काफी आत्मविश्वास के साथ कर पाने के लिए ‘गत्यात्मक गोचर प्रणाली’ का विकास किया गया। गत्यात्मक दशा पद्धति एवं गत्यात्मक गोचर प्रणाली के विकास के साथ ही ज्योतिष एक वस्तुपरक विज्ञान बन गया है, जिसके आधार पर सारे प्रश्नों के उत्तर हॉ या नहीं में दिए जा सकते हैं। गत्यात्मक ज्योतिष की जानकारी के पश्चात् समाज में फैली धार्मिक एवं ज्योतिषीय भ्रांतियॉ दूर की जा सकती हैं, साथ ही लोगों को अपने ग्रहों और समय से ताल-मेल बिठाते हुए उचित निर्णय लेने में सहायता मिल सकती है। आनेवाले गत्यात्मक युग में निश्चय ही गत्यात्मक ज्योतिष ज्योतिष के महत्व को सिद्ध करने में कारगर होगा, ऐसा मेरा विश्वास है और कामना भी। लेकिन सरकारी, अर्द्धसरकारी और गैरसरकारी संगठनों के ज्योतिष के प्रति उपेक्षित रवैये तथा उनसे प्राप्त हो सकनेवाली सहयोग की कमी के कारण इस लक्ष्य को प्राप्त करने में कुछ समय लगेगा, इसमें संदेह नहीं है। ज्योतिष को संसार में विज्ञान का दर्जा देने से कितने ही विज्ञान-कर्ता कतराते है, कारण और निवारण का सिद्धान्त अपना कर भौतिक जगत की श्रेणी में ज्योतिष को तभी रखा जा सकता है, जब उसे पूरी तरह से समझ लिया जाये, वातावरण के परिवर्तन, जैसे तूफ़ान आना, चक्रवात का पैदा होना और हवाओं का रुख बदलना, भूकम्प आना बाढ की सूचना देना आदि मौसम विज्ञान के अनुसार कथित किया जाता है, पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव के द्वारा ब्रहमाण्ड से आने वाली अनन्त शक्तियों का प्रवाह का कथन पुराणो में भी मिलता है, जिन्हे धनात्मक शक्तियों का रूप प्रदान किया गया है और दक्षिणी ध्रुव से नकारात्मक शक्तियों का प्रवाह पृथ्वी पर प्रवाहित होने से ही वास्तु-शास्त्र को कथित करने में वैज्ञानिकों को सहायता मिली है। कहावत है कि जब हवायें थम जाती है, तो आने वाले तूफ़ान का अंदेशा रहता है, यह सब प्राथमिक सूचनायें ज्योतिष द्वारा ही मिलती है, वातावरण की जानकारी और वातावरण के द्वारा प्रेषित सूचनाओं के आधार पर ही पुराने जमाने से ही वैज्ञानिक अपने कथनो को कथित करते आये हैं, जो आज तक भी सत्यता की कसौटी पर सौ प्रतिशत खरे उतरते है, अगर आज का मानव अनिष्ट सूचक घटनाओ को इस विज्ञान के माध्यम से जान ले तो वह मानव की सर्वोत्कृष्ट उपलब्धि होगी, ब्रह्माजी से जब सर्व प्रथम यह विद्या गर्ग ऋषि ने प्राप्त की और उसके बाद अन्य लोग इस विद्या को जान सके, प्राचीन काल से ही ऋषियों और महात्माओं ने अपनी खोजबीन और पराविज्ञान की मदद से इस विद्या का विकास किया, उन रहस्यों को जाना जिन्हे आज का मानव अरबों डालर खर्च करने के बाद भी पूरी तरह से प्राप्त