नोनिया विद्रोह
नोनिया विद्रोह
नोनिया विद्रोह |
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यह विद्रोह 1770 से 1800 ई. के बीच बिहार के शोरा उत्पादक क्षेत्रों हाजीपुर, तिरहुत, सारण और पूर्णिया में हुआ था।[१] इस काल में बिहार शोरा उत्पादन का प्रमुख केंद्र था।[२] शोरा का उत्पादन बारूद बनाने के लिए किया जाता था।[३] शोरा उत्पादन करने का कार्य मुख्य रूप से नोनिया जाति द्वारा किया जाता था।[४] ब्रिटिश कंपनी और नोनियों के बीच आसामी मध्यस्थ का कार्य करते थे,[५] जो नोनिया लोगों से कच्चा शोरा लेकर कारखानों को देते थे।[६] आसामियों को ब्रिटिश कंपनियों द्वारा शोरे की एक-चौथाई रकम अग्रिम के रूप में मिलती थी।[७] कल्मी शोरा के लिए 2 से 4 रुपए प्रति मन और कच्चा शोरा 1 से 4 आना प्रति मन आसामी कंपनी से लेते थे[८] तथा नोनिया लोगों को 12, 14 या 5 आना प्रति मन देते थे, जबकि अन्य व्यापारी जो कंपनी से संबंधित नहीं थे, वे नोनिया लोगों को 3 रुपए प्रति मन शोरा देते थे। अतः कंपनी द्वारा नोनिया लोगों का अत्यधिक शोषण हो रहा था, इसलिए गुप्त रूप से वे लोग व्यापारियों को शोरा बेचने लगे। इसकी जानकारी जब ब्रिटिश सरकार को हुई, तब उसने नोनिया लोगों पर क्रूरतापूर्वक कार्रवाई की।
इतिहास[सम्पादन]
नोनिया जाति नमक,खाड़ी और शोरा के खोजकर्ता और निर्माता जाति है जो किसी काल खंड में नमक बना कर देश ही नहीं दुनियां को अपना नमक खिलाने का काम करती थी। तोप और बंदूक के आविष्कार के शुरूआती दिनों में इनके द्वारा बनाये जानेवाले एक विस्फोटक पदार्थ शोरा के बल पर ही दुनियां में शासन करना संभव था। पहले भारतवर्ष में नमक, खाड़ी और शोरा के कुटिर उद्योग पर नोनिया समाज का ही एकाधिकार था, क्योंकि इसको बनाने की विधि इन्हें ही पता था कि रेह (नमकीन मिट्टी) से यह तीनों पदार्थ कैसे बनेगा, इसलिए प्राचीन काल में नमक बनाने वाली नोनिया जाति इस देश की आर्थिक तौर पर सबसे सम्पन्न जाति हुआ करती थी। इनके एक उत्पाद शोरा को अंग्रेज सफेद सोना (White Gold) भी कहते थे और यह उस काल में बहुत बेसकिमती था।
नोनिया मिट्टी से बारूद[सम्पादन]
बाकी हिंदुस्तान पर अंग्रेजों ने कब्जा भले 19वीं सदी में जमाया हो, बंगाल-बिहार-ओडिशा पर उनका कब्जा 100 साल पहले ही हो गया था. गोरे व्यापारी यहाँ से अनाज, अफीम, चावल, कपास ही नहीं गंगा-गंडक-कोशी कछार की मिट्टी भी यूरोप ले जाते थे.
इस इलाके में लोनी मिट्टी या नोनिया मिट्टी मिलती है. नोनिया नाम की जाति इस मिट्टी से नमक बनाया करती थी. नोनिया हमारे केमिकल इंजीनियर थे. उनके पास नोन ही नहीं, इस मिट्टी से शोरा बनाने की कला भी थी.
आईने अकबरी के मुताबिक हिंदुस्तान में शोरे या पोटैशियम नाइट्रेट का इस्तेमाल बारूद बनाने के अलावा कपड़ा धोने, एंटीसेप्टिक मलहम बनाने, लाख को डाइ करने, पेय पदार्थ ठंडा करने, मटन-मछली को सुरक्षित रखने और खाद के लिए किया जाता था.
पर पश्चिम में 13वीं शताब्दी से ही शोरे ज्यादातर बारूद बनाने के काम आ रहा था. एक समय ऐसा आया कि शोरा को पश्चिम में सफेद सोना कहा जाने लगा और यह बिहार का एक प्रमुख निर्यात हो गया.
