देवल (जाति)
देवल एक गुर्जर जाति है यह वंश गुर्जरप्रतिहार का उपकुलन और गोत्र है। इस वंश को अपना नाम देवलसिंह प्रतिहार, के वंशज होने के कारण मिलता है। देवल सिंह प्रतिहार,भीनमाल के प्रतिहार गुर्जर साम्राज्य के संस्थापक महाराधिराज नागभट्ट प्रतिहार के वंशज थे। तथा आधुनिक जालोर जिले और उसके आसपास के 52 गाँव के "राना" थे। [१] राणा की उपाधि, उनके वंशजों को महाराणा प्रताप से मिली थी।
सुंधा माता मंदिर, भीनमाल 12 वीं शताब्दी में शाही चौहानों के समर्थन से देवल प्रतिहारों द्वारा बनवाया गया था।
इस जाति की 4 उप-शाखाएँ हैं: मनावत देवल, धरावत देवल, लखावत देवल और वाघावत देवल। देवल प्रतिहारो के कुछ गांवों इन तहसीलो मैं पाए जाते हैं: जालोर जिले में जसवंतपुरा तहसील,दोरडा,भीनमाल तहसील तथा सिनला अखाड़ा (पाली)।
ठाकुर श्री अमर सिंह वाघावत देवल जी, मालवाड़ा ठिकाना के वर्तमान ठाकुर साहब है । जालौर के रानीवाड़ा जिले के विधायक नारायण सिंह देवल भी देवल गुर्जर है।
इतिहास[सम्पादन]
उत्पत्ति[सम्पादन]
प्रतिहार राजपूत वंश की उत्पत्ति पर चर्चा करने वाला सबसे पहला शिलालेख बाउका परिहार (837 CE) का जोधपुर का शिलालेख है, यह भी वंश के नाम व्युत्पत्ति के बारे में बताता है कि, राम के भाई लक्ष्मण, जिन्होंने अपने भाई रामचंद्र के लिए द्वारपाल के रूप में काम किया था,इस तरह लक्ष्मण के वंशजो की पहचान हुई प्रतिहार नाम से।
इसका चौथा श्लोक कहता है,लक्ष्मण सुमितिरी जिन्होंने अपने भाई राम के लिए एक द्वारापाल(प्रतिहार) के रूप में अपना कर्तव्य निभाया, इसीलिए उनके वंशजों को प्रतिहार नाम से कहलाया। :[२] [३][४][५]
In their race, in the family in which Vishnu set foot, Rama, of auspicious birth, carried on a war of destruction and slaughter with the demons-dire on account of the adamantine arrows-which killed Ravana.(1)
All praise unto his younger brother, Lakahmaņa (Saumittri),a stern rod of chastisement in war with Maghanada, the destroyer of Indra's pride,-who served as the door-keeper (of Rama), owing to (his) commandment not to alow others to enter (lit. to repel others).(2)
In that family, which bore the insignia of Pratihara (door-keeper), and was a Shelter of the three worlds, the king Nagabhața I appeared as the image of the old sage (Rama) in a strange manner, Wherefore he seemed to break up the complete army of the kings of Mlecchas the destroyers of virtue,with four arms lustrous because of the glittering and terrible weapons.(3)
मनुस्मृति में, प्रतिहार शब्द, एक प्रकार से क्षत्रिय शब्द का पर्यायवाची है. लक्ष्मण के वंशज परिहार कहलाते थे। वे सूर्यवंशी वंश के क्षत्रिय हैं। लक्ष्मण के पुत्र अंगद, जो करपथ (राजस्थान और पंजाब) के शासक थे, इस राजवंश की 126 वीं पीढ़ी में राजा हरिचंद्र प्रतिहार का उल्लेख है (590 AD). उनकी दूसरी पत्नी, भद्रा से उनके चार पुत्र थे, जिन्होंने कुछ धनसंचय और एक सेना को संगठित करके, अपने पैतृक राज्य मदाविपुर पर विजय प्राप्त की और मंडोर राज्य का निर्माण किया, जिसे राजा रज़िल प्रतिहार ने बनाया था। उनके पौत्र नागभट्ट प्रतिहार थे।
