बख्तावर सिंह
अमझेरा के शहीद महाराणा बख्तावर सिंहजी राठौड़
अंग्रेज डलहोजी की हड़प नीति के कारण राजा महाराजा अंग्रेजों के खिलाफ हो गए थे ,डलहोजी की नीति के अनुसार भारत के किसी राजा के निसंतान होने पर वह राज्य अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया जाता, निसंतान राजाओं के दत्तक या गोद लेने पर अंग्रेज दत्तक को राजा का उत्तराधिकारी नही मानते, और राज्य को लावारिस घोषित कर राज्य को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लेते, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने भी अपने राज्य झाँसी को बचने के लिए अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी और वे शहीद हो गई ।
उस समय मध्य भारत में धार के पास अमझेरा स्टेट थी जिसके राजा बख्तावर सिंह जी राठौड़ थे, और उनके पुत्र 14 वर्षीय युवराज रघुनाथसिंह भी थे, फिर भी अमझेरा राजा बख्तावरसिंहजी ने अपने राज्य और सुखों की परवाह नहीं की । उन्होंने अंग्रेजों के अत्याचार शोषण के खिलाफ १८५७ में अपनी सेना के साथ सशस्त्र युद्ध छेड़ दिया । १८५७ की क्रांति विफल रही, राजा बख्तावरसिंह को धोखे से गिरफ्तार कर 10 फरवरी १८५८ को सुबह ९ बजे के लगभग इन्दोर के एम.वाय. प्रांगण में स्थित नीम के पेड़ पर फांसी दे दी। अमझेरा में राजा सा. की मृत्यु पर राजा बख्तावर सिंह जी की रानी लालकुंवर भादरिया के १४ वर्षीय युवराज रघुनाथसिंह जी का राजतिलक किया था, पर कुछ दिनों बाद उनकी भी हत्या कर दी। राजा बख्तावर सिंह जी की रानी गुलाब कुँवर से जन्मे दुसरे पुत्र किशन सिंह मृत्यु शैशवावस्था में ही हो चुकी थी,और चावड़ी रानी दौलत कुँवर मानसा गर्भवती थी,लक्ष्मण सिंह गर्भ में थे। अमझेरा राज जप्त कर ग्वालियर स्टेट के जीवाजी राव सिंधिया को दे दिया। राजा बख्तावर सिंह राठौड़ की शहादत के दो माह बाद २७ अप्रेल १८५८ को बख्तावरसिंहजी की चावड़ी रानी दौलत कुंवर मानसा ने पुत्र लक्ष्मण सिंह को जन्म दिया। सत्ताधारी अंग्रेजों व उनके पिट्ठुओं के ताकतवर होने के कारण लक्ष्मण सिंह हत्या के डर से बेटमा के जंगलों में गुप्तवास में सन्यासी वेश में रह कर बागियों विद्रोहियों की मदद करते रहे । पराजित राजपरिवार इस अपमानजनक परिस्थितियों के कारण समाज प्रजा से दूर होता गया। ऐसी हालत में छडावद के ठाकुर उदय सिंह ने मध्य प्रदेश सरकार से वर्ष १९९६ के लगभग शहीद बख्तावर सिह के शैशव अवस्था में मृत पुत्र किशन सिंह को ही २७ अप्रेल १८५८ में जन्मा बताकर उनकी विधवा द्वारा दीप सिंह के पुत्र लक्ष्मण सिंह को गोद लेना बता कर अमझेरा का मुआवजा का क्लेम किया था, किंतु नटनागर शोध संस्थान सीतामऊ में मौजूद कुलगुरु की पोथी में दर्ज रिकार्ड के अनुसार छडावद के ठाकुर भीम सिंह के पुत्र का नाम भी किशनसिंह था,इनकी मृत्यु छडावद की गद्दी पर बैठने के एक वर्ष में हो गई थी, इन किशन सिंह की विधवा ने दीप सिंह के दुसरे पुत्र निर्भय सिंह को गोद लिया था। छडावद के उदयसिंह केस हार गये, सरकार ने उनका दावा खारिज़ कर दिया। चावड़ी रानी दौलत कुँवर मानसा के २७ अप्रेल १८५८ को जन्मे पुत्र लक्ष्मण सिंह अंग्रेजों के खिलाफ बागियों और विद्रोहियों कि मदद के अलावा कुछ नहीं कर पाए पर लक्ष्मण सिंह के पुत्र अमर सिंह राठौड़ ने महू में अंग्रेजों के खिलाफ गुप्त रूप से विद्रोही गतिविधियां संचालित की । उनका राज खुलने पर वे भूमिगत हो गए,अंग्रेजों ने उनकी महू स्थित सम्पति जप्त कर ली अमरसिंहजी के बड़े पुत्र राम सिंग राठौड़ को महू में ओक्ट्रय सुपरिडेंट के पद से हटा दिया और ठाकुर अमरसिंह जी के दुसरे पुत्र हरि सिंह को ब्रितानी पुलिस पूछताछ के लिए उठा ले गई, दुसरे दिन अधमरी हालत में छोड़ गई, कुछ ही घंटो बाद उनकी मृत्य हो गई, परिवार को और नुकसान न पहुचे इस लिए ठाकुर अमरसिंह जी ने आत्म समर्पण कर दिया, अंग्रेजों से माफ़ी न मांगने के कारण गाँधी इरविन समझोते के बाद भी विद्रोही ठाकुर अमर सिंह S/o लक्ष्मण सिंह की सजा ख़त्म नहीं हुई , ब्रितानी हुकूमत ने विद्रोही अमरसिंह की सम्पति जप्त ही रखी,और ठाकुर अमरसिंह को महू की शांति के लिए खतरा मानते हुए उनका महू में प्रवेश वर्जित रखा। इस तरह अंग्रजों से आजादी के संघर्ष में अमझेरा राजवंश के परिवार तीन लोग बख्तावर सिंह, रघुनाथ सिंह और हरि सिंह शहीद हो गए। ठाकुर अमर सिंह राठौड़ के पौत्र अजित सिंह राठौड़ S/oराम सिंग राठौड़(ओक्ट्रय सुपरिडेंट महू) महू में कालेज प्रोफ़ेसर बन गए, ट्रांसफर होने के बाद नीमच म.