इस व्यापार के लिए गोरों ने बिहार-बंगाल-ओडिशा में जगह-जगह फैक्ट्रियाँ बनाई. ये फैक्ट्री कारखाने नहीं, ट्रेडिंग आउटपोस्ट थे – मारवाड़ियों के गोला और गद्दी का मिला-जुला स्वरूप. फैक्ट्री के कम्पाउन्ड में वे रहते भी थे, माल भी रखते थे और हिफाजत के लिए हथियारबंद सिपाही भी.
डच ईस्ट इंडिया कंपनी की ही दो फैक्टरियाँ पटना में हुआ करती थीं. वहाँ शोरा रिफाइन करने के लिए 1651 में उन्होंने एक कारखाना भी बनाया था. कुछ साल बाद छपरा में दूसरा कारखाना खोला.
भूगोल[सम्पादन]
भारत की खोज: हमारी नोनिया मिट्टी से अंग्रेजों ने दुनिया पर कब्जा किया कहते हैं कि नेपोलियन के हार की एक बड़ी वजह बारूद के इस मसाले पर अंग्रेजों का कब्जा था: नोनिया लिखते हैं: “वाटरलू की लड़ाई जीतने की एक वजह ईस्ट इंडिया कंपनी का बिहार के चौर मैदानों पर कब्जा था, जहां से बारूद का मसाला आया करता था.“
बैलगाड़ी से कलकत्ता का सफर यूरोप के व्यापारियों के लिए शोरे का आयात भारी मुनाफे का सौदा था. नए उपनिवेश पर कब्जा करने की लड़ाई में लगे मुल्कों में बारूद की मांग काफी बढ़ गई. सफेद शोरे की कीमत ढाई रुपए मन हो गई, जबकि गेहूं एक रुपए मन मिलता था. शोरा बैलगाड़ी से गंगा या गंडक तक ले जाते थे, वहाँ से नाव से कलकत्ता, फिर जहाज से यूरोप. बरसात के दिनों में बैलगाड़ी से शोरा ढोना घाटे का सौदा था. पानी इस सफेद सोने को बर्बाद कर देता था. सो, शोरे को ढोने के लिए सम्पनी गाड़ी बनी. यह व्यापार ब्रिटिश और डच ईस्ट इंडिया कंपनियों के हाथ में था. लोग इसे कंपनी गाड़ी कहने लगे. कंपनी से धीरे-धीरे बन गया सम्पनी!
बिहार की सामाजिक-आर्थिक परतों को समझने के लिए अरविन्द नारायण दास की द रिपब्लिक ऑफ बिहार अपने प्रकाशन के 30 साल बाद भी शायद सबसे अच्छी किताब है. वे लिखते हैं कि 18वी सदी के अंत तक भारत से शोरे की तिजारत में फ़्रांस लगभग बाहर हो गया था और ब्रिटेन की मोनोपॉली हो गई थी. कहते हैं कि नेपोलियन के हार की एक बड़ी वजह बारूद के इस मसाले पर अंग्रेजों का कब्जा था. दास लिखते हैं: “वाटरलू की लड़ाई जीतने की एक वजह ईस्ट इंडिया कंपनी का बिहार के चौर मैदानों पर कब्जा था, जहां से बारूद का मसाला आया करता था.“
नोनिया विद्रोह 1764 में बिहार पर अंग्रेजों के पूरी तरह कब्जे के बाद नोन और शोरा बनाने वाले नोनिया लोगों की मुसीबत हो गई. 17वीं सदी में शोरे के व्यापार पर रिसर्च करने वाली डा शुभ्रा सिन्हा के मुताबिक नोनिया तब तक अंग्रेजों के अलावा डच, फ़्रांसीसी और पुर्तगालियों ही नहीं, आर्मेनिया और फारस के व्यापारियों को भी माल बेचते थे. स्थानीय व्यापारी तो थे ही. मोनोपॉली का फायदा उठाते हुए अंग्रेजों शोरा औन-पौन दाम पर खरीदना शुरू किया. नाराज नोनिया विद्रोहियों ने 1771 में छपरा में ईस्ट इंडिया कंपनी की एक फैक्ट्री लूट कर उसमें आग लगा दी. कंपनी ने किसानों को अफीम, कपास और नील जैसे कैश क्रॉप उपजाने पर मजबूर किया. दाम वही तय करते थे. उपर से जब चाहें उपज खरीदने से मना कर देते थे. किसान कंगाल हो गए और गोरे मालामाल.