पृथ्वीराज रासो के अनुसार , प्रतिहार और तीन अन्य राजपूत राजवंशों(चौहान, परमार, सोलंकी) की उत्पत्ति माउंट आबू में एक बलि अग्नि-कुंड (अग्निकुंड) से हुई थी।[६]
इतिहास[सम्पादन]
वज्रभट्ट सत्यश्रया या हरिचंद्र प्रतिहार, प्रतिहार राजपूत वंश(clan) के स्थापनाकर्ता-पूर्वज होने तथा, चावड़ा राजपूत राजवंश के महाराजा वर्मलता चावड़ा के भी सामंतवादी थे। वज्रभट्ट के सबसे बड़े पुत्र भोजभट्ट प्रतिहार थे।
अल-बिलादुरी के फतुहु-ए-बुलदान के अनुसार, जुनैद ने बारस (भरुच),मारमाड, मंडल, दलमाज, उज्जैन बहारिमंद, वल्लमला (जैसलमेर) और जुर्ज़ (गुजरत्रा) में आक्रमण किया इन आक्रमणों के कारण चावड़ा राजपूत, चित्तौड़ के मोरी / मौर्य राजपूत और भरूच (लता) के शासकों को कमजोर कर दिया। इस असंती की वजह ने नागभट्ट प्रतिहार के वृद्धि के लिए एक बहुत बड़ा अफसर बना। [७]
इस अशांति का फायदा उठाकर, जुनैद और खलिध हशाम ने अवंती यानी उज्जैन के खिलाफ एक बहुत बड़ा आक्रमण किया, नागभट्ट प्रतिहार I , गुहिल बप्पा रावल तथा राष्ट्रकूट राजा दंतीदुर्ग, ने मिलकर और अरबो को बहुत बुरी तरह से हराया। इस जीत के कारण नागभट्ट राजपूताना के सबसे शक्तिशाली राजा बन गय।
यह लड़ाई का उल्लेख, मिहिर भोज प्रतिहार के ग्वालियर शिलालेख मैं किया गया है, उसने बताया है कि" नागभट्ट प्रथम की म्लेच्छों (जुनैद और टमिन के नेतृत्व अ रब) पर विजय प्राप्त की थी।
स्तस्यानुजोसौ मघवमदमुषो मेघनादस्य संख्ये सौमित्त्रिस्तीव्रदण्डः प्रतिहरणविधेयः प्रतीहार आमोत्तहन्शे प्रतिहारकेतनभृति त्रैलोक्यरक्षास्पदे देवो नागभट : पुरातनमुनर्मूतिर्बभूवाद्भुतं । येनासौ सुक्कतप्रमाथिबलनम्लेच्छा।।
इसलिए, खुद को स्वतंत्र बनाया ,और अपनी संप्रभुता स्थापित करने के लिए सम्राट नागभट्ट प्रथम - ने भीनमाल को अपनी राजधानी के रूप में बनाया तथा शाही प्रतिहार वंश की स्थापना की। [९]
गलाका के शिलालेख(795 CE) के अनुसार जिसका निर्माण नागभट्ट के भव्य-भतीजे वत्सराज प्रतिहार (780-800) द्वारा किया गया था , कहा गया है कि "नागभट्ट प्रतिहार ने अजीत गुर्जरों का सत्यानाश कर दिया " (भरुच के कर्णवम्सी गुर्जर वंश) [१०]
हालाँकि, नागभट्ट I को उनके बेटों ने नहीं उत्तराधिकार किया। अपने बेटों के बजाय अपने भतीजों कक्का और देवराज द्वारा त्वरित उत्तराधिकार कर ली गई थी। नागभट्ट के पुत्र लक्ष्मीवर (760-787 CE) थे, और उनके पोते प्रागसेन प्रतिहार सम्राट वत्सराज प्रतिहार (780-800)(देवराज प्रतिहार के पुत्र) के समकालीन थे।
वत्सराज के शासनकाल के दौरान शाही राजधानी अवंती /उज्जैन में स्थानांतरित कर दिया गया था, तथा भीनमाल को नागभट्ट प्रथम के वंशजों को दे दिया गया था। इसलिए, भीनमाल के प्रागसेन प्रतिहार अपने चचेरे भाइयों के सामंत बन गए और वह, कन्नौज के सम्राट नागभट्ट द्वितीय प्रतिहार के समकालीन भी थे
प्रागसेन प्रतिहार, अपने बेटे करमसेन और कर्मायत द्वारा उत्तराधिकार किया गया था। सम्राट रामभद्र प्रतिहार (833-836) के शासन में सामंतों द्वारा कई विद्रोह हुए । भीनमाल के राजा करमसेन के पुत्र राजा वासुदेव प्रतिहार ने शासक, मिहिरभोज प्रतिहार (836–885) को इन पुनरावर्ती सामंतों पर काबू पाने में मदद की। सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार (910–913) के शासनकाल के दौरान, मंडोर के प्रतिहार और अबू के दोनों प्रतिहारों ने विद्रोह कर दिया और केवल भीनमाल के बलराज प्रतिहार की मदद से राज्य किया गया[११]