नहीं कर सका है, तल, वितल, सुतल, तलातल, पाताल, धरातल और महातल को ऋषियों ने पहले ही जान लिया था, उनकी परिभाषा "सुखसागर" आदि ग्रंथों में बहुत ही विस्तृत रूप से की है, प्राकृतिक रहस्यों को सुलझाने के लिये परा और अपरा विद्याओं को स्थापित कर दिया था, परा विद्याओं का सम्बन्ध वेदों में निहित किया था, ज्योतिष शास्त्र के अन्तर्गत खगोलशास्त्र पदार्थ विज्ञान, आयुर्वेद और गणित का अध्ययन प्राचीन काल से ही किया जाता रहा है, उस समय के एक डाक्टर को ज्योतिषी और अध्यापक होना अनिवार्य माना जाता था और ज्योतिषी को भी डाक्टरी और अध्यापन में प्रवीण होना जरूरी था, कालान्तर के बाद आर्यभट्ट और बाराहमिहिर ने शास्त्र का संवर्धन किया और अपने आधार से ठोस आधार प्रदान किये,"भास्कराचार्य" ने न्यूटन से बहुत पहले ही गुरुत्वाकर्षण-शक्ति का प्रतिपादन कर दिया था, जिसे उन्होने अपने ग्रंथ "सिद्धान्तशिरोमणि" में प्रस्तुत किया है,"आकृष्ट शक्ति च महीतया, स्वस्थ गुरं स्वभिमुखं स्वंशवत्या", अर्थात पृथ्वी में आकर्षण शक्ति है, जिससे वह अपने आस पास की वस्तुओं को आकर्षित करती है। आज से २२०० साल पहले बाराहमिहिर ने २७ नक्षत्रों और ७ ग्रहों तथा ध्रुव तारे का को वेधने के लिये एक बड़े जलाशय में स्तम्भ का निर्माण करवाया था, इसकी चर्चा "भागवतपुराण" में है, स्तम्भ में सात ग्रहों के लिये सात मंजिलें और २७ नक्षत्रों के लिये २७ रोशनदान काले पत्थरों से निर्मित करवाये थे, इसके चारों तरफ़ २७ वेधशालायें मन्दिरों के रूप में बनी थीं, प्राचीन भारतीय शासक कुतुब्द्दीनऐबक ने वेधशालाओं को तुडवाकर मस्जिद बनवा दी थी और अन्ग्रेजी शासन ने इस स्तम्भ के ऊपरी भाग को तुडवा दिया था, आज भी वह ७६ फ़ुट शेष है, यह वही दिल्ली की प्रसिद्ध "कुतुबमीनार" है, जिसे सभी जानते है, ज्योतिष विज्ञान भी उतना ही उपयोगी है, जितना पुरातन काल में था, मुस्लिम ज्योतिषी इब्बनबतूता और अलबरूनो ने भारत में रह कर संस्कृत भाशा पढी और अनेक ज्योतिष ग्रंथों का अरबी भाषा में अनुवाद किया और अरब देशों में इसका प्रचार प्रसार किया,"अलबरूनो" ने "इन्डिका" नामक ग्रन्थ लिखा जिसका अनुवाद जर्मन भाशा में किया गया था, जर्मन विद्वानो ने जब यह पुस्तक पढी, तो उनका ध्यान भारत की ओर गया और उन लोगो ने यहां के अनेक प्राचीन ग्रन्थों का अनुवाद किया, यूनान के प्रसिद्ध "यवनाचार्य" ने भारत में ही रह कर कई ग्रन्थ ज्योतिष के लिखे, लन्दन के प्रसिद्ध विद्वान "फ़्रान्सिस हचिंग" ने शोध द्वारा यह सिद्ध किया कि मिश्र के "पिरामिड" और उनमे रखे जाने वाले शवों का स्थान ज्योतिषीय रूप रेखा के द्वारा ही तय किया जाता था।