पटना के चावल को यूरोप में बेचकर स्कॉटलैंड के कई लोग धन्ना सेठ बन गए. कई सदी बाद अभी भी उसकी याद ताजा है. पटना से 11,000 किलोमीटर दूर स्कॉटलैंड में भी पटना नाम का एक कस्बा है! बिहार के पटना में जन्मे विलियम फुलर्टन ने 1802 में इस कस्बे की स्थापना की थी. वहाँ एक पटना स्कूल भी है. उस स्कूल का लोगो है – आपने सही अंदाज लगाया – धान की बाली!
नोनिया जाति और ब्रिटिश सरकार[सम्पादन]
नोनिया जाति के लोग बिहार में दुनियां के सबसे उच्च कोटि के शोरा का निर्माण करते थे और इसका व्यापक वे अपनी मर्जी से डच, पुर्तगाली, फ्रांसीसी और ईस्ट इंडिया कंपनी के अंग्रेजों से किया करते थे जिसका इस्तेमाल तोप के गोलों और बंदूक की गोलियों में गन पाउडर के रूप में किया जाता था। लेकिन अब बिहार के शोरा और नमक का उत्पादन तथा व्यापार अंग्रेजों के हाथ में आ गया और सभी शोरा भी अब अंग्रेजों के गोदामों में जाने लगा। यह घटना सन् 1757-1758 के बीच की है।इस घटनाक्रम ने अंग्रेजी शासन का विस्तार और सरल एवं संभव बना दिया क्योंकि उस समय शोरा के बल पर ही कोई युद्ध जीता जा सकता था और अपने साम्राज्य का विस्तार किया जाता था। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि प्लासी के युद्ध के बाद सन् 1764 के बक्सर के युद्ध में मीर कासिम और अवध के नवाब तथा मुगल बादशाह के विशाल संयुक्त सेना को अंग्रेजों के चंद हजार सैनिकों ने बुरी तरह परास्त कर दिया क्योंकि तोप के गोलों के लिए शोरा उनके पास प्रर्याप्त था ।
सन्दर्भ[सम्पादन]
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- ↑ kumar, Ajit (2022-08-06). "नोनिया विद्रोह" (en-US में). https://jaankarirakho.in/%E0%A4%A8%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%B9/.
- ↑ kumar, Ajit (2022-08-06). "नोनिया विद्रोह" (en-US में). https://jaankarirakho.in/%E0%A4%A8%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%B9/.
- ↑ Khicher, Deep (2018-10-14). "नोनिया विद्रोह (1770-1800 ई.) का इतिहास" (en-US में). https://examvictory.com/noniya-vidroh/.
- ↑ "नोनिया विद्रोह : बिहार में स्वतंत्रता संघर्ष का एक प्रमुख विद्रोह - Edu Jigyasa" (en-US में). 2022-10-30. https://edujigyasa.com/bihar-gk/%e0%a4%a8%e0%a5%8b%e0%a4%a8%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%be-%e0%a4%b5%e0%a4%bf%e0%a4%a6%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%8b%e0%a4%b9-%e0%a4%ac%e0%a4%bf%e0%a4%b9%e0%a4%be%e0%a4%b0-%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82/.
- ↑ "भारत की खोज: हमारी नोनिया मिट्टी से अंग्रेजों ने दुनिया पर कब्जा किया | - News in Hindi - हिंदी न्यूज़, समाचार, लेटेस्ट-ब्रेकिंग न्यूज़ इन हिंदी" (hi में). https://hindi.news18.com/blogs/nk-singh/bharat-ki-khoj-british-empire-and-corps-in-indian-soil-4618413.html.
- ↑ "मुजफ्फरपुर सेंट्रल जेल का लोटा विद्रोह जानिए, मिट्टी का लोटा दिये जाने पर कैदियों ने किया था आंदोलन" (hi में). 2023-08-13. https://www.prabhatkhabar.com/state/bihar/independence-day-2023-know-about-bihar-muzaffarpur-central-jail-lota-rebellion-sxz.
- ↑ "इतिहास का दर्पण साबित होगा सम्मेलन -" (hi में). https://www.jagran.com/bihar/darbhanga-history-will-prove-a-mirror-16723864.html.
- ↑ Aalok, Dr dayaram (2022-01-14). "आध्यात्म,जाति इतिहास,जनरल नॉलेज: नोनिया जाति का इतिहास :Noniya caste history". https://loksakha.blogspot.com/2022/01/noniya-jati-ka-itihas.html.