बैनराज के बाद उनके पुत्र हरिचंद्र प्रतिहार थे, जिनके पुत्र राजा सगीरथ प्रतिहार थे। भीनमाल के जसवंथपुरा पहाड़ियों से बहने वाली सगी नदी का नाम उनके नाम पर रखा गया है। सगीरथ प्रतिहार के पुत्र राजा चक्रवर्ती प्रतिहार थे जिनकी पुत्री का विवाह नाडोल के राव लक्ष्मण चौहान (950-982 CE) से हुआ था।
जालोर या जबलीपुरा की स्थापना जाबालि प्रतिहार ने की थी। चक्रवर्ती के पुत्र सूरन थे, जिनके पुत्र राजा मान प्रतिहार, भीनमाल पर शासन कर रहे थे, जब परमार सम्राट वाक्पति मुंज (972-990 CE) ने इस क्षेत्र पर आक्रमण किया — विजय के बाद, वक्पति मुंज ने परमार राजकुमारों के बीच इन विजित क्षेत्रों को विभाजित किया - उनके पुत्र अरण्यराज परमार को अबू, उनके पुत्र चंदन परमार और उनके भतीजे धरणीवर परमार को जालोर दिया गया। इस हार के वजह से भीनमाल पर लगभग 200 साल पुराना चलरा प्रतिहार राज समाप्त हो गया।
राजा मान प्रतिहार के पुत्र, देवलसिंह प्रतिहार अबू के राजा महिपाल परमार (1000-1014 ईस्वी) के समकालीन थे। राजा देवल सिंह ने अपने देश भीनमाल को मुक्त करने के लिए कई प्रयास किए लेकिन सब व्यर्थ में रहा। अंत में वह भीनमाल के दक्षिण पश्चिम में चार पहाड़ियों - डोडासा, नदवाना, काला-पहाड और सुंधा से युक्त प्रदेशों को अपना राज्य बनाया। उन्होंने लोहियाना (वर्तमान जसवंतपुरा) को अपनी राजधानी बनाया। इसलिए इनके वंशज देवल प्रतिहार बन गए। भीनमाल में रहने वाले प्रतिहार राजपूतों की कैडेट शाखा धीरे-धीरे देवल प्रतिहार राजपूत बन गई जबकि एक अन्य बरगुजर प्रतिहार राजपूत समूह जो भीनमाल से राजोर (अलवर के पास) में चले गय थी।
धीरे-धीरे उनके जागीर में आधुनिक जालोर जिले और उसके आसपास के 52 गाँव शामिल हुए। [१२]
सुंधा माता मंदिर, भीनमाल 12 वीं शताब्दी में शाही चौहानों के समर्थन से देवल प्रतिहारों द्वारा बनवाया गया था।
1311 में, अलाउद्दीन खिलजी की बेटियों में से फिरोजा, को कान्हडदेव के बेटे वीरमदेव चौहान से प्यार हो गया, हालाँकि, विरामदेव एक तुर्क लड़की से शादी नहीं करना चाहते थे, जिसके कारण दोनों राज्यों के बीच तनाव बढ़ गया और अंततः अलाउद्दीन का जालोर पर आक्रमण हो गया। देवल प्रतिहार राजपूतो ने जालोर के चौहान कान्हाददेव के अलाउद्दीन खिलजी के प्रतिरोध में भाग लिया। कान्हडदेव की सेना ने आक्रमणकारियों के खिलाफ कुछ प्रारंभिक सफलताएँ हासिल कीं, लेकिन जालौर का किला अंततः अलाउद्दीन के सेनापति मलिक अलदीन के हाथों में आ गया। कान्हड़देव और उनके पुत्र वीरमदेव चौहान अंत तक लड़ते रहे और उन्हें वीरगति प्राप्त हुई, इस प्रकार जालौर के चौहान वंश का अंत हुआ[१३] [१४]
महाराणा प्रताप ने मुगल बादशाह अकबर के खिलाफ अपने संघर्ष के दौरान कुछ समय के लिए लोयानागढ़(जसवंतपुरा) में रुके थे लोहियाणा के ठाकुर राणा श्री राजोधर सिंह देवल जी ने महाराणा प्रताप को सैनिक , घोड़े तथाजनशक्ति दी और उनकी बेटी की शादी महाराणा से की, बदले में महाराणा ने उन्हें "राणा" की उपाधि दी, जो इस दिन तक उनके वंश के साथ है। [१५]
देवल प्रतिहारों के कुछ गाँव : जालोर के भीनमाल तहसील में जालोर के रानीवाड़ा तहसील में करड़ा मालवाड़ा चाटवाड़ा लाखावास कागमाला दातवाडा मेड़ा चाण्डपुरा दादोकी, सिलासन, तेजवास, रोड़ा, चितरोडी, वडा, जालोर की जसवंतपुरा तहसील में पादर, गजीपुरा डोरडा जावीया चेकला क़िब्ला गजापुरा दातलावास राजिकावास राजपुरा मनोहरजीकावास पहाड़पुरा कारलु पावली सावीधर शिवगढ़ पुरण पंसेरी ऊसमत हडमतिया जितपुरा वाडाभवजी कलापुरा पावटी और सिनला अखावास राणाजी की निम्बली (पाली)
4 उप-शाखाएँ हैं: मानावत देवालस, धारावत देवालस, लाखावत और वाघावत देवालस।
- जालोर में मालवारा थिकाना वाघावत देवलो द्वारा शासित है
- दातलावास ठिकाणा लाखावत देवलो द्वारा शासित है
- पुरण ठिकाना धारावत देवलो द्वारा शासित है ।
- पुरण के सरपंच छतर सिंह देवल भी देवल धारावत राजपुत है।
- गजापुरा ठिकाना ,सीणला ठिकाना तथा चेकला ठिकाना मानावत देवलो द्वारा शासित है ।
रानीवाड़ा स्थित मालवाड़ा ठिकाना के शाही परिवार देवल (बाघावत) राजपूत है। देवल परिवार मूल रूप से जसवंतपुरा से थे बाद में खुद को मालवाड़ा में स्थापित किया। मालवाड़ा पूरे देवल जाति में प्रतिष्ठित (ताज़ीमी) ठिकाना के रूप में जाना जाता है, ठाकुर श्री अमर सिंह देवल जी, मालवाड़ा ठिकाना के वर्तमान ठाकुर साहब है ।
जालौर के रानीवाड़ा के विधायक नारायण सिंह देवल भी देवल राजपूत है।[१६]
यह भी देखें[सम्पादन]
संदर्भ[सम्पादन]
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- ↑ Rao Ganpatsimha Chitalwana, Bhinmal ka Sanskritik Vaibhav, p. 43
- ↑ K.M. Munshi Diamond Volume, II, p. 11
- ↑ Epigraphia Indica, XVIII, pp. 87
- ↑ Tripathi, Rama Shankar (1959). History of Kanauj: To the Moslem Conquest. Motilal Banarsidass. प॰ 223. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-208-0478-4. https://books.google.com/books?id=U8GPENMw_psC&pg=PA231.
- ↑ Puri, Baij Nath (1986) [first published 1957], The History of the Gurjara-Pratiharas, Delhi: Munshiram Manoharlal, पृ॰ 7
- ↑ dhanapala and his times: a socio political study based on his works
- ↑ Shanta Rani Sharma, Origin & Rise of Imperial Pratihars of Rajasthan, p. 67
- ↑ Epigraphia Indica, XVIII, pp. 99-114 ;
- ↑ Shanta Rani Sharma, Origin & Rise of Imperial Pratihars of Rajasthan p. 69
- ↑ Epigraphia Indica, XLI, 1975-76, pp. 49-57
- ↑ Dasratha Sharma, Lectures on Rajput History, pp. 2-5 S R Sharma
- ↑ Rao Ganpatsimha Chitalwana, Bhinmal ka Sanskritik Vaibhav, p. 43
- ↑ Peter Jackson (2003). The Delhi Sultanate: A Political and Military History. Cambridge University Press. ISBN 978-0-521-54329-3.
- ↑ Romila Thapar (2005). Somanatha: The Many Voices of a History. Verso. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-84467-020-8. https://books.google.com/books?id=PnBMFaGMabYC&pg=PA121.
- ↑ Rao Ganpatsimha Chitalwana, Bhinmal ka Sanskritik Vaibhav, p. 43-51
- ↑ Rathore, Abhinay. "Malwara (Thikana)" (en में). http://www.indianrajputs.com/view/malwara.