प्र. में ही बस गए। वर्ष २००७ के लगभग उत्तर प्रदेश का एक फर्जी व्यक्ति अमझेरा के कुछ लोगों को बरगला कर प्रो.अजित सिंह राठौड़ जगह स्वयं को शहीद राव बख्तावरसिंह राठौड़ का वंशज बता कर सम्मानित होता रहा, अमझेरा की जनता ने उसे सर आँखों पर बिठाया पर कुछ समय बाद ही असलियत सामने आने पर अमझेरावासियों ने उसका तिरस्कार कर दिया था। उसके पहले भी फर्जी तरीके से शहीद बख्तावर सिह के शैशव अवस्था में ही मृत पुत्र किशन सिंह को २७ अप्रेल १८५८ में जन्मा बता कर भीमसिंह के पुत्र किशन सिंह की विधवा द्वारा छ्डावाद के दीप सिंह के दुसरे पुत्र निर्भय सिंह उर्फ़ (लक्ष्मण सिंह) को गोद लेना बता अमझेरा की वारिसी सिध्द कराने कि कोशिश कि गई थी, पर बात नहीं बनी और छ्डावाद केस हार गए, पर लोग बागों में यही भ्रान्ति अभी भी फ़ैली है, कि २७अप्रेल१८५८ में किशन सिंह जन्मे और किशन सिंह विधवा ने लक्ष्मण सिंह को गोद लिया, जबकि उज्जैन में स्थित प. अरविन्द त्रिवेदी मगरगुहा के पूर्वज गुरु किशनलाल की बही में पृष्ठ ८पर ३० दिसंबर १८५७ को शहीद भुवानी सिंह संदला के क्रियाकर्म दर्ज है ,उसी के ऊपर अमझेरा वंशावली पृष्ठ ७ और ८ पर दर्ज है ,जिसमे अजित सिंह बख्तावर सिंह रघुनाथ सिंह और किशन सिंह का नाम दर्ज है,जब ३० दिसम्बर १८५७ के पूर्व से ही किशन सिंह का नाम दर्ज है, तो किशन सिंह का जन्म २७ अप्रेल १८५८ को दोबारा नहीं हो सकता, १८५७ के बाद अमझेरा राजवंश का लेखाजोखा रखनेवाले बड़वाजी शंकर सिंह के पूर्वज अमझेरा क्षेत्र में नहीं गए पर अमझेरा राजवंश कि रानियों का लेखा जोखा रखने वाले रानीमंगा राम सिंग बडवा जी और उनके पूर्वज अमझेरा क्षेत्र में जाते रहे उनके पास दर्ज अमझेरा रानियों से सम्बंधित दस्तावेजों में २७ अप्रेल १८५८ को लक्ष्मण सिंह जन्म की लिखतम है, ठाकुर लक्ष्मणसिंहजी का विवाह भंवर कुँवर भटियानी जी ओसिया से हुआ, उनके पुत्र ठाकुर अमर सिंहजी का विवाह पालनपुर पीथापुर वाघेला जी से हुआ, ठाकुर अमरसिंहजी के पुत्र ठाकुर राम सिंग (ओक्ट्रय सुपरिडेंट महू) का विवाह बरडिया समंद कुंवर सिसोदनी जी से हुआ, ठाकुर राम सिंह के पुत्र प्रो. अजित सिंह राठौड़ का विवाह कृष्णा कुँवर जाधवन जी मेत्राल गुजरात से हुआ। |<sup>[1]</sup> मध्यप्रदेश सरकार ने अमझेरा स्थित महाराणा बख्तावरसिंह के किले को राज्य संरक्षित इमारत घोषित किया है।जिला मुख्यालय से 27 km इंदोर अहमदबाद राज्य मार्ग पर हैं।
सन्दर्भ
1. डॉ. दिवाकर सिंह तोमर, शोधग्रंथ अमझेरा के राजपूत जागीरदारों के राजनीतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक योगदान वर्ष १८५८से वर्ष १९४७तक)मूल्यांकन शोध प्रबंध (2)↑पाटिल, प्रेमविजय (12 अगस्त 2016). "अमर शहीद महाराणा बख्तावरसिंह".पत्र सूचना कार्यालय, भारत सरकार. मूल से 8 अक्तूबर 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 सितंबर 2016.,(3)- नटनागर शोधसंस्थान सीतामऊ लाइब्रेरी स्थित अमझेरा राजवंश कुलगुरु की पोथी, (4)अमझेरा रानीमंगा बड्वाजी रामसिंग जी की बही पोथी १८५७ के बाद की (5)-उज्जैन पंडित अरविंद त्रिवेदी के पूर्वजों की बही पोथी। (6)- महू कंटोलमेंट बोर्ड का रिकार्ड, (7)-वर्ष 1911 से 1935 तक कंटोलमेंट एडवोकेट विद्रोही अमरसिंहS/oलक्ष्मण सिंह प्रकरण (8)-अमझेरा राज्य का वृहत इतिहास लेखक रघुनाथ सिंह राठौड़, (9),अतीत के स्मरण लेखक स्व.मुन्ना लाल पंचोली अमझेरा
1. ↑ "अमर शहीद महाराणा बख्तावरसिंह"पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 सितंबर 2016
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