अनेक ब्रह्माण्ड और सूर्य है[सम्पादन]

ऋग्वेद के अनुसार अनेक ब्रहमाण्ड और सूर्य है, जो महासूर्य की परिक्रमा करते है, इन सभी का संचालन परब्रह्म करता है, पृथ्वी सौरमंडल का एक सदस्य मात्र है, मनुष्य के अन्दर सौरमंडल की निजी सत्ता है, सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, तारे नक्षत्र आदि माला के मनके के समान है, इस सम्पूर्ण ब्र्हमांड की कोई इकाई स्वतंत्र नहीं है।

कसौटी पर खरे उतरते वैज्ञानिक नियम[सम्पादन]

ब्रह्मांड की अति सूक्षम हलचल का प्रभाव भी पृथ्वी पर पड़ता है, सूर्य और चन्द्र का प्रत्यक्ष प्रभाव हम आसानी से देख और समझ सकते है, सूर्य के प्रभाव से ऊर्जा और चन्द्रमा के प्रभाव से समुद में ज्वार-भाटा को भी समझ और देख सकते है, जिसमे अष्ट्मी के लघु ज्वार और पूर्णमासी के दिन बृहद ज्वार का आना इसी प्रभाव का कारण है, पानी पर चन्द्रमा का प्रभाव अत्याधिक पड़ता है, मनुष्य के अन्दर भी पानी की मात्रा अधिक होने के कारण चन्द्रमा का प्रभाव मानव मस्तिष्क पर भी पड़ता है, पूर्णमासी के दिन होने वाले अपराधों में बढोत्तरी को आसानी से समझा जा सकता है, जो पागल होते है उनके असर भी इसी तिथि को अधिक बढते है, आत्महत्या वाले कारण भी इसी तिथि को अधिक होते है, इस दिन स्त्रियों में मानसिक तनाव भी अधिक दिखाई देता है, इस दिन आपरेशन करने पर खून अधिक बहता है, शुक्ल पक्ष में वनस्पतियां अधिक बढती है, सूर्योदय के बाद वन्स्पतियों और प्राणियों में स्फ़ूर्ति का प्रभाव अधिक बढ जाता है, आयुर्वेद भी चन्द्रमा का विज्ञान है जिसके अन्तर्गत वनस्पति जगत का सम्पूर्ण मिश्रण है, कहा भी जाता है कि "संसार का प्रत्येक अक्षर एक मंत्र है, प्रत्येक वनस्पति एक औषधि है और प्रत्येक मनुष्य एक अपना गुण रखता है, आवश्यकता पहिचानने वाले की होती है",’ग्रहाधीन जगत सर्वम", विज्ञान की मान्यता है कि सूर्य एक जलता हुआ आग का गोला है, जिससेसभी ग्रह पैदा हुए हैं, गायत्री मन्त्र में सूर्य को सविता या परमात्मा माना गया है, रूस के वैज्ञानिक "चीजेविस्की" ने सन १९२० में अन्वेषण किया था, कि हर ११ साल में सूर्य में विस्फ़ोट होता है, जिसकी क्षमता १००० अणुबम के बराबर होती है, इस विस्फ़ोट के समय पृथ्वी पर उथल-पुथल, लडाई झगडे, मारकाट होती है, युद्ध भी इसी समय में होते है, पुरुषों का खून पतला हो जाता है, पेडों के तनों में पडने वाले वलय बड़े होते है, श्वास रोग सितम्बर से नबम्बर तक बढ जाता है, मासिक धर्म के आरम्भ में १४,१५, या १६ दिन गर्भाधान की अधिक सम्भावना होती है। इतने सब कारण क्या ज्योतिष को विज्ञान कहने के लिये पर्याप्त नहीं है?

ज्‍योतिष विज्ञान नहीं है[सम्पादन]

पूर्व में ग्रहों और राशियों की स्थिति की पुनरावृत्ति के साथ घटनाओं का तारतम्‍य देखकर उसके सांख्यिकीय आंकड़ों के आधार पर योगों का निर्माण किया गया होगा। सालों, दशकों या शताब्दियों के निरन्‍तर प्रयास से योगों को स्‍थापित किया गया और आज के संदर्भ में इन योगों का इस्‍तेमाल भविष्‍य में झांकने के लिए किया जाता है। अब जो लैण्‍डमार्क पीछे से आ रहे रास्‍ते को दिखा रहे हैं उनसे आगे का रास्‍ता बता पाना न तो गणित के सामर्थ्‍य की बात है और न कल्‍पना के। ऐसे में ज्‍योतिषी के अवचेतन को उतरना पड़ता है। जैसा कि मौसम विभाग के सुपर कम्‍प्‍यूटर करते हैं। अब तक हुई भूगर्भीय गतिविधियों को लेकर आगामी दिनों में होने वाली घटनाओं की व्‍याख्‍या करने का प्रयास। इसके साथ ही बदलावों को तेजी से समझना और उन्‍हें आज के परिपेक्ष्‍य में ढालना भी एक अलग चुनौती होती है। पचास साल पहले कोई ज्‍योतिषी यह कह सकता था कि अमुक घटना हुई है या नहीं इसकी सूचना आपको एक सप्‍ताह के भीतर मिल जाएगी वहीं अब मोबाइल और इंटरनेट ने सूचनाओं के प्रवाह को इतना प्रबल बना दिया है कि घटना और सूचना में महज सैकण्‍डों का अन्‍तर होता है। अब देखें कि इससे क्‍या फर्क पड़ा। सबसे बड़ा फर्क पड़ा बुध के प्रभाव के बढ़ने का। दूसरा फर्क मोबाइल और इंटरनेट के इस्‍तेमाल के दौरान व्‍यक्ति पर आ रही किरणों के असर का। इसे बुध राहू के रूप में लेंगे या शनि चंद्रमा के रूप में, ये निर्णय होने से अभी बाकी है। ऐसे में कोई ज्‍योतिषी करीब-करीब सही फलादेश कर देता है तो उसे और उसके अवचेतन को धन्‍यवाद देना चाहिए।

ज्‍योतिष विज्ञान नहीं है (मूल लेख का लिंक)

विज्ञान और ज्योतिष एक अन्‍य लेख

This article "ज्योतिष विज्ञान है" is from Wikipedia. The list of its authors can be seen in its historical.



Read or create/edit this page in another language[सम्